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सही या गलत -निर्णय आपका !

145 . सही या गलत -निर्णय आपका !

अगर आप गलती करते हो और अपनी गलती को समझ नहीं पाते हो तो उसे बर्बादी की शुरुवात समझो और अगर अपनी गलती को समझ लेते हो ,स्वीकार कर लेते हो तो उसे फला हुआ आशीर्वाद मानो क्योंकि आपके दिल ने , आपके दिमाग ने आपको इतनी शक्ति दी है कि आप अपनी गलती स्वीकार कर पा रहे हो .ध्यान रहे सुधार हमेशा स्वीकार के बाद होता है ,अब आपके अच्छे दिन शुरू हो गए है कि आप गलतियों को स्वीकारने लगे है ,जिम्मेदारी लेने लगे है .

अगर आप कोई उपलब्धि हासिल कर लेते हो तो आप नई ऊंचाइयां पाने जा रहे हो क्योंकि उस फार्मूले को समझना जिससे उपलब्धियां हासिल होती है बहुत बड़ी उपलब्धि है ,उसे बार -बार दोहराया जा सकता है बिलकुल वैसे ही जैसे कि पहला लाख बनाने का फार्मूला समझने के बाद अमीर बनना उतना मुश्किल नहीं रह जाता जितना पहला लाख बनाना था.

आप हारे या जीते ,एक बार की हार या जीत से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता ,फर्क इस बात से पड़ता है कि आपने अपनी हार से या जीत से सीखा क्या है और फर्क इससे पड़ता है कि आपने अपनी हार को जीत में बदलना सीखा है या नहीं और फर्क इससे पड़ता कि आपने अपनी जीत का फार्मूला बराबर याद करकर उसे बार-बार दोहराया है या नहीं !!!

क्योंकि हार कर जीतना और उस जीत को बार-बार दोहराना ही आपको आपकी सपनो की दुनिया की सैर करवाएगा - सतरंगी सपनो की दुनिया की सैर !!!

आइये शुरू करें क्योंकि डरकर ठहरने से ज्यादा या सोच के लकवे से ग्रस्त होकर जीने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण शुरुआत करना है, शुरू करे उस एक अंजानी दुनिया को खंगालना जो अनछुए-अनचीन्हे उपलब्धियों भरे संसार तक ले जाती है और वहां पूरी तरह सही होने का प्रेशर अपने ऊपर नहीं रखे , अगर गलती होती है तो उसे स्वीकार करे ,सुधार करे, हार को जीत में बदले और जीत को दुबारा जीत में और फिर एक और जीत में .....

लम्बी से लम्बी दूरी तय करना मुश्किल नहीं होता, मुश्किल पहला कदम उठाना होता है !!!!
-सुबोध
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144 . सही या गलत -निर्णय आपका !

तुम्हारा डर तुम्हारे विश्लेषण की वजह से पैदा होता है ,तुम जो जीवन का ,जीवन में होने वाली भविष्य की घटनाओं का विश्लेषण करते हो ,उनके होने का अंदाजा लगाते हो वही तुम्हे भयभीत करता है ,हालाँकि तुम्हारे अंदाज़े ,तुम्हारे विश्लेषण अधिकांश बार गलत होते है ,तुम वर्त्तमान में सिर्फ साँसे लेते हो जीते भविष्य में हो कि ये होगा ,ये नहीं होगा. तुम दिन भर भविष्य की सोचते हो , वर्तमान को जीना जब शुरू कर दोगे तो तुम्हारा डर ख़त्म हो  जायेगा .
तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म पर है और यही वो कार्य है जो तुम वर्त्तमान में कर सकते हो ,फल पर तुम्हारा अनुमान हो सकता है अधिकार नहीं है . क्योंकि फल पाना  बहुत से अन्य कारको पर निर्भर करता है .
आइये इसे एक उदाहरण से समझे .
आप पहाड़ी सड़क से पैदल गुजर रहे है , करीबन पच्चीस फुट दूर सड़क के बाई तरफ आप एक साँप को देखते है और आप रुक जाते है , अब यही से आपका दिमाग भविष्य का अंदाजा लगाने लगता है कि अगर मैं रोड से गुजरा और साँप ने मुझे काट लिया तो ? यहाँ पास में कोई अस्पताल भी नहीं है यहाँ से शहर 10  किलोमीटर दूर है ,मैं वहां कैसे पहुंचूंगा  ,वहां डॉक्टर नहीं मिला तो ? अगर मिल भी गया तो सरकारी अस्पताल  में मुझे हाथोहाथ नहीं देखा तो ? घर पर मेरे पेरेंट्स  को पता चलेगा तो ? मुझे देखने कौन- कौन आएगा , विनय से पिछले हफ्ते झगड़ा हो गया था क्या वो भी मुझे देखने आएगा ?
आप इस तरह की ढेरों बातें सोच रहे है उनका विश्लेषण कर रहे है ,परेशान हो रहे है तभी वहां से एक पहाड़ी गुजरता है और पूछता है " बाबूजी क्या हुआ ?"
आप इशारे से साँप को दिखाते है .
वो देखता है और हँसते हुए जवाब देता है
"बाबूजी, सर्दी के शुरूआती दिन है साँप धुप सेंकने आया है ,लेकिन डरिये मत हर साँप ज़हरीला नहीं होता ये दो मुंहा साँप  है इसमें ज़हर नहीं होता ."
वह आपका हाथ पकड़ता है और खुद साँप की तरफ होकर आपको सड़क पार करवा देता है .
अब आप खुद इस घटना का विश्लेषण कीजिये .
हम ज़िन्दगी में इसी तरह के ढेरों साँपों  से हर रोज़ खुद को घेर लेते है - कभी परीक्षा रुपी साँप,कभी बॉस रुपी साँप,कभी पैसे रुपी साँप यानि कुछ भी करने से पहले हम एक साँप का सामना करते है और ढेरों असम्बद्ध सवालों को सोचते है जवाब तैयार करते है ,विश्लेषण करते है - सिर्फ भविष्य को जीते है और वर्त्तमान में होकर भी वर्त्तमान  को कहीं पीछे छोड़ देते है .
अगर आप वर्त्तमान को जीते तो साँप को वहां से हटाने के लिए उस पर पत्थर फेंक सकते थे, या सड़क के दुसरे छोर से गुजर सकते थे ,या किसी टहनी को , लकड़ी को अपने बचाव के लिए  हथियार के तौर पर साथ लेकर चलते और भी कई रास्ते हो सकते थे लेकिन आप तो घटनाओं का विश्लेषण  करने लगे और फल के तौर पर खुद को साँप का काटा हुआ मान लिया  जबकि हो सकता था कि साँप आपकी पदचाप सुनकर खुद ही सड़क से हट जाता . 
यानि यहाँ आप उन चीज़ों को  लेकर परेशान थे  जिनकी भविष्य में होने की  संभावना मात्र  थी   लेकिन इस संभावना में आप इस कदर डूब गए कि अपने वर्त्तमान में जो आप कर सकते थे  वो भी आपने नहीं किया .
अमूनन हर गरीब , असफल, हारा हुआ इंसान वही होता है  वो साँप देखकर रूक जाता है और हर अमीर ,हर सफल,हर विजेता इंसान वही होता है जो साँप को देखकर डरता है लेकिन उस डर से वह रूकता नहीं है क्योंकि वो जानता है डर भविष्य के विश्लेषण में है जबकि हमारे हाथ में आज है ,हमारा वर्त्तमान है !

" डर के आगे जीत है " बच्चा-बच्चा इस वाक्य से, मोटिवेशनल वाक्य से वाकिफ है लेकिन चूँकि वो बच्चा है इसलिए इस वाक्य के अनुरूप व्यवहार नहीं कर पाता. आपने  भी इस वाक्य को ढेरों बार सुना है लेकिन आप तो बच्चे नहीं है ,आप बड़ों की तरह इस डर से आगे क्यों नहीं जाते ?
अमीर और गरीब में सबसे बड़ा फर्क यही है की गरीब  डर देखकर रूक जाता है जबकि अमीर डर कर रूकता नहीं है बल्कि डर का सामना करता है, उसे प्रबंधित करता है .
सुबोध 

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143 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट 137 से आगे -
किसी प्रोडक्ट की सेल क्लोज करने से पहले प्रोडक्ट की खासियतों  के बारे में बताया जाता है ,इसे प्रोडक्ट का प्रचार करना भी कहते है. कुछ लोग प्रचार से चिढ़ते है जो सफलता की राह में एक बड़ी बाधा है .प्रचार से चिढना या सेल से बचने की कोशिश करना आपको मुनाफे से दूर करता है और  इस  तरह  की हरकतें अमूनन गरीब  लोग करते  है.अगर  आप  प्रचार करने और  सेल करने से बच  रहे  है तो  खुद की कीमत  कैसे  बढ़ाएंगे? ऐसी स्थिति में अगर आप किसी  कंपनी में कर्मचारी है तो कोई दूसरा एम्प्लोयी अपनी खासियतें बता कर आपसे आगे निकल जायेगा और अगर आप व्यापारी है तो  बिना अपने प्रोडक्ट की खासियत बताये लोगों की निगाहों में कैसे आएंगे ? 
पुरानी कहावत है "लोग उसकी सुनते है जो बोलता है" तो बोलिए - अपनी ,अपने प्रोडक्ट की खासियतें बताइये .
लोगों को कई कारणों से प्रचार करने या बेचने में समस्या महसूस होती है ,आइये उन्हें समझे -
1 . आपका दिमाग आपका स्टोररूम है इस स्टोररूम में आपके साथ जो भी गुजरा हो वो आप चाहे या न चाहे अलग-अलग रिलेटेड फाइल में जाकर फाइल होता रहता है .और जब उस घटना या वाक्यात के जैसा या मिलता जुलता दुबारा आपके सामने आता है तो आपके दिमाग का स्टोररूम उससे सम्बंधित फाइल आपको पकड़ा देता है कि देखो ऐसा तुम्हारे साथ पहले भी हुआ है और उसका ये परिणाम रहा था . ये सारी क्रियाएँ स्वाभाविक सी है और हम सब इस बारे में अनुभवी है .
हो सकता है आपके साथ अतीत में कुछ बुरा हुआ हो ,जब किसी ने जबरन आपको कोई सामान बेचा हो  जो आपको आपके अनुसार पूरा मूल्य नहीं दे पाया हो या बेचने वाले ने गलत तरीके से प्रचार किया हो और आप खुद को ठगा गया महसूस करते हो  या बेचने वाले ने सामान खरीदने के लिए इतना ज्यादा आपको परेशान किया हो कि आपको सेल्स के नाम से ही चिढ़ होती हो .इसलिए आप आज सेल्स को अच्छा नहीं समझते . ये आपके व्यक्तिगत अनुभव हो सकते है या सामूहिक अनुभव भी हो सकते है  .
कृपया ये ध्यान रखे आपके साथ अतीत में जो हुआ है वो एक  हादसा था और हादसों को पकड़ कर रखने से ज़िन्दगी में डर,नफरत ,निराशा और दर्द के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होता ,ज़िन्दगी आगे बढ़ने के लिए होती है और कल का सच आज भी सच हो ये ज़रूरी नहीं .

2 . हो सकता है आपने कभी कोई सामान बेचने की कोशिश की हो ,जिसके बारे में आपको खुद को पूरी जानकारी नहीं थी और संभावित खरीददार ने आपको नकार दिया हो ,उसने आपको इस तरह के तर्क दिये हो जिनका आप जवाब नहीं दे पाये हो या आपको बुरी तरह से फटकारा  गया हो, अपमानित किया गया हो और उस हादसे को आप अभी तक नहीं भूला पाये हो,आप उस काम के लिए ग्लानि महसूस करते हो उससे उबर  नहीं पाये हो .
 कृपया ध्यान देवे अपनी एक बार की असफलता या अस्वीकृति को ज़िन्दगी भर मत ढोयें, वो एक बार का बोझ अभी तक आपको उबरने नहीं दे रहा है उस बोझ को काँधे से , दिमाग से उतार फेंक दीजिये वो बोझ सिर्फ हाथी के  पैरों की कमजोर बेड़ी है- हाथी की ताकत से कही बहुत कमजोर उसे समझिए और कंडीशनिंग की प्रदूषित दुनिया से बाहर आकर खुली हवा में सांस लीजिये .

3- अमूनन हम सबको ये सिखाया जाता है कि अपनी खुद की या खुद की वस्तुओं की तारीफ़ नहीं करनी चाहिए ,ये "अपने मुँह मियां मिट्ठू बनना" कहलाता है और बार बार दी गई हिदायतें ,सिखाया गया एटीकेट हमारी आदत  बन जाता है लिहाजा हम अपनी या अपनी वस्तुओं की तारीफ़ करना सभ्यता  के अनुकूल नहीं मानते ,ये संस्कार हमे सेल्स से दूर कर देते है,प्रचार से दूर कर देते है .
कृपया ध्यान देवे ये संस्कार आदिम युग के ज़माने के है जब आबादी इतनी कम थी कि लोग स्वयं एक-दूसरे के बारें में जानते थे तब उन्हें अपने बारे में बताना अपनी बड़ाई करना था , हम सदियों से उन संस्कारों को ढोये जा रहे है जो अपनी उपयोगिता खो चुके है , बल्कि यही बेवकूफी भरे संस्कार ,एटीकेट हमारी ग्रोथ में रुकावट बन गए है . हम अपने बारे में लोगों को बताते नहीं है यहाँ तक कि हमारा पडोसी भी हमारे बारें में नहीं जानता . जब तक आप अपनी या अपने प्रोडक्ट की खासियत या काबिलियत लोगों तक पहुंचाएंगे नहीं और लोगों को पता नहीं चलेगा आपकी उन्नति के मार्ग प्रशस्त नहीं होंगे ये समझ लीजिये और याद कीजिये उस पुरानी कहावत को कि "जो दिखता है वो बिकता है " तो खुद को ,अपने प्रोडक्ट को दिखाइए ,एक्सप्लेन या एडवर्टाइज  करने के नए-नए तरीके अपनाइये .

4  . हो सकता हो आपमें सुपेरिओरिटी  काम्प्लेक्स हो कि मैं जब बेहतरीन हूँ ,मेरा प्रोडक्ट जब बहुत अच्छा है तो मुझे प्रचार की क्या ज़रुरत है लोग मुझ तक अपने-आप ढूंढते हुए आएंगे,उन्हें आना चाहिए .ये एक तरह नजरिया होता है जिसमे उच्चता की भावना प्रबल होती है इतनी प्रबल कि  उन्हें लगता है प्रचार करना मेरी शान के खिलाफ ही नहीं है बल्कि मेरा अपमान है . उन्हें लगता है कि मैं इतना खास हूँ या मेरा प्रोडक्ट इतना ज़बरदस्त है कि लोगों को किसी तरह खोज कर मेरे पास आना चाहिए . यह अहंकार का ही दूसरा रूप होता है .
जो लोग इस तरह से सोचते है या जिनकी ये मानसिकता बन गयी है जिन्होंने अपने दिमाग के दरवाज़े बंद कर लिए है उनके बारे में तय है कि ये अपने कम्फर्ट जोन में है और उनकी उन्नति की सम्भावनाये सीमित है .इस तरह की सोच उन्हें दिवालियेपन  की और धकेल रही है क्योंकि इस युग में अच्छे प्रोडक्ट्स की भरमार है और जिनके पास प्रोडक्ट है वे सुनियोजित तरीके से प्रचार के माध्यम से अपनी  पैठ ग्राहकों तक बना रहे है और आप इस घमंड में है कि मेरे बेहतरीन प्रोडक्ट की जानकारी करते हुए, ढूंढते हुए  लोग मुझ तक चला कर आएंगे .
पुराने ज़माने की कहावत कि ":बेहतर प्रोडक्ट बनाइये दुनिया आपका दरवाज़ा खटखाएगी " आज अधूरी हो गई है इसमें ये शब्द और जोड़ दीजिये तो ये पूरी हो जाएगी और ये आज का इसका वर्जन इस युग के अनुसार ज्यादा सटीक है  "बशर्ते आप दुनिया को इसके बारे में बताये  " सुपेरिओरिटी काम्प्लेक्स वालों को पुरानी कहावत याद है आधी कहावत कृपया उन्हें पूरी कहावत याद करनी चाहिए
"बेहतर प्रोडक्ट बनाइये दुनिया आपका दरवाज़ा खटखाएगी,बशर्ते आप दुनिया को इसके बारे में बताये  "

5  . हो सकता है आपकी कंडीशनिंग ऐसी हुई हो जिसमे आपको सेल्समेन  के बारे में कुछ गलत बातें बताई गई हो  ,आपके दिमाग में उनकी गलत छवि बनायीं गई हो और इसके लिए बहुत से उदाहरण बताये गए हो,दिखाए गए हो .
एक गलत तरीके की कंडीशनिंग से छुटकारा पाने के तरीके मेरी पुरानी पोस्ट्स में बताये गए है कृपया उन्हें देखे .

ध्यान देवे अमीर लोग हमेशा बहुत अच्छे प्रचारक होते है ये अपनी खासियतों को,अपनी सेवाओं को,अपने प्रोडक्ट को  बेहतरीन पैकेजिंग में पेश करते है .ये इतने जोश और उत्साह से ये सब करते है कि उनकी मार्किट वैल्यू हमेशा बढ़ती रहती है . उनकी अमीरी का महत्वपूर्ण राज उनकी सेल्स की काबिलियत है !!
सुबोध
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142 . सही या गलत -निर्णय आपका !

व्यवसाय चलाने के लिए टेक्नोलॉजी और व्यवहारिकता दोनों की ज़रुरत होती है .
लोगों से मिलना- जुलना सीखिये ,उनसे व्यवहार करना सीखिये व्यवहारिक बनिये , व्यवहार मार्किट में बिकनेवाली वस्तु नहीं है कि ज़रुरत हुई और जाकर खरीद लाये .
टेक्नोलॉजी और टेक्नीशियन आप फिर भी मार्किट से खरीद सकते है , ये मार्किट में मिलते है !
ध्यान देवे किसी एम्प्लोयी को उसकी किसी स्किल के कारण चुना जाता है और व्यवहारिक न होने की वजह से निकाल दिया जाता है. आप अपनी स्किल की वजह से जॉब पा सकते है मगर उस जॉब को बरक़रार रखने के लिए आपमें व्यवहारिकता होनी चाहिए .स्किल आपको जॉब दिला सकती है लेकिन वो व्यवहारिकता है जो आपको जॉब में टिका सकती है .
अगर आप बिजनेसमैन है तो आपके बिज़नेस पर भी यही फंडा लागू होता है - आपकी सफलता आपकी व्यवहारिकता में है .
- सुबोध
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141 . सही या गलत -निर्णय आपका !




बहुत से लोगों के पास बहुत सी बेहतरीन आइडियाज होती है लेकिन वो उनके दिमाग में होती है और वही दफ़्न हो जाती है वो उनकी महान आईडिया इस लायक नहीं बन पाती कि लाखो-करोडो पैदा कर सके ,इसकी मुख्य वजह ये है कि जिनके दिमाग में ये आईडिया आती है वो खुद को बहुत ही साधारण मानते है उस आईडिया पर गंभीरता से विचार और कार्य नहीं करते ,उन्हें खुद को इसकी सफलता पर संदेह रहता है .

उनका अधूरापन उनका दुश्मन बन जाता है ,कोई और उसी आईडिया पर काम करता है और पैसों का ढेर लगा लेता है लेकिन उनकी छोटेपन की कंडीशनिंग उनका पीछा नहीं छोड़ती ,उन्हें लगता है कि ग्रेट आईडिया सिर्फ ग्रेट लोगों के ही दिमाग में आ सकते है हम जैसे साधारण लोग साधारण पैदा होते है ,साधारणता में गुजारा करते है और साधारणता में ही गुजर जाते है .

वे इस बात को नहीं समझ पाते कि विचारों पर किसी का भी एकाधिकार नहीं होता . प्रकृति ने किसी भी व्यक्ति के साथ किसी किस्म का भेद-भाव नहीं किया , सबको बराबर धूप ,बराबर पानी ,बराबर हवा, बराबर खुशबु, बराबर वक्त ,बराबर अँधेरा ,बराबर रोशनी, बराबर निराशा ,बराबर आशा,बराबर एहसास कहने का अर्थ हर चीज़ बराबर -बराबर दी है ,व्यक्ति ने अपने बैरियर्स खुद बनाये है .

एक गरीब को लगता है कि मैं झुग्गी-झोपड़ी में रहता हूँ ,मेरे यहाँ रोशनी कम आती है ,जबकि अमीरों के बंगले में भरपूर रोशनी होती है ये उसकी सोच उसका दायरा बन जाती है और वो इस सोच को अपने दुर्भाग्य से जोड़ लेता है ,अपनी,अपने पेरेंट्स की नाकामी से जोड़ लेता है ;धीरे-धीरे यही सोच बड़ी होती जाती है ,ज़िन्दगी के दूसरे क्षेत्र में भी छाने लगती है और प्रकृति ने जिस" बराबर इंसान" को पैदा किया था वो खुद को छोटा मानने लगता है ,छोटा हो जाता है ! लिहाजा उसके दिमाग में आनेवाली महान आईडिया भी उसको बेवकूफी लगती है .

कुछ लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहते है,जहाँ रोशनी कम आती है लेकिन वे कम रोशनी को नहीं देखते ,देखते है कि झुग्गी-झोपड़ी से निकलने के बाद रोशनी का कोई फर्क नहीं रह जाता वे प्रकृति को धन्यवाद देते है और दूसरी नियामतें जो प्रकृति ने उन्हें दी है उन पर ध्यान केंद्रित करते है और उन नियामतों की ताकत के बल पर कुछ ऐसा कर गुजरते है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाता है ,वे किसी भी तरह के बैरियर्स से खुद को आज़ाद रखते है !
ध्यान रखे हारने वाले के लिए बहाने बहुत होते है और जीतने वाले के लिए रास्ते बहुत होते है !!!
सुबोध
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Photo: 141 . सही या गलत -निर्णय आपका !बहुत से लोगों के पास बहुत सी बेहतरीन आइडियाज होती है लेकिन वो उनके दिमाग में होती है और वही दफ़्न हो जाती है वो उनकी महान आईडिया इस लायक नहीं बन पाती  कि लाखो-करोडो पैदा कर सके ,इसकी मुख्य वजह ये है कि जिनके दिमाग में ये आईडिया आती है वो खुद को बहुत ही साधारण मानते है उस आईडिया पर गंभीरता से विचार और कार्य नहीं करते ,उन्हें खुद को इसकी सफलता पर संदेह रहता है .  उनका  अधूरापन उनका  दुश्मन बन जाता है ,कोई और उसी आईडिया पर काम करता है और पैसों का ढेर लगा लेता है लेकिन उनकी छोटेपन की कंडीशनिंग उनका पीछा नहीं छोड़ती ,उन्हें लगता है कि ग्रेट आईडिया सिर्फ ग्रेट लोगों के ही दिमाग में आ सकते है हम जैसे साधारण लोग साधारण पैदा होते है ,साधारणता में गुजारा करते है और साधारणता में ही  गुजर जाते है .वे इस बात को नहीं समझ पाते कि विचारों पर किसी का भी एकाधिकार नहीं होता . प्रकृति ने किसी भी व्यक्ति के साथ किसी किस्म का भेद-भाव नहीं किया , सबको बराबर धूप ,बराबर पानी ,बराबर हवा, बराबर खुशबु, बराबर वक्त ,बराबर अँधेरा ,बराबर रोशनी, बराबर निराशा ,बराबर आशा,बराबर एहसास कहने का अर्थ हर चीज़ बराबर -बराबर दी है ,व्यक्ति ने अपने बैरियर्स खुद बनाये है . एक गरीब को लगता है कि मैं झुग्गी-झोपड़ी  में रहता हूँ ,मेरे यहाँ रोशनी कम आती है ,जबकि अमीरों के बंगले में भरपूर रोशनी होती है ये उसकी सोच उसका  दायरा बन जाती है और वो इस सोच को अपने दुर्भाग्य से जोड़ लेता है ,अपनी,अपने पेरेंट्स की नाकामी से जोड़ लेता है ;धीरे-धीरे यही सोच बड़ी होती जाती है ,ज़िन्दगी के दूसरे क्षेत्र में भी छाने लगती है और प्रकृति ने जिस" बराबर इंसान" को पैदा किया था वो खुद  को छोटा मानने लगता है ,छोटा हो जाता है ! लिहाजा उसके दिमाग में आनेवाली महान आईडिया भी उसको बेवकूफी लगती है . कुछ लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहते है,जहाँ रोशनी कम आती है लेकिन वे कम रोशनी को नहीं देखते ,देखते है कि झुग्गी-झोपड़ी से निकलने के बाद रोशनी का कोई फर्क नहीं रह जाता वे प्रकृति को धन्यवाद देते है  और दूसरी नियामतें जो प्रकृति ने उन्हें दी है उन पर ध्यान केंद्रित करते है और उन नियामतों की ताकत के बल पर कुछ ऐसा कर गुजरते है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाता है ,वे किसी भी तरह के बैरियर्स से खुद को आज़ाद रखते है !ध्यान रखे हारने वाले के लिए बहाने बहुत होते है और जीतने वाले के लिए  रास्ते बहुत होते है !!!सुबोध  www.saralservices.com

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

140 . सही या गलत -निर्णय आपका !

