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Monday, September 29, 2014

135 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप पहली बार नया काम करते है तो अमूनन वो मुश्किल ही होता है लेकिन उसके बाद जब उसे दुबारा करेंगे  तो वो उतना मुश्किल नहीं लगेगा  और उसी कार्य को  फिर किया तो ?
कोई भी कार्य लगातार  दोहराने से आसान हो जाता है, जब ये आसान हो जाता है तो इसे करना सुखद  हो जाता है .और मानव स्वाभाव के अनुसार  सुखद कार्यों को वो बार-बार करना चाहता है और जब इसे बार-बार किया जाता है तो ये कार्य करना आदत  बन जाता है - उस स्थिति में वो कार्य उसके कम्फर्ट जोन ( Comfort Zone ) के दायरे में आ जाता है .
मुझे याद है मैं 10  साल पहले तक सिस्टम पर काम किया करता था ,जब पहली बार लैपटॉप लिया था तो लैपटॉप में  माउस न होने की वजह से बहुत दिक्कत होती थी ,उस दिक्कत से बचने के लिए मैंने एडिशनल माउस तक मंगवा लिया था ,लेकिन फिर धीरे-धीरे अभ्यास से बिना माउस से ही लैपटॉप पर काम करने लगा और आज मेरे लिए सिस्टम से ज्यादा लैपटॉप पर काम करना आरामदेह  है , यानि मेरा" टफ जोन "आज "कम्फर्ट जोन" में बदल गया है
आपके पास खुद के इसी तरह के ढेरों उदहारण होंगे कि आपने अपने उस बैरियर को तोडा है जो आपका टफ जोन था , अगर वो बैरियर आप नहीं तोड़ते तो आप कहाँ होते ?
हमेशा ध्यान रखे बाहर कोई भी मुश्किल उतनी मुश्किल नहीं होती जितनी आपके दिमाग में होती है , जब आप उस काम को करने जाएंगे जिसे आप कठिन मानते है तो वो उतना कठिन नहीं होगा जितना कठिन आपके दिमाग के स्टोर रूम में पड़ी फाइलों ने आपको बताया है और अगर आपके अनुमान से वो ज्यादा कठिन है तो आपने अपनी 2 किलोमीटर की दौड़ को सीधे  ही 6  किलोमीटर के स्तर पर पहुँचाने की कोशिश की है !! ऐसी स्थिति में मैं आपको यही कहूँगा कि कृपया खुद को टफ जोन में धकेलिये ,पहाड़ के ऊपर से धक्का मत दीजिये ; खुद को मोटीवेट ( Motivate ) कीजिये न कि खुद के प्रति निष्ठुर बनिये !!!
- सुबोध
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Thursday, September 25, 2014

134 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आपका आरामदेह दायरा क्या है ? आपका कम्फर्ट जोन क्या है ?
मान लेते है अभी आप डेली  2  किलोमीटर दौड़ते है और आप  डेली 4  किलोमीटर दौड़ना चाहते है .
2 किलोमीटर या इससे कम दौड़ना आपके लिए आपका कम्फर्ट जोन है क्योंकि इतना आप डेली दौड़ते है और इतना दौड़ने में न आपकी साँस फूलती है, न आपकी पिंडलियों में दर्द होता है और न ही आपको अतिरिक्त थकान महसूस होती है . जबकि 2  किलोमीटर से ज्यादा दौड़ने में आपको दिक्कत महसूस होती है तो 2  किलोमीटर से ज्यादा दौड़ना आपके लिए "कठिन क्षेत्र"  , "मुश्किल क्षेत्र"  " टफ जोन " है.

