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Thursday, October 16, 2014

143 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट 137 से आगे -
किसी प्रोडक्ट की सेल क्लोज करने से पहले प्रोडक्ट की खासियतों  के बारे में बताया जाता है ,इसे प्रोडक्ट का प्रचार करना भी कहते है. कुछ लोग प्रचार से चिढ़ते है जो सफलता की राह में एक बड़ी बाधा है .प्रचार से चिढना या सेल से बचने की कोशिश करना आपको मुनाफे से दूर करता है और  इस  तरह  की हरकतें अमूनन गरीब  लोग करते  है.अगर  आप  प्रचार करने और  सेल करने से बच  रहे  है तो  खुद की कीमत  कैसे  बढ़ाएंगे? ऐसी स्थिति में अगर आप किसी  कंपनी में कर्मचारी है तो कोई दूसरा एम्प्लोयी अपनी खासियतें बता कर आपसे आगे निकल जायेगा और अगर आप व्यापारी है तो  बिना अपने प्रोडक्ट की खासियत बताये लोगों की निगाहों में कैसे आएंगे ? 
पुरानी कहावत है "लोग उसकी सुनते है जो बोलता है" तो बोलिए - अपनी ,अपने प्रोडक्ट की खासियतें बताइये .
लोगों को कई कारणों से प्रचार करने या बेचने में समस्या महसूस होती है ,आइये उन्हें समझे -
1 . आपका दिमाग आपका स्टोररूम है इस स्टोररूम में आपके साथ जो भी गुजरा हो वो आप चाहे या न चाहे अलग-अलग रिलेटेड फाइल में जाकर फाइल होता रहता है .और जब उस घटना या वाक्यात के जैसा या मिलता जुलता दुबारा आपके सामने आता है तो आपके दिमाग का स्टोररूम उससे सम्बंधित फाइल आपको पकड़ा देता है कि देखो ऐसा तुम्हारे साथ पहले भी हुआ है और उसका ये परिणाम रहा था . ये सारी क्रियाएँ स्वाभाविक सी है और हम सब इस बारे में अनुभवी है .
हो सकता है आपके साथ अतीत में कुछ बुरा हुआ हो ,जब किसी ने जबरन आपको कोई सामान बेचा हो  जो आपको आपके अनुसार पूरा मूल्य नहीं दे पाया हो या बेचने वाले ने गलत तरीके से प्रचार किया हो और आप खुद को ठगा गया महसूस करते हो  या बेचने वाले ने सामान खरीदने के लिए इतना ज्यादा आपको परेशान किया हो कि आपको सेल्स के नाम से ही चिढ़ होती हो .इसलिए आप आज सेल्स को अच्छा नहीं समझते . ये आपके व्यक्तिगत अनुभव हो सकते है या सामूहिक अनुभव भी हो सकते है  .
कृपया ये ध्यान रखे आपके साथ अतीत में जो हुआ है वो एक  हादसा था और हादसों को पकड़ कर रखने से ज़िन्दगी में डर,नफरत ,निराशा और दर्द के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होता ,ज़िन्दगी आगे बढ़ने के लिए होती है और कल का सच आज भी सच हो ये ज़रूरी नहीं .

2 . हो सकता है आपने कभी कोई सामान बेचने की कोशिश की हो ,जिसके बारे में आपको खुद को पूरी जानकारी नहीं थी और संभावित खरीददार ने आपको नकार दिया हो ,उसने आपको इस तरह के तर्क दिये हो जिनका आप जवाब नहीं दे पाये हो या आपको बुरी तरह से फटकारा  गया हो, अपमानित किया गया हो और उस हादसे को आप अभी तक नहीं भूला पाये हो,आप उस काम के लिए ग्लानि महसूस करते हो उससे उबर  नहीं पाये हो .
 कृपया ध्यान देवे अपनी एक बार की असफलता या अस्वीकृति को ज़िन्दगी भर मत ढोयें, वो एक बार का बोझ अभी तक आपको उबरने नहीं दे रहा है उस बोझ को काँधे से , दिमाग से उतार फेंक दीजिये वो बोझ सिर्फ हाथी के  पैरों की कमजोर बेड़ी है- हाथी की ताकत से कही बहुत कमजोर उसे समझिए और कंडीशनिंग की प्रदूषित दुनिया से बाहर आकर खुली हवा में सांस लीजिये .