           बड़ी अजीब सी सोच होती है लोगों की , उन्हें सफलता चाहिए होती है लेकिन उन्हें सफलता का शॉर्टकट चाहिए .अब उन्हें कौन समझाये और कैसे समझाये कि  कुछ चीज़ों का शॉर्टकट नहीं होता उन चीज़ों को अगर आप  शॉर्टकट से पा भी लेंगे  तो वे लम्बे वक्त तक टिकेगी नहीं . जैसे वो शॉर्टकट से आई है उसी तरह वो चली भी जाएगी ,बिना नींव के पहली बात छोटे-मोटे टेंट टाइप के मकान बन सकते है एक बड़ी और शानदार बिल्डिंग के लिए तो आपको नींव की ज़रुरत होगी .और दूसरी बात ज़िन्दगी का तूफ़ान ,एक विपरीत परिस्थिति आपकी टेंट टाइप की हैसियत को सुखहाली से  बदहाली में बदल देगी इसलिए आप एक नींव बनाये और नींव तो नींव होती है फिर वो चाहे मकान की हो ,आपकी शिक्षा की हो,आपकी अमीरी की हो  या फिर आपकी किसी अन्य सफलता की हो .
       अगर आपने अपनी नींव को मज़बूत बनाया है तो पहली बात आप सेफ है और दूसरी बात अगर किसी  हादसे के कारण आप बर्बाद भी हो जाते है तो आप दुबारा खड़े हो पाएंगे -फीनिक्स की तरह . क्योंकि नींव बनाने के दरम्यान आपने सीखा होता है कि रुकावटों से पार कैसे पाया जाता है जबकि शॉर्टकट में तो आप ज़िन्दगी की ऊंच-नीच से वाकिफ ही नहीं हो पाते .आपने सिर्फ पहाड़ की चोटी देखी है ,चढ़ाई के दौरान आनेवाली दिक्कतों को न देखा है ,न समझा है ,न महसूस किया है और न ही जीया है तो अगर चोटी से जिस दिन आप  लुढक गए उस दिन आपका  क्या होगा ? हर बार तो ज़िन्दगी शॉर्टकट से आपको  चोटी पर नहीं पहुंचा सकती है - हर दिन सट्टेबाज़ों का नहीं होता,जुआरियों का नहीं होता ,लाटरी जीतने वालों  का नहीं होता .
        अगर आपको अपनी सफलता को स्थायित्व देना है तो आपको उस लम्बे प्रोसेस से गुजरना ही होगा जहाँ आप चीज़ों को बनाना सीखते है (बना कर पाई हुई चीज़ आपको ज्यादा संतुष्टि देती है-- आपको अपनी पहली ख़रीदी गई फ्रीज़ की, गाड़ी की मनस्थिति आज भी याद होगी ! ) सम्हालना सीखते है ,बढ़ाना सीखते है . अगर आपने तुक्के में कोई  सफलता पाई है तो पहली बात आप उस सफलता को पचा नहीं पाएंगे आपको उल्टी ( vomiting  ) हो जाएगी और खुदा न खास्ता आपने उसे पचा लिया तो दूसरी बात आप उसे बढ़ा नहीं पाएंगे क्योंकि बढ़ाने में जो काबिलियत चाहिए वो काबिलियत तो आपमें है ही नहीं .तो बेहतर है रास्ता वो चुनिए जिसमे स्थायित्व हो बेशक वो चाहे लम्बा ही क्यों न हो क्योंकि उस रास्ते में हो सकता आप परेशान हो जाए,आपको जगह-जगह चोट लगे, आप चलते-चलते थक जाये,प्यास से आपका गला सूखे,भूख से आतें कुलबुलाये ,आपकी सांस फूल जाये ,हज़ार मुसीबतें आपको मिले लेकिन उस रास्ते से गुजरने के बाद आप जो पाएंगे वो स्थायी होगा और रास्ते के बीच झेली हुई मुसीबतें आपको ताकत,होंसला और सकारात्मक सोच देगी जिसका कोई भी जोड़ नहीं होता,जो खुद में अनमोल है !
- सुबोध

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139 . सही या गलत -निर्णय आपका !

कुछ लोग अपनी टीम पर ,जिसे उन्होंने खुद बनाया है -उसी टीम पर भरोसा नहीं कर पाते !

अगर आप भी उन लोगों में से है तो खुद से एक सवाल करें कि आपको भरोसा अपनी टीम पर नहीं है या खुद पर नहीं है ,कृपया जवाब बड़ी ईमानदारी से देवे .

जवाब चाहे जो हो दोनों ही स्थितियों में दोषी आप है ,इसकी जिम्मेदारी लेवे और अपेक्षित सुधार करें .

बड़े सपने पैरों में बेड़ी के अलावा कुछ भी नहीं है अगर आप बड़े स्तर पर सोचते नहीं है,बड़े प्रयास नहीं करते है और बड़े प्रयास करने के लिए एक जिम्मेदार टीम नहीं बना पाते है .

ये ध्यान रखे अगर छोटी सफलता पानी है तो मुमकिन है आप अकेले अपने दम पर पा सके लेकिन बड़ी सफलता के लिए आपको एक समर्पित टीम बनानी ही होगी !!
सुबोध

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138 . सही या गलत -निर्णय आपका !

सफलता चाहना किसी सपने का प्रारंभिक स्तर है, यह एक बीज है और बीज की उपयोगिता कुछ भी नहीं होती अगर उसे बीजा न जाए . बीज को बीजना पहली आवश्यकता है उसके बाद उसे खाद देना ,पानी देना उसकी सम्हाल  करना दूसरी आवश्यकता है जिसे आप कह सकते है कि सपने पूरे करने के लिए एक प्लानिंग के तहत कार्य करना या सपनो तक पहुंचने के लिए पुल का निर्माण  करना और जहाँ आप कार्य करना शुरू कर देते है वहां चाहना ( चाहत )  अगले स्तर पर पहुँच जाती है जिसे मैं चुनना ( चुनाव ) कहूँगा  हकीकत में यही  वो कदम है जहाँ से सफलता आपकी तरफ आकर्षित होना शुरू करती है !
कुछ विचारक सपने को सफलता का पहला स्तर मानते है जबकि मेरा सोचना यह है कि सपने देखना एक भिखारी स्तर के अलावा कुछ भी नहीं है अगर उन्हें कार्य रूप में परिणित नहीं किया जाता .मेरी निगाह में जब आप सपनों पर गंभीर होकर एक प्लानिंग करते है और उस प्लानिंग के तहत कार्य करना शुरू करते है तभी आप सपने साकार करने की तरफ बढ़ते है.सपने देखना एक सकारात्मक कदम है लेकिन उन देखे हुए सपनों पर कार्य न करना आपको शेखचिल्ली बनाता है और इस तरह के लोग समाज में कितना आदर  पाते है ये आप आये दिन देखते है .

सफलता का चुनाव करना महत्वपूर्ण बन जाता है क्योंकि यही से आपका नजरिया बदलना शुरू हो जाता है आप सफलता  के अगले स्तर में प्रवेश कर जाते है जिसे समर्पण कहते है . उस स्थिति में आपका दिल,दिमाग और जिस्म शिद्दत से सफलता पाने में जुट जाता है ,रोम-रोम सफलता पुकारता है , कण-कण में सफलता ,पल-पल में सफलता ,चारों और सफलता,सिर्फ सफलता ...यह एक नशे की तरह होता है जहाँ आपको सफलता के अलावा कुछ भी नज़र नहीं आता ,ज़िन्दगी में आपकी प्राथमिकताएं बदल जाती है उन दिनों आप अपने परिवार को भूल जाते है ,खाना - पीना भूल जाते है ,सोना- जागना भूल जाते है ,सारे शौक ,सारे मौज -मजे भूल जाते है आप सब कुछ भूल जाते है सिवाय उस लक्ष्य के ;जब आप ऐसी स्थिति में होते है  तो ऐसी स्थिति को "लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन "कहा जा सकता है कि अब आप उस स्थिति में पहुँच गए है जहाँ से आप सफलता को आकर्षित कर पा रहे है . ( इस स्थिति की कल्पना कीजिये ,लिखे गए शब्दों ,वाक्यों में डूब जाइये ,इन्हे महसूस कीजिये अगर आप इस स्थिति को महसूस नहीं कर पा रहे है ,इस स्थिति से नहीं गुजरे है तो निश्चित ही आप एक असफल व्यक्ति है और सफलता पाने के लिए आपको पूर्णतः ऐसी ही स्थिति चाहिए जब आप आप न रहे लक्ष्य बन जाए !!)
सफलता आपको पार्क में टहलते हुए मिल जायेगी या सोचने से,सपने देखने से ,बातें करने से,गप्पबाज़ी करने से मिल जायेगी ऐसा सोचना खुद को धोखा देने के अलावा कुछ भी नहीं है ,अगर आपको सफलता चाहिए तो आपको वो सब करना पड़ेगा जिससे सफलता आपकी तरफ खींची चली आये ,आपकी तरफ आकर्षित हो .आप आलू बोकर आम की फसल पाने की सोचे तो आप चाहे जितनी सकारात्मक सोच वाले हो आलू आम नहीं बन जायेंगे . आलू बोये है तो आपको आलू ही मिलेंगे . अगर आपको आम पाने हो तो आलू बोना बेवकूफी है. इसी तरह से आपको सफलता पानी है तो आपको सफलता के बीज बोने  पड़ेंगे  ,अमीरी पानी है तो अमीरी के बीज बोने पड़ेंगे !!!
-सुबोध

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137 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट 136  से आगे -
जब तक आप को यह पता न हो कि आप जो कर रहे है उस करने का कोई एक अलग अर्थ भी है तब तक आप उस अलग अर्थ का कोई सदुपयोग नहीं कर पाएंगे . आपका एक गरीबदोस्त अपनी बातचीत में किसी  प्रोडक्ट की खासियत के बारे में बात करता है  तो ज़ाहिर सी बात है वो सेल्समैनशिप वाला कार्य करके भी उसका कोई आर्थिक फायदा नहीं उठा पाता है क्योंकि उसकी नज़र में वो सेल्समेन वाला कार्य नहीं कर रहा है  यानि उसे पता ही नहीं है कि वो जो कर रहा है उसका एक अलग अर्थ भी है .
गरीबों के साथ यही होता है कि उन्हें पता ही नहीं होता कि वे जो कर रहे है उसका कोई व्यावसायिक उपयोग भी हो सकता है जिससे उन्हें आर्थिक लाभ मिल सकता है ,अगर उन्हें इसका पता होता तो वे अपनी सेल्समेनशिप वाली क्वालिटी को बेहतर करते और अच्छा मुनाफा हासिल करते .
 जैसे अगर मैं कोई बुक रेफेर करता हूँ तो इनडायरेक्टली  ये उस बुक की मार्केटिंग है ,उस बुक को बिकवाता हूँ तो ये सेल्स क्लोज करना है , अधिकतर कंपनियां सेल क्लोज करने पर आपको कुछ हिस्सा मार्जिन में से देती है चूँकि गरीब को पहली बात तो ये पता नहीं होती कि वो मार्केटिंग कर रहा है और दूसरी बात ये कि उसे सेल क्लोज करना नहीं आता . जब वो पहली बात में ही क्लियर नहीं है तो दूसरी बात वाली क्वालिटी खुद में डेवेलप कहाँ करेगा ! और जब तक सेल क्लोज नहीं करेगा उसकी जेब में कुछ आएगा भी नहीं . 
गरीब सिर्फ मार्केटिंग  करते है ,सेल क्लोज नहीं करते लिहाजा उन्हें अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता .
अमीरों की स्थिति कुछ अलग होती है -उन्हें पता होता है कि हम किसी प्रोडक्ट की तारीफ़ करते है तो उसका मतलब क्या होता है लिहाजा वो सेल्स को सीरियसली लेते है और सेल क्लोज करना भी सीखते है . संसार के सारे अमीर खुद में एक बहुत अच्छे सेल्समन भी होते है मेरी जानकारी में कोई भी अमीर ऐसा नहीं है जो खुद में एक अच्छा सेल्समेन नहीं हो . कृपया सेल्स को हलके या अधूरे सन्दर्भ में न लेवे , यह संसार के सबसे बड़े सब्जेक्ट में से एक है लेकिन इसकी डिटेल में जाना मेरी इस पोस्ट का विषय नहीं है .
ध्यान रखे संसार के सबसे टफ कार्यों में से एक सेल क्लोज करना है और इसकी इम्पोर्टेंस ये है कि संसार में सबसे ज्यादा पेमेंट इसी कैटगरी वालों को मिलता है.  अमीर बनने के लिए ये निहायत ज़रूरी है कि आप सेल्स के बारे में सीखे,समझे,जाने और करें .
सुबोध
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136 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट 48 " बेचना आना चाहिए" के बारे में थी .

अमीर बेचने के तरीके जानते है ,अहमियत समझते है जबकि गरीब बेचने को  तकरीबन नापसंद करते है ,इसे हेय दृष्टि से देखते है !

पहली बात ये समझे कि बेचना क्या होता है ,अमूनन गरीबों को" बेचने" के बारे में अधूरी जानकारी होती है .

कोई भी ऐसी कार्यवाही जिसकी वजह से कोई भी वस्तु के पक्ष में वातावरण का निर्माण हो रहा हो वो कार्यवाही बेचने का एक हिस्सा है !

आप T . V . में ढेरों ऐड देखते है ,वो किसी वस्तु के पक्ष में वातावरण का निर्माण भर है - लेकिन सेल्स का एक पार्ट है - कई विद्वानो की अलग-अलग परिभाषाएं है , अगर आपको बेचने के बारे में उलझन चाहिए तो उन्हें पढ़िए और सीधी सी समझ चाहिए तो उपरोक्त बात समझिए .

इस समझ के मुताबिक आप अगर किसी की भी तारीफ़ करते है तो Indirecty  उसकी मार्केटिंग कर रहे होते है , बेचने का हिस्सा हो जाते है .
अगर आप किसी को देखकर हंस रहे है तो आप अपनी मार्केटिंग कर रहे होते है ! अगर आप किसी Social Site पर खुद को update कर रहे है तो भी अपनी मार्केटिंग कर रहे होते है ,अगर आप अपनी Girlfriend  के साथ Dating कर रहे है तो अपनी मोहब्बत की Marketing कर रहे है - इसी बात को आप खुद अलग-अलग तरीके से समझ लेवे ,और जब समझ जावे तो मुझे बताये कि आपकी जानकारी में कोई एक ऐसा शख्स है जो बेचने का काम नहीं कर रहा है ?
यानि संसार का हर शख्स कुछ न कुछ बेच रहा है ,कोई भी इस बेचने से अछूता नहीं है ! एक भिखारी से लेकर किसी मुल्क का प्रधानमंत्री तक,एक शिक्षक से लेकर एक विद्यार्थी तक, एक नौकर से लेकर मालिक तक , एक पिता से लेकर पुत्र तक  हर शख्स Salesman  है ,हर शख्स मार्केटिंग कर रहा है !!

गरीबों को बेचने के बारे में अधूरी जानकारी होती है - वो हर पल हर घडी कुछ न कुछ बेच रहे होते है लेकिन उन्हें ये पता ही नहीं होता है कि वे बेच रहे है !!
वे खुद को जिस जॉब में है उस जॉब का कर्मचारी मानते है जबकि हकीकत में वे अपनी सेवाएं बेच रहे होते है ,वे पेड़ के उस हिस्से को देख पाते है जो ज़मीन से ऊपर है ,ज़मीन के नीचे के हिस्से को उनकी नज़रें देख नहीं पाती और दिमाग शब्दों के दायरे में कैद होकर रह जाता है ,शब्दों के वास्तविक अर्थ तक पहुँच ही नहीं पाता !
वे शब्द खतरनाक होते है जिनका आप हर रोज़ इस्तेमाल करते है लेकिन उनका अर्थ नहीं जानते है ऐसे शब्द आपकी ज़िन्दगी को बर्बाद कर सकते है !! गरीबों के साथ यही हो रहा है , वे सेल्समेन होकर भी खुद को सेल्स से बाहर मान रहे है और खुश हो रहे है !! अगर उन्हें शब्दों का सही अर्थ पता होता और पता होता कि वे बहुत अच्छे सेल्समेन है तो आज उनकी स्थिति कुछ अलग होती !!!
Post  लम्बी हो गई है बाकी अगली पोस्ट में
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135 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप पहली बार नया काम करते है तो अमूनन वो मुश्किल ही होता है लेकिन उसके बाद जब उसे दुबारा करेंगे  तो वो उतना मुश्किल नहीं लगेगा  और उसी कार्य को  फिर किया तो ?
कोई भी कार्य लगातार  दोहराने से आसान हो जाता है, जब ये आसान हो जाता है तो इसे करना सुखद  हो जाता है .और मानव स्वाभाव के अनुसार  सुखद कार्यों को वो बार-बार करना चाहता है और जब इसे बार-बार किया जाता है तो ये कार्य करना आदत  बन जाता है - उस स्थिति में वो कार्य उसके कम्फर्ट जोन ( Comfort Zone ) के दायरे में आ जाता है .
मुझे याद है मैं 10  साल पहले तक सिस्टम पर काम किया करता था ,जब पहली बार लैपटॉप लिया था तो लैपटॉप में  माउस न होने की वजह से बहुत दिक्कत होती थी ,उस दिक्कत से बचने के लिए मैंने एडिशनल माउस तक मंगवा लिया था ,लेकिन फिर धीरे-धीरे अभ्यास से बिना माउस से ही लैपटॉप पर काम करने लगा और आज मेरे लिए सिस्टम से ज्यादा लैपटॉप पर काम करना आरामदेह  है , यानि मेरा" टफ जोन "आज "कम्फर्ट जोन" में बदल गया है
आपके पास खुद के इसी तरह के ढेरों उदहारण होंगे कि आपने अपने उस बैरियर को तोडा है जो आपका टफ जोन था , अगर वो बैरियर आप नहीं तोड़ते तो आप कहाँ होते ?
हमेशा ध्यान रखे बाहर कोई भी मुश्किल उतनी मुश्किल नहीं होती जितनी आपके दिमाग में होती है , जब आप उस काम को करने जाएंगे जिसे आप कठिन मानते है तो वो उतना कठिन नहीं होगा जितना कठिन आपके दिमाग के स्टोर रूम में पड़ी फाइलों ने आपको बताया है और अगर आपके अनुमान से वो ज्यादा कठिन है तो आपने अपनी 2 किलोमीटर की दौड़ को सीधे  ही 6  किलोमीटर के स्तर पर पहुँचाने की कोशिश की है !! ऐसी स्थिति में मैं आपको यही कहूँगा कि कृपया खुद को टफ जोन में धकेलिये ,पहाड़ के ऊपर से धक्का मत दीजिये ; खुद को मोटीवेट ( Motivate ) कीजिये न कि खुद के प्रति निष्ठुर बनिये !!!
- सुबोध
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134 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आपका आरामदेह दायरा क्या है ? आपका कम्फर्ट जोन क्या है ?
मान लेते है अभी आप डेली  2  किलोमीटर दौड़ते है और आप  डेली 4  किलोमीटर दौड़ना चाहते है .
2 किलोमीटर या इससे कम दौड़ना आपके लिए आपका कम्फर्ट जोन है क्योंकि इतना आप डेली दौड़ते है और इतना दौड़ने में न आपकी साँस फूलती है, न आपकी पिंडलियों में दर्द होता है और न ही आपको अतिरिक्त थकान महसूस होती है . जबकि 2  किलोमीटर से ज्यादा दौड़ने में आपको दिक्कत महसूस होती है तो 2  किलोमीटर से ज्यादा दौड़ना आपके लिए "कठिन क्षेत्र"  , "मुश्किल क्षेत्र"  " टफ जोन " है.

 इसका मतलब ये हुआ कि जब भी आप अपने 4 किलोमीटर दौड़ने के लक्ष्य को पाने के लिए 2 किलोमीटर से अधिक दौड़ेंगे आपको पूरे रास्ते मुश्किल यात्रा करनी होगी ,आप जब भी 2  किलोमीटर से अधिक दौड़ेंगे आपकी साँस फूलेगी,आपकी पिंडलियों में दर्द होगा ,आपको अतिरिक्त थकान महसूस होगी ,आप हाँफने लगेंगे ,आपके माथे पर पसीना नज़र आने लगेगा .
ये कम्फर्ट जोन जीवन के हर क्षेत्र में होता है , आप अपनी सीमा रेखा में है तो ये आपका कम्फर्ट जोन है खुद को सीमा रेखा से बाहर धकेलना मुश्किल क्षेत्र है .
गरीब और मध्यम वर्गीय मानसिकता के लोग  अपनी ज़िन्दगी को आरामदेह बनाना चाहते है , लिहाजा वो खुद को आरामदेह बना लेते है वे 2  किलोमीटर दौड़ने में ही आरामदेह महसूस करते है .  .  इस आरामदेह क्षेत्र का चुनाव उन्हें ज्यादा आत्मसंतुष्ट, ज्यादा सुरक्षित,ज्यादा तरोताज़ा महसूस करवाता  है .लेकिन ये आरामदेह दायरा उनके विकास को रोक देता है , उन्हें जानना और समझना चाहिए कि  2  किलोमीटर से अधिक दौड़ने पर उनके फेफड़े अधिक सक्रिय होंगे, पुराने तंतु टूटकर नए सिरे से अधिक मजबूत बनेंगे , वे पहले से ज्यादा ऑक्सीजन का उपयोग करेंगे ,उनका शारीरिक और मानसिक विकास पहले से ज्यादा होगा . वे अपनी अज्ञानता की वजह से जड़ों में काम नहीं करते ,जड़ो को मजबूत और स्वस्थ्य बनाने की बजाय पेड़ों की पत्तियों को पानी डाल -डाल कर साफ़ करते रहते है और  खुश होते रहते है.
दरअसल आप अपना विकास अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आकर ही कर सकते है , अपने कम्फर्ट जोन में रहकर जो आप हासिल कर सकते है वो तो कर ही रहे है अगर आपको उस से अधिक चाहिए तो आपको 2  किलोमीटर से अधिक दौड़ना पड़ेगा .
अमीर लोग हर बार अपने कम्फर्ट जोन को तोड़ते रहते है 2  किलोमीटर से 4   किलोमीटर 4  किलोमीटर से 6  किलोमीटर . वे वाकई कुछ अतिरिक्त नहीं करते सिवाय अपने कम्फर्ट जोन को हर बार तोड़ते रहने के....
उनकी अमीरी का एक राज ये भी है !!!!

सुबोध
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133 . सही या गलत -निर्णय आपका !

अगर आप अपनी ज़िन्दगी को मुश्किल बनाना चाहते है तो आसान कामों का चुनाव कीजिये और अगर आप अपनी ज़िन्दगी को आसान बनाना चाहते है तो मुश्किल कामों का चुनाव कीजिये .

जिस रास्ते पर भीड़ चलती है वो रास्ता आसान होता जाता है क्योंकि उस रास्ते पर चलने के लिए लैंडमार्क्स मौजूद होते है और बड़ी उपलब्धियां आसान रास्तों पर नहीं होती क्योंकि उस रास्ते की हरियाली तो भीड़ पहले ही कुचल चुकी  है ,उस रास्ते के सारे फूल पहले ही तोड़ लिए गये है ,ख़ूबसूरत नज़ारे पहले ही बर्बाद कर दिये गये  है !!!