 इसका मतलब ये हुआ कि जब भी आप अपने 4 किलोमीटर दौड़ने के लक्ष्य को पाने के लिए 2 किलोमीटर से अधिक दौड़ेंगे आपको पूरे रास्ते मुश्किल यात्रा करनी होगी ,आप जब भी 2  किलोमीटर से अधिक दौड़ेंगे आपकी साँस फूलेगी,आपकी पिंडलियों में दर्द होगा ,आपको अतिरिक्त थकान महसूस होगी ,आप हाँफने लगेंगे ,आपके माथे पर पसीना नज़र आने लगेगा .
ये कम्फर्ट जोन जीवन के हर क्षेत्र में होता है , आप अपनी सीमा रेखा में है तो ये आपका कम्फर्ट जोन है खुद को सीमा रेखा से बाहर धकेलना मुश्किल क्षेत्र है .
गरीब और मध्यम वर्गीय मानसिकता के लोग  अपनी ज़िन्दगी को आरामदेह बनाना चाहते है , लिहाजा वो खुद को आरामदेह बना लेते है वे 2  किलोमीटर दौड़ने में ही आरामदेह महसूस करते है .  .  इस आरामदेह क्षेत्र का चुनाव उन्हें ज्यादा आत्मसंतुष्ट, ज्यादा सुरक्षित,ज्यादा तरोताज़ा महसूस करवाता  है .लेकिन ये आरामदेह दायरा उनके विकास को रोक देता है , उन्हें जानना और समझना चाहिए कि  2  किलोमीटर से अधिक दौड़ने पर उनके फेफड़े अधिक सक्रिय होंगे, पुराने तंतु टूटकर नए सिरे से अधिक मजबूत बनेंगे , वे पहले से ज्यादा ऑक्सीजन का उपयोग करेंगे ,उनका शारीरिक और मानसिक विकास पहले से ज्यादा होगा . वे अपनी अज्ञानता की वजह से जड़ों में काम नहीं करते ,जड़ो को मजबूत और स्वस्थ्य बनाने की बजाय पेड़ों की पत्तियों को पानी डाल -डाल कर साफ़ करते रहते है और  खुश होते रहते है.
दरअसल आप अपना विकास अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आकर ही कर सकते है , अपने कम्फर्ट जोन में रहकर जो आप हासिल कर सकते है वो तो कर ही रहे है अगर आपको उस से अधिक चाहिए तो आपको 2  किलोमीटर से अधिक दौड़ना पड़ेगा .
अमीर लोग हर बार अपने कम्फर्ट जोन को तोड़ते रहते है 2  किलोमीटर से 4   किलोमीटर 4  किलोमीटर से 6  किलोमीटर . वे वाकई कुछ अतिरिक्त नहीं करते सिवाय अपने कम्फर्ट जोन को हर बार तोड़ते रहने के....
उनकी अमीरी का एक राज ये भी है !!!!

सुबोध
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Monday, September 22, 2014

133 . सही या गलत -निर्णय आपका !

अगर आप अपनी ज़िन्दगी को मुश्किल बनाना चाहते है तो आसान कामों का चुनाव कीजिये और अगर आप अपनी ज़िन्दगी को आसान बनाना चाहते है तो मुश्किल कामों का चुनाव कीजिये .

जिस रास्ते पर भीड़ चलती है वो रास्ता आसान होता जाता है क्योंकि उस रास्ते पर चलने के लिए लैंडमार्क्स मौजूद होते है और बड़ी उपलब्धियां आसान रास्तों पर नहीं होती क्योंकि उस रास्ते की हरियाली तो भीड़ पहले ही कुचल चुकी  है ,उस रास्ते के सारे फूल पहले ही तोड़ लिए गये है ,ख़ूबसूरत नज़ारे पहले ही बर्बाद कर दिये गये  है !!!

बड़ी उपलब्धियां, हरियाली ,खूबसूरती,महक उन रास्तों पर होती है जो अनजान होते है ,ज़िन्दगी में कुछ हासिल करने का,नया और बेहतरीन पाने का  रोमांच भी उन्ही रास्तों पर होता है जहाँ पगडंडियां भी नहीं बनी होती है ,खुद के दम पर सब कुछ बनाना होता है . वो बनाना ही आपको अपने कम्फर्ट जोन से बाहर धकेलता है ;एक मेंढक को बाज़ बनने की ताकत देता है .