3- अमूनन हम सबको ये सिखाया जाता है कि अपनी खुद की या खुद की वस्तुओं की तारीफ़ नहीं करनी चाहिए ,ये "अपने मुँह मियां मिट्ठू बनना" कहलाता है और बार बार दी गई हिदायतें ,सिखाया गया एटीकेट हमारी आदत  बन जाता है लिहाजा हम अपनी या अपनी वस्तुओं की तारीफ़ करना सभ्यता  के अनुकूल नहीं मानते ,ये संस्कार हमे सेल्स से दूर कर देते है,प्रचार से दूर कर देते है .
कृपया ध्यान देवे ये संस्कार आदिम युग के ज़माने के है जब आबादी इतनी कम थी कि लोग स्वयं एक-दूसरे के बारें में जानते थे तब उन्हें अपने बारे में बताना अपनी बड़ाई करना था , हम सदियों से उन संस्कारों को ढोये जा रहे है जो अपनी उपयोगिता खो चुके है , बल्कि यही बेवकूफी भरे संस्कार ,एटीकेट हमारी ग्रोथ में रुकावट बन गए है . हम अपने बारे में लोगों को बताते नहीं है यहाँ तक कि हमारा पडोसी भी हमारे बारें में नहीं जानता . जब तक आप अपनी या अपने प्रोडक्ट की खासियत या काबिलियत लोगों तक पहुंचाएंगे नहीं और लोगों को पता नहीं चलेगा आपकी उन्नति के मार्ग प्रशस्त नहीं होंगे ये समझ लीजिये और याद कीजिये उस पुरानी कहावत को कि "जो दिखता है वो बिकता है " तो खुद को ,अपने प्रोडक्ट को दिखाइए ,एक्सप्लेन या एडवर्टाइज  करने के नए-नए तरीके अपनाइये .

4  . हो सकता हो आपमें सुपेरिओरिटी  काम्प्लेक्स हो कि मैं जब बेहतरीन हूँ ,मेरा प्रोडक्ट जब बहुत अच्छा है तो मुझे प्रचार की क्या ज़रुरत है लोग मुझ तक अपने-आप ढूंढते हुए आएंगे,उन्हें आना चाहिए .ये एक तरह नजरिया होता है जिसमे उच्चता की भावना प्रबल होती है इतनी प्रबल कि  उन्हें लगता है प्रचार करना मेरी शान के खिलाफ ही नहीं है बल्कि मेरा अपमान है . उन्हें लगता है कि मैं इतना खास हूँ या मेरा प्रोडक्ट इतना ज़बरदस्त है कि लोगों को किसी तरह खोज कर मेरे पास आना चाहिए . यह अहंकार का ही दूसरा रूप होता है .
जो लोग इस तरह से सोचते है या जिनकी ये मानसिकता बन गयी है जिन्होंने अपने दिमाग के दरवाज़े बंद कर लिए है उनके बारे में तय है कि ये अपने कम्फर्ट जोन में है और उनकी उन्नति की सम्भावनाये सीमित है .इस तरह की सोच उन्हें दिवालियेपन  की और धकेल रही है क्योंकि इस युग में अच्छे प्रोडक्ट्स की भरमार है और जिनके पास प्रोडक्ट है वे सुनियोजित तरीके से प्रचार के माध्यम से अपनी  पैठ ग्राहकों तक बना रहे है और आप इस घमंड में है कि मेरे बेहतरीन प्रोडक्ट की जानकारी करते हुए, ढूंढते हुए  लोग मुझ तक चला कर आएंगे .
पुराने ज़माने की कहावत कि ":बेहतर प्रोडक्ट बनाइये दुनिया आपका दरवाज़ा खटखाएगी " आज अधूरी हो गई है इसमें ये शब्द और जोड़ दीजिये तो ये पूरी हो जाएगी और ये आज का इसका वर्जन इस युग के अनुसार ज्यादा सटीक है  "बशर्ते आप दुनिया को इसके बारे में बताये  " सुपेरिओरिटी काम्प्लेक्स वालों को पुरानी कहावत याद है आधी कहावत कृपया उन्हें पूरी कहावत याद करनी चाहिए
"बेहतर प्रोडक्ट बनाइये दुनिया आपका दरवाज़ा खटखाएगी,बशर्ते आप दुनिया को इसके बारे में बताये  "

5  . हो सकता है आपकी कंडीशनिंग ऐसी हुई हो जिसमे आपको सेल्समेन  के बारे में कुछ गलत बातें बताई गई हो  ,आपके दिमाग में उनकी गलत छवि बनायीं गई हो और इसके लिए बहुत से उदाहरण बताये गए हो,दिखाए गए हो .
एक गलत तरीके की कंडीशनिंग से छुटकारा पाने के तरीके मेरी पुरानी पोस्ट्स में बताये गए है कृपया उन्हें देखे .