बड़ी उपलब्धियां, हरियाली ,खूबसूरती,महक उन रास्तों पर होती है जो अनजान होते है ,ज़िन्दगी में कुछ हासिल करने का,नया और बेहतरीन पाने का  रोमांच भी उन्ही रास्तों पर होता है जहाँ पगडंडियां भी नहीं बनी होती है ,खुद के दम पर सब कुछ बनाना होता है . वो बनाना ही आपको अपने कम्फर्ट जोन से बाहर धकेलता है ;एक मेंढक को बाज़ बनने की ताकत देता है .

याद रखे आपका कम्फर्ट जोन ही आपका वेल्थ जोन होता है !कृपया गरीबी को भाग्य का खेल मत मानिये इसे कम्फर्ट जोन का चुनाव मानिये !!
- सुबोध

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132 . सही या गलत -निर्णय आपका !

ज़िन्दगी में आपको आगे बढ़ने से कौन रोक रहा है ? आपके पैरों में ज़ंज़ीर डालने वाला कौन है ? मुकाबले में खड़े हुए बिना ही आपकी हार की घोषणा करने वाला कौन है ? वो कौन है जो इस बहुतायत वाले संसार में आपको अवसरों की कमी है ऐसा कह रहा है ? जो उत्साह के माहौल में भी आपको हताश, निराश  कर देता है वो कौन है ? क्या आपने कभी जानने की कोशिश की ?
मेरे पुरानी पोस्ट पढ़े , उनमे मैंने कई  वजह बताई है जो आपकी इस स्थिति  की वजह है .
मैंने बार-बार लिखा है आप जैसे भी है उसके जिम्मेदार सिर्फ आप ही है ,कोई अन्य नहीं . किसी दुसरे को  दोषी ठहराना सुधार के रास्ते को बंद करना है .क्योंकि सुधार हमेशा जिम्मेदारी को स्वीकारने से होता है !!
मेरी  पोस्ट 129 ,130 ,131   लक्ष्य के बारे में है , ईमानदारी से बताएं क्या आपने उन पोस्ट में बताये गए तरीकों पर अमल किया है ?

नहीं किया, अच्छा किया, करना भी नहीं चाहिए  क्योंकि हर आदमी का सच अलग होता है ,ये ज़रूरी नहीं मेरा सच आपका भी सच हो लेकिन कृपया ये बताये कि आप दूसरे के सच को स्वीकार नहीं रहे है ,खुद के सच में दम नहीं है तो आप करना क्या चाहते है ?
यानि आप  अनिर्णय की स्थिति में है या नकारात्मक भावों को अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाये हुए है . कृपया  ये समझ लेवें जब तक आप इनके खिलाफ खड़े होने की हिम्मत खुद में पैदा नहीं करते ,आपकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सकता . उन सपनो की कोई कीमत नहीं होती जिसे देखने के बाद आपको नींद आ जाये , वो सपने साकार भी नहीं होते !! तो अपनी इच्छाओं में वो आग पैदा करें जो आपमें ऊर्जा भर दे ,आपके सारे नकारात्मक  भावों को जला कर राख  कर दे .तभी आपके लक्ष्यों की सार्थकता है .
सुबोध

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131 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप कुछ पाने का लक्ष्य बनाते है -
*धन की एक निश्चित ,सही-सही मात्रा  सोचते है .( जितनी ज्यादा डिटेल में जा सकते है जाए )
**उसे किस काम के द्वारा  पाएंगे.( जितनी ज्यादा डिटेल में जा सकते है  जाए )
 ***उसे पाने की क्या कीमत आप चुकाएंगे ये भी ज्ञात कर लेते है .( जितनी ज्यादा डिटेल में जा सकते है  जाए )
****और एक कटऑफ डेट भी चुन लेते है .( जितनी ज्यादा डिटेल तैयार कर सकते है करें )
ये आपका लक्ष्य तैयार हो गया !!
चारों   मुख्य  बातों के आगे मैंने रिमार्क में डिटेल देने के बारे में भी लिखा है - आप जितनी ज्यादा डिटेल देंगे उतना ही ज्यादा आपका विज़न क्लियर होता जायेगा .
दस साल में मैंने एक करोड़ रूपया कमाना है - ये लक्ष्य हो सकता है लेकिन इसमें डिटेल नहीं है लिहाजा ये आपको स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दे पाता है ,पहले साल आपने क्या कमाना है बल्कि पहले महीने या पहले वीक ... लब्बोलुबाब ये है कि जितनी ज्यादा डिटेल उतना स्पष्ट लक्ष्य .
चारों  पॉइंट के साथ अपनी जितनी ज्यादा डिटेल तैयार कर सकते है करे उसके बिना प्रोपेरली वर्क प्लान संभव नहीं है और डिटेल न होने पर  आपको खुद की सफलता / असफलता को जांचने का मौका नहीं मिलेगा . लिहाजा खुद को मोटीवेट रखने के लिए आपके पास पूरी डिटेल होनी चाहिए .
अगर आप वाकई सीरियस है तो लक्ष्य अपनी खुद की लिखावट  में तैयार करें ! मैं खुद की लिखावट के लिए इसलिए कह रहा हूँ कि ये आपका खुद के प्रति कमिटमेंट है  और हाँ ,मेरी इस बात को हलके में न लेवे !!!!

बधाई हो ! आप अमीरी के रास्ते पर चल पड़े है !!
-सुबोध
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130. सही या गलत -निर्णय आपका !

जब लक्ष्य बनाने की बात आती है तो ज्यादातर लोग इसे मजाक में लेते है !!

उन्हें लक्ष्य की आवश्यकता और अहमियत समझ में नहीं आती , उन्हें लक्ष्य बनाना गैरजरूरी और बोझिल लगता है .

वे जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट 113 ( http://saralservices.blogspot.in/2014/08/110_23.html ) में लिखा है चाहना,चुनना और समर्पण में फर्क ही नहीं कर पाते .

उन्हें ये अंदाजा ही नहीं होता कि हमे अपनी जीत किस स्तर पर जाकर स्वीकार करनी है  ? वे निशाना कहाँ साध रहे है ?
तीन वक्त की रोटी पर ,गाड़ी पर , बंगले पर ?
वे लाख रुपये साल का कमाना चाहते है या महीने का या दस लाख महीने का या एक करोड़ महीने का ?

उनके दिमाग में कोई स्पष्ट खाका नहीं होता कि किस स्तर को पाने के लिए उन्हें क्या कीमत चुकानी होगी ?

आर्थिक स्वतंत्रता का लक्ष्य बनाना तो बहुत दूर की बात है ,उन्हें तो ये समझ में ही नहीं आता कि ऐसा कोई कांसेप्ट होता है और उसे हासिल किया जा सकता है.
वे दौड़ते रहते है , प्रयास करते रहते है ,ज़िन्दगी रूपी प्लेग्राउंड में उस फुटबॉल को लेकर जिसके लिए उनकी निगाहों में कोई गोल पोस्ट नहीं है - उन्होंने बनाया नहीं है !!!! (http://saralservices.blogspot.in/2014/09/129.html)

ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से चलती है वो आपको कुछ न कुछ बनाएगी जरूर .अगर आपने लक्ष्य बना रखा है तो आप उसके अनुरूप बनेंगे और अगर लक्ष्य नहीं बनाया है तो आप वो बनेंगे जो शायद आप बनना नहीं चाहें . जब कुछ न कुछ बनना ही है तो  क्यों न वो बने जो बनना  चाहते है !!!!
सुबोध
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129. सही या गलत -निर्णय आपका !

ज़िन्दगी में लक्ष्य  तय किये बिना शुरुआत  करना वैसा ही है जैसा फुटबॉल खेलते वक्त गोल पोस्ट का पता न होना ,वो  बड़ी ही हास्यास्पद स्थिति होती है जब एक फुटबॉल खिलाडी के पास फुटबॉल हो लेकिन उसे ये पता न हो कि गोल कहाँ करना है . अगर आप फुटबॉल मैच के दर्शक हो तो क्या ऐसी टीम को सपोर्ट करेंगे जिसके खिलाडी को ये भी पता नहीं हो कि गोल कहाँ करना है ? अगर नहीं तो क्यों ?

आपको शायद पढ़कर अच्छा नहीं लगे लेकिन हकीकत और  दुःख  की बात ये है कि संसार के अधिकांश लोग  इसी वर्णित खिलाडी  की नुमाइंदगी करते है !!

ऐसा  पत्र  जिसमे बहुत अच्छी-अच्छी ज्ञान भरी बातें लिखी हो लेकिन जिसके लिफाफे  पर पता नहीं लिखा हो वो बिना पता लिखा हुआ लिफाफा पोस्टमैन कहाँ डिलीवरी करेगा ? संसार में बहुत से ऐसे लोग होते है जिन्हे बहुत कुछ पता होता है, ज्ञान का भण्डार होते है, जिनके दिमाग में कूट-कूट कर नए-नए आइडियाज भरे होते है लेकिन वो कहीं नहीं पहुंचते ,क्यों नहीं पहुंचते क्या कभी आपने सोचा ?
अब गौर कीजियेगा - उनके लिफाफे पर लक्ष्य रूपी पता नहीं लिखा होता !!!!! .
गरीबी की बड़ी वजहों में से एक लक्ष्य का निर्धारण न करना  है .
सुबोध
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128. सही या गलत -निर्णय आपका !



अमीर मानसिकता के लोगों को अपनी कार्यक्षमता पर भरोसा होता है लिहाजा वे अपने प्रदर्शन ( Result ) के आधार पर पेमेंट माँगते है , जबकि गरीब मानसिकता के लोग समय के आधार पर पेमेंट माँगते है .
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127. सही या गलत -निर्णय आपका !

आज़ादी, स्वतंत्रता जैसे शब्दों की गहराई में जाए तो समझ में आता है कि जिसे हम आज़ादी कहते है वो अपने अंदर एक जिम्मेदारी समेटे है .आपको खुश होने की आज़ादी तब है जब आप खुश होने के लिए किये जानेवाले कार्यों की जिम्मेदारी लेते है . आपको अपनी संतान को संतान कहने की आज़ादी  तब है जब आप उनके भरण- पोषण की जिम्मेदारी लेते है . आपको अपनी बीमारी से आज़ादी तब मिलती है जब आप डॉक्टर द्वारा दी गई हिदायतों को जिम्मेदारी से पूरा करते है . आपको दोस्त को दोस्त कहने की  आज़ादी  तब है जब आप दोस्ती नामक लफ्ज़ के साथ जुडी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते है .
                 आपके जीवन के हर पहलु के साथ आज़ादी जुडी हुई है और उस आज़ादी के साथ एक जिम्मेदारी भी . वो आपके जिम्मेदारी से किये गए कार्यों का परिणाम  है कि कई तरह के  दुखों से,अभावों  से आपको आज़ादी मिली है ,और आप एक सुविधापूर्ण जीवन जी पा रहे है .
            आपके एक कलीग को इन्क्रीमेंट मिलता है दुसरे को नहीं ,आपने सोचा क्यों होता है ऐसा ?
             आपके साथ खेला-कूदा बड़ा हुआ एक दोस्त आज पैसे में खेलता है और दूसरा दो वक्त की रोटी भी ढंग से नहीं जुटा पाता ,  क्यों?
           मजाक  की बात ये है कि अधिकांश लोग जिम्मेदारी नामक लफ्ज़ से दूर भागते है, जहाँ तक होता है इससे बचते है .
           आज़ादी का एक अर्थ जैसा कि मैंने ऊपर बताया  जिम्मेदारी है उसी के अनुसार गुलामी का अर्थ गैर-जिम्मेदारी हो जाता है .
          मुझे शायद ये बताने की जरूरत नहीं है कि आज़ादी और गुलामी  में से आपको किसका चुनाव करना चाहिए , क्यों करना चाहिए और मेरे इस वाक्य का सही अर्थ क्या है !
- सुबोध

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126. सही या गलत -निर्णय आपका !

वित्तीय बुद्धि आपको यह सिखाती है कि शांत पड़े तालाब  में तरंगे कैसे पैदा की जाए , जब स्थिति सामान्य हो या मार्किट तेजी में हो तो कोई भी पैसा बना सकता है ( हालाँकि ऐसा होता नहीं है लेकिन लोग ऐसा मानते है ) परन्तु जब मार्किट मंदी में  हो तब पैसा कैसे बनाया जाए . छुपे हुए अवसर को कैसे पहचाना जाए ?  समस्या को किस तरह अवसर में बदला जाए ? जब आपके पास पैसा न हो तब भी मार्किट में सौदे कैसे किये जाए, मार्किट से पैसे कैसे उगाहे जाए ?
                       यानी ये शिक्षा ,ये बुद्धि आपके दिमाग के उस भाग को सक्रिय करती है जो वित्त से सम्बंधित है और अमूनन काम में ना लेने की वजह से कोमा में चला जाता है ..
                       सबसे महत्वपूर्ण  दक्षता  जो आपको चाहिए वो है अंको को पढ़ना और समझना यानि वित्तीय साक्षरता . लोग अंको को पढ़ना जानते है , उन्हें समझना नहीं जानते , जब किसी शब्द के साथ अंक जुड़ते है तो शब्द बदलने के साथ ही अंको के मायने भी बदल जाते है अंको के साथ ग्रॉस प्रॉफिट की बजाय नेट प्रॉफिट लिखा है तो पूरा का पूरा सन्दर्भ ही बदल जाता है यानी अगर  शब्दों के अर्थ और अंको की समझ आपको नहीं है तो उसे जानना ही आपके लिए वित्तीय बुद्धि हासिल करने का पहला कदम है . अगर आपको संपत्ति   और दायित्व   का अर्थ नहीं पता है तो अकादमिक रूप से शिक्षित होकर भी  आप वित्तीय रूप से अशिक्षित है .
दूसरा कदम  धन से धन कैसे बनाया जाता है  , कम धन से किस तरह के सौदे करने चाहिए, उन्हें करने के  तरीके क्या है यानि कम धन से पैसा  कैसे बनाया जाता है और कई मर्तबा तो बिना धन के धन कैसे बनाया जाता है ये जानने के साथ-साथ निवेश को समझना  है.निवेश के कई इस्ट्रुमेंट्स होते है ,लोग निवेश का अर्थ   शेयर मार्किट , बैंक की जमा , प्रॉपर्टी, गोल्ड वगैरह ही मानते ,जानते है !!
                           तीसरे कदम में बाज़ार को समझना , वर्त्तमान में कितनी मांग है भविष्य में कितनी हो सकती है, पुर्ति  कितनी है भविष्य में किस तरह से पुर्ति  होगी, कितनी शॉर्टेज  रहेगी ये सब आकलन करना और इस आकलन से मार्किट में उतरने की स्ट्रैटेजी तैयार करना है इसी में ये भी ध्यान रखना है कि नई  टेक्नोलॉजी भविष्य में वर्तमान के मार्किट पर क्या और कितना प्रभाव डाल सकती है, प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करना / समझना ,नए लांच होने वाले प्रोडक्ट पर स्टडी रखना , अपने कॉम्पिटिटर की जानकारी रखना ये सब है.
                       चौथे कदम में आपको कानून की जानकारी होनी चाहिए , जो व्यवसाय कर रहे है उस व्यवसाय में कौन -कौन से डिपार्टमेंट से क्लियरेंस आपको चाहिए , कॉर्पोरेट,स्टेट और नेशनल लॉ के बारे में जानकारी के साथ-साथ एकाउंटिंग की जानकारी भी आपको होनी चाहिए , ये ध्यान रखे वित्तीय रूप से शिक्षित व्यक्ति कानूनों का सम्मान करते है ,कानून तोड़ने जैसे पचड़े में पड़ने की बजाय वे कानून के दायरे में रहते हुए काम करते है . चूँकि उन्हें कानूनों की पूरी जानकारी होती है ,कानून में  मौजूद छिद्रो की भी .इन्ही छिद्रों का इस्तेमाल करकर वे अतिरिक्त पैसा पैदा करते है .
सुबोध

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125. सही या गलत -निर्णय आपका !

                       अमीर और गरीब के बीच जो सबसे महत्त्वपूर्ण फर्क है वो है विचार का - विचार के चुनाव का !!!
                       कोई भी विचार आपके दिमाग में नकारों  की तरह  नहीं रहता - वो आपके दिमाग में रहने का कुछ न कुछ असर आप पर छोड़ता ही है ,अच्छा या बुरा , खर्च या निवेश, सफलता या असफलता , मजबूती या कमजोरी ., इसलिए अपने दिमाग में किसी भी विचार को आप सोच समझ कर ठहरने देवे .
                     मैं वापिस आपको याद दिला दूँ - विचार भावनाओ की ओर ले जाते है - भावनाएं कार्य की ओर और कार्य परिणामों की ओर . लिहाजा एक गलत विचार आपको बुरा परिणाम देगा और एक अच्छा विचार आपको सही परिणाम देगा .
                   अब जब आप विचार-भावना-कार्य-परिणाम का आपसी सम्बन्ध समझ लेते है तो अपने दिमाग में उन्ही तरीके के विचारों को आश्रय देवे जिस तरह के विचारों को अमीर देते है , जब आप उनकी तरह सोचना, समझना और करना सीख जाते है तो उन्ही की तरह बन भी जायेंगे ....
- सुबोध

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124. सही या गलत -निर्णय आपका !

जब आप ये समझ लेते है कि बाहर वही आता है जो अंदर होता है यानी फल जड़ो के अनुरूप लगते है तो अपने छोटे, खट्टे,बदबूदार फलों को लेकर परेशान न होवें, जो उग चुके है, उन्हें आप नहीं बदल सकते . लेकिन हाँ, अगर आप जमीन की खुदाई करते है खाद -पानी डालते है पेड़ की जड़े मजबूत,स्वस्थ्य कर पाते है तो आगे से पेड़ पर  लगने वाले फलों को बदल सकते है उन्हें  बड़े,मीठे और महक वाले बना सकते है  .
   अगर आप अपनी बाहरी दुनिया को बदलना चाहते है आपको पहले अपनी अंदरुनी दुनिया बदलनी होगी , बाहरी दुनिया तो सिर्फ परिणाम है ये तो यह बताती है कि आपके अंदर क्या चल रहा है .मैं आपको वापिस याद दिला  दूँ आप जिस दुनिया में रहते है वो कारण और परिणाम पर आधारित है .
  आपके साथ जो भी हो रहा हो अच्छा या बुरा , लाभदायक या नुकसान दायक , सकारात्मक या नकारात्मक ये आपके आतंरिक संसार का परिणाम है . इसलिए कभी आपको अपने बाहर के परिणामो से हताशा हो तो कृपया अपने अंदर झांक लेवे .
 अमीर लोग बचत  को आदत बनाते है इसलिए उन्हें अपनी बाहरी स्थिति का शीघ्र पता चल जाता है ,उस स्थिति में वे अपनी आतंरिक स्थिति में वांछित सुधार  कर लेते है जबकि गरीबों के लिए बचत एक उत्सव होता है इसलिए उन्हें अपनी बाहरी स्थिति का पता बहुत बाद में चलता है , पता चलने के बावजूद भी चूँकि उन्हें बाहरी स्थितियों  का आतंरिक स्थितियों से सम्बन्ध पता  नहीं होता लिहाजा वे  भाग्य ,मंदी ,अर्थव्यवस्था जैसी बातों का रोना रोते है , उनकी यही अज्ञानता उन्हें भारी पड़ती है . 
- सुबोध
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123. सही या गलत -निर्णय आपका !

संसार के अधिकांश लोग पैसे के मामले में " खुद " को जिम्मेदार मानने की  बजाय  "भाग्य"  को जिम्मेदार मानते है लिहाजा गैर जिम्मेदार लोगों के हिस्से में जो आ सकता है वही उनके हिस्से में आता है . पैसे को वे कंट्रोल नहीं करते बल्कि पैसा  उनकी कंडीशनिंग के अनुसार उन्हें कंट्रोल करता है . 

वे जीवन को  गंभीरता से लेने की बजाय बड़े ही हलके स्तर पर लेते है -साधारण तरीके से सोचते है ,साधारण  तरीके के प्रयास करते है और सिर्फ वही देखते है जो उन्हें नज़रों से दिखाई देता है .नज़रों से इतर भी कुछ हो सकता है उन्हें ये समझ में नहीं आता. उन्हें पेड़ दिखाई देता है जड़े नहीं , उन्हें सुन्दर भवन दिखाई देता है, नींव नहीं .वे सिर्फ बाहरी तत्व देखते है उन्हें आतंरिक तत्वों की  समझ ही नहीं होती . 

 और जिन्हे आतंरिक तत्वों की महत्ता ज्ञात होती है  ,जो इन्हे विकसित करने पर मेहनत करते है वे उस श्रेणी में आ जाते है जिन्हे लोग अमीर कहते है. आपने कुछ अमीरों को विपरीत परिस्थितियों में बर्बाद होते देखा होगा लेकिन शीघ्र ही वे दुबारा पहले वाली स्थिति में पहुँच जाते है उसकी मुख्य वजह होती है उनकी आतंरिक तत्वों की शक्ति , वे सब कुछ गँवा देते है लेकिन सफलता के मूल तत्व को नहीं गवांते  और इसी वजह से वे दुबारा अमीर बनने में सफल हो जाते है .

ये ध्यान रखें बाहरी तत्वों से ज्यादा महत्वपूर्ण  आतंरिक तत्व होते है , अगर अमीर बनना है तो अपने आतंरिक तत्वों को विकसित करने पर मेहनत करें. 

इस पोस्ट को बराबर समझने के लिए मेरी पोस्ट 120 .121  और 122  पढ़ें
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122. सही या गलत -निर्णय आपका !

जब आप ये जान लेते है कि सफलता के लिए बाह्य तत्वों से  ज्यादा  आतंरिक तत्व  जिम्मेदार है  तब आप ये भी जान लेते है कि सफलता को साधने के लिए, सम्हालने के लिए शरीर की मजबूती से ज्यादा वैचारिक और भावनात्मक मजबूती जरूरी है .
 इस बात को समझने के बाद जब लोगों को आप हारते देखे , बदकिस्मती का रोना रोते देखे, धोखेबाज़ पार्टनर या अर्थव्यवस्था की मंदी या नई टेक्नोलॉजी के  आविर्भाव में पुरानी का बर्बाद होना सुने तो असली वजह समझ जाए कि समस्या कहीं बाहर नहीं उनके अंदर है .- उनकी जड़ों में है , उस दो लीटर माप के बर्तन में है जिसमे डेंट आ गया है और अब डेंट आने की वजह से उस बर्तन में  दो लीटर दूध नहीं आ सकता .
 ज्यादतर लोगों के पास ढेर सारा पैसा बनाने के बावजूद उनमे पैसा  सम्हालने की क्षमता ही नहीं होती मेरी पोस्ट 4 ,5  और 6 देखें  .  याद रखे पैसा कभी भी अकेला नहीं आता , हमेशा अपने साथ चुनौती लेकर आता है कि आओ मुझ पर सवारी करो, मुझे साधो ,अगर आप उसको साध पाये, उस पर सवारी कर पाये तो वो आपका पालतू होगा अन्यथा आपके मन को, विचारों को चोट पहुंचा कर आपसे दूर चला जायेगा ,आपके माथे पर असफलता का ठप्पा लगा जायेगा .
तो अमीर बनने के लिए पहली बात मानसिक रूप से खुद को तैयार करें .दूसरी बात पैसे को सम्हालने के लिए खुद को तैयार करें ,पैसे के साथ आने वाली चुनौतियों का सामना करना सीखें यानि कुल मिलाकर  अगर आपको तीन लीटर दूध चाहिए तो बर्तन दो लीटर क्षमता वाला  नहीं चलेगा .. पहले बर्तन बड़ा करें तब ज्यादा दूध लेवे .
ये पोस्ट 121  का हिस्सा है ,इस पोस्ट को बराबर समझने के लिए पोस्ट 121 भी  पढ़ें .
-सुबोध

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121 . सही या गलत -निर्णय आपका !

हम  दो पहलुओं वाली दुनिया में रहते है  - सिक्के की तरह दो पह्लु  -अंदर और बाहर, ऊपर और नीचे , दायाँ और बायाँ, प्रकाश और अँधकार , सर्दी और गर्मी .

जैसाकि  मैंने  अपनी पुरानी पोस्ट 52  में बताया था "पैसा होना वित्त के क्षेत्र में सफलता का प्रतीक है ." इस सफलता के भी दो पहलु होते है - आतंरिक और बाहरी.  