याद रखे आपका कम्फर्ट जोन ही आपका वेल्थ जोन होता है !कृपया गरीबी को भाग्य का खेल मत मानिये इसे कम्फर्ट जोन का चुनाव मानिये !!
- सुबोध

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Sunday, September 21, 2014

132 . सही या गलत -निर्णय आपका !

ज़िन्दगी में आपको आगे बढ़ने से कौन रोक रहा है ? आपके पैरों में ज़ंज़ीर डालने वाला कौन है ? मुकाबले में खड़े हुए बिना ही आपकी हार की घोषणा करने वाला कौन है ? वो कौन है जो इस बहुतायत वाले संसार में आपको अवसरों की कमी है ऐसा कह रहा है ? जो उत्साह के माहौल में भी आपको हताश, निराश  कर देता है वो कौन है ? क्या आपने कभी जानने की कोशिश की ?
मेरे पुरानी पोस्ट पढ़े , उनमे मैंने कई  वजह बताई है जो आपकी इस स्थिति  की वजह है .
मैंने बार-बार लिखा है आप जैसे भी है उसके जिम्मेदार सिर्फ आप ही है ,कोई अन्य नहीं . किसी दुसरे को  दोषी ठहराना सुधार के रास्ते को बंद करना है .क्योंकि सुधार हमेशा जिम्मेदारी को स्वीकारने से होता है !!
मेरी  पोस्ट 129 ,130 ,131   लक्ष्य के बारे में है , ईमानदारी से बताएं क्या आपने उन पोस्ट में बताये गए तरीकों पर अमल किया है ?

नहीं किया, अच्छा किया, करना भी नहीं चाहिए  क्योंकि हर आदमी का सच अलग होता है ,ये ज़रूरी नहीं मेरा सच आपका भी सच हो लेकिन कृपया ये बताये कि आप दूसरे के सच को स्वीकार नहीं रहे है ,खुद के सच में दम नहीं है तो आप करना क्या चाहते है ?
यानि आप  अनिर्णय की स्थिति में है या नकारात्मक भावों को अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाये हुए है . कृपया  ये समझ लेवें जब तक आप इनके खिलाफ खड़े होने की हिम्मत खुद में पैदा नहीं करते ,आपकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सकता . उन सपनो की कोई कीमत नहीं होती जिसे देखने के बाद आपको नींद आ जाये , वो सपने साकार भी नहीं होते !! तो अपनी इच्छाओं में वो आग पैदा करें जो आपमें ऊर्जा भर दे ,आपके सारे नकारात्मक  भावों को जला कर राख  कर दे .तभी आपके लक्ष्यों की सार्थकता है .
सुबोध

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Saturday, September 20, 2014

131 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप कुछ पाने का लक्ष्य बनाते है -
*धन की एक निश्चित ,सही-सही मात्रा  सोचते है .( जितनी ज्यादा डिटेल में जा सकते है जाए )
**उसे किस काम के द्वारा  पाएंगे.( जितनी ज्यादा डिटेल में जा सकते है  जाए )
 ***उसे पाने की क्या कीमत आप चुकाएंगे ये भी ज्ञात कर लेते है .( जितनी ज्यादा डिटेल में जा सकते है  जाए )
****और एक कटऑफ डेट भी चुन लेते है .( जितनी ज्यादा डिटेल तैयार कर सकते है करें )
ये आपका लक्ष्य तैयार हो गया !!
चारों   मुख्य  बातों के आगे मैंने रिमार्क में डिटेल देने के बारे में भी लिखा है - आप जितनी ज्यादा डिटेल देंगे उतना ही ज्यादा आपका विज़न क्लियर होता जायेगा .
दस साल में मैंने एक करोड़ रूपया कमाना है - ये लक्ष्य हो सकता है लेकिन इसमें डिटेल नहीं है लिहाजा ये आपको स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दे पाता है ,पहले साल आपने क्या कमाना है बल्कि पहले महीने या पहले वीक ... लब्बोलुबाब ये है कि जितनी ज्यादा डिटेल उतना स्पष्ट लक्ष्य .
चारों  पॉइंट के साथ अपनी जितनी ज्यादा डिटेल तैयार कर सकते है करे उसके बिना प्रोपेरली वर्क प्लान संभव नहीं है और डिटेल न होने पर  आपको खुद की सफलता / असफलता को जांचने का मौका नहीं मिलेगा . लिहाजा खुद को मोटीवेट रखने के लिए आपके पास पूरी डिटेल होनी चाहिए .
अगर आप वाकई सीरियस है तो लक्ष्य अपनी खुद की लिखावट  में तैयार करें ! मैं खुद की लिखावट के लिए इसलिए कह रहा हूँ कि ये आपका खुद के प्रति कमिटमेंट है  और हाँ ,मेरी इस बात को हलके में न लेवे !!!!