ध्यान देवे अमीर लोग हमेशा बहुत अच्छे प्रचारक होते है ये अपनी खासियतों को,अपनी सेवाओं को,अपने प्रोडक्ट को  बेहतरीन पैकेजिंग में पेश करते है .ये इतने जोश और उत्साह से ये सब करते है कि उनकी मार्किट वैल्यू हमेशा बढ़ती रहती है . उनकी अमीरी का महत्वपूर्ण राज उनकी सेल्स की काबिलियत है !!
सुबोध
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Tuesday, October 14, 2014

142 . सही या गलत -निर्णय आपका !

व्यवसाय चलाने के लिए टेक्नोलॉजी और व्यवहारिकता दोनों की ज़रुरत होती है .
लोगों से मिलना- जुलना सीखिये ,उनसे व्यवहार करना सीखिये व्यवहारिक बनिये , व्यवहार मार्किट में बिकनेवाली वस्तु नहीं है कि ज़रुरत हुई और जाकर खरीद लाये .
टेक्नोलॉजी और टेक्नीशियन आप फिर भी मार्किट से खरीद सकते है , ये मार्किट में मिलते है !
ध्यान देवे किसी एम्प्लोयी को उसकी किसी स्किल के कारण चुना जाता है और व्यवहारिक न होने की वजह से निकाल दिया जाता है. आप अपनी स्किल की वजह से जॉब पा सकते है मगर उस जॉब को बरक़रार रखने के लिए आपमें व्यवहारिकता होनी चाहिए .स्किल आपको जॉब दिला सकती है लेकिन वो व्यवहारिकता है जो आपको जॉब में टिका सकती है .
अगर आप बिजनेसमैन है तो आपके बिज़नेस पर भी यही फंडा लागू होता है - आपकी सफलता आपकी व्यवहारिकता में है .
- सुबोध
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Monday, October 13, 2014

141 . सही या गलत -निर्णय आपका !



बहुत से लोगों के पास बहुत सी बेहतरीन आइडियाज होती है लेकिन वो उनके दिमाग में होती है और वही दफ़्न हो जाती है वो उनकी महान आईडिया इस लायक नहीं बन पाती कि लाखो-करोडो पैदा कर सके ,इसकी मुख्य वजह ये है कि जिनके दिमाग में ये आईडिया आती है वो खुद को बहुत ही साधारण मानते है उस आईडिया पर गंभीरता से विचार और कार्य नहीं करते ,उन्हें खुद को इसकी सफलता पर संदेह रहता है .

उनका अधूरापन उनका दुश्मन बन जाता है ,कोई और उसी आईडिया पर काम करता है और पैसों का ढेर लगा लेता है लेकिन उनकी छोटेपन की कंडीशनिंग उनका पीछा नहीं छोड़ती ,उन्हें लगता है कि ग्रेट आईडिया सिर्फ ग्रेट लोगों के ही दिमाग में आ सकते है हम जैसे साधारण लोग साधारण पैदा होते है ,साधारणता में गुजारा करते है और साधारणता में ही गुजर जाते है .

वे इस बात को नहीं समझ पाते कि विचारों पर किसी का भी एकाधिकार नहीं होता . प्रकृति ने किसी भी व्यक्ति के साथ किसी किस्म का भेद-भाव नहीं किया , सबको बराबर धूप ,बराबर पानी ,बराबर हवा, बराबर खुशबु, बराबर वक्त ,बराबर अँधेरा ,बराबर रोशनी, बराबर निराशा ,बराबर आशा,बराबर एहसास कहने का अर्थ हर चीज़ बराबर -बराबर दी है ,व्यक्ति ने अपने बैरियर्स खुद बनाये है .