आंतरिक पह्लु   को कई तत्व तय करते है जिनमे महत्वपूर्ण आपकी कंडीशनिंग, आपका चरित्र , आपकी सोच ,आपका विश्वास , आपकी लगन  है .

बाहरी पह्लु को तय करने वाले  तत्वों में आपका व्यावसायिक ज्ञान , कार्य कुशलता , व्यवहारिकता , धन का प्रबंधन  आदि शामिल है .

जो दिखता है लोग उसे ही सच मानते है . लोग किसी पेड़ के फल को महत्त्वपूर्ण मानते है  जबकि महत्त्वपूर्ण जड़े होती है ,फल तो जड़ों की मजबूती,जड़ों की ताकत ,जड़ों के स्वास्थ्य   का परिणाम भर है .

बाहरी तत्वों की मजबूती महत्त्वपूर्ण है ,लेकिन अंदरूनी तत्वों की मजबूती उस से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है .कमजोर जड़ो से अच्छे फल की उम्मीद करना दिवास्वप्न के अतिरिक्त कुछ नहीं है .
आपने गौर किया होगा कुछ लोगों के पास ढेर सारा पैसा आ जाता है लेकिन सारा पैसा जल्दी ही ख़त्म भी हो जाता  है . कुछ लोगों के पास बड़े अच्छे अवसर होते है, वे एक धमाकेदार शुरूआत करते है लेकिन जल्दी ही चुके  हुए में शामिल हो जाते है .क्या आपने कभी इसका विश्लेषण करने का प्रयास किया ,अगर नहीं किया है तो हर असफलता के मूल तत्व तक पहुँचने का प्रयास करें , आप बहुत कुछ नया पाएंगे नया सीखेंगे !!!!
- सुबोध
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120 . सही या गलत -निर्णय आपका !

हर व्यक्ति की एक क्षमता होती है ,उसी क्षमता के अनुसार वो कार्य कर पाता है ,उसी क्षमता के अनुसार वो जीवन के हर क्षेत्र में प्रदर्शन कर पाता है , करता है .
जैसे आप जिम जाते है ,कितनी वर्जिश कर पाते है ये आपकी क्षमता पर निर्भर करता है , कितना आप वजन उठा सकते है, कितना रन कर सकते है , कितना आप खा सकते है , कितना आप गा सकते है, कितना हंस सकते है ,कितना रो सकते है , कितना लिख सकते है, कितना पढ़ सकते है ये सब आपकी क्षमता पर निर्भर करता है  आपको शायद सुनकर झटका लगे कि पैसा सम्हालना भी आपकी क्षमता पर ही  निर्भर करता है .

  इस साधारण सी लगने वाली बात को ढंग से समझे , क्या दो लीटर क्षमता के बर्तन में दो लीटर से ज्यादा दूध आ सकता है ? अगर नहीं तो जितनी पैसा सम्हालने की क्षमता है उस से ज्यादा पैसा आने पर क्या होगा ? वही होगा जो दो लीटर के बर्तन में दो लीटर से ज्यादा दूध डालने पर होता है !!!


 एक लॉटरी विजेता जिसे लाखों की लॉटरी निकल आती है , एक स्पोर्ट्स चैंपियन जिसे लाखों का इनाम मिलता है अंततः कहाँ होते है ? इन पर किये गए बार-बार के शोध के बाद पता चलता है कि इनमे से अधिकांश अपनी पुरानी वित्तीय स्थिति में पहुँच गए - उस पुरानी वित्तीय स्थिति में ,जितनी उनकी वित्त को सम्हालने की क्षमता थी , जो उनका कम्फर्ट जोन था .


      लोगों के पास जितनी क्षमता होती है उसी के मुताबिक वे पैसा सम्हाल पाते  है ये वित्त के क्षेत्र में एक साधारण सा सिद्धांत है .  जो अपनी वर्त्तमान आर्थिक या वित्तीय स्थिति से खुश नहीं है उनके लिए खुशखबरी ये है कि इस क्षमता को प्रयास से बढ़ाया जा सकता है . आपकी लगातार की कोशिशे आपको आपके कम्फर्ट जोन से बाहर धकेलती है ,क्षमता के दायरे को बढाती है .

इस बात को समझने के बाद भी अगर आप ये कहते है कि "पैसा ज्यादा आये तो सही, हम सम्हाल लेंगे "तो मेरा जवाब होगा आप अभी भी समस्या को  दूरबीन के गलत सिरे से देख रहे है . समस्या ये नहीं कि पैसा कम आ रहा है बल्कि समस्या ये है कि आपकी क्षमता इतनी नहीं है  कि आप ज्यादा पैसे को सम्हाल सकें  . दो लीटर क्षमता वाले बर्तन में दो लीटर से ज्यादा दूध नहीं आ सकता ,अगर आपको दो लीटर से ज्यादा दूध चाहिए तो आपको अपना बर्तन बड़ा करना होगा . पैसे के मामले में भी यही सच है .
- सुबोध

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119 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                      पैसा  ज़िन्दगी का अहम हिस्सा होता है , जिसे नकारना संभव नहीं है . जो पैसे की अहमियत नकारने का प्रयास करते है वो सिर्फ शुतुरमुर्ग  हो सकते है और उनका इस आर्थिक युग में क़त्ल होना तय है .

                     जब आप पैसे का प्रबंध करना शुरू कर देते है तो आपके हाथ में स्वतः निर्णय लेने और उन्हें क्रियान्वित करने के अधिकार आ जाते है ,कल तक जो पैसा आपकी कंडीशनिंग ( पोस्ट 91,92 और 96 देखें) के अनुसार खुद कार्य कर रहा था वो अब आपकी प्लानिंग ( पोस्ट  112 ,114 ,115 ,116  ,117 और 118 ) के अनुसार कार्य करेगा . ध्यान रखें अधिकार हमेशा जिम्मेदारिया उठाने पर मिलते है तो इन अधिकारों का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए आपको स्वयं को सचेत और सक्रिय रखना पड़ेगा . जैसा कि मेरी पोस्ट 69  में  मैंने पैसे और वित्तीय बुद्धि के सम्बन्धो पर बताया था , जब आप अपने पैसे को प्रबंधित करने लगते है तो आप अपने कदम वित्तीय बुद्धि हासिल करने की तरफ बढ़ाने लगते है , जैसे-जैसे आप अपने पैसे को प्रबंधित करते जायेंगे आप निपुणता पाते जायेंगे .
 
         चूँकि अब आप के पास जीवन के हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग खाते है जिनमे आप निश्चित प्रतिशत के अनुसार बचा रहे है तो किसी भी क्षेत्र में आप कमजोर, अव्यवस्थित नहीं है , आपकी वित्तीय स्थिति धीरे-धीरे संतुलित ,सुव्यवस्थित होती जा रही है जो आपको आत्मविश्वास दे रही है ,नई तरह की सफलता की ओर बढ़ा रही है ,आपके साथ-साथ आपका पैसा बोलने लगता है जो आपको आज  वित्तीय संतुलन दे रहा है और अगर आप खुद को व्यवस्थित रख पाते है तो अंततः वित्तीय स्वतंत्रता दिलाएगा. 


              जब आप संसार के सबसे जंगली घोड़े की सवारी करना सीख जाते है तो फिर  चाहे पहाड़ हो, मैदान हो या घाटियाँ आप हर जगह निर्भय हो जाते है ठीक यही बात पैसे के साथ लागू होती है.  जीवन में पैसे से  जंगली कुछ  नहीं हो सकता - जब ये होता है तो  इंसान पागल हो जाता  है और जब ये नहीं होता तो भी पागल हो जाता है अगर आपने इसे साधना सीख लिया तो आप संसार के उन  चंद सौभाग्यशाली  लोगों में होंगे जो जवानी के बाद बुढ़ापे में भी अपने परिवार के साथ हंसी-ख़ुशी से रहते है और जिनके  जीवन के सारे क्षेत्र हवा में बातें करते  है. अगर आपने इसे साधना नहीं सीखा है तो  आप संसार के उन अधिकांश दुर्भाग्यशाली लोगों में होंगे  जिन्हे जवानी के बाद बुढ़ापे में भी मजबूरी में काम करना  पड़ता है ,अपने  सम्मान को खोते हुए अपने परिवार के साथ रहना  पड़ता है  या वृद्धाश्रम में अपनी मौत का इंतज़ार  करना पड़ता है . ये आप पर है कि आप अपना शुमार चंद लोगों में करवाना चाहते है या अधिकांश लोगों में .
- सुबोध
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118 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                        रोटी,कपडा और मकान  किसी व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताएं मानी जाती है . मैं इनमें  एक आवश्यकता और जोडूंगा और वो है संवाद की - कम्युनिकेशन की ,जिसने इंसान को इंसान बनाया, मानवीय बनाया. इन आवश्यकताओं के अलावा आपकी जो भी ज़रूरतें पोस्ट 112 ,114 ,115 ,116 एवं 117  में छुटी है वे सब आवश्यक खाते में जायेगी . इस खाते में आपको अपनी कमाई का 50 % प्रतिशत तक खर्च करना है .इस खाते के  बारें में इस पोस्ट में  मैं ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगा क्योंकि पोस्ट बहुत लम्बी हो जाएगी और शायद यही तो एक खाता है जो सबको व्यवस्थित करना आता है , इस व्यवस्थित से मेरा मतलब क़र्ज़ लेकर आवश्यकताएं पूरी करने से नहीं है .
                     जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट 114  में  आपको बताया था कि अपनी ज़रुरत के अनुसार आप किसी भी खाते में कम या ज्यादा कर सकते है ,हर खाते के रोल को, उपयोगिता को  मैंने संक्षेप में आपको बता दिया है ,ये रोल ,उपयोगिता अपनी ज़रुरत के अनुसार  आप डिटेल में जाकर समझे , पेपरवर्क करें ,फिर फाइनल करें कि किस खाते में कितना प्रतिशत आपने डालना है .
                      एक बात का ध्यान रखे अगर आप अपने लॉन की घास व्यवस्थित नहीं करते है तो वो बेतरतीब तरीके से बढ़कर आपकी लॉन की खूबसूरती बिगाड़ देती है यही बात पैसे को लेकर भी है ,अगर आप इसे व्यवस्थित,प्रबंधित  नहीं करेंगे तो ये आपकी ज़िन्दगी की ख़ूबसूरती को बिगाड़ देगा.  या तो आप इसे नियंत्रित करें  नहीं तो आपकी कंडीशनिंग के अनुसार यह आपको नियंत्रित कर लेगा .
                       हो सकता है कुछ लोगों को ये झंझट का काम लगे ,उन्हें लगे इन  सब से उनकी   स्वतंत्रता, उनकी आज़ादी  बाधित होगी,सीमित होगी - तो उनको मेरा जवाब है इस से आपकी आज़ादी बाधित नहीं होती बल्कि पैसे का सही तरीके से प्रबंध करने से आपको अंततः वित्तीय स्वतंत्रता मिल जाएगी जिस से आपको दुबारा मजबूरी में  काम करने की  ज़रुरत नहीं होगी- और मेरी नज़र में असली स्वतंत्रता , असली आज़ादी यही होती है .
- सुबोध
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117 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप  प्रसन्न  कब होते है ?
आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि ख़ुशी या तो पाने में होती है या देने में .
पाने का अर्थ उपभोग से भी है और संग्रह ( वस्तु का मालिकाना हक़ पाना ) से भी , और देने का अर्थ मदद करने से है, दान करने से है .
पाने वाले पक्ष से आप अच्छी तरह वाकिफ है मेरी पहले की पोस्ट्स में ढेरों बार इस पर लिखा जा चूका है लिहाजा उसके बारे में कुछ न लिख कर मैं दुसरे " देने " वाले पक्ष पर लिख रहा हूँ . देने में , मदद करने में एक संतुष्टि का भाव है . किसी बुजुर्ग महिला को आप सड़क पार करवाने के बाद संतुष्टि महसूस करते है ,ये देना है ,मदद करना है .इस से आपका आतंरिक संसार ( विचार, भावना एवं अध्यात्म का मिला जुला रूप ) संतुष्ट होता है , रिलैक्स्ड होता है ,एनेर्जिक होता है .
देने का भाव आपको मानवीयता के उस उच्च स्तर पर ले जाता है , जहाँ आप महामानव हो जाते है . किसी एनजीओ ,किसी चाइल्ड वेलफेयर , किसी अनाथालय को जब आप दान देते है तो आपकी भावनाएं आपको मजबूती देती है ,एक अजीब सी ताकत देती है .
  ध्यान रखे कोई भी व्यक्ति सिर्फ लेता नहीं है ,बदले में कुछ न कुछ आपको लौटाता है और ये उसका लौटाना ही आपका पुरुस्कार है - एक बच्चे को जब आप प्यार करते है ,उसके गाल पर हाथ फेरते है तो बदले में वो बच्चा आपको अपनी मुस्कान लौटाता है . हो सकता है आप भौतिकतावादी हो और आशीष ,शुभकामनाओ, मुस्कान  वगैरह की जुबान न समझते हो ,इनमेँ  यकीन न करते हो तो आप इतना समझ लेवे कि देने से  आपके अंतर को संतुष्टि मिलती है और संतुष्टि एक बेहतरीन उत्पादक टूल  होती है .
          रिश्तेदार,दोस्त,परिचित ज़िन्दगी में अपनी अहमियत रखते है उनके लिए दिल में हमेशा एक सॉफ्ट-कार्नर होता है अगर वे कभी  आपसे उधार लेते है ,मदद चाहते है ,सहायता चाहते है तो उन्हें मना कर पाना काफी तकलीफदेह होता है और अंदर से एक अजीब से गिल्ट का नकारात्मक  भाव पैदा करता है , इस अपराधबोध से बचने के लिए आपको व्यवस्थित होना चाहिए . अपनी कमाई में से हमेशा किसी अवांछित परिस्थिति के लिए बचा कर रखना चाहिए .
तो कुल मिलाकर कहना ये है कि अपनी कमाई का 10  %  आप दान और सहायता खाते में डालिये .
- सुबोध

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ये पोस्ट मेरी पोस्ट 112, 114, 115 ,116  का हिस्सा है , मेरी पुरानी या ताज़ा पोस्ट पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर जाएँ .

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116 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                  इंसान सम्पूर्णतावादी होता है , इसका मतलब क्या होता है ?
 

                 अगर आपके खाने में नमक न हो या मीठे में शक्कर न हो  ? आपकी ज़िन्दगी में सिर्फ कमाना ही हो खर्च करना न हो ? सिर्फ व्यस्तता हो मनोरंजन न हो ? क्या ये अधूरापन नहीं ? जब बात पैसे के प्रबंधन की आती है तो अमीर मानसिकता एक संतुलन बना कर चलती है . वह मनोरंजन खाते में 10 % डालती है . इस 10 % को उसे इसी महीने खर्च करना होता  है .
       
               एक तरफ तो ज्यादा से ज्यादा कमाने का ,  बचाने का लक्ष्य   है और दूसरी तरफ  10 % उड़ाने का.  इसका क्या अर्थ है ?यही सम्पूर्णतावादी होना है .

             पहली स्थिति में -आप अपने जीवन के एक हिस्से को लम्बे समय तक अधूरा रखते है तो या तो वो सो जायेगा या विद्रोह करेगा . एक आदमी बचत करता है ,कंजूसी करता है , खर्चो को टालता जाता है और और लम्बे समय तक ऐसा ही करता है तो ये उसकी आदत बन जाती है ऐसी स्थिति में उसके मस्तिष्क का पैसे को लेकर तार्किक और जिम्मेदार हिस्सा संतुष्ट हो जाता है लेकिन मस्तिष्क का दूसरा हिस्सा जो मनोरंजन प्रधान है , सुकून चाहता है , नियंत्रण मुक्त होना चाहता है उसका क्या ? पैसे बचाने के अनुशासन को लेकर एक दिन वो हिस्सा  परेशान हो जायेगा और बचाये हुए सारे पैसे अतार्किक तरीके से बर्बाद कर देगा या फिर वो मनोरंजन प्रधान हिस्सा हमेशा के लिए सो जायेगा - क्योंकि पैसा बचाना आदत जो हो गई है !!!
  
                     दूसरी स्थिति में -अगर आप  खर्च करेंगे ,खर्च करेंगे और खर्च करेंगे  तो कभी भी अमीर नहीं बन पाएंगे आपके मस्तिष्क का पैसे के लिए जिम्मेदार हिस्सा आपको अपराध बोध  करवाने लगेगा ,आप आनंद की चीज़ों में भी आनंद की बजाय तनाव महसूस करेंगे . और इस तनाव को दूर करने के लिए फिर से कुछ खर्च करेंगे जिससे और ज्यादा तनाव पैदा होगा , इस चक्र से निकलने का तरीका यही है कि आप पैसे का उचित प्रबंधन सीखें .
                    आपका ये मनोरंजन खाता आपके मस्तिष्क के आनंद वाले हिस्से को संतुष्ट करने के लिए है ,एनेर्जिक करने के लिए है , रिफ्रेश करने के लिए है , मनोरंजन करने के बाद जब ये काम पर लौटता है तो दुगनी गति से उत्पादक हो जाने के लिए है .

                   अमीर मानसिकता "या ये" अथवा "या ये " नहीं चुनती बल्कि दोनों एक साथ चुनती है क्योंकि वो सम्पूर्णतावादी होती है .

(यह पोस्ट मेरी पहले की पोस्ट  112,114  एवं 115 की कड़ी है - इसे बराबर समझने के लिए पूर्व की दोनों पोस्ट भी पढ़ें )

-सुबोध

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115 . सही या गलत -निर्णय आपका !

          अमूनन पढाई छोड़ने के बाद आम आदमी का शिक्षा से कोई ताल्लुक नहीं रह जाता , आम आदमी   इस बात को भूल जाता   है कि उनकी  असली संपत्ति उनका  दिमाग है जहाँ चुनाव की बात आती है ( पोस्ट 77  और 78  देखें ) तो वो  दिमाग की बजाय शरीर को प्राथमिकता देगा , शिक्षा की बजाय मनोरंजन को प्राथमिकता देगा .कोई अच्छा सेमिनार अटेंड करने की बजाय वो किसी थिएटर में मूवी देखेगा , अच्छे मोटिवेशनल ऑडियो सुनने की बजाय फ़िल्मी गाने सुनेगा , कोई बिज़नेस चैनल देखने की बजाय कोई एंटरटेनमेंट चैनल देखेगा , इसी तरह पढ़ने के मामले में वो वाहियात से जासूसी या सामाजिक नावेल या सड़कों पर मिलनेवाली तीसरे दर्जे की कोई मैगजीन पढ़ेगा ,अखबार में वो हत्या,बलात्कार,चोरी,डकैती जैसी  ख़बरें पढ़ेगा  बजाय कुछ गंभीर या अच्छा पढ़ने के .
  एक आम भारतीय अपने दिमाग को किसी तरह की अच्छी तरह खुराक देने की बजाय शरीर को बेहतरीन से बेहतरीन देता है असल में उसे अपनी असली एकलौती संपत्ति की अहमियत ही पता नहीं होती और उसे ये भी पता नहीं होता कि अमीरी या गरीबी भगवान की  दी हुई नहीं होती बल्कि ये व्यक्ति का खुद का चुनाव होता है जिसका दरवाज़ा "दिमाग" खोलता है .
  तो अपनी कमाई में से 10 %  शिक्षा खाते (  पोस्ट 114  देखें ) में डालिये और  बच्चो की शिक्षा के साथ - साथ खुद को शिक्षित कीजिये  , शिक्षा का महत्व समझिए , कोई अच्छी बुक खरीदिए कोई अच्छा सेमिनार अटेंड कीजिये ,अपने मतलब के विषय की कोई क्लास ज्वाइन  कीजिये , कोई अच्छा ऑडियो या वीडियो खरीदिए , कोई मोटिवेशनल मूवी देख कर आइये . और ये ध्यान रखियेगा कि शिक्षा का उम्र से कोई ताल्लुक नहीं होता , जितना ज्यादा आप पढ़ेंगे ,देखेंगे उतने ही ज्यादा नए तरीके से सोचना और समझना  सीखेंगे , कल तक आपने जो सीखा था वो पुराना हो गया है , सुचना क्रांति के युग में ( पोस्ट 71   देखें ) खुद को अपडेट जो नहीं रख पाते है वो या तो ख़त्म हो जाते है या पिछड़ जाते है .
- सुबोध
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114 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                             गरीब मानसिकता के लोग ये सोचते है कि आमदनी ही सब कुछ है , वे मानते है कि अमीर वही हो सकता है जो ढेर सारा पैसा कमाता है , मेरा कहना ये है कि ये अमीरी  आमदनी का मामला न होकर पैसे के सुव्यवस्थित प्रबंधन का मामला है .अगर आप अलग-अलग खातों के अनुसार अपने पैसे को बाँट देते है और स्ट्रिक्टली फॉलो करते है  तो कम आमदनी के बावजूद आप आर्थिक दृष्टि से समपन्न और स्वतंत्र हो सकते है .
आइये इस बंटवारे को समझ लेवे
10 % वित्तीय स्वतंत्रता खाता
10  % दीर्धावधि  बचत खाता
10  % शिक्षा खाता
10  % मनोरंजन खाता
10  % दान खाता , सहायता खाता
50  % आवश्यक खाता
   जैसे ही आपके पास पैसे आते है सबसे पहले आप उसमे से 10 % वित्तीय स्वतंत्रता खाते में डालें (पोस्ट 112  देखें ) .  इसे निहायत ज़रूरी समझे - वित्तीय स्वतंत्रता के लिए इतना ज्यादा ज़रूरी  जितना आपके ज़िंदा रहने के लिए आपका  सांस लेना ज़रूरी है  (पोस्ट 108  देखें )
अब बाकी के बचे हुए पैसे को आप अपनी ज़रुरत के अनुसार दुबारा कम - ज्यादा कर सकते है , लेकिन ये करने से पहले बेहतर है इन खातों का रोल आप समझ लेवे .
          किसी भी खाते को ख़त्म न करें क्योंकि इंसान सम्पूर्णतावादी होता है , किसी एक हिस्से को अधूरा रख कर आप उस हिस्से की या तो  गलत कंडीशनिंग कर रहे होते है या खुद को अधूरा रख रहे होते है - अमीर मानसिकता सम्पूर्णतावादी होती है किसी भी क्षेत्र में खुद को अधूरा नहीं रखती और आपको भी यही करना है .

दीर्धावधि बचत खाते का रोल ये है कि आप अपने भविष्य में पड़ने वाले मोटे खर्चे के लिए थोड़ी-थोड़ी बचत करते जाते है और लगातार बचत करते -करते ये  बचत इतनी बड़ी बन जाती है कि निर्धारित  कार्य किया जा सके , जैसे आपने फ्रिज लेना है, एयर कंडीशनर लेना है ,गाड़ी लेनी है , मकान लेना है , बच्चो की शादी करनी है , इस तरह के भविष्य में आने वाले खर्चे इसी खाते से निकाले जायेंगे , इस खाते के लिए कोई भी प्रतिशत निर्धारित करने से पहले अपने भविष्य में किये जाने वाले खर्चे की रूप-रेखा पहले तैयार कर लेवे .जैसे आपने 2 साल बाद 3 लाख की गाड़ी लेनी है , 5  साल बाद  20  लाख का फ्लैट लेना है आपकी सैलरी 50  हज़ार रूपया महीना है,   आपकी सैलरी  कितनी बढ़ेगी और खरीदी जाने वाली वस्तुएं तब किस कीमत पर होगी इसका भी हिसाब लगाएं , फिर आपको खुद निर्धारित करना है कि सैलरी का कितना % दीर्धावधि  खाते में डालना है .
- सुबोध
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113 . सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर यु हीं अमीर नहीं होता ( ३ )

 

आसान नहीं है

दायरे को तोडना
जो आरामदायक  क्षेत्र (comfort zone) है तुम्हारा
तब्दिल हो गया है आदत में .
-
चाहत तुम्हारी अमीर बनने की
कुछ नहीं भिखारी स्तर के अतिरिक्त .

-
चुनाव तुम्हारा अमीर बनने का
शामिल किये है अपने में
शर्तों का पुलिंदा ,
बेहतर है चाहत से
लेकिन सर्वश्रेष्ठ नहीं
क्योंकि तुम्हारी शर्तें
सुरक्षा देगी आदतों को .