बधाई हो ! आप अमीरी के रास्ते पर चल पड़े है !!
-सुबोध
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Thursday, September 18, 2014

130. सही या गलत -निर्णय आपका !

जब लक्ष्य बनाने की बात आती है तो ज्यादातर लोग इसे मजाक में लेते है !!

उन्हें लक्ष्य की आवश्यकता और अहमियत समझ में नहीं आती , उन्हें लक्ष्य बनाना गैरजरूरी और बोझिल लगता है .

वे जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट 113 ( http://saralservices.blogspot.in/2014/08/110_23.html ) में लिखा है चाहना,चुनना और समर्पण में फर्क ही नहीं कर पाते .

उन्हें ये अंदाजा ही नहीं होता कि हमे अपनी जीत किस स्तर पर जाकर स्वीकार करनी है  ? वे निशाना कहाँ साध रहे है ?
तीन वक्त की रोटी पर ,गाड़ी पर , बंगले पर ?
वे लाख रुपये साल का कमाना चाहते है या महीने का या दस लाख महीने का या एक करोड़ महीने का ?

उनके दिमाग में कोई स्पष्ट खाका नहीं होता कि किस स्तर को पाने के लिए उन्हें क्या कीमत चुकानी होगी ?

आर्थिक स्वतंत्रता का लक्ष्य बनाना तो बहुत दूर की बात है ,उन्हें तो ये समझ में ही नहीं आता कि ऐसा कोई कांसेप्ट होता है और उसे हासिल किया जा सकता है.
वे दौड़ते रहते है , प्रयास करते रहते है ,ज़िन्दगी रूपी प्लेग्राउंड में उस फुटबॉल को लेकर जिसके लिए उनकी निगाहों में कोई गोल पोस्ट नहीं है - उन्होंने बनाया नहीं है !!!! (http://saralservices.blogspot.in/2014/09/129.html)

ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से चलती है वो आपको कुछ न कुछ बनाएगी जरूर .अगर आपने लक्ष्य बना रखा है तो आप उसके अनुरूप बनेंगे और अगर लक्ष्य नहीं बनाया है तो आप वो बनेंगे जो शायद आप बनना नहीं चाहें . जब कुछ न कुछ बनना ही है तो  क्यों न वो बने जो बनना  चाहते है !!!!
सुबोध
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Wednesday, September 17, 2014

129. सही या गलत -निर्णय आपका !

ज़िन्दगी में लक्ष्य  तय किये बिना शुरुआत  करना वैसा ही है जैसा फुटबॉल खेलते वक्त गोल पोस्ट का पता न होना ,वो  बड़ी ही हास्यास्पद स्थिति होती है जब एक फुटबॉल खिलाडी के पास फुटबॉल हो लेकिन उसे ये पता न हो कि गोल कहाँ करना है . अगर आप फुटबॉल मैच के दर्शक हो तो क्या ऐसी टीम को सपोर्ट करेंगे जिसके खिलाडी को ये भी पता नहीं हो कि गोल कहाँ करना है ? अगर नहीं तो क्यों ?

आपको शायद पढ़कर अच्छा नहीं लगे लेकिन हकीकत और  दुःख  की बात ये है कि संसार के अधिकांश लोग  इसी वर्णित खिलाडी  की नुमाइंदगी करते है !!