एक गरीब को लगता है कि मैं झुग्गी-झोपड़ी में रहता हूँ ,मेरे यहाँ रोशनी कम आती है ,जबकि अमीरों के बंगले में भरपूर रोशनी होती है ये उसकी सोच उसका दायरा बन जाती है और वो इस सोच को अपने दुर्भाग्य से जोड़ लेता है ,अपनी,अपने पेरेंट्स की नाकामी से जोड़ लेता है ;धीरे-धीरे यही सोच बड़ी होती जाती है ,ज़िन्दगी के दूसरे क्षेत्र में भी छाने लगती है और प्रकृति ने जिस" बराबर इंसान" को पैदा किया था वो खुद को छोटा मानने लगता है ,छोटा हो जाता है ! लिहाजा उसके दिमाग में आनेवाली महान आईडिया भी उसको बेवकूफी लगती है .

कुछ लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहते है,जहाँ रोशनी कम आती है लेकिन वे कम रोशनी को नहीं देखते ,देखते है कि झुग्गी-झोपड़ी से निकलने के बाद रोशनी का कोई फर्क नहीं रह जाता वे प्रकृति को धन्यवाद देते है और दूसरी नियामतें जो प्रकृति ने उन्हें दी है उन पर ध्यान केंद्रित करते है और उन नियामतों की ताकत के बल पर कुछ ऐसा कर गुजरते है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाता है ,वे किसी भी तरह के बैरियर्स से खुद को आज़ाद रखते है !
ध्यान रखे हारने वाले के लिए बहाने बहुत होते है और जीतने वाले के लिए रास्ते बहुत होते है !!!
सुबोध
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Photo: 141 . सही या गलत -निर्णय आपका !बहुत से लोगों के पास बहुत सी बेहतरीन आइडियाज होती है लेकिन वो उनके दिमाग में होती है और वही दफ़्न हो जाती है वो उनकी महान आईडिया इस लायक नहीं बन पाती  कि लाखो-करोडो पैदा कर सके ,इसकी मुख्य वजह ये है कि जिनके दिमाग में ये आईडिया आती है वो खुद को बहुत ही साधारण मानते है उस आईडिया पर गंभीरता से विचार और कार्य नहीं करते ,उन्हें खुद को इसकी सफलता पर संदेह रहता है .  उनका  अधूरापन उनका  दुश्मन बन जाता है ,कोई और उसी आईडिया पर काम करता है और पैसों का ढेर लगा लेता है लेकिन उनकी छोटेपन की कंडीशनिंग उनका पीछा नहीं छोड़ती ,उन्हें लगता है कि ग्रेट आईडिया सिर्फ ग्रेट लोगों के ही दिमाग में आ सकते है हम जैसे साधारण लोग साधारण पैदा होते है ,साधारणता में गुजारा करते है और साधारणता में ही  गुजर जाते है .वे इस बात को नहीं समझ पाते कि विचारों पर किसी का भी एकाधिकार नहीं होता . प्रकृति ने किसी भी व्यक्ति के साथ किसी किस्म का भेद-भाव नहीं किया , सबको बराबर धूप ,बराबर पानी ,बराबर हवा, बराबर खुशबु, बराबर वक्त ,बराबर अँधेरा ,बराबर रोशनी, बराबर निराशा ,बराबर आशा,बराबर एहसास कहने का अर्थ हर चीज़ बराबर -बराबर दी है ,व्यक्ति ने अपने बैरियर्स खुद बनाये है . एक गरीब को लगता है कि मैं झुग्गी-झोपड़ी  में रहता हूँ ,मेरे यहाँ रोशनी कम आती है ,जबकि अमीरों के बंगले में भरपूर रोशनी होती है ये उसकी सोच उसका  दायरा बन जाती है और वो इस सोच को अपने दुर्भाग्य से जोड़ लेता है ,अपनी,अपने पेरेंट्स की नाकामी से जोड़ लेता है ;धीरे-धीरे यही सोच बड़ी होती जाती है ,ज़िन्दगी के दूसरे क्षेत्र में भी छाने लगती है और प्रकृति ने जिस" बराबर इंसान" को पैदा किया था वो खुद  को छोटा मानने लगता है ,छोटा हो जाता है ! लिहाजा उसके दिमाग में आनेवाली महान आईडिया भी उसको बेवकूफी लगती है . कुछ लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहते है,जहाँ रोशनी कम आती है लेकिन वे कम रोशनी को नहीं देखते ,देखते है कि झुग्गी-झोपड़ी से निकलने के बाद रोशनी का कोई फर्क नहीं रह जाता वे प्रकृति को धन्यवाद देते है  और दूसरी नियामतें जो प्रकृति ने उन्हें दी है उन पर ध्यान केंद्रित करते है और उन नियामतों की ताकत के बल पर कुछ ऐसा कर गुजरते है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाता है ,वे किसी भी तरह के बैरियर्स से खुद को आज़ाद रखते है !ध्यान रखे हारने वाले के लिए बहाने बहुत होते है और जीतने वाले के लिए  रास्ते बहुत होते है !!!सुबोध  www.saralservices.com

Friday, October 10, 2014

140 . सही या गलत -निर्णय आपका !