-
समर्पण तुम्हारा अमीर बनने का
बनाएगा तुम्हें अमीर
क्योंकि यहाँ तुम कर रहे हो वो सब
जो ज़रूरी है अमीर बनने के लिए.
त्याग सारे आरामदायक   क्षेत्र का
बिना रुके,बिना थके.
केंद्रित प्रयास,
ज़ज़्बा सब कुछ झोंक देने का,
विशेषज्ञता आत्मविश्वास से भरी,
मानसिकता अमीरों वाली,
कोई अगर,कोई मगर
कोई बहाना, कोई शायद नहीं .
सिर्फ समर्पण,
और समर्पण
और विकल्परहित समर्पण
ज़िन्दगी के आखिरी  लम्हों तक....


सुबोध- मई २९, २०१४ 

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112 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                      मेरी पोस्ट 103 .106 .107 .108 .109 .110 .111  में मैंने पैसे की बचत को लेकर विस्तार से लिखा है , इन सारी पोस्ट्स के बाद  सवाल ये आता है कि इस 10 % पैसे को मैनेज कैसे किया जाए . . आपकी सारी कमाई जो टैक्स कटने के बाद आपके घर में आती है सबसे पहले उस कमाई का 10 % आप अलग करें , उस पैसे के लिए आप एक अलग बैंक अकाउंट खोले . इस खाते का नाम आप वित्तीय स्वतंत्रता खाता रखे . यह खाता  सिर्फ निवेश करने और रेजिड्यूअल इनकम ( पोस्ट 56  देखें ) के श्रोत बनाने के लिए ही इस्तेमाल करना है , जब आप  निवेश और रेजिड्यूअल इनकम जैसे शब्दों से प्रायोगिक स्तर पर हकीकत में वाकिफ होते है ( पोस्ट 60  देखें ) सुचना के अलग अलग श्रोत से जुड़ते है - तो आप एक बिलकुल ही नई तरह की शब्दावली सीखते है .एक बिलकुल ही नया और विशाल कैनवास आपकी नज़रों के सामने होता है यहाँ आपको ठहरने और सीखने की ज़रुरत होगी खुद को संतुलित और व्यवस्थित करने की ज़रुरत होगी  ,ये ध्यान रखे आप संसार का सबसे कठिन काम करने जा रहे है - आप फाइनेंसियल एजुकेशन नामक तीसरी शिक्षा पद्धति सीखने जा रहे है -- खुद को बधाई दीजिये !!!!
                    कई तरह के फाइनेंसियल इंस्ट्रूमेंट्स होते है उन को जानिए, सीखिये, समझिए लेकिन खुद के लिए निष्ठुर मत बनिए , खुद को वक्त दीजिये .आपको एक प्रोसेस से ( पोस्ट 42 देखें ) गुजरना होगा जो कि प्रकृति का नियम है उसे नकारने का प्रयास न करें .
                         यह खाता आपके लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी होगा,जिसे आप हर महीने चेक कर सकते है इस अंडे का नाम रेजिड्यूअल इनकम( निष्क्रिय आमदनी ) है.  शर्त सिर्फ ये है कि आप अपनी ज़रुरत के लिए मुर्गी को  क़त्ल न करें . ये ध्यान रखें आपके अंदर अभी भी एक गरीब मानसिकता वाला कीटाणु जिन्दा है जो किसी भी विपरीत परिस्थिति में सबसे पहले अपनी बचत का इस्तेमाल करता है .
                           हर महीने इस खाते में  अपनी कमाई का 10 % जोड़ते रहिये और इस से पैदा होनेवाली   कमाई को भी इसीमे बढ़ाते रहिये ,आपने इस खाते को कभी इस्तेमाल नहीं करना है ,इस खाते में आपने निवेश करना है सिर्फ निवेश , अपने रिटायर होने तक आप इसमें निवेश करें .आप जब रिटायर  होगे तब इससे पैदा होने  वाली कमाई को आप इस्तेमाल कर सकते है उस स्थिति में भी आप मूल रकम को छूकर मुर्गी को कमजोर करने का प्रयास नहीं करेंगे क्योंकि कमजोर मुर्गी से कमजोर अंडे मिलते है. और इस तरह से पैसा हमेशा बढ़ता रहेगा और आपको कभी भी गरीबों वाली स्थिति से दो-चार नहीं होना पड़ेगा .
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111 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट  105 पर कुछ सवाल आये थे ,उसका जवाब--
मनीषजी , अंकुरजी 
1) मेरी पोस्ट 86 , 88 और 105 देखें ,समझे .
2) कोई भी काम सोचने और शुरू करने से पहले अपनी टीम से राय करें ,उससे डिस्कस करें .
 3) क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय करें उसकी कंसल्टेंसी चार्ज उसे देवे , आपके पसंदीदा क्षेत्र पर वो एक विस्तृत सर्वे करकर आपको जो प्रोजेक्ट रिपोर्ट देगा आप उसे बराबर समझे उसके साथ एक प्रॉपर डिस्कस करें एक-एक पॉइंट पर स्पष्टीकरण  ले तभी काम शुरू करें , मैं इसे बेवकूफी के अलावा कुछ नहीं मानता कि आप कोई भी ऐसा फील्ड चुन  लेवे जिसमे आपका कोई दोस्त ,आपका कोई रिश्तेदार पैसा बनाने में सफल हो गया . ये ध्यान रखें हर व्यक्ति की अपनी-अपनी अलग विशेषता होती है ,हो सकता है उनमे जो क्वालिटी है वो आपमें नहीं हो.हर क्षेत्र में सफलता के लिए अलग-अलग क्वालिटी की ज़रुरत होती है .
4) विशेषज्ञ से रिपोर्ट आने के बाद और उससे डिस्कस  करने के बाद आप अपने लिए एक टू डू लिस्ट  बनाये ,जिसमे आप अपने जिम्मे क्या रखेंगे और अपनी टीम के जिम्मे क्या ,इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार करें , जब ये रिपोर्ट बन जाए तब आप देखे क़ि आपके जिम्मे आये हुए काम आप सफलता पूर्वक कर पाएंगे और कर पाएंगे तो कितने प्रतिशत सफलता मिल पायेगी-- इस पॉइंट को बराबर समझे और पूरी ईमानदारी से इसका जवाब देवे , इस मोड़ पर आकर आपका अवचेतन मन आपको इशारा कर देगा कि ये प्रोजेक्ट आपको करना चाहिए या नहीं- अवचेतन मन की आवाज़ को बराबर समझे जो बेहतरीन तर्क आपके पास अपने प्रोजेक्ट को लेकर हो उन्हें सोचे समझे और तब निर्णय करें ,अगर निर्णय हाँ में हो तो अपनी टीम के साथ बैठे और डिटेल में उस से भी चर्चा करें , अगर निर्णय ना में हो तो अपनी जिम्मेदारियां भी उनके साथ डिस्कस करें हो सकता है आपकी टीम में वे जिम्मेदारियां कोई  उठाने को तैयार हो जाएँ - यानी पूरी तरह तसल्ली होने के बाद ही प्रोजेक्ट पर काम शुरू करें . ये ध्यान रखे पैसा बड़ी मुश्किल से इकठ्ठा होता है , और ज़िन्दगी आपको खुद को साबित करने का मौका दे रही है उसे हल्के में ना लेवे ,वैसे कहा ये भी जाता है कि ज़िन्दगी में  रिटेक नहीं होते . सो पैसे की कदर करते हुए ही कोई निर्णय लेवे .
5) आज परिवर्तन इतने ज्यादा हो रहे है उन्हें निगाह में रखे और तभी कोई लाइन चुने मेरी 71 नंबर की पोस्ट देखे , सोचे और समझे कि  कल के स्टार प्रोडक्ट्स आज अपनी अहमियत खो चुके है, क़ल तक सिंगल प्रोडक्ट सिंगल यूज़  का ज़माना था आज मल्टी टास्किंग प्रोडक्ट्स का ज़माना है , कल तक आम आदमी के हाथ में पहने जाने वाली घड़ी और हर टूरिस्ट के हाथ में जरूरी समझा जाने वाला कैमरा मोबाइल में सिमट गया है.
 6) सबसे पहले ये देखें कि आपकी मानसिकता एम्प्लोयी वाली है या बिजनेसमैन वाली , दोनों की अलग अलग विशेषता होती है और दोनों ही एक-दूसरे की सोच को आसानी से नहीं अपना सकते . मालिक की एक दिन की छुट्टी पर झल्लाहट   और एम्प्लोयी की खुशियों के उदाहरण आपके आस-पास बिखरे हुए है उन्हें गौर करें और समझे . एक मज़दूर से बात करें और एक मालिक से दोनों से बात करने के बाद आप सोचे क़ि आप खुद को सोच-समझ के मामले में किस के नज़दीक पाते है अगर आप को लगता है कि मज़दूर सही है तो बिज़नेस करने से पहले अपनी मानसिकता सुधारने की कोशिश करें .
ये पोस्ट एक जवाब के तौर पर लिखी गई है इसलिए प्रोपरली  मैंने एडिट नहीं की है ,अगर कहीं अस्पष्ट हो रहा हूँ तो जानकारी देवे.  शुभकामनाये .
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110 . सही या गलत -निर्णय आपका !

      पैसा हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है , यह कड़ी मेहनत अमीर मानसिकता  के लिए अस्थायी होती है और गरीब मानसिकता  के लिए स्थायी . इसकी वजह ये है कि कड़ी मेहनत से कमाए हुए पैसे को लेकर दोनों के दृष्टिकोण अलग-अलग होते है - एक इसलिए कमाता है कि पैसे जमा कर सके और दूसरा इसलिए कि अच्छी ज़िन्दगी जी सके ,एक का दृष्टिकोण बड़ी खुशिया हासिल करने पर होता है और दूसरा बड़ी खुशियों के लिए छोटी-छोटी खुशिया नकार नहीं सकता ,एक आनेवाले कल को देखता है और दूसरा आज में जीता है . और अंततः होता ये है कि एक के पास कुछ पैसे जुड़ जाते है और दुसरे के पास नहीं जुड़ते .
                    असली खेल यही से शुरू होता है -- पैसा ऊर्जा का एक रूप है ,जिस तरह काम ऊर्जा का एक रूप है . गरीब मानसिकता काम से ऊर्जा यानि पैसा पैदा करती है  जबकि अमीर मानसिकता पैसे से ऊर्जा यानि पैसा पैदा करती है ,सीधे शब्दों में कहुँ तो गरीब मानसिकता अब भी अपनी कड़ी मेहनत से पैसा पैदा करती है जबकि अमीर मानसिकता अपने इकट्ठे किये हुए पैसे के दम पर एम्प्लोयी रखती है जो उसके लिए कड़ी मेहनत करकर पैसा पैदा करता है यानि उसका पैसा उसके लिए पैसा पैदा करता है  और यहीं से खेल दिलचस्प  होना शुरू हो जाता है . अमीर मानसिकता अब भी जी-तोड़ मेहनत करती है पैसा बचाती है और बचे हुए पैसे के दम पर  एम्प्लाइज की संख्या बढाती जाती है और उसके  द्वारा पैसे के दम पर  करवाई हुई कड़ी मेहनत  ढेर सारा पैसा पैदा करने लगती  है लेकिन गरीब मानसिकता द्वारा की हुई कड़ी मेहनत ढेर सारा पैसा  पैदा नहीं कर पाती नतीजतन अमीर मानसिकता अमीर बन जाती है और गरीब मानसिकता गरीब  रह जाती है .
                    ये साधारण सी बात गरीब मानसिकता की समझ में नहीं आती कि शुरू में सारा खेल साधारण से त्याग का है ,अपनी इच्छाओं का,छोटी-छोटी   खुशियों का,अपनी सुविधाओं के त्याग का, जो आगे जाकर दिमागी तिकड़म का,बुद्धि कौशलता का और अमीरी का खेल बन जाता है . और गरीब मानसिकता के लोग हारे हुए खिसियाए खिलाडी की तरह जीते हुए खिलाडी में कमियाँ निकालते है अपनी इतर अच्छी क्वालिटीज की बात करते है , गालियों और हाथापाई पर उतर आते है ,सब कुछ करते है - एक अच्छे खिलाडी की तरह अपनी हार स्वीकार कर कर नए सिरे से जीत के लिए जुटने के अलावा.  नतीजे में जो होना चाहिए वही होता है कड़ी मेहनत गरीब मानसिकता के लिए स्थायी बन जाती है और अमीर मानसिकता के लिए अस्थायी.
- सुबोध
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109 . सही या गलत -निर्णय आपका !

              पैसे के प्रबंधन के बारे में जब गरीबों से बात की जाती है तो उनका जो जवाब होता है वो ये होता है कि " जब मेरे पास बहुत सारा पैसा होगा तब मैं पैसे का प्रबंध करना शुरू  करूँगा ."
                         अगर आप गहराई में जाए तो आप समझ पाएंगे कि उनके लिए पैसे का प्रबंधन एक समस्या के अलावा कुछ भी नहीं है , अमूनन ये तत्काल संतुष्टि वाली श्रेणी के लोग है  ( पोस्ट ९७ देखें) और ये लोग पैसे का प्रबंध करने की बजाय   उसे खर्च करने वाले होते है , ये प्रबंध  नामक समस्या को  एक गलत नंबर के चश्मे से देखते है .
                     पहली बात  आप के पास पैसा तब होगा जब आप उसका प्रबंध करना शुरू करोगे  ये तो कहना ही गलत है कि मेरे पास पैसा ज्यादा होगा तो मैं इसका प्रबध करूँगा , ये कहना तो बिलकुल ऐसा ही है कि  एक कमजोर आदमी  ये कहे   कि मेरे मस्सल्स मजबूत हो जायेंगे तो मैं जिम ज्वाइन करूँगा  , जबकि हकीकत ये है कि जिम ज्वाइन करने से उसके  मस्सल्स मजबूत होंगे. परिणाम हमेशा मेहनत करने के बाद मिलते है ,मेहनत करने से पहले परिणाम  चाहना  एक अच्छे चुटकुले के अलावा क्या है ?
                  दूसरी बात - प्रकृति का एक साधारण सा नियम है  " दिया उसे जाता है जिसकी सम्हालने की क्षमता होती है " अगर आप 100 - 200  रुपये भी नहीं सम्हाल पा रहे हो तो चिंता न करें प्रकृति के इस साधारण से नियम की अवहेलना नहीं होगी और आपको हज़ारों - लाखों रुपये नहीं दिए जायेंगे क्योंकि प्रकृति जानती है कि ये कमजोर प्राणी है इसकी क्षमता छोटी चीज़ों को सम्हालने की नहीं है तो ये बड़ी कैसे सम्हालेगा .धन्यवाद प्रकृति, तुम बड़ी दयालु हो .
               तीसरी बात - एक प्रोसेस होता है उस से गुजर कर ही आप किसी काबिल बनते है ,बिना उस प्रोसेस से गुजरे किसी भी तरह की सफलता पाना और उस सफलता को बरकरार रख पाना संभव नहीं होता और वो प्रोसेस है  " बनाना-बिगाड़ना-फिर से बनाना " (पोस्ट 42  देखें ) जिंदगी में सीढ़ियां नहीं होती जो सीधी ऊपर जाती है ,यहाँ तो पर्वतों के साथ मैदान और खाइयां  होती है और हर पथिक को ,हाँ हर पथिक को इन्ही टेढ़े -मेढ़े अनगढ़  रास्तों से गुजरना होता है तब वो बांछित  को हासिल कर पाता है  .
               अगर आप ये समझते है कि पैसा आएगा और आता रहेगा और ढेर सारा हो जायेगा तो मैं इसका प्रबंध करना शुरू करूँगा तो मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है कि  "भगवान करें  ऐसा ही हो ",लेकिन मैं भी जानता हूँ और मेरा भगवान भी कि ये एक शुभकामना के अलावा कुछ नहीं है .
- सुबोध

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108 . सही या गलत -निर्णय आपका !

             जब गरीबों से पैसे के प्रबंधन की बात की जाती है तो आम तौर पर उनका जवाब होता है कि मेरे पास इतने पैसे है ही नहीं कि उनका प्रबंधन करूँ ,मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाता हूँ .

                   उनको जो  सलाह हो सकती  है वो ये है कि ऐसी हालत में भी उनको अपनी कमाई का 10 % हिस्सा  अपने भविष्य के लिए अलग से निकाल कर रख देना चाहिए .बाकी बचे  90 % में गुजारा करना चाहिए , एक महीने में  वे 90 % में गुजारा करना सीख जायेंगे और अगर उन्होंने अपनी इच्छाओं पर एक महीने तक  कंट्रोल कर लिया तो वे आगे भी कर सकते है . बात इच्छाओं को मारने की नहीं है बल्कि  बात पैसे के प्रबंधन की आदत की है, उस आदत की  जिस से अमीरी का दरवाज़ा खुलता है .

                कुछ गरीब कह सकते है कि 10 % निकालने के बाद हमें भूखा सोना पड़ेगा ,मेरा जवाब होगा- हाँ , आप भूखे सो जाइये और इस कहावत को याद कीजिये " भूखा पेट चिल्लाता है " और ये चिल्लाहट आपको अतिरिक्त पैदा करने को मजबूर करेगी , अतिरिक्त सोचने को मजबूर करेगी ,आपके कम्फर्ट जोन को तोड़ने को आपको विवश करेगी आपको नया कुछ करने को मजबूर करेगी ,दिमाग और जिस्म में लगी जंग हटाएगी .

                बात कुल मिलाकर पैसे के प्रबंधन की आदत की है जैसा कि मैंने अपनी पहले की पोस्ट में लिखा था बचत को उत्सव नहीं आदत बनाइये .
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107. सही या गलत -निर्णय आपका !



                  मालिक वो होता है ,जो हासिल चीज़ों को सुव्यवस्थित तरीके से प्रबंधित करता है ,जो अपनी चीज़ों को बराबर प्रबंधित नहीं करते , वे जल्दी ही उन चीज़ों को या तो नष्ट हो जाने देते है या अपना मालिकाना हक़ खो देते है ,पैसा  इस साधारण से  सिद्धांत  का अपवाद नहीं है .
                  वित्तीय सफलता ( अमीर ) और वित्तीय असफलता (गरीब ) के बीच का सबसे बड़ा फर्क पैसे के प्रबंधन का होता है .
                 अमीर लोग पैसे का प्रबंधन करने में माहिर होते है और उसकी वजह मैंने अपनी पोस्ट 103  और  106  में बताई थी .
               गरीब लोगों द्वारा  पैसे का प्रबंधन न करना उनकी आधी-अधूरी सोच का नतीजा हो सकता  है या फिर उनकी गलत  कंडीशनिंग इसकी वजह हो सकती है - गलत कंडीशनिंग से छुटकारा पाने का तरीका वे  मेरी पोस्ट 96  में देख सकते है ,और सोच विकसित करने के लिए उन्हें खुद पर कठिन मेहनत करनी पड़ेगी, उनकी सहायता सिर्फ ये हो सकती है वे  मेरी सारी पोस्ट देखे और समझे , इसके अलावा भी मार्किट में बहुत कुछ उपलब्ध है - करना तो उन्हें खुद ही पड़ेगा .

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106. सही या गलत -निर्णय आपका !

हकीकत में अमीर गरीबों से ज्यादा स्मार्ट नहीं होते है. बस उनकी पैसे से सम्बंधित आदतें गरीबों से अलग और पैसे को बढ़ाने में मददगार होती है  जो मूल रूप से उनकी अतीत की कंडीशनिंग से जुडी होती है .

                                       गरीबों के लिए बचत या निवेश उत्सव की तरह होते है जबकि अमीरों के लिए हर रोज़ किये जानेवाले  कामों की तरह एक आदत.और ये आदत होना ही उन्हें परफेक्शन देता है जो गरीबों के हिस्से में नहीं आती .

                         अगर आप पैसे का उचित प्रबंधन नहीं करते है तो दो बातें हो सकती है ,पहली आपके दिमाग में इसकी प्रोग्रामिंग ही नहीं हुई है और दूसरी शायद आप ये जानते ही नहीं है कि पैसे का सही और उचित प्रबंधन कैसे किया जाता है .पहली बात आपकी कंडीशनिंग से जुडी है(इसके लिए  मेरी पोस्ट 91 ,92 ,96  देखें )और दूसरी आपकी शिक्षा से जुडी है ( मेरी पुरानी पोस्ट पढ़े ).

                      
                        दुर्भाग्य से स्कूलों  में मनी मैनेजमेंट नाम का कोई सब्जेक्ट नहीं होता है ,आपकी स्कूल का मुझे नहीं पता ,मेरी स्कूल में नहीं था.  हमारे किसी भी  स्कूल टीचर ने हमें कभी भी पैसे के बारे में नहीं सिखाया अगर हम उनसे कभी पैसे के बारे में पूछ भी लेते थे तो उनका हमेशा यही जवाब होता था कि अपने सब्जेक्ट को बराबर याद करो तुम अभी इस बारे में सीखने के लिए बहुत छोटे  हो - और स्कूल क्या कॉलेज छोड़ने तक हम छोटे ही रहे ,बाहर की दुनिया ने हमे कब बड़ा बनाया पता ही नहीं चला ,हाँ,किस खूबसूरती से हमारे टीचर्स  ने हमसे अपनी गरीबी और पैसे की नासमझी छुपाई ये अब समझ में आता है .
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105. सही या गलत -निर्णय आपका !

एक सवाल
Ratan Arjun
Aug 9th, 2:07pm
Dear sir, mane job chod kr do bar apna kam suru kiya lakin dono bar asaflta mili . m construction line m hu or m ab kuch nya krna chahta hu . pls mujhe koi rasta btao sir..


मेरा जवाब

रतनजी,
दो बार की असफलता के बाद भी आप तीसरी बार कोशिश करना चाहते है ,आपके जज्बे और सोच को सलाम !
कंस्ट्रक्सन लाइन में आप क्या करते है ,ये आपने स्पष्ट नहीं किया ,अगर आप स्पष्ट करते तो शायद में बेहतर तरीके से जवाब दे पाता.
सर , आप मेरे पुराने पाठक है और मेँ ये मानकर चल रहा हूँ कि आपने मेरी सारी पोस्ट पढ़ी और समझी है ,अगर हो सके तो उन्हें दुबारा पढ़  लेवे, कुछ चीज़े जितनी ज्यादा बार रिपीट की जाती है उनके बारे मेँ आपका  दृष्टिकोण  उतना ही ज्यादा  साफ़-सुथरा होता जाता है .
मैं ये मानकर चल रहा हूँ कि दो बार की असफलता ने आपको बहुत कुछ सिखाया होगा ,ध्यान रखियेगा वे असफलताएँ नहीं है वे आपकी आर्थिक आज़ादी की बैकबोन है और ताउम्र आपकी बेस्ट टीचर रहेगी .
सर, कोई  नया व्यवसाय शुरू करने से पहले इन बातों का  ध्यान रखे -   
 1)अपने शौक को -उस शौक को जिसे आप जूनून की हद तक चाहते है ,व्यवसाय बनाने की कोशिश करें ,अगर आप ऐसा कर पाते है तो ये आपकी ग्रोथ को क्वांटम लीप दे देगा क्योंकि तब आप बिना थके घंटो कार्य कर पाएंगे , नये - नये आइडिया के साथ. 
2) कोई भी व्यवसाय चुने तो कोशिश करें ऐसा व्यवसाय चुनने की जिसमे कई तरीके से कमाने के मौके हो .
3) जिस से आम आदमी जुड़ सके,जो उनकी ज़रुरत का हो ऐसे व्यवसाय को करें .
4) सुचना क्रांति युग में बहुत से व्यवसाय अगर अपडेट नहीं किये जाते है तो उनकी ज़िन्दगी  3 -4  साल की ही होती है , अगर आप ढीले-ढाले या टालू राम  नेचर के  हो तो ऐसे किसी भी व्यवसाय में नहीं उतरे , बाकि अगर ऐसे नेचर के हो तो मेरे ख्याल से आपको व्यवसाय ही नहीं करना चाहिए , इस मानसिकता के लोगों के लिए तो जॉब ही  ठीक रहता है ,क्योंकि व्यवसाय में मिलने वाला  पुरूस्कार आपको आपके प्रदर्शन के आधार पर दिया जाता है, व्यवसाय में दिए गए समय के आधार पर नहीं दिया जाता.  
5) जिस व्यवसाय में विकास की सम्भावनाये न हो , जिसका मार्किट सिमट रहा हो ,जो धारा के विपरीत हो ऐसा व्यवसाय न करें .
6 ) जिस व्यवसाय में मार्जिन बहुत कम हो ,ऐसा व्यवसाय न करें , क्योंकि मार्जिन कम होने का एक अर्थ ये होता है कि यहाँ कम्पीटीशन ज्यादा है . और आप नये होने की वजह से बहुत से ऐसे हथकंडो से वाकिफ ही नहीं होंगे जिनकी वजह से कॉस्टिंग कम करकर मार्किट   में माल डाला जा सके . ये ध्यान रखे पुराना व्यवसायी अपनी गुडविल की वजह से हल्का माल भी मार्किट में उतारता है तो उस पर उंगली नहीं उठती जबकि आप नये होने की वजह से लाइम लाइट में रहेंगे और आपकी कोई भी गलती आपको मार्किट में टिकने नहीं देगी . 
7) ऐसा व्यवसाय शुरू करें जिसमे  शुरू में आपको अपना पैसा कम से कम लगाना पड़े ,अगर शुरू में ही आपने अपना पूरा पैसा लगा दिया और व्यवसाय नहीं चला तो किसी दुसरे व्यवसाय के लिए आपके पास डाउन पेमेंट भी नहीं बचेगा .
जो कुछ भी जब भी शुरू करें अपनी टीम से और इस क्षेत्र के विशेषज्ञ से जरूर राय करें ,अगर उसे पेमेंट देना पड़े तो देवे , कंसल्टेंसी के पैसे बचाने की कोशिश करना मेरी निगाह में बेवकूफी है .
कोई भी नया व्यवसाय शुरू करने के लिए इतनी ज्यादा बातें है कि एक पोस्ट में सब कुछ कवर करना संभव नहीं है .
बाकि किसी और पोस्ट में ,
शुभकामनाएं .
-सुबोध
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104. सही या गलत -निर्णय आपका !