ऐसा  पत्र  जिसमे बहुत अच्छी-अच्छी ज्ञान भरी बातें लिखी हो लेकिन जिसके लिफाफे  पर पता नहीं लिखा हो वो बिना पता लिखा हुआ लिफाफा पोस्टमैन कहाँ डिलीवरी करेगा ? संसार में बहुत से ऐसे लोग होते है जिन्हे बहुत कुछ पता होता है, ज्ञान का भण्डार होते है, जिनके दिमाग में कूट-कूट कर नए-नए आइडियाज भरे होते है लेकिन वो कहीं नहीं पहुंचते ,क्यों नहीं पहुंचते क्या कभी आपने सोचा ?
अब गौर कीजियेगा - उनके लिफाफे पर लक्ष्य रूपी पता नहीं लिखा होता !!!!! .
गरीबी की बड़ी वजहों में से एक लक्ष्य का निर्धारण न करना  है .
सुबोध
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128. सही या गलत -निर्णय आपका !



अमीर मानसिकता के लोगों को अपनी कार्यक्षमता पर भरोसा होता है लिहाजा वे अपने प्रदर्शन ( Result ) के आधार पर पेमेंट माँगते है , जबकि गरीब मानसिकता के लोग समय के आधार पर पेमेंट माँगते है .
-सुबोध
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Saturday, September 6, 2014

127. सही या गलत -निर्णय आपका !

आज़ादी, स्वतंत्रता जैसे शब्दों की गहराई में जाए तो समझ में आता है कि जिसे हम आज़ादी कहते है वो अपने अंदर एक जिम्मेदारी समेटे है .आपको खुश होने की आज़ादी तब है जब आप खुश होने के लिए किये जानेवाले कार्यों की जिम्मेदारी लेते है . आपको अपनी संतान को संतान कहने की आज़ादी  तब है जब आप उनके भरण- पोषण की जिम्मेदारी लेते है . आपको अपनी बीमारी से आज़ादी तब मिलती है जब आप डॉक्टर द्वारा दी गई हिदायतों को जिम्मेदारी से पूरा करते है . आपको दोस्त को दोस्त कहने की  आज़ादी  तब है जब आप दोस्ती नामक लफ्ज़ के साथ जुडी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते है .
                 आपके जीवन के हर पहलु के साथ आज़ादी जुडी हुई है और उस आज़ादी के साथ एक जिम्मेदारी भी . वो आपके जिम्मेदारी से किये गए कार्यों का परिणाम  है कि कई तरह के  दुखों से,अभावों  से आपको आज़ादी मिली है ,और आप एक सुविधापूर्ण जीवन जी पा रहे है .
            आपके एक कलीग को इन्क्रीमेंट मिलता है दुसरे को नहीं ,आपने सोचा क्यों होता है ऐसा ?
             आपके साथ खेला-कूदा बड़ा हुआ एक दोस्त आज पैसे में खेलता है और दूसरा दो वक्त की रोटी भी ढंग से नहीं जुटा पाता ,  क्यों?
           मजाक  की बात ये है कि अधिकांश लोग जिम्मेदारी नामक लफ्ज़ से दूर भागते है, जहाँ तक होता है इससे बचते है .
           आज़ादी का एक अर्थ जैसा कि मैंने ऊपर बताया  जिम्मेदारी है उसी के अनुसार गुलामी का अर्थ गैर-जिम्मेदारी हो जाता है .
          मुझे शायद ये बताने की जरूरत नहीं है कि आज़ादी और गुलामी  में से आपको किसका चुनाव करना चाहिए , क्यों करना चाहिए और मेरे इस वाक्य का सही अर्थ क्या है !
- सुबोध

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Friday, September 5, 2014

126. सही या गलत -निर्णय आपका !