           बड़ी अजीब सी सोच होती है लोगों की , उन्हें सफलता चाहिए होती है लेकिन उन्हें सफलता का शॉर्टकट चाहिए .अब उन्हें कौन समझाये और कैसे समझाये कि  कुछ चीज़ों का शॉर्टकट नहीं होता उन चीज़ों को अगर आप  शॉर्टकट से पा भी लेंगे  तो वे लम्बे वक्त तक टिकेगी नहीं . जैसे वो शॉर्टकट से आई है उसी तरह वो चली भी जाएगी ,बिना नींव के पहली बात छोटे-मोटे टेंट टाइप के मकान बन सकते है एक बड़ी और शानदार बिल्डिंग के लिए तो आपको नींव की ज़रुरत होगी .और दूसरी बात ज़िन्दगी का तूफ़ान ,एक विपरीत परिस्थिति आपकी टेंट टाइप की हैसियत को सुखहाली से  बदहाली में बदल देगी इसलिए आप एक नींव बनाये और नींव तो नींव होती है फिर वो चाहे मकान की हो ,आपकी शिक्षा की हो,आपकी अमीरी की हो  या फिर आपकी किसी अन्य सफलता की हो .
       अगर आपने अपनी नींव को मज़बूत बनाया है तो पहली बात आप सेफ है और दूसरी बात अगर किसी  हादसे के कारण आप बर्बाद भी हो जाते है तो आप दुबारा खड़े हो पाएंगे -फीनिक्स की तरह . क्योंकि नींव बनाने के दरम्यान आपने सीखा होता है कि रुकावटों से पार कैसे पाया जाता है जबकि शॉर्टकट में तो आप ज़िन्दगी की ऊंच-नीच से वाकिफ ही नहीं हो पाते .आपने सिर्फ पहाड़ की चोटी देखी है ,चढ़ाई के दौरान आनेवाली दिक्कतों को न देखा है ,न समझा है ,न महसूस किया है और न ही जीया है तो अगर चोटी से जिस दिन आप  लुढक गए उस दिन आपका  क्या होगा ? हर बार तो ज़िन्दगी शॉर्टकट से आपको  चोटी पर नहीं पहुंचा सकती है - हर दिन सट्टेबाज़ों का नहीं होता,जुआरियों का नहीं होता ,लाटरी जीतने वालों  का नहीं होता .
        अगर आपको अपनी सफलता को स्थायित्व देना है तो आपको उस लम्बे प्रोसेस से गुजरना ही होगा जहाँ आप चीज़ों को बनाना सीखते है (बना कर पाई हुई चीज़ आपको ज्यादा संतुष्टि देती है-- आपको अपनी पहली ख़रीदी गई फ्रीज़ की, गाड़ी की मनस्थिति आज भी याद होगी ! ) सम्हालना सीखते है ,बढ़ाना सीखते है . अगर आपने तुक्के में कोई  सफलता पाई है तो पहली बात आप उस सफलता को पचा नहीं पाएंगे आपको उल्टी ( vomiting  ) हो जाएगी और खुदा न खास्ता आपने उसे पचा लिया तो दूसरी बात आप उसे बढ़ा नहीं पाएंगे क्योंकि बढ़ाने में जो काबिलियत चाहिए वो काबिलियत तो आपमें है ही नहीं .तो बेहतर है रास्ता वो चुनिए जिसमे स्थायित्व हो बेशक वो चाहे लम्बा ही क्यों न हो क्योंकि उस रास्ते में हो सकता आप परेशान हो जाए,आपको जगह-जगह चोट लगे, आप चलते-चलते थक जाये,प्यास से आपका गला सूखे,भूख से आतें कुलबुलाये ,आपकी सांस फूल जाये ,हज़ार मुसीबतें आपको मिले लेकिन उस रास्ते से गुजरने के बाद आप जो पाएंगे वो स्थायी होगा और रास्ते के बीच झेली हुई मुसीबतें आपको ताकत,होंसला और सकारात्मक सोच देगी जिसका कोई भी जोड़ नहीं होता,जो खुद में अनमोल है !
- सुबोध

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139 . सही या गलत -निर्णय आपका !