अमीर यु हीं अमीर नहीं होता ( २)

दायरा
जो बनाते है आप
निर्भर है उसकी उपलब्धि
आपके समर्पण पर ...
-
दायरा
मेंढक का
होता है तालाब,
और
बाज़ का
आकाश,
सरहदों से आज़ाद आकाश .
-
मेंढक
जब सोचता है
बाज़ बनने की,
रोकती है उसे
उसकी मानसिकता,
जहाँ मौजूद है
फ़ेहरिश्त खतरों की .
-
त्याग है
आरामदेह दायरे का,
ख़ौफ है
अपनी वास्तविकता बदलने का ,
मेहनत है
अपनी काबिलियत के विस्तार की,
और जहाँ ज़रूरत है
एकाग्रता की ,
साहस की,
विशेषज्ञता की ,
शत प्रतिशत प्रयास की ,
और सबसे बड़ी
बाज़ की मानसिकता की.
.-
और देखकर
इस फ़ेहरिश्त को
कुछ मेंढक
मेंढक रह जाते है
और कुछ मेंढक
बाज़ बन जाते है .
-
अपना-अपना दायरा है
चाहत का,
चुनाव का,
समर्पण का.
क्योंकि
दायरा
जो बनाते है आप
निर्भर है उसकी उपलब्धि
आपके समर्पण पर ..

सुबोध- २२ मई , २०१४

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Photo: अमीर यु हीं अमीर नहीं होता ( २)दायराजो बनाते है आपनिर्भर है उसकी उपलब्धिआपके समर्पण पर ...-दायरामेंढक काहोता है तालाब,औरबाज़ काआकाश,सरहदों से आज़ाद आकाश .-मेंढकजब सोचता हैबाज़ बनने की,रोकती है उसेउसकी मानसिकता,जहाँ मौजूद हैफ़ेहरिश्त खतरों की .-त्याग हैआरामदेह दायरे का,ख़ौफ हैअपनी वास्तविकता बदलने का ,मेहनत हैअपनी काबिलियत के विस्तार की,और जहाँ ज़रूरत हैएकाग्रता की ,साहस की,विशेषज्ञता की ,शत प्रतिशत प्रयास  की ,और सबसे बड़ीबाज़ की मानसिकता की..-और देखकरइस फ़ेहरिश्त कोकुछ मेंढकमेंढक रह जाते हैऔर कुछ मेंढकबाज़ बन जाते है .-अपना-अपना दायरा हैचाहत का,चुनाव का,समर्पण का.क्योंकिदायराजो बनाते है आपनिर्भर है उसकी उपलब्धिआपके समर्पण पर ..सुबोध-  २२ मई , २०१४

 

 

 

 

 

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103 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                   गरीब मानसिकता के लोग एक रुपये को सिर्फ एक रूपया मानते है जिसके बदले में वे लोग कोई चीज़ खरीदकर तत्काल संतुष्टि चाहते है उनकी निगाह में ये ऐसा गेहूँ है जिसकी  रोटी बननी है और उसे खाना है   जबकि अमीर मानसिकता के लोग इसे एक रूपया नहीं मानते , वे इसे ऐसा योद्धा मानते है जिसके दम पर उन्हें वित्तीय स्वतंत्रता हासिल होगी .उनके लिए ये गेहूँ एक बीज है जिसे बोकर वे ढेरों गेहूँ  पाएंगे -और उन ढेरों गेहुंओं  को बोकर और ढेरों गेहूँ पाएंगे- चक्रवृद्धि व्याज की तरह.
  

                                      गरीब मानसिकता  एक रुपये की कीमत आज में देखती  है जबकि अमीर मानसिकता उस एक रुपये की कीमत आज में नहीं कल में देखती  है - और ये कल में देखना ही उसे निवेश करने को उत्साहित करता है .
                        सिर्फ एक हलकी  सी कैलकुलेशन करें कि आज के  25  रुपयेकी  कीमत  20  साल बाद 10 % सालाना वृद्धि  के बाद क्या होगी ? संभवतः आपका डेरी मिल्क या आइसक्रीम खाने का नजरिया बदल जाए. .... या तो आप खाएंगे या नहीं खाएंगे और दोनों ही स्थितियों में जो तर्क देंगे उन तर्कों को बड़े गौर से सुने और समझे . ये तर्क, तर्क नहीं है बल्कि आपकी मानसिकता है जो आपके  25  रुपये का  भविष्य निर्धारित करेगी .......और आपके 250 ,2500 ,25000 ,250000 ,2500000 ,25000000  का भी .
-सुबोध 

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102 . सही या गलत -निर्णय आपका !

हम सभी में दो भावनाएँ होती हैं डर और लालच .
पैसा न होने के डर से हमे कार्य करने की प्रेरणा मिलती है और पैसा हाथ में आने के बाद लालच की भावना जाग जाती है ,ये भी हमारे पास होना चाहिए और वो भी . लालच -इसे इच्छा भी कह सकते है, का कहीं कोई अंत नहीं होता , सो आदमी एक चक्र में फंस जाता है पैसा कमाओ इच्छाएं पूरी करो और कमाओ और इच्छाएं पूरी करो और कमाओ --- ये चक्र कहीं रुकता नहीं है .इसे पढ़े-लिखे लोग कोल्हू का बैल, रेट रेस  कहते है कि सब कुछ किया लेकिन अंततः वही के वही रह गए - कमाने से बिल चुकाने तक .
 वित्तीय स्वतंत्रता आपको इस रेट रेस से आज़ादी दिलाती है .
- सुबोध
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101. सही या गलत -निर्णय आपका !


ताकि कल जीत सकूँ ....

हाँ, मैं स्वीकार करता हूँ
अपनी हार ...
लेता हूँ पूरी जिम्मेदारी ...
नहीं देता किसी को भी दोष
तरफदारी नहीं करूँगा खुद की
कि मैं सही था
वक़्त गलत हो गया
नहीं करूँगा बेवजह की शिकायत
और ये सब कर रहा हूँ सिर्फ इसलिए
कि कल मेरी कोई हार न हो ...
...
मैं करता हूँ स्वीकार
मुझमे नहीं था वो जज़्बा
कि जीत होती मेरी
संपूर्ण समर्पण से ही हासिल होता है लक्ष्य ......
--
मैं करता रहा शिकायत
कमियों की, खामियों की
भूल गया हासिल को
और सारा ध्यान रहा
कमियों,खामियों पर
कहते है
जिसके बारे में
शिद्दत से सोचते हो
वही मिलता है
सो मुझे 

कमियाँ और  खामियाँ  मिल गयी
करता अगर प्रयास
लगा कर जान की बाज़ी
इन्हे दूर करने का
तो निश्चित ही
अलग होता परिणाम
-
मेरा पूरा प्रयास था
बचूं हार से
शायद इसी लिए हार गया
क्योंकि
मेरे अवचेतन में लक्ष्य
हार से बचना भर था
जीत का तो कहीं ज़िक्र भी न था .
हाँ, में स्वीकार करता हूँ
अपनी हार
लेता हूँ पूरी जिम्मेदारी
ताकि कल जीत सकूँ ....

सुबोध- २१, मई २०१४


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Photo: ताकि कल जीत सकूँ ....

हाँ,  मैं स्वीकार करता हूँ
अपनी हार  ...
लेता हूँ पूरी जिम्मेदारी ...
नहीं देता किसीको भी दोष
तरफदारी नहीं करूँगा खुद की
कि मैं सही था
वक़्त गलत हो गया
नहीं करूँगा बेवजह  की शिकायत
और ये सब कर रहा हूँ सिर्फ इसलिए
कि कल मेरी कोई हार न हो ...
...
मैं करता हूँ स्वीकार
मुझमे नहीं था वो जज़्बा
कि जीत होती मेरी
संपूर्ण समर्पण से ही हासिल होता है लक्ष्य ......
--
मैं करता रहा शिकायत
कमियों की, खामियों की
भूल गया हासिल को
और सारा ध्यान रहा
कमियों,खामियों पर
कहते है
जिसके बारे में
शिद्दत से  सोचते हो
वही मिलता है
सो मुझे 
कमिया और खामिया मिल  गयी
करता अगर प्रयास
लगा कर जान की बाज़ी
इन्हे दूर करने का
तो निश्चित ही
अलग होता परिणाम 
-
मेरा पूरा प्रयास था
बचूं  हार से
शायद इसी लिए हार गया 
क्योंकि
मेरे  अवचेतन में लक्ष्य
हार से बचना भर था
जीत का तो कहीं ज़िक्र भी न था .
हाँ, में स्वीकार करता हूँ
अपनी हार
लेता हूँ  पूरी जिम्मेदारी
ताकि कल जीत सकूँ ....

सुबोध- २१, मई २०१४

 

 

 

 

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100. सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरे एक पाठक का सवाल था
sar ji mene aap ke sabhi artical pare.meri yek samsya ko door kijiye mera medical ka thok ka weyapar he acha chal raha he par mene apne jiwan istar ko warane ke liye karj le liya ab use chukane ka rasta nahi mil raha he agar me apne weyapar se jeyada rupye nahi nikal sakta keya karna chahiye.

मेरा जवाब---
जो क़र्ज़ आपको दिए गए ब्याज से ज्यादा रिटर्न दिलाता है वो क़र्ज़ अच्छा क़र्ज़ होता है और जो क़र्ज़ आपको दिए जानेवाले ब्याज  से कम रिटर्न दिलाता है वो क़र्ज़ बुरा क़र्ज़ होता है .
क़र्ज़ के दम  पर अगर आपने अपने जीवनस्तर को सुधारने का प्रयास किया है तो ये एक अव्यवहारिक कदम है - यह एक बुरा क़र्ज़ है
कभी भी कोई अतिरिक्त खरीददारी या खर्च  करें  उसे अपनी अतिरिक्त कमाई में से करें ,अमीर लोग यही करते है .
 अगर आप बुरे कर्ज के जाल में फंस चुके है तो उसे चुकाने के कुछ तरीके नीचे लिख रहा हूँ
1- पैसे को सही तरीके से मैनेज करें -- उम्मीद है मेरी पुरानी पोस्ट्स को देखते हुए आपने कमाई में से 10% अलग रखना शुरू कर दिया होगा - उसके बाद ही आप अपने बाकी के खर्चे निपटा रहे होंगे . अब निम्न तरीका अपनाये --
अपनी कमाई का -
10 % आप  क़र्ज़  को चुकाने के लिए अलग रखे
10% आप दीर्धकालीन बचत के लिए रखे
10% वित्तीय स्वतंत्रता खाते में रखे
10% मनोरंजन खाते में रखे 
10% शिक्षा, दान वगैरह के लिए
50% आवश्यक खाते में
इसे स्ट्रिक्टली फॉलो करें , जैसे ही पैसे घर में आते है आप अलग- अलग खाते में इन्हे डाल देवे , फिलहाल आप  दीर्धकालीन बचत खाते को क़र्ज़ चुकाने के लिए इस्तेमाल कर सकते है ,जब आपका क़र्ज़ चूक जाए तो क़र्ज़ चुकाने वाले खाते को आवश्यक खाते में ट्रांसफर कर सकते है या इस से आप स्टैण्डर्ड मेन्टेन कर सकते है .    इस बात को दिमाग से निकल देवे की मैंने अपना स्टैण्डर्ड  मेन्टेन करना है . आपकी जिम्मेदारी अपने परिवार के हितों की सुरक्षा करना है समाज  के सामने आप स्टैण्डर्ड वाले होकर भी घर में अगर परिवार को या खुद को तनाव देते है तो ये उचित नहीं है .


2- आप अच्छा क़र्ज़ लेवे और उससे बुरे क़र्ज़ को चूका देवें .

3- अपनी कमाई को बढ़ाएं .जीवन स्तर उधार के पैसे से नहीं खुद की कमाई से सुधरता है, सुधारा जाता है  -अगर साल-दो साल के लिए जीवन स्तर ऊँचा कर लिया है तो ये तो कुकुरमुत्ते वाला स्तर हुआ - स्थाई नहीं - स्थायित्व लाने के लिए आपको अपनी कमाई बढ़ानी पड़ेगी - मेरी पुरानी पोस्ट बराबर पढ़े काम को बड़ा करने का तरीका उसमे दिया हुआ है .

4 - एक-एक चवन्नी की कदर करें- चार चवन्नी मिलकर एक रूपया हो जाती है. बैठ कर ढंग से समझ लेवें कि क्या खर्चे जरूरी है और क्या गैरजरूरी . अमूनन तकलीफ में लोग" पेपर-पिन" बचाओ वाली मानसिकता को फॉलो करना शुरू कर देते है जो कि मेरी निगाह में बिलकुल गलत है- थूक से कान नहीं चिपकते - जहाँ बचाया जा सकता है वहां बचाये . स्टाफ को,परिवार को बेवजह लगातार टोकते रहने से  वे भी तनाव में रहेंगे और आप भी . ध्यान रखे है आप मालिक है ,परिवार के मुखिया है चौकीदार नहीं.

5- स्वयं को वर्तमान स्थिति से पृथक कर-कर सोचे ,बिलकुल शांत मन से स्थिति पर चिंतन करें .आपको स्वयं ज्ञात हो जायेगा कि कहाँ-कहाँ से सुधार हो सकता है .

           आपकी संपूर्ण परिस्थिति मुझे ज्ञात नहीं  है संभवतः परिस्थिति अनुसार अन्य मार्ग हो सकते है , बेहतर है अपने फाइनेंसियल प्लानर के साथ बैठे और उस से पूरी स्थिति पर बात करें .
            अंत में हौसला न खोये , किसी के पास भी कोई जादू की छड़ी नहीं है जो आपको तुरत-फुरत समाधान दे देगा और स्थितियां सुधर जायेगी .हाँ, जिसके पास कुछ करने को है वो आप खुद है ,ये आपका चुनाव होगा कि आप क्या चुनते है - सिर्फ सलाह सुनते है या सलाहों में से अच्छी - बुरी छांटकर अच्छी सलाहों पर अमल भी करते है .
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99. सही या गलत -निर्णय आपका !

कम प्रयासों से ज्यादा उपलब्धि कर पाना लीवरेज कहलाता है . 
पोस्ट 75 देखे, यहाँ पर अमीर समय का लीवरेज कैसे पैदा करते है इस बारे में बताया गया है .
पोस्ट 82  , 86  में हल्का सा इशारा है कि पैसे का लीवरेज कैसे पैदा किया जाता है ,.

बहरहाल आपको अमीर बनने के लिए महत्वपूर्ण  चीज़ जो समझनी है वो लीवरेज की ताकत समझनी चाहिए,जब तक आप ये नहीं समझते और इसका उपयोग नहीं करते आप उस व्यक्ति के लिए चारा है जो  लीवरेज को समझता है तथा  उपयोग करता है. 
अमीर लोग लिवरेज के सिद्धांत को समझते है और उसका इस्तेमाल करते है .
वे दुसरे लोगों को काम पर रखते है जो उनके लिए समय का लिवरेज पैदा करते है और वे लोग लोन लेकर  या अपने वेंचर में शेयर देकर दुसरे से  पैसा लेकर  पैसे का लिवरेज पैदा करते है . ये समय एवं पैसे का लीवरेज आम आदमी से कई गुणा ज्यादा  पैसा उनके लिए पैदा करता है.
यही उनकी अमीरी का राज है और  अमीर एवं  गरीब में यही सबसे बड़ा फर्क है कि एक खुद मेहनत करता है जबकि दूसरा लीवरेज का उपयोग करता है .
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98. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीरी या गरीबी का निर्णय  ऊँची सैलरी या ऊँची कमाई नहीं होता है बल्कि कमाए गए पैसे में से आपने बचाया क्या है , इस से होता है .
" अ " लाख रूपये महीने कमाने वाला बंदा जिसका खर्च 98  हज़ार रूपया महीना है ,और" ब "  जो 30  हज़ार रूपया महीने का कमाता है उसका खर्च 27 हज़ार है तो अमीर "अ" नहीं" ब" होता है अगर 5  साल यानि 60 महीने बाद की इनकी स्थिति समझी जाए तो "अ" 1  लाख  20  हज़ार का और "ब" 1लाख 80 हज़ार का मालिक होता है और ये तो सीधी सी गणित है .
"अ" खर्चे में, लिविंग स्टैण्डर्ड में  आपको अमीर लग सकता है और "ब" गरीब  लेकिन" अ"  और" ब" की 5  साल बाद की बैलेंस शीट जो कहती है वो कुछ अलग ही कहानी है .छोटी सी लगनेवाली 1 हज़ार की एक्स्ट्रा बचत लम्बे समय में कितना बड़ा फर्क  बनती है ये इस उदाहरण  से स्पष्ट है .
                        ये बात अच्छे से समझ लेवें कौन कितना कमाता है, उसका लिविंग स्टैंडर्ट कैसा है अमीरी के खेल में  इस से कोई फर्क नहीं पड़ता , अंत में कौन कितना जोड़ पाता है  , बैलेंस शीट किसकी मजबूत है -फर्क इस से पड़ता है. 
             अमूनन अमीर लगने वाले डॉक्टर  ,वकील, चार्टेड अकाउंटेंट जैसे लोगों की स्थिति अंदर से कुछ और हो सकती है

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97. सही या गलत -निर्णय आपका !

अगर आपने पैसा  बनाने में बहुत ज्यादा मेहनत की है तो आप पैसे  की कदर भी बहुत ज्यादा करेंगे और अगर आपको पैसे  आसानी से मिले  है तो आप उसकी कदर नहीं करेंगे ."
 मेरा मानना है कि ये कहावत सही नहीं है और इसके लिए मेरा तर्क ये है कि पैसा कमाने के लिए जो काबिलियत इस्तेमाल होती है वो उस काबिलियत से बिलकुल अलग है जो पैसा खर्च करने या रोककर रखने के लिए चाहिए . इसे थोड़ा गहराई में जाकर समझते है -

 पैसे के मामले में तीन  तरह की मानसिकता होती है
पहली - जिन्हे तत्काल संतुष्टि चाहिए होती है - ऐसी मानसिकता के लोग किसी चीज़ की इच्छा होने पर खुद को कंट्रोल नहीं कर पाते उन्हें ये इच्छा तुरंत पूरी करनी होती है चाहे इसके लिए किसी से इन्हे उधार भी लेना पड़े तो ये ले लेते है - ये कमज़ोर व्यक्तित्व के लोग होते है ऐसी मानसिकता के लोगों की कमाई चाहे जितनी हो ये हमेशा कर्ज़े में ही डूबे रहते है क्योंकि इनका अपनी इच्छाओं पर वश नहीं होता .
दूसरी- इस मानसिकता के लोग सिर्फ जरूरत भर ही खर्च करते है बाकि पैसे इकट्ठे करकर कुछ बड़ा पाना चाहते है उन्हें विलम्ब से संतुष्टि मंज़ूर है , लेकिन किसी से क़र्ज़ लेना नहीं. ये गंभीर मानसिकता के लोग होते है जिन्हे पैसे की कीमत और कदर पता होती है -ये इतने ज्यादा संभल कर खर्च करते है और इतने ज्यादा नार्मल तरीके से रहते है कि कभी-कभी तो इनके गरीब होने का भरम होता है .. लेकिन आर्थिक रूप से ये मज़बूत श्रेणी के लोग होते है .
तीसरी- इस मानसिकता के लोग अमीर श्रेणी के होते है इनकी पैसे की आमद  इतनी ज्यादा होती है कि  दिल खोलकर खर्च  करने के बाद भी कुछ न कुछ बच जाता है , इन लोगों ने पहले जमकर मेहनत की होती है ,अपनी इच्छाओं पर कंट्रोल किया होता है ,पैसा जोड़ा होता है पैसे से मेहनत करवाकर रेजिडुअल इनकम  के श्रोत बनाये होते है और अब उन्ही आमदनी के श्रोत से आई हुई रकम  को ये दिल खोलकर खर्च  करते है - ध्यान रहे इनकम के श्रोत को खर्च नहीं करते . 
        पैसा कमाना  अलग मामला है जबकि खर्च आदमी  अपनी मानसिकता के अनुसार करता है -इसका मेहनत से कमाया या आराम से कमाया जैसी किसी बात से कोई ताल्लुक नहीं होता .
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96. सही या गलत -निर्णय आपका !

हम कारण और  परिणाम की दुनिया में रहते है जो कुछ करते है उसके पीछे कोई न कोई  कारण होता है और उस  कारण की वजह से हम कार्य करते है .ज़ाहिर सी बात है किये हुए कार्य का परिणाम भी मिलेगा .
आपकी कंडीशनिंग आपके विचारों को पैदा करती है ,आपके विचार आपकी भावनाओं को , भावनाएं कार्य और कार्य परिणामों को .
अगर आपको अपनी कंडीशनिंग बदलनी है तो पहले स्वयं में स्वीकृति  पैदा करें कि " हाँ ,मुझमें  ये गलत कंडीशनिंग हुई है"
 कब हुई , कहाँ से हुई ,कैसे हुई ,क्यों हुई इन सब की विस्तृत डिटेल तैयार करें
जब आपको ये पता चल जाता है कि  सोचने का वर्तमान तरीका आपका स्वयं का नहीं है बल्कि किसी और का है तो अब आप चुनाव कर सकते है कि  आगे इसी तरीके से सोचना जारी रखा जाए या और कोई नया तरीका अपनाया जाए .
जब आप ये सब स्थिति समझ लेवे तब आप स्वयं को नए सिरे से रि -कंडिशन कर सकते है -- जो आपका खुद का सोचने का तरीका होगा ,अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपनी जरूरत के अनुसार आप अब खुद के नियम बना सकते है .
- सुबोध
पुनश्च - इस बारे में पोस्ट 91 और 92  भी देखें .
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95. सही या गलत -निर्णय आपका !