वित्तीय बुद्धि आपको यह सिखाती है कि शांत पड़े तालाब  में तरंगे कैसे पैदा की जाए , जब स्थिति सामान्य हो या मार्किट तेजी में हो तो कोई भी पैसा बना सकता है ( हालाँकि ऐसा होता नहीं है लेकिन लोग ऐसा मानते है ) परन्तु जब मार्किट मंदी में  हो तब पैसा कैसे बनाया जाए . छुपे हुए अवसर को कैसे पहचाना जाए ?  समस्या को किस तरह अवसर में बदला जाए ? जब आपके पास पैसा न हो तब भी मार्किट में सौदे कैसे किये जाए, मार्किट से पैसे कैसे उगाहे जाए ?
                       यानी ये शिक्षा ,ये बुद्धि आपके दिमाग के उस भाग को सक्रिय करती है जो वित्त से सम्बंधित है और अमूनन काम में ना लेने की वजह से कोमा में चला जाता है ..
                       सबसे महत्वपूर्ण  दक्षता  जो आपको चाहिए वो है अंको को पढ़ना और समझना यानि वित्तीय साक्षरता . लोग अंको को पढ़ना जानते है , उन्हें समझना नहीं जानते , जब किसी शब्द के साथ अंक जुड़ते है तो शब्द बदलने के साथ ही अंको के मायने भी बदल जाते है अंको के साथ ग्रॉस प्रॉफिट की बजाय नेट प्रॉफिट लिखा है तो पूरा का पूरा सन्दर्भ ही बदल जाता है यानी अगर  शब्दों के अर्थ और अंको की समझ आपको नहीं है तो उसे जानना ही आपके लिए वित्तीय बुद्धि हासिल करने का पहला कदम है . अगर आपको संपत्ति   और दायित्व   का अर्थ नहीं पता है तो अकादमिक रूप से शिक्षित होकर भी  आप वित्तीय रूप से अशिक्षित है .
दूसरा कदम  धन से धन कैसे बनाया जाता है  , कम धन से किस तरह के सौदे करने चाहिए, उन्हें करने के  तरीके क्या है यानि कम धन से पैसा  कैसे बनाया जाता है और कई मर्तबा तो बिना धन के धन कैसे बनाया जाता है ये जानने के साथ-साथ निवेश को समझना  है.निवेश के कई इस्ट्रुमेंट्स होते है ,लोग निवेश का अर्थ   शेयर मार्किट , बैंक की जमा , प्रॉपर्टी, गोल्ड वगैरह ही मानते ,जानते है !!
                           तीसरे कदम में बाज़ार को समझना , वर्त्तमान में कितनी मांग है भविष्य में कितनी हो सकती है, पुर्ति  कितनी है भविष्य में किस तरह से पुर्ति  होगी, कितनी शॉर्टेज  रहेगी ये सब आकलन करना और इस आकलन से मार्किट में उतरने की स्ट्रैटेजी तैयार करना है इसी में ये भी ध्यान रखना है कि नई  टेक्नोलॉजी भविष्य में वर्तमान के मार्किट पर क्या और कितना प्रभाव डाल सकती है, प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करना / समझना ,नए लांच होने वाले प्रोडक्ट पर स्टडी रखना , अपने कॉम्पिटिटर की जानकारी रखना ये सब है.
                       चौथे कदम में आपको कानून की जानकारी होनी चाहिए , जो व्यवसाय कर रहे है उस व्यवसाय में कौन -कौन से डिपार्टमेंट से क्लियरेंस आपको चाहिए , कॉर्पोरेट,स्टेट और नेशनल लॉ के बारे में जानकारी के साथ-साथ एकाउंटिंग की जानकारी भी आपको होनी चाहिए , ये ध्यान रखे वित्तीय रूप से शिक्षित व्यक्ति कानूनों का सम्मान करते है ,कानून तोड़ने जैसे पचड़े में पड़ने की बजाय वे कानून के दायरे में रहते हुए काम करते है . चूँकि उन्हें कानूनों की पूरी जानकारी होती है ,कानून में  मौजूद छिद्रो की भी .इन्ही छिद्रों का इस्तेमाल करकर वे अतिरिक्त पैसा पैदा करते है .
सुबोध

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Thursday, September 4, 2014

125. सही या गलत -निर्णय आपका !