कुछ लोग अपनी टीम पर ,जिसे उन्होंने खुद बनाया है -उसी टीम पर भरोसा नहीं कर पाते !

अगर आप भी उन लोगों में से है तो खुद से एक सवाल करें कि आपको भरोसा अपनी टीम पर नहीं है या खुद पर नहीं है ,कृपया जवाब बड़ी ईमानदारी से देवे .

जवाब चाहे जो हो दोनों ही स्थितियों में दोषी आप है ,इसकी जिम्मेदारी लेवे और अपेक्षित सुधार करें .

बड़े सपने पैरों में बेड़ी के अलावा कुछ भी नहीं है अगर आप बड़े स्तर पर सोचते नहीं है,बड़े प्रयास नहीं करते है और बड़े प्रयास करने के लिए एक जिम्मेदार टीम नहीं बना पाते है .

ये ध्यान रखे अगर छोटी सफलता पानी है तो मुमकिन है आप अकेले अपने दम पर पा सके लेकिन बड़ी सफलता के लिए आपको एक समर्पित टीम बनानी ही होगी !!
सुबोध

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Thursday, October 9, 2014

138 . सही या गलत -निर्णय आपका !

सफलता चाहना किसी सपने का प्रारंभिक स्तर है, यह एक बीज है और बीज की उपयोगिता कुछ भी नहीं होती अगर उसे बीजा न जाए . बीज को बीजना पहली आवश्यकता है उसके बाद उसे खाद देना ,पानी देना उसकी सम्हाल  करना दूसरी आवश्यकता है जिसे आप कह सकते है कि सपने पूरे करने के लिए एक प्लानिंग के तहत कार्य करना या सपनो तक पहुंचने के लिए पुल का निर्माण  करना और जहाँ आप कार्य करना शुरू कर देते है वहां चाहना ( चाहत )  अगले स्तर पर पहुँच जाती है जिसे मैं चुनना ( चुनाव ) कहूँगा  हकीकत में यही  वो कदम है जहाँ से सफलता आपकी तरफ आकर्षित होना शुरू करती है !
कुछ विचारक सपने को सफलता का पहला स्तर मानते है जबकि मेरा सोचना यह है कि सपने देखना एक भिखारी स्तर के अलावा कुछ भी नहीं है अगर उन्हें कार्य रूप में परिणित नहीं किया जाता .मेरी निगाह में जब आप सपनों पर गंभीर होकर एक प्लानिंग करते है और उस प्लानिंग के तहत कार्य करना शुरू करते है तभी आप सपने साकार करने की तरफ बढ़ते है.सपने देखना एक सकारात्मक कदम है लेकिन उन देखे हुए सपनों पर कार्य न करना आपको शेखचिल्ली बनाता है और इस तरह के लोग समाज में कितना आदर  पाते है ये आप आये दिन देखते है .