अपने टीम मेंबर्स  को सिखाइये ,उन्हें प्रोत्साहित कीजिये और उन पर विश्वास कीजिये .अगर आपको व्यवसाय बड़ा करना है तो एक अच्छी और बड़ी टीम आपके पास होनी चाहिए . अगर आप ऐसा नहीं करते है  तो अपने बिज़नेस की ग्रोथ आप ख़त्म कर रहे है .
              अगर आपको ये  डर है कि जिस दिन ये काम सीख लेगा उस दिन  मुझे छोड़कर खुद का काम शुरू कर लेगा तो ये डर फ़िज़ूल है . व्यापारी बनने के लिए जिन चीज़ों की ज़रुरत है उनमे सबसे अहम है हिम्मत - जोखिम लेने की हिम्मत . खुद की पूँजी,खुद की शौहरत ,खुद का वक्त दांव पर लगाने की हिम्मत हर एक में नहीं होती और जिस व्यक्ति में यह साहस है वो व्यक्ति आप कुछ नहीं सिखाएंगे तो कहीं और से सीख लेगा उस स्थिति में आपसे कम्पीटीशन  भी करेगा और आप उसे कुछ कह भी नहीं पाएंगे ,अगर आपने उसे सिखाया है तो कम से कम आपसे कम्पीटीशन  करने में हिचक तो उसे महसूस होगी ही और अगर पीठ पीछे आपसे कम्पीटीशन करता भी है तो आप उसे समझा सकते है कि व्यवसाय तो समुन्दर की तरह है जहाँ मैं  खड़ा हूँ वही से पानी निकालना  क्या ज़रूरी है ?
           दूसरी बात कोई भी व्यवसाय बाहर की जुटाई गई सामग्री से उतना नहीं चलता जितना  मालिक के उत्साह से चलता है .गौर करें व्यवसाय आपकी छाया भर है या ये समझे कि आप खुद ही व्यवसाय है तो आप वाली बात आपका टीम मेंबर कहाँ से लाएगा ?
- सुबोध
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94. सही या गलत -निर्णय आपका !



अपनी सैलरी बढ़वाने  के लिए  आम तौर पर सीनियरिटी या महंगाई बढ़ने की बात की जाती है कृपया इन दोनों ही बातों को एक व्यापारिक प्रतिष्ठान के मालिक की नज़र से समझे, उसका जो जवाब हो सकता है उसे भी समझे.
क्या सीनियरिटी की वजह से आप कोई अतिरिक्त उत्पादकता बना पा रहे है - निश्चित ही नहीं . आप अब भी पहले जितना ही काम कर रहे है तो बढ़ोत्तरी किस बात की ?
महंगाई बढ़ने से क्या कंपनी को कोई अतिरिक्त आमदनी हुई है ? यदि नहीं तो महंगाई बढ़ना आपकी समस्या है इसमें कंपनी आपकी क्या मदद कर सकती है ?
ऐसे में आपको चाहिए कि अपनी सैलरी बढ़वाने के लिए आप अपना मूल्य बढ़ाये - अपने में कोई ऐसी अतिरिक्त क्वालिटी पैदा करे जिसकी ज़रुरत आपकी कंपनी को हो .तत्पश्चात मालिक के सामने सैलरी बढ़ाने  की बात करे और उन्हें ये बताये कि मैं कंपनी के लिए ये अतिरिक्त कार्य करूँगा .
ध्यान रखे अपना मूल्य आप खुद बढ़ाते है और अपना मूल्य बढ़ाने  के लिए आपको अपने में कुछ अतिरिक्त योग्यता बढ़ानी पड़ती है .
मोरल- अमीर मानसिकता के लोग मालिक की मानसिकता को समझते है और बढ़ाये गए वेतन के  बदले में उतनी उत्पादकता कंपनी को देते है .
-सुबोध 
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93. सही या गलत -निर्णय आपका !



दोस्त हरेक के होते है , आपने अपने दोस्तों से क्या सीखा?
मान लीजिये आपका एक दोस्त अमीर है और दूसरा गरीब .आप गौर  करें अमीर दोस्त का उठना बैठना ,बात का अंदाज़ ,उसकी बातों का कॉन्फिडेंस ,किन सब्जेक्ट पर उसे बातें करना पसंद है उसके सपने,उसकी हताशा ,उसका उत्साह -यानी उसकी हर बात का ,हर एक्शन का ढंग से मुआयना करें . यही मुआयना अपने गरीब दोस्त का करें . दोनों का फर्क देखे ,दोनों की मानसिकता में से आपको अपने मतलब का  क्या लगता है ,आप ज्यादा किसे पसंद करते है और क्यों ?
कहते है खून के रिश्तों को आप नहीं चुन सकते ये उपरवाले की देन है  . लेकिन दोस्ती का रिश्ता - संसार का सबसे खूबसूरत रिश्ता आप चुन सकते है - लिहाज़ा ये रिश्ता बहुत सोच -समझ कर चुने .ध्यान रखें आपकी  आजकी स्थिति का निर्माण आपके गुजरे हुए कल ने किया है और आने वाले कल (भविष्य) का निर्माण आपका आज करता है  तो अपने भविष्य की खूबसूरती का निर्माण करने के लिए आज आप जो भी काम करे , बहुत सोच-समझ कर करें , जो भी दोस्त चुने सोच समझ कर चुने. मैं सही  दोस्त  चुनने की बात इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि वही एक शख्स ऐसा है जो आपकी ख़ुशी में भी आपके उतना ही साथ है जितना आपके दुःख में और आपकी ज़िन्दगी में सही और अच्छी सलाह वही शख्स देता है .
आप अपने अमीर दोस्त से ये सीखे कि आपको क्या करना चाहिए और गरीब दोस्त से ये कि क्या नहीं करना चाहिए - अपनी मानसिकता तो आपने स्वयं ने ही बनानी है, अच्छे-बुरे  की  पहचान आपने स्वयं ने करनी है.
-सुबोध 
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92. सही या गलत -निर्णय आपका !


कंडीशनिंग को समझने के लिए अमूनन जो उदाहरण लिया जाता है उसे ही ले रहा हूँ .

जब हाथी का बच्चा छोटा होता है तो उसे मजबूत रस्सी से बांध दिया जाता है वो मासूम बच्चा खुद को रस्सी से  छुटाने की बड़ी कोशिश करता है लेकिन रस्सी मजबूत होती है और वो छूट नहीं पाता, लगातार कोशिश करने और लगातार हारने के बाद धीरे-धीरे ये बात उसके दिमाग में घर कर जाती है कि रस्सी बहुत मजबूत है और मैं आज़ाद नहीं हो पाउँगा . एक दिन वो हाथी वयस्क हो जाता है अब रस्सी उसकी ताकत से कमजोर है लेकिन चूँकि ये उसके दिमाग में बैठा हुआ है कि रस्सी मजबूत है सो वो प्रयत्न ही नहीं करता - हाथी के दिमाग में जो बैठाया गया है कि तुम रस्सी के मुकाबले कमजोर हो इसे ही कंडीशनिंग कहते है कुछ लोग इसे ब्रेन वाश करना भी कहते है ..

बचपन में बहुत से लोगों के साथ पैसे को लेकर इसी तरह की कंडीशनिंग की जाती है . जैसे अपनी गरीबी की मजबूरी की वजह से या खुद की नाक़ाबिलियत को जायज़ ठहराने के लिए या अपनी विपरीत परिस्थितियों की वजह से - कारण जो भी हो माँ-बाप जब बच्चे से  ये कहते है "पैसा बुराई की जड़ है " और समर्थन में कुछ उदहारण देते हो तब  लगातार ऐसा सुनते-सुनते बच्चे के दिमाग में ये बात बैठ जाती है . वयस्क  होने पर भी ये बात उसके दिमाग से नहीं निकलती . और क्योंकि वो पैसे को बुराई की जड़ मानता है सो जैसे ही उसके पास पैसा आता है वो उस तथाकथित बुराई की जड़ से छुटकारा पाने का प्रयास करता है और येन-केन-प्रकारेण सफल हो जाता है . वो व्यक्ति पैसे को रोक कर भी रखना चाहे तो रोक कर रख नहीं पाता क्योंकि यहाँ उसका अवचेतन मन अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहा है .दिमाग चाहता है पैसा रोककर रखे लेकिन दिल इस बुराई की जड़ से छुटकारा चाहता है  ध्यान रहे दिल ( अवचेतन मन ) और दिमाग की लड़ाई में अमूनन  दिल जीतता है और मजे की बात ये है कि इस पूरी प्रक्रिया में उसको पता ही नहीं चलता कि वह किसी कंडीशनिंग का शिकार है.
- सुबोध 
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91. सही या गलत -निर्णय आपका !


एक सबसे बड़ी समस्या जो आती है वो ये कि आप पैसा कमाते है अच्छे से कमाते है फिर भी रोक कर ,इकठ्ठा करकर नहीं रख पाते . इस बात की गहराई से जांच करें कि पैसे को लेकर आपके अवचेतन मन में क्या है ? क्या ऐसे या इनसे मिलते जुलते वाक्य आपने सुने है या ऐसे किसी वाक्य में आप यकीन करते है -
पैसा बुराई की जड़ है .
अमीर बनने के लिए गलत काम करने पड़ते है
अमीर लालची होते है
अमीर टैक्स की चोरी करते है ,करप्शन को बढ़ावा देते है
अमीर स्वार्थी होते है
अमीर घमंडी  होते है
अमीर चरित्रहीन होते है 
पैसा ख़ुशी नहीं खरीद सकता
पैसा कमाने के लिए खून -पसीना एक करना पड़ता है
हर कोई अमीर नहीं बन सकता
पैसा पेड़ों पर नहीं उगता
पैसा हम जैसे लोगों के नसीब में नहीं है
पैसा हाथ का मैल है
पैसे के पीछे भागनेवाले पागल होते है
उपरवाला दो वक्त की रोटी ठीक-ठाक दे रहा है ज्यादा पैसे का क्या करना है
जिसने चोंच दी है चुग्गा भी वही देगा
मुसीबत के वक्त के लिए पैसा बचा कर रखो
रहने दो, हम इसका खर्च नहीं उठा सकते
अपनी इच्छाओं को कंट्रोल करना सीखो
गरीबों का ध्यान उपरवाला रखता है
स्वास्थ्य ही सर्वोत्तम धन है
कृपया इन शब्दों की गहराई में जाए . ये वे शब्द है जो आपको अमीर बनने से रोक रहे है ,( ऐसे शब्द या तो पैसे की बुराई कर रहे है या पैसे की अहमियत को नकार रहे है या आपका ध्यान पैसे से हटाकर और कहीं केंद्रित करने का प्रयास कर रहे है )अगर आपके सामने आपके बड़े-बुजुर्गों,सगे-सम्बन्धियों ने, दोस्तों ने ,मिलने-जुलने वालों  ने  ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया है या उनके व्यवहार में ऐसा कुछ आपने होते देखा है  तो कृपया चेक करें कि वे शब्द अब भी अवचेतन में असर तो नहीं डाल रहे है - कहीं ये  कंडीशनिंग तो नहीं है .
किसी बिल्डिंग की नींव कमजोर हो  ऊपर के हिस्से को चाहे जितना सुन्दर बना लेवे ,नतीजा क्या होगा आप जानते है . आप चाहे जितना कमा लेवे लेकिन जब  आपकी अतीत की कंडीशनिंग ( आपकी ज़िन्दगी की नींव ) ही सकारात्मक  नहीं हुई है तो  नतीजा तो नकारात्मक होना ही है.  

-सुबोध
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90. सही या गलत -निर्णय आपका !


अमीर यु हीं अमीर नहीं होता

सुरक्षित करने को अपना आज
दांव पर लगा देते है अपना भविष्य
हाँ, यही करते है अधिकतर लोग....
बिना ये समझे कि
ख़ूबसूरत भविष्य की
जड़ में आज की
खाद होती है ....
-.
चूजे को
कर दिया जाता है हलाल
मुर्गी बनने से पहले .
और रोते है रोना
कि ज्यादा सफ़ेद क्यों है
पड़ोसी की शर्ट .
-
इतना व्यस्त होते है
रोने में
कोसने में
कि तलाशते नहीं
वजह ...वजह....वजह.
-
छोटे लक्ष्य
छोटी वास्तविकताएं
छोटे प्रयत्न
ज़ाहिर सी बात है
छोटी ही होगी
उपलब्धियाँ...
-
अमीरी के रास्ते
जाने वाली सोच की सड़क
शुरू होती है
सवालों से
क्योंकि
विस्तार
वास्तविकता का
काबिलियत का
शुरू होता है.
सवालों से .....
क्या
क्यों
कब
कैसे
कहाँ
लेकिन
गरीब देता है
आधे -अधूरे जवाब
नतीजा
आधी- अधूरी उपलब्धिया
और दोष नसीब को ?????
अमीर लेता है
जिम्मेदारी
नहीं बनाता
बहाने ......
छोटी-छोटी बातें
पैदा करती है बड़ा फर्क .......

सुबोध- १६ मई,२०१४
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89. सही या गलत -निर्णय आपका !



अमीर लोग उनके साथ उठते-बैठते है जो उनकी तरह विजेता होते है जबकि गरीब लोग उनके साथ जो उनकी तरह गरीब होते है या हारे हुए - ये अपने-अपने कम्फर्ट जोन का मामला है .
            गरीब लोग अमीरों के साथ,विजेताओं के साथ असहज महसूस करते  है ,गरीबों को  लगता है कि ये अमीर लोग मुझे अस्वीकार कर देंगे ,मैं इनकी श्रेणी का नहीं हूँ  सो अपने अहम की संतुष्टि के लिए वे अमीरों में दोष  तलाशते हैं  और कोई न कोई आलोचना की वजह ढूंढ़ ही लेते हैं . और किसी न किसी बहाने वहां  से हटकर  अपने जैसी समान मानसिकता वालों को तलाश कर उनमे मिक्स-अप हो जाते हैं .
         अमीरों की प्रतिक्रिया कुछ अलग रूप लेती है वो गरीबों को एक हारा हुआ वर्ग मानता है और उनके लिए उसके मन में दया का भाव रहता है  ,उपदेश का भाव रहता है - उच्च स्तर पर जाकर  सोचे तो ये भी दोष तलाशना और आलोचना करना ही हुआ -शब्दों और व्यवहार में चाशनी  भर है .वे भी किसी न किसी बहाने वहां से हटकर अपने जैसी मानसिकता वालों में जाकर बैठते है.
          कहावत है एक जैसे पंछी साथ-साथ रहते है . कुल मिलाकर अपने-अपने कम्फर्ट जोन का मामला है.

मोरल- आपका कम्फर्ट जोन ही आपका आर्थिक भविष्य तय करता है वो कम्फर्ट जोन ही है जो अमीर को ज्यादा अमीर और गरीब को ज्यादा गरीब बनाता है .
- सुबोध 
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88. सही या गलत -निर्णय आपका !

               बहुत से लोगों को ये समझ में ही नहीं आता कि गलतियां सीखने के लिए होती  है , वे गलतियों से बचने के लिए अनजान राहों पर चलना ही नामंज़ूर कर देते है.
     होना ये चाहिए कि आप पर्याप्त जानकारीकट्ठी करे और उसके आधार पर कार्य करें अगर आप सफल होते है तो आप ये सीखते है कि सही तरीके से सूचनाएं कहाँ से जुटाई जानी चाहिए और किस तरह से इकट्ठी की गई सूचनाओं का उपयोग करना चाहिए और अगर असफल होते है तो आप कई तरीके से बहुत कुछ सीखते है कि सुचना के श्रोत गलत थे ,कि समर्पण में कहाँ कमी थी , कि किस डिपार्टमेंट में किस तरह की कमी रह गई जिसका नतीजा असफलता रहा . हर डिपार्टमेंट की एक अलग खासियत होती है उस खासियत में कहाँ कमी रह गई कि नतीजा पूरे प्रोजेक्ट पर पड़ा और वक्त रहते मैनेजमेंट की निगाह में वो कमी क्यों नहीं आई ? इस तरह के बहुत से सवालों के माध्यम से आप बहुत कुछ सीखते है.
            
         अगर असफलता की कीमत आप पहले से ही निर्धारित कर लेते है तो जवाब मेँ आपको घातक परिणाम नहीं मिलेंगे ,प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले ही आप खुद से ये सवाल कर लेवे की अगर मेरा प्रोजेक्ट असफल हो गया तो अधिक से अधिक मेरा कितना नुकसान हो सकता है ? और मुझे अधिकतम कितना नुकसान होने के बाद  प्रोजेक्ट को बंद कर देना है . ये दो सबसे महत्वपूर्ण सवाल है जो हर नव -उद्यमी ( ENTREPRENEUR ) को कोई भी प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले खुद से पूछने चाहिए और सख्ती से इनका पालन करना चाहिए लेकिन चूँकि वे अपने विचारों को लेकर इतने ज्यादा पॉजिटिव होते है कि वे असफलता की सोचते ही नहीं . और विपरीत नतीजा मिलने पर वे नुकसान पर नुकसान सहे जाते है और प्रोजेक्ट " पैक-अप " करने की बजाय बर्बाद हो जाते है .

         अगर आप प्रोजेक्ट को लेकर पूरी तरह संतुष्टि चाहते है तो अपनी सूचनाओ को चेक करे, प्रोजेक्ट तैयार करे ,बैंक में लोन अप्लाई करें ,एंजेल इन्वेस्टर्स से मिले .
अगर आप बैंक के और एंजेल इन्वेस्टर्स के सवालों का समाधान कर पाते है उनसे लोन के लिए हाँ करवा पाते है ( आपने लोन लेना है या नहीं ये अलग मुद्दा है बैंक और एंजेल इन्वेस्टर से मिलने का अर्थ प्रोजेक्ट की खामियों को समझना और दूर करना भर है ) तो खुद से सवाल करें कि मैं इस प्रोजेक्ट पर कितना खोने को तैयार हूँ , आपका जो भी जवाब हो उतने पैसे का इंतेज़ाम करे और  प्रोजेक्ट शुरू कर दीजिये  . अगर आपकी, आपके बैंकर की, एंजेल इन्वेस्टर की  कैलकुलेशन सही है तो आप पैसा बनाएंगे नहीं तो मानसिक तौर पर नुकसान के लिए आप तैयार ही है ,लेकिन इस प्रोसेस में आप जो कुछ सीखेंगे उस से आप बहुत कुछ बना सकते है , जो गलतियों से बचने का प्रयास करने वाले नहीं बना पाएंगे.
- सुबोध 
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87. सही या गलत -निर्णय आपका !



आपके व्यक्तित्व मेँ लचीलापन होना चाहिए , दिमाग की खिड़कियां खुली रखिये ,नए विचारों की ताज़ा हवा आत्मसात करते रहिये कोई भी जो पुराने विचारों में जम जाता है हकीकत में वो जड़ हो जाता है और सुचना युग में जड़ होना खतरनाक है क्योंकि यहाँ जो कल मार्किट में चर्चित था आज नए के आगमन के साथ पुराना हो गया है और चार दिन बाद आउट ऑफ़ डेटेड हो जायेगा लिहाजा आज के टाइम में जिनमें लचीलापन नहीं है वे अपनी प्रगति के रास्ते में रुकावट भर है . यह बात विचारों के साथ -साथ व्यवहार पर भी लागु होती है . इतनी तेजी से परिवर्तन हो रहा है कि कल के आदर्श,कल की मान्यताएं,कल की संस्कृति कल की हो गई है नए -नए उपलब्ध संसाधनों ने आज के रहन -सहन की परिभाषा और आवश्यकताएं बदल दी है , इस युग की चाप के अनुसार अपने व्यवहार  में लचीलापन विकसित करें .
    अमीरों की सबसे बड़ी खासियत ये होती है कि वे विचारों में और व्यवहारिकता में  कहीं भी जड़ नहीं होते हमेशा नया जानना चाहते है,सुनना चाहते है और कोई भी ऐसा विचार और व्यवहार जो उनके तर्कों की कसौटी पर खरा उतरता है उसे स्वीकारने को तैयार रहते है ,वे अपने अनुभव से तो सीखते ही है दुसरे के अनुभव से भी सीखने को तैयार रहते है ,वे जानते है जड़ होना नए अवसरों से आँख मूंदना है और लचीलापन नए अवसरों का द्वार है .
-सुबोध
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86. सही या गलत -निर्णय आपका !



आपके पास अच्छा विचार है जिस से आपको लगता है अच्छा पैसा बनाया जा सकता है ,समस्या पैसे की है . तलाश कीजिये पैसा कहाँ मिलता है ,आपको जो-जो ऑप्शन नज़र आये नोट करते जाए . अपने विचार को कागज पर उतारे. दिमाग में विचार होना अलग है कागज पर होना वो भी इस तरह कि आप जो एक्सप्लेन करना चाहे वो प्रोजेक्ट देखनेवाले के बिलकुल समझ  में आ जाये - बिलकुल ही अलग होता है . हो सकता है पहली -दूसरी- तीसरी बार में वो क्लियरिटी नहीं आये जो सामने वाले  के दिमाग में बैठ जाए लेकिन प्रयास जारी रखे और तब तक जारी रखे जब तक जो बात प्रजेंटेशन  में आप चाहते है वो आ न जाये .
  एक-एक सवाल जो आपसे पूछे जा सकते है उनका तर्क सहित क्या उत्तर देना है आपको पता होना चाहिए , ये समझ लीजिये जो भी आप तैयारी करे युद्ध स्तर पर करें जाने इसी पर आपका आर्थिक भविष्य टिका हुआ है . ध्यान रहे विकल्प की सम्भावना आपकी काबिलियत को जंग लगा देती है .सो तैयारी पूरे मन से करे -कृपया आधी- अधूरी तैयारी के साथ मार्किट में जाकर अपनी इमेज ख़राब ना करें .
                          बेहतर है लोन के लिए किसी बैंक में जाए ,ख़ुदा ना खास्ता वो आप का लोन नामंज़ूर कर देते है तो उनसे जानकारी करे आपके प्रोजेक्ट में कमी क्या रह गई , कृपया कमी को समझे और उसे दुरुस्त करे फिर और किसी बैंक में जाए वो भी अगर मना करते है तो उनसे भी कमी पूछे और उसे दूर करें और ये सिलसिला तब तक अपनाते जाए जब तक आप का लोन मंजूर ना हो जाए . जब एक बार बैंक से लोन मंजूर हो जाता है तो व्यक्तिगत संपर्कों से लोन लेना इतना मुश्किल नहीं होता.
 इस दरमियान आप बिलकुल ही एक नई जबान सीखेंगे जो आप को इस क्षेत्र के मास्टर्स सिखाएंगे . ध्यान रहे अमीर आसमान से नहीं टपकता इसी धरती पर आकर बनता है और इसी तरह के प्रोसेस से गुजरता है - जब वो गुजर सकता है तो आप क्यों नहीं ?  
- सुबोध
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85. सही या गलत -निर्णय आपका !



 कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता - कार्य करने वाले का समर्पण ,कार्य का आकार  -प्रकार ,कार्य की विस्तृत रूप-रेखा उसे छोटा या बड़ा बनाती है - एक अकेला जुलाहा वस्त्र बुनता है तो वो जुलाहा है लेकिन ऐसे ही हज़ारों जुलाहे मिल में जाकर वस्त्र बुनते है तो वहां वो कारीगर हो जाते है और मिल  इंडस्ट्री हो जाती है. ये आप पर है कि अपने कार्य में आप अकेले रहना चाहते है या उसे बड़ा बनाना चाहते है .
            अगर आपका दिमाग छोटा होगा तो पैतृक संपत्ति में मिला हुआ बड़ा कार्य भी आप छोटा कर लेंगे कि काम  में बहुत टेंशन है ,एम्प्लोयी को मैनेज करना टेढ़ी खीर है ,जिसको उधार दो पैसा लेकर भाग जाता है , माल बेचते वक्त भी भिखारी है और पेमेंट मंगाते वक्त भी .ऐसे बड़े काम का क्या फायदा वगैरह -वगैरह आपके तर्क होंगे और बने बनाये बड़े नेटवर्क को काट-पीट कर आप  अपने कम्फर्ट जोन में आप आ जायेंगे.
अगर आपका दिमाग बड़ा होगा तो आप एक बड़ा नेटवर्क बनाएंगे . एम्प्लाइज का , कारीगरों का,माल बनाने वाले ,बेचनेवालों का ,खरीदारों का , आढ़तियों का , दलालों का , इंडस्ट्री या व्यवसाय में लगने वाली हर छोटी- बड़ी ज़रुरत की लिस्ट बनाकर उस पर कार्यवाही करेंगे , व्यवसाय को बड़ा बनाने के लिए आप अपने "ईगो " को छोटा करकर हर छोटा -बड़ा काम करेंगे -न भूख़ की परवाह, न प्यास की सुध  ,न समय की चिंता , न भाग-दौड़ का तनाव , न थकान की फ़िक्र ,  यानी आप "आप" न होंगे सिर्फ एक उद्देश्य रह जायेंगे कि किसी भी तरह सोच साकार हो.
कहने का मतलब कार्य कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता वो "आप" है जो उसे छोटा या बड़ा बनाते है .
- सुबोध
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84. सही या गलत -निर्णय आपका !