                       अमीर और गरीब के बीच जो सबसे महत्त्वपूर्ण फर्क है वो है विचार का - विचार के चुनाव का !!!
                       कोई भी विचार आपके दिमाग में नकारों  की तरह  नहीं रहता - वो आपके दिमाग में रहने का कुछ न कुछ असर आप पर छोड़ता ही है ,अच्छा या बुरा , खर्च या निवेश, सफलता या असफलता , मजबूती या कमजोरी ., इसलिए अपने दिमाग में किसी भी विचार को आप सोच समझ कर ठहरने देवे .
                     मैं वापिस आपको याद दिला दूँ - विचार भावनाओ की ओर ले जाते है - भावनाएं कार्य की ओर और कार्य परिणामों की ओर . लिहाजा एक गलत विचार आपको बुरा परिणाम देगा और एक अच्छा विचार आपको सही परिणाम देगा .
                   अब जब आप विचार-भावना-कार्य-परिणाम का आपसी सम्बन्ध समझ लेते है तो अपने दिमाग में उन्ही तरीके के विचारों को आश्रय देवे जिस तरह के विचारों को अमीर देते है , जब आप उनकी तरह सोचना, समझना और करना सीख जाते है तो उन्ही की तरह बन भी जायेंगे ....
- सुबोध

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Wednesday, September 3, 2014

124. सही या गलत -निर्णय आपका !

जब आप ये समझ लेते है कि बाहर वही आता है जो अंदर होता है यानी फल जड़ो के अनुरूप लगते है तो अपने छोटे, खट्टे,बदबूदार फलों को लेकर परेशान न होवें, जो उग चुके है, उन्हें आप नहीं बदल सकते . लेकिन हाँ, अगर आप जमीन की खुदाई करते है खाद -पानी डालते है पेड़ की जड़े मजबूत,स्वस्थ्य कर पाते है तो आगे से पेड़ पर  लगने वाले फलों को बदल सकते है उन्हें  बड़े,मीठे और महक वाले बना सकते है  .
   अगर आप अपनी बाहरी दुनिया को बदलना चाहते है आपको पहले अपनी अंदरुनी दुनिया बदलनी होगी , बाहरी दुनिया तो सिर्फ परिणाम है ये तो यह बताती है कि आपके अंदर क्या चल रहा है .मैं आपको वापिस याद दिला  दूँ आप जिस दुनिया में रहते है वो कारण और परिणाम पर आधारित है .
  आपके साथ जो भी हो रहा हो अच्छा या बुरा , लाभदायक या नुकसान दायक , सकारात्मक या नकारात्मक ये आपके आतंरिक संसार का परिणाम है . इसलिए कभी आपको अपने बाहर के परिणामो से हताशा हो तो कृपया अपने अंदर झांक लेवे .
 अमीर लोग बचत  को आदत बनाते है इसलिए उन्हें अपनी बाहरी स्थिति का शीघ्र पता चल जाता है ,उस स्थिति में वे अपनी आतंरिक स्थिति में वांछित सुधार  कर लेते है जबकि गरीबों के लिए बचत एक उत्सव होता है इसलिए उन्हें अपनी बाहरी स्थिति का पता बहुत बाद में चलता है , पता चलने के बावजूद भी चूँकि उन्हें बाहरी स्थितियों  का आतंरिक स्थितियों से सम्बन्ध पता  नहीं होता लिहाजा वे  भाग्य ,मंदी ,अर्थव्यवस्था जैसी बातों का रोना रोते है , उनकी यही अज्ञानता उन्हें भारी पड़ती है . 
- सुबोध
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Tuesday, September 2, 2014

123. सही या गलत -निर्णय आपका !

संसार के अधिकांश लोग पैसे के मामले में " खुद " को जिम्मेदार मानने की  बजाय  "भाग्य"  को जिम्मेदार मानते है लिहाजा गैर जिम्मेदार लोगों के हिस्से में जो आ सकता है वही उनके हिस्से में आता है . पैसे को वे कंट्रोल नहीं करते बल्कि पैसा  उनकी कंडीशनिंग के अनुसार उन्हें कंट्रोल करता है . 