सफलता का चुनाव करना महत्वपूर्ण बन जाता है क्योंकि यही से आपका नजरिया बदलना शुरू हो जाता है आप सफलता  के अगले स्तर में प्रवेश कर जाते है जिसे समर्पण कहते है . उस स्थिति में आपका दिल,दिमाग और जिस्म शिद्दत से सफलता पाने में जुट जाता है ,रोम-रोम सफलता पुकारता है , कण-कण में सफलता ,पल-पल में सफलता ,चारों और सफलता,सिर्फ सफलता ...यह एक नशे की तरह होता है जहाँ आपको सफलता के अलावा कुछ भी नज़र नहीं आता ,ज़िन्दगी में आपकी प्राथमिकताएं बदल जाती है उन दिनों आप अपने परिवार को भूल जाते है ,खाना - पीना भूल जाते है ,सोना- जागना भूल जाते है ,सारे शौक ,सारे मौज -मजे भूल जाते है आप सब कुछ भूल जाते है सिवाय उस लक्ष्य के ;जब आप ऐसी स्थिति में होते है  तो ऐसी स्थिति को "लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन "कहा जा सकता है कि अब आप उस स्थिति में पहुँच गए है जहाँ से आप सफलता को आकर्षित कर पा रहे है . ( इस स्थिति की कल्पना कीजिये ,लिखे गए शब्दों ,वाक्यों में डूब जाइये ,इन्हे महसूस कीजिये अगर आप इस स्थिति को महसूस नहीं कर पा रहे है ,इस स्थिति से नहीं गुजरे है तो निश्चित ही आप एक असफल व्यक्ति है और सफलता पाने के लिए आपको पूर्णतः ऐसी ही स्थिति चाहिए जब आप आप न रहे लक्ष्य बन जाए !!)
सफलता आपको पार्क में टहलते हुए मिल जायेगी या सोचने से,सपने देखने से ,बातें करने से,गप्पबाज़ी करने से मिल जायेगी ऐसा सोचना खुद को धोखा देने के अलावा कुछ भी नहीं है ,अगर आपको सफलता चाहिए तो आपको वो सब करना पड़ेगा जिससे सफलता आपकी तरफ खींची चली आये ,आपकी तरफ आकर्षित हो .आप आलू बोकर आम की फसल पाने की सोचे तो आप चाहे जितनी सकारात्मक सोच वाले हो आलू आम नहीं बन जायेंगे . आलू बोये है तो आपको आलू ही मिलेंगे . अगर आपको आम पाने हो तो आलू बोना बेवकूफी है. इसी तरह से आपको सफलता पानी है तो आपको सफलता के बीज बोने  पड़ेंगे  ,अमीरी पानी है तो अमीरी के बीज बोने पड़ेंगे !!!
-सुबोध

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Friday, October 3, 2014

137 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट 136  से आगे -
जब तक आप को यह पता न हो कि आप जो कर रहे है उस करने का कोई एक अलग अर्थ भी है तब तक आप उस अलग अर्थ का कोई सदुपयोग नहीं कर पाएंगे . आपका एक गरीबदोस्त अपनी बातचीत में किसी  प्रोडक्ट की खासियत के बारे में बात करता है  तो ज़ाहिर सी बात है वो सेल्समैनशिप वाला कार्य करके भी उसका कोई आर्थिक फायदा नहीं उठा पाता है क्योंकि उसकी नज़र में वो सेल्समेन वाला कार्य नहीं कर रहा है  यानि उसे पता ही नहीं है कि वो जो कर रहा है उसका एक अलग अर्थ भी है .
गरीबों के साथ यही होता है कि उन्हें पता ही नहीं होता कि वे जो कर रहे है उसका कोई व्यावसायिक उपयोग भी हो सकता है जिससे उन्हें आर्थिक लाभ मिल सकता है ,अगर उन्हें इसका पता होता तो वे अपनी सेल्समेनशिप वाली क्वालिटी को बेहतर करते और अच्छा मुनाफा हासिल करते .
 जैसे अगर मैं कोई बुक रेफेर करता हूँ तो इनडायरेक्टली  ये उस बुक की मार्केटिंग है ,उस बुक को बिकवाता हूँ तो ये सेल्स क्लोज करना है , अधिकतर कंपनियां सेल क्लोज करने पर आपको कुछ हिस्सा मार्जिन में से देती है चूँकि गरीब को पहली बात तो ये पता नहीं होती कि वो मार्केटिंग कर रहा है और दूसरी बात ये कि उसे सेल क्लोज करना नहीं आता . जब वो पहली बात में ही क्लियर नहीं है तो दूसरी बात वाली क्वालिटी खुद में डेवेलप कहाँ करेगा ! और जब तक सेल क्लोज नहीं करेगा उसकी जेब में कुछ आएगा भी नहीं . 
गरीब सिर्फ मार्केटिंग  करते है ,सेल क्लोज नहीं करते लिहाजा उन्हें अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता .
अमीरों की स्थिति कुछ अलग होती है -उन्हें पता होता है कि हम किसी प्रोडक्ट की तारीफ़ करते है तो उसका मतलब क्या होता है लिहाजा वो सेल्स को सीरियसली लेते है और सेल क्लोज करना भी सीखते है . संसार के सारे अमीर खुद में एक बहुत अच्छे सेल्समन भी होते है मेरी जानकारी में कोई भी अमीर ऐसा नहीं है जो खुद में एक अच्छा सेल्समेन नहीं हो . कृपया सेल्स को हलके या अधूरे सन्दर्भ में न लेवे , यह संसार के सबसे बड़े सब्जेक्ट में से एक है लेकिन इसकी डिटेल में जाना मेरी इस पोस्ट का विषय नहीं है .
ध्यान रखे संसार के सबसे टफ कार्यों में से एक सेल क्लोज करना है और इसकी इम्पोर्टेंस ये है कि संसार में सबसे ज्यादा पेमेंट इसी कैटगरी वालों को मिलता है.  अमीर बनने के लिए ये निहायत ज़रूरी है कि आप सेल्स के बारे में सीखे,समझे,जाने और करें .
सुबोध
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Thursday, October 2, 2014

136 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट 48 " बेचना आना चाहिए" के बारे में थी .

