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Tuesday, August 26, 2014

116 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                  इंसान सम्पूर्णतावादी होता है , इसका मतलब क्या होता है ?
 

                 अगर आपके खाने में नमक न हो या मीठे में शक्कर न हो  ? आपकी ज़िन्दगी में सिर्फ कमाना ही हो खर्च करना न हो ? सिर्फ व्यस्तता हो मनोरंजन न हो ? क्या ये अधूरापन नहीं ? जब बात पैसे के प्रबंधन की आती है तो अमीर मानसिकता एक संतुलन बना कर चलती है . वह मनोरंजन खाते में 10 % डालती है . इस 10 % को उसे इसी महीने खर्च करना होता  है .
       
               एक तरफ तो ज्यादा से ज्यादा कमाने का ,  बचाने का लक्ष्य   है और दूसरी तरफ  10 % उड़ाने का.  इसका क्या अर्थ है ?यही सम्पूर्णतावादी होना है .

             पहली स्थिति में -आप अपने जीवन के एक हिस्से को लम्बे समय तक अधूरा रखते है तो या तो वो सो जायेगा या विद्रोह करेगा . एक आदमी बचत करता है ,कंजूसी करता है , खर्चो को टालता जाता है और और लम्बे समय तक ऐसा ही करता है तो ये उसकी आदत बन जाती है ऐसी स्थिति में उसके मस्तिष्क का पैसे को लेकर तार्किक और जिम्मेदार हिस्सा संतुष्ट हो जाता है लेकिन मस्तिष्क का दूसरा हिस्सा जो मनोरंजन प्रधान है , सुकून चाहता है , नियंत्रण मुक्त होना चाहता है उसका क्या ? पैसे बचाने के अनुशासन को लेकर एक दिन वो हिस्सा  परेशान हो जायेगा और बचाये हुए सारे पैसे अतार्किक तरीके से बर्बाद कर देगा या फिर वो मनोरंजन प्रधान हिस्सा हमेशा के लिए सो जायेगा - क्योंकि पैसा बचाना आदत जो हो गई है !!!
  
                     दूसरी स्थिति में -अगर आप  खर्च करेंगे ,खर्च करेंगे और खर्च करेंगे  तो कभी भी अमीर नहीं बन पाएंगे आपके मस्तिष्क का पैसे के लिए जिम्मेदार हिस्सा आपको अपराध बोध  करवाने लगेगा ,आप आनंद की चीज़ों में भी आनंद की बजाय तनाव महसूस करेंगे . और इस तनाव को दूर करने के लिए फिर से कुछ खर्च करेंगे जिससे और ज्यादा तनाव पैदा होगा , इस चक्र से निकलने का तरीका यही है कि आप पैसे का उचित प्रबंधन सीखें .
                    आपका ये मनोरंजन खाता आपके मस्तिष्क के आनंद वाले हिस्से को संतुष्ट करने के लिए है ,एनेर्जिक करने के लिए है , रिफ्रेश करने के लिए है , मनोरंजन करने के बाद जब ये काम पर लौटता है तो दुगनी गति से उत्पादक हो जाने के लिए है .

                   अमीर मानसिकता "या ये" अथवा "या ये " नहीं चुनती बल्कि दोनों एक साथ चुनती है क्योंकि वो सम्पूर्णतावादी होती है .

(यह पोस्ट मेरी पहले की पोस्ट 112,114  एवं 115 की कड़ी है - इसे बराबर समझने के लिए पूर्व की दोनों पोस्ट भी पढ़ें )

-सुबोध

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