वे जीवन को  गंभीरता से लेने की बजाय बड़े ही हलके स्तर पर लेते है -साधारण तरीके से सोचते है ,साधारण  तरीके के प्रयास करते है और सिर्फ वही देखते है जो उन्हें नज़रों से दिखाई देता है .नज़रों से इतर भी कुछ हो सकता है उन्हें ये समझ में नहीं आता. उन्हें पेड़ दिखाई देता है जड़े नहीं , उन्हें सुन्दर भवन दिखाई देता है, नींव नहीं .वे सिर्फ बाहरी तत्व देखते है उन्हें आतंरिक तत्वों की  समझ ही नहीं होती . 

 और जिन्हे आतंरिक तत्वों की महत्ता ज्ञात होती है  ,जो इन्हे विकसित करने पर मेहनत करते है वे उस श्रेणी में आ जाते है जिन्हे लोग अमीर कहते है. आपने कुछ अमीरों को विपरीत परिस्थितियों में बर्बाद होते देखा होगा लेकिन शीघ्र ही वे दुबारा पहले वाली स्थिति में पहुँच जाते है उसकी मुख्य वजह होती है उनकी आतंरिक तत्वों की शक्ति , वे सब कुछ गँवा देते है लेकिन सफलता के मूल तत्व को नहीं गवांते  और इसी वजह से वे दुबारा अमीर बनने में सफल हो जाते है .

ये ध्यान रखें बाहरी तत्वों से ज्यादा महत्वपूर्ण  आतंरिक तत्व होते है , अगर अमीर बनना है तो अपने आतंरिक तत्वों को विकसित करने पर मेहनत करें. 

इस पोस्ट को बराबर समझने के लिए मेरी पोस्ट 120 .121  और 122  पढ़ें
सुबोध
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Monday, September 1, 2014

122. सही या गलत -निर्णय आपका !

जब आप ये जान लेते है कि सफलता के लिए बाह्य तत्वों से  ज्यादा  आतंरिक तत्व  जिम्मेदार है  तब आप ये भी जान लेते है कि सफलता को साधने के लिए, सम्हालने के लिए शरीर की मजबूती से ज्यादा वैचारिक और भावनात्मक मजबूती जरूरी है .
 इस बात को समझने के बाद जब लोगों को आप हारते देखे , बदकिस्मती का रोना रोते देखे, धोखेबाज़ पार्टनर या अर्थव्यवस्था की मंदी या नई टेक्नोलॉजी के  आविर्भाव में पुरानी का बर्बाद होना सुने तो असली वजह समझ जाए कि समस्या कहीं बाहर नहीं उनके अंदर है .- उनकी जड़ों में है , उस दो लीटर माप के बर्तन में है जिसमे डेंट आ गया है और अब डेंट आने की वजह से उस बर्तन में  दो लीटर दूध नहीं आ सकता .
 ज्यादतर लोगों के पास ढेर सारा पैसा बनाने के बावजूद उनमे पैसा  सम्हालने की क्षमता ही नहीं होती मेरी पोस्ट 4 ,5  और 6 देखें  .  याद रखे पैसा कभी भी अकेला नहीं आता , हमेशा अपने साथ चुनौती लेकर आता है कि आओ मुझ पर सवारी करो, मुझे साधो ,अगर आप उसको साध पाये, उस पर सवारी कर पाये तो वो आपका पालतू होगा अन्यथा आपके मन को, विचारों को चोट पहुंचा कर आपसे दूर चला जायेगा ,आपके माथे पर असफलता का ठप्पा लगा जायेगा .
तो अमीर बनने के लिए पहली बात मानसिक रूप से खुद को तैयार करें .दूसरी बात पैसे को सम्हालने के लिए  खुद को तैयार करें ,पैसे के साथ आने वाली चुनौतियों का सामना करना सीखें  यानि कुल मिलाकर  अगर आपको तीन लीटर दूध चाहिए तो बर्तन दो लीटर क्षमता वाला  नहीं चलेगा .. पहले बर्तन बड़ा करें तब ज्यादा दूध लेवे .
ये पोस्ट 121  का हिस्सा है ,इस पोस्ट को बराबर समझने के लिए पोस्ट 121 भी  पढ़ें .
-सुबोध

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