अमीर बेचने के तरीके जानते है ,अहमियत समझते है जबकि गरीब बेचने को  तकरीबन नापसंद करते है ,इसे हेय दृष्टि से देखते है !

पहली बात ये समझे कि बेचना क्या होता है ,अमूनन गरीबों को" बेचने" के बारे में अधूरी जानकारी होती है .

कोई भी ऐसी कार्यवाही जिसकी वजह से कोई भी वस्तु के पक्ष में वातावरण का निर्माण हो रहा हो वो कार्यवाही बेचने का एक हिस्सा है !

आप T . V . में ढेरों ऐड देखते है ,वो किसी वस्तु के पक्ष में वातावरण का निर्माण भर है - लेकिन सेल्स का एक पार्ट है - कई विद्वानो की अलग-अलग परिभाषाएं है , अगर आपको बेचने के बारे में उलझन चाहिए तो उन्हें पढ़िए और सीधी सी समझ चाहिए तो उपरोक्त बात समझिए .

इस समझ के मुताबिक आप अगर किसी की भी तारीफ़ करते है तो Indirecty  उसकी मार्केटिंग कर रहे होते है , बेचने का हिस्सा हो जाते है .
अगर आप किसी को देखकर हंस रहे है तो आप अपनी मार्केटिंग कर रहे होते है ! अगर आप किसी Social Site पर खुद को update कर रहे है तो भी अपनी मार्केटिंग कर रहे होते है ,अगर आप अपनी Girlfriend  के साथ Dating कर रहे है तो अपनी मोहब्बत की Marketing कर रहे है - इसी बात को आप खुद अलग-अलग तरीके से समझ लेवे ,और जब समझ जावे तो मुझे बताये कि आपकी जानकारी में कोई एक ऐसा शख्स है जो बेचने का काम नहीं कर रहा है ?
यानि संसार का हर शख्स कुछ न कुछ बेच रहा है ,कोई भी इस बेचने से अछूता नहीं है ! एक भिखारी से लेकर किसी मुल्क का प्रधानमंत्री तक,एक शिक्षक से लेकर एक विद्यार्थी तक, एक नौकर से लेकर मालिक तक , एक पिता से लेकर पुत्र तक  हर शख्स Salesman  है ,हर शख्स मार्केटिंग कर रहा है !!

गरीबों को बेचने के बारे में अधूरी जानकारी होती है - वो हर पल हर घडी कुछ न कुछ बेच रहे होते है लेकिन उन्हें ये पता ही नहीं होता है कि वे बेच रहे है !!
वे खुद को जिस जॉब में है उस जॉब का कर्मचारी मानते है जबकि हकीकत में वे अपनी सेवाएं बेच रहे होते है ,वे पेड़ के उस हिस्से को देख पाते है जो ज़मीन से ऊपर है ,ज़मीन के नीचे के हिस्से को उनकी नज़रें देख नहीं पाती और दिमाग शब्दों के दायरे में कैद होकर रह जाता है ,शब्दों के वास्तविक अर्थ तक पहुँच ही नहीं पाता !
वे शब्द खतरनाक होते है जिनका आप हर रोज़ इस्तेमाल करते है लेकिन उनका अर्थ नहीं जानते है ऐसे शब्द आपकी ज़िन्दगी को बर्बाद कर सकते है !! गरीबों के साथ यही हो रहा है , वे सेल्समेन होकर भी खुद को सेल्स से बाहर मान रहे है और खुश हो रहे है !! अगर उन्हें शब्दों का सही अर्थ पता होता और पता होता कि वे बहुत अच्छे सेल्समेन है तो आज उनकी स्थिति कुछ अलग होती !!!
Post  लम्बी हो गई है बाकी अगली पोस्ट में
-सुबोध
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