कार्य कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता ,कार्य करने वाले की मानसिकता छोटी या बड़ी होती है .ध्यान रखे कल की नाई की दूकान आज सैलून हो जाती है ,कल की दरजी की दुकान आज बूटीक शॉप  हो जाती है - ढेरों उदहारण है.
 समाज  की निगाहों में कल का  छोटा काम,ओछा काम आज क्रिएटिव होकर इंडस्ट्री बन गया है .आप प्रत्येक कार्य में श्रेष्टता ही देखें , इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस तरह के व्यवसाय में है या आपके जिम्मे किस तरह का कार्य है-समाज उसे ओछी निगाह से देखता है या नहीं इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता ,आपकी ज़िन्दगी में फर्क डालने वाले आप खुद है दूसरा कोई नहीं . अपने काम से प्रेम करे उसे सम्मान दे और अपना श्रेष्ट दे - अमीर यही करते है और वो जानते है कि छोटे से बड़ा बनने के लिए कर्ता को दिल और दिमाग से  छोटा नहीं बड़ा   होना चाहिए .
-सुबोध 
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83. सही या गलत -निर्णय आपका !

जो भी कदम आप उठाये पूरी तरह तैयारी करकर ही उठाये . उठाये गए कदम पर अडिग रहे , जब काम शुरू करेंगे तो बहुत से तथाकथित शुभचिंतक आपकी भलाई के लिए बहुत सी सलाहें देंगे -लेकिन आप सिर्फ अपनी सोची गयी रणनीति पर कार्य करें ,आप का दिमाग खुला होना चाहिए - उनकी राय में वाकई में  दम है तो स्वीकार कीजिये लेकिन सिर्फ उन्हें ओब्लाइज़ करने के लिए अपनी पूर्व नीति में किसी तरह का बदलाव न करें.
     
कदम उठाने से पहले दो बार सोच लेवे क्योंकि एक बार उठाया हुआ कदम वापिस लेना आसान नहीं होता , वापिस लिया हुआ कदम पैसे के अलावा,मेहनत,समय ,आत्मविश्वास और मार्किट में आपकी इज्जत को भी नुकसान पहुँचाता है .
              
संसार में हर व्यक्ति ने कभी न कभी कोई न कोई गलती की है  सो गलतियों या असफलता से न घबराएं अगर आपका लिया गया निर्णय या रणनीति गलत भी होती है तो साफ़ मन से अपनी असफलता स्वीकार करें ,अपनी असफलता की जिम्मेदारी ले , अगर आप जिम्मेदारी नहीं लेंगे कोई बहाना बनाएंगे या अपनी असफलता का ठीकरा किसी और के माथे फोड़ेंगे तो ये निश्चित है आपका अगला प्रोजेक्ट भी असफल ही होगा क्योंकि आपने अपने व्यक्तित्व में उचित सुधार नहीं किया है  .अच्छे लीडर और अमीर लोग हमेशा अपनी असफलता, अपनी गलतियों को स्वीकार करते है क्योंकि उन्हें पता है कि सुधार हमेशा जिम्मेदारी से पैदा होता है.
सुबोध 
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82. सही या गलत -निर्णय आपका !



अमीरों की हिम्मत जुआरियों  वाली हिम्मत नहीं होती चूँकि ये अंकों में बड़े साफ़-सुथरे होते है इसलिए एक केलकुलेटेड  रिस्क लेते है ,जहाँ हारने की सम्भावना न के बराबर होती है ,रिस्क एंड रिवॉर्ड रेश्यो इनके फेवर  में होता है ,और अगर चीज़ें इनके अनुमान के मुताबिक नहीं होती तो इनमें इतनी काबिलियत होती है कि परिस्थितियों  के अनुसार खुद को बदल कर कार्य कर सके या चीज़ों से अपने अनुसार कार्य करवा सके . इसके वाबजूद भी अगर इनका कोई प्रोजेक्ट फ़ैल हो जाता है तो ये चूँकि अपने किसी प्रोजेक्ट में अपना सब कुछ न झोंक कर  30 -40 % तक ही डालते है  या फिर ये एक सिस्टम के तहत मार्किट से पूँजी उगाहते है सो ये पूरी तरह बर्बाद नहीं होते . जबकि गरीब आदमी अपनी पूंजी के साथ-साथ बीबी  के गहने ,बच्चों की बचत ,रिश्तेदारों-दोस्तों तक की पूँजी अपने प्रोजेक्ट में डाल देता है - उसकी असफलता की कल्पना ही दर्दनाक होती है .उसे दो मोर्चों पर लड़ना होता है पहला प्रोजेक्ट की सफलता दूसरा पूँजी की सुरक्षा जबकि अमीर सिर्फ प्रोजेक्ट की सफलता पर ही ध्यान केंद्रित करता है.
-सुबोध 

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81. सही या गलत -निर्णय आपका !



जो लोग जोखिम लेते है ,गलतियां करते है और उन गलतियों से सीखते है वे उन लोगों से हमेशा बेहतर होते है जो लोग जोखिम से,नुकसान से डर कर गलतियां ही नहीं करते . क्योंकि इस मानसिकता के लोग हिम्मती होते है और  एक कहावत बड़ी लोकप्रिय है " समझदार पीछे छूट जाते है और हिम्मती आगे निकल जाते है ." ये गलतियों से इतना ज्यादा सीख लेते है कि आगे से उन गलतियों का इन्हे पहले से ही अंदाजा हो जाता है और इसका नतीजा ये होता है कि धीरे-धीरे इनके काम में निपुणता आने लगती है और अगले किसी प्रोजेक्ट में ये इतनी बड़ी सफलता हासिल करते है कि पिछली सारी असफलताओं की भरपाई हो जाती है और इन्हे ईनाम में वो कुछ मिलता है जिसके बारे में किनारे पर खड़े हुए लोग सिर्फ सोच सकते है .
-सुबोध 
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80. सही या गलत -निर्णय आपका !




अकादमिक एजुकेशन सिस्टम में गलतियों का नतीजा पनिशमेंट होता है और वहां उन्हें गलतिया न करने का प्रशिक्षण दिया जाता है . जब ये कहा जाता है कि "गलतियां ही सबसे अच्छी टीचर होती है " ये उन्हें समझ में नहीं आता लिहाजा अपनी अकादमिक एजुकेशन पूरी करने के बाद भी वो लोग भावनात्मक रूप से जोखिम लेने के लिए तैयार नहीं होते और नतीजे में वो कोई ठीक-ठाक नौकरी पकड़ लेते है और अपनी वर्तमान नौकरी को अपनी वित्तीय सुरक्षा का जरिया मानते हुए ज़िन्दगी गुजारने लगते है ,बिना इस बात को समझे  कि नौकरी वित्त के क्षेत्र में एक दीर्धकालीन समस्या का अल्पकालीन समाधान है .वे लोग अपनी वर्तमान नौकरी में ही वित्तीय सुरक्षा और वित्तीय स्वतंत्रता देखते,समझते है जबकि नौकरी,वित्तीय सुरक्षा और वित्तीय स्वतंत्रता तीनो अलग-अलग स्थितियां होती है .
 अमीर  मानसिकता के लोग इस बात को समझते है इसलिए वे लोग नौकरी की सुरक्षा ( वक्त-वक्त पर अपने c .v. में ऐसा कुछ जोड़ते रहना जिससे उनकी मार्किट में डिमांड बनी रहे ) के साथ ही अन्य कमाई के तरीके से खुद को वित्तीय रूप से सुरक्षित करने की कोशिश करते रहते है.
पोस्ट 59  भी देखें .
- सुबोध
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79. सही या गलत -निर्णय आपका !



अमीर बनने के लिए जो तीन महत्वपूर्ण कदम होते है आइये उन्हें समझे -
1  बनना
2  करना
3  पाना
जब आप अपने लक्ष्य  (3  पाना ) निर्धारित कर लेते है तो आपको समझ में आने लगता है कि लक्ष्य हासिल  करने के लिए आपने क्या - क्या करना(2 . करना ) है , आपकी टू डू लिस्ट  बन जाती है और आप उसी के अनुसार कार्य करने लगते है . आप देखते है,समझते है कि इस कार्य को अमीर कैसे करते है जैसे-जैसे वो करते है आप करने का प्रयास करते है लेकिन आपको सफलता नहीं मिलती आप पूरी तरह खुद को री -चेक करते है कि गलती कहाँ से हो रही है,ज़रूरी सुधार करते है फिर भी सफलता नहीं मिलती अब आप परेशान है और असफलता को स्वीकार कर पूरी उम्र के लिए अमीर बनने का विचार त्याग देते है .
एक स्टडी के मुताबिक जो नए  प्रोजेक्ट आते है उनमे से 90 % प्रोजेक्ट आने  वाले 5  साल में बंद हो जाते है , इतनी बड़ी संख्या में प्रोजेक्ट फ़ैल होने का सही मायने में अर्थ क्या है ? इस बारे में सोचिये समझिए कि गलती कहाँ हो रही है .
आपके द्वारा  जो गलती हो रही है वो होने (1 .बनना ) में है . आप ने अमीरों के लक्ष्य बनाये,उनकी तरह काम किया लेकिन वैसे हुए नहीं - मानसिकता में आपके अंदर अभी भी छोटा डरा हुआ मुर्गा बैठा है जिसे हमेशा आशंका रहती है कि अब आसमान गिरने वाला है . यही सोच ,यही मानसिकता आपकी असफलता का कारण है . आपको पाने के लिए करने के साथ-साथ बनना भी पड़ेगा .वो मानसिकता भी खुद में विकसित करनी पड़ेगी जो अमीरों में होती है . उस छोटे डरे हुए मुर्गे को अपनी ज़िन्दगी से दूर भागना होगा जिसे हमेशा आसमान गिरने की आशंका रहती है .
इस सन्दर्भ में पोस्ट 41  और 42  भी देखे.
-सुबोध
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78.सही या गलत -निर्णय आपका !




अमीर और गरीब के बीच जो इकलौता फर्क होता है वो उसके चुनाव का है. ज़िन्दगी हर लम्हे चुनाव का विकल्प देती है , वो क्या चुनता है इसी से उसका अमीर या गरीब बनना तय होता है . तनख्वाह मिलने पर अमीर मानसिकता का आदमी पहले 10 % या 20 % जो भी उसने निश्चित कर रखा है ,खुद को देगा ( जहाँ उसने इन्वेस्ट करना है,सेव करना है ) उसके बाद अपने बिल चुकाएगा , अपने खर्चे पूरे करेगा और फिर अगर कुछ बचता है तो अपनी इच्छाएं पूरी करेगा जबकि गरीब मानसिकता का आदमी पहले अपने बिल चुकाएगा, अपने खर्चे पूरे करेगा, इच्छाएं पूरी करेगा फिर अगर कुछ बच गया तो कहीं इन्वेस्ट करेगा या सेव करेगा.
इसी तरह से खाली समय में अमीर मानसिकता का आदमी अगर टी.व्ही . देख रहा है तो कोई बिज़नेस चैनल देखता है जबकि गरीब मानसिकता का आदमी कोई पिक्चर या सीरियल देखता है . न्यूज़ पेपर पढ़ने में  भी आप फर्क महसूस कर सकते है अमीर मानसिकता का आदमी इकॉनमी या किसी व्यवसाय के बारे में पढ़ेगा जबकि गरीब मानसिकता का आदमी हत्या,लूट,चोरी,बलात्कार जैसी ख़बरें पढ़ेगा . ये  साधारण सी नज़र आनेवाली बातें लम्बे समय में ज़िन्दगी पर बहुत बड़ा फर्क डालती है . आपका चुनाव ही आपका भविष्य तय करता है . इसलिए जो कुछ भी आप चुने पूरी तरह सोच-समझ कर चुने .
- सुबोध
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77.सही या गलत -निर्णय आपका !

आपकी ज़िन्दगी आपके चुनावों का परिणाम है .आप जो चुनते है वैसे ही बनते है, ज़िन्दगी आपके सामने हर लम्हे चुनने का अवसर देती है ये आप पर है ,आपकी भविष्यदृष्टि पर है कि  आप क्या चुनते है .
सुबह 6  बजे आप नींद से जागते है ,ये आप का चुनाव है कि आप आज बिस्तर छोड़ेंगे या नहीं ,आप बिस्तर छोड़ने का चुनाव करते है .यहाँ फिर चुनाव है कि आप घूमने जायेंगे (स्पोर्ट्स शू पहनेंगे या स्लीपर, टी-शर्ट -बरमूडा में जायेंगे या कुर्ते पजामे में ,कौन से पार्क में जायेंगे,सिर्फ टहलेंगे या जॉगिंग करेंगे  वगैरह-वगैरह)   या न्यूज़ पेपर  पढ़ेंगे (ढेरों ऑप्शन) या टी.व्ही . देखेंगे (ढेरों ऑप्शन पिक्चर देखेंगे ,गाने सुनेंगे ,न्यूज़ देखेंगे - और इनमे भी ढेरों ऑप्शन ) कहने का मतलब ज़िन्दगी  बार-बार हर पल तरह-तरह के चुनाव का मौका आपको देती है ,यह आप पर है कि आप क्या चुनते है , अपनी ज़िन्दगी को क्या आकार देते है.
अगर आपके पास उचित शिक्षा है ,सोचने समझने की क्षमता है प्रॉपर मोटिवेशन है तो आप  उस व्यक्ति से कुछ अलग चुनेंगे जिनमे ये गुण नहीं है.आपका  दिमाग ही आपकी शक्ति है -जो आपको सही और गलत की पहचान कराकर आपसे सही का चुनाव करवाता है. अपने शरीर के साथ -साथ उसे भी खुराक दीजिये . 90 % लोग शरीर को खुराक देने का चुनाव करते है दिमाग को नहीं -इसीलिए इतनी ज्यादा गरीबी है - गरीबी की वजह न सरकार है, न समाज है, न परिवार है बल्कि इसकी वजह गरीब आदमी का खुद का चुना हुआ एक गलत चुनाव है.
-सुबोध
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76. सही या गलत -निर्णय आपका !


 गरीब असफलता के डर से सिस्टम बनाने का रिस्क न लेकर किसी और के  सिस्टम के लिए काम करने का चुनाव करता है यानि किसी और को अमीर बनाने का चुनाव करता है .गरीब का डर अमीर के लिए रिवॉर्ड होता है. गरीब अपनी अधूरी समझ की वजह से यह समझता है कि अमीर का सिस्टम उसका शोषण करता है जबकि हकीकत में गरीब खुद अपना शोषण करता है. अपनी तथाकथित सुरक्षा के लिए वह कम मजदूरी पर भी कार्य करता रहता है ज्यादा हताश होने पर वो अपना जॉब बदलता है ,बॉस बदलता है लेकिन खुद के सोचने के तरीके को नहीं  बदलता है .उसने सिर्फ पैसे के लिए,सिस्टम के लिए काम करना सीखा हुआ है और अधूरी शिक्षा की कीमत वो अपनी  पूरी  जिंदगी चुकाता रहता है काश उसने पैसे से अपने लिए काम करवाना सीखा होता या असफलता के डर को मैनेज करना सीखा होता , सिस्टम के लिए काम करना सीखने की बजाय सिस्टम बनाना सीखा होता .

-सुबोध            
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75.  सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर लोग दूसरों का समय खरीदते है .
अगर उसके बनाये हुए सिस्टम में 500 एम्प्लोयी है तो वो 1 लाख घंटे समय प्रति माह खरीद रहा है .(एक एम्प्लोयी 8 घंटे कार्य करता है महीने में एवरेज 25 दिन पकडे गए है यानि कुल 200 घंटे कार्य किया है )
इसी उदाहरण को अलग तरीके से समझे - अगर एक घंटे की एम्प्लोयी की उत्पादकता 300 रुपये है तो उसको 100 रुपये दिए जाते है (एक एम्प्लोयी 8 घंटे कार्य करता है महीने में 25 दिन पकडे गए है यानि कुल 200 घंटे कार्य किया है और 100 रुपये घंटे के हिसाब से उसे 20,000 रुपये महीने के मिलते है ) यानि 200 रुपये प्रति घंटे पर बचे अब अगर उसके सिस्टम में 1 लाख घंटे कार्य हो रहा है तो उसे 2 करोड़ रुपये बच जाते है- यह एक साधारण सा उदाहरण है और लेबर से मैनेजर तक की एक एवरेज कॉस्ट पकड़ी गई है.अलग-अलग बिज़नेस सिस्टम में अलग-अलग मार्जिन रेश्यो होते है.
इनकम का सिंपल सा फार्मूला एक एम्प्लोयी के लिए जो होता है वो ये है कि टाइम मल्टीप्लाई बाई रेट यानि कितने घंटे काम किया और किस रेट में काम किया जबकि सिस्टम के मालिक के लिए ये फार्मूला बदल जाता है कि नेट मार्जिन आन टाइम मल्टीप्लाई बाई क्वांटिटी ऑफ़ टाइम  यानी प्रति घंटे  नेट मार्जिन क्या है और कितने घंटे काम हुआ है .
ये कुछ बोझिल उदाहरण है लेकिन अगर अमीर बनना है तो इन्हे समझे और बराबर समझे कि  सिस्टम बनाने में एक बिजनेसमैन ने एक टाइम जमकर मेहनत की ,सिस्टम जब तैयार हो गया तो खुद साइड में हट गया , और रेजिड्यूअल इनकम लेने लगा .ऐसे ही कई सिस्टम से उसे इनकम आती है .

पुनश्च: - अगर आपने मेरी पूर्व की पोस्ट्स नहीं पढ़ी है तो आपको ये पोस्ट समझने में दिक्कत आ सकती है , मेरा आपसे दुबारा आग्रह है कि मेरे पेज पर जाकर मेरी पूरी पोस्ट पढ़ने के बाद ही कोई कमेंट करें . माफ़ करें मेरा ये मानना है कि स्थिति से पूरी तरह वाकिफ हुए बिना कमेंट करना बेवकूफी होती है - मेरे ख्याल से आप भी यही सोचते है.
सुबोध
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74 . सही या गलत -निर्णय आपका !

किसी दुसरे के लिए काम करने का  अर्थ ये होता है कि आप और आप जैसे सैंकड़ों लोग किसी के बनाये हुए सिस्टम के लिए काम कर रहे है . आप  लोगों के किये हुए उपयोगी कार्य की वजह से सिस्टम बनाने वाला सिस्टम का मालिक आप को जो दे रहा है उस से ज्यादा उपार्जित करेगा . वो सिस्टम बनाते वक्त आपके लिए क्या छोड़ता है और अपने लिए कितना रखता है यह अलग विषय है . शुरुआत  में सिस्टम बनाने वाले को इंफ्रास्ट्रक्चर में अतिरिक्त  लागत की वजह से फायदा नहीं होता लेकिन बाद में जब वो कॉस्ट कवर हो जाती है तो बेहतरीन फायदा होता है  यानि शुरुआत में रिस्क लेकर वो जो सिस्टम बनाता है  उस सिस्टम की बदौलत वो सिस्टम के लिए काम करने वालों से ज्यादा कमाता है और यहीं सिस्टम बनाने वाले की अमीरी का राज है .
-सुबोध
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73. सही या गलत -निर्णय आपका !
जब कोई व्यक्ति आपको यह कहता है कि तुम यह नहीं कर पाओगे तो आप जान ले हकीकत में वो शख्स खुद के विषय में कह रहा है कि मैं यह नहीं कर सकता.आप उसकी बात का कतई यकीन नहीं करें,अपने प्रयत्न जारी रखे . हर व्यक्ति की अपनी  निजी क्षमताएं ,निजी आकांक्षाएं ,निजी सपने  होते है जो उसकी चाहत को सम्बल देते है, साकार रूप देते है और वैसे भी आप इस पूरे विश्व में सबसे अनोखे है.आप की ताकत आप के अंदर है किसी दूसरे की सोच में नहीं. अमीर व्यक्ति किसी दूसरे के हाथों की , सोच की कठपुतली नहीं होते ; उन्हें खुद की क्षमता पर यकीन होता है और जिन्हे अपनी क्षमता पर यकीन होता है वे वही होते है जो वे होना चाहते है .
-सुबोध
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72. सही या गलत -निर्णय आपका !

शारीरिक रूप से मेहनत करने वालों  को कम भुगतान मिलता है ये बात अतीत में भी सच थी और आज भी सच है .सच्चाई ये है कि कड़ी मेहनत करनेवाले अमीर नहीं बनते . अगर आप अमीर बनना चाहते है तो आपको कुछ अलग करने की ज़रुरत है - भीड़ जो कर रही है और करने के बदले जो पा रही है उस से आप  वाकिफ है- आफ्टरऑल आप भी अब तक उस भीड़ का हिस्सा रहे है .आप को संसार का सबसे कठिन काम "सोचना" करना पड़ेगा- भीड़ के पीछे-पीछे चलने की बजाय सोचे कि मैं इन सबसे अलग किस तरह हूँ, जो कि इनसे अलग कुछ पाना चाहता हूँ. अपने उस गुण की तलाश कीजिये जो आपको अमीरों की श्रेणी में ला खड़ा करता है -सबसे अलग हट कर सोचने का गुण .इतना ध्यान रखें सिस्टम के लिए काम करने वाले गरीब होते है जबकि सिस्टम बनाने वाले अमीर होते है.
-सुबोध


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71. सही या गलत -निर्णय आपका !



सुचना क्रांति युग में कड़ी मेहनत का अर्थ वो नहीं है जो कृषि युग और औद्योगिक युग में था. सुचना क्रांति युग में कड़ी मेहनत का अर्थ जानकारी हासिल करना,सीखना और तत्काल अमल में लाना है,क्योंकि कल ये बासी अख़बार हो जानी है और कम्पटीशन के दौर में कल इसमें मार्जिन भी नहीं बचेगा. कोई कितनी जल्दी सूचनाएं इकट्ठी करकर कार्यरूप में परिणित कर सकता है इसी पर उसका अमीर बनना निर्भर है ." knowledge is power " का सही अर्थ सिर्फ ज्ञान हासिल करना नहीं है, ये अधूरी जानकारी है - ज्ञान में कोई शक्ति नहीं होती- उसे कार्यरूप में परिणित करना ही शक्ति है. अमीर मानसिकता वाला व्यक्ति इस बात को जानता है सो वो अमीर बनता है, गरीब मानसिकता वाला व्यक्ति इस बात को नहीं जानता इसलिए वो विद्वान बनता है- जीता-जागता इनसाइक्लोपीडिया .


- सुबोध

















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70.  सही या गलत -निर्णय आपका !
असफलता ज़िन्दगी में हर एक को मिलती है ये उनकी मानसिकता पर निर्भर  है कि वो अपनी असफलता पर कैसी प्रतिक्रिया करते है .गरीब मानसिकता के लोग एक बार की असफलता से इतने ज्यादा बौखला जाते है कि असफलता का सामना करना सीखने के बजाय  अपनी पूरी ज़िन्दगी आधे पेट और अधनंगे रहकर गुजार देते है जबकि अमीर मानसिकता के लोग असफलता की राख से फीनिक्स की तरह दुबारा ज़िंदा होते है,और नई ऊचाईयां हासिल करते है .
यहाँ समस्या असफलता नहीं है बल्कि अज्ञान  है - असफलता को मैनेज करने का अज्ञान. असफलता से पैदा होने  वाली टूटन,निराशा,हताशा,आलोचना आदि नकारात्मक  भावों को मैनेज करने का अज्ञान .ध्यान रखे खतरनाक वो नहीं होता जिसे आप जानते है बल्कि वो होता है जिसे आप नहीं जानते .



 - सुबोध 
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69. सही या गलत -निर्णय आपका !



जिसमे जितनी कम वित्तीय बुद्धि होती है उसे पैसा बनाने के लिए उतने ही ज्यादा पैसे की जरूरत होती है,और जिसकी वित्तीय बुद्धि जितनी ज्यादा होती है उसे पैसा बनाने के लिए उसी अनुपात में कम पैसे की जरूरत होती है.
 
-सुबोध
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68. सही या गलत -निर्णय आपका !

गरीब वो बनता है जो उसे ज़िन्दगी बनाती है  जबकि अमीर अपनी ज़िन्दगी खुद बनाता है .सिर्फ एक शब्द दोनों की पूरी ज़िन्दगी बदल देता है और वो शब्द है ज़िम्मेदारी .गरीब अपनी ज़िन्दगी बनाने की जिम्मेदारी दूसरों पर छोड़ता है उन दूसरों पर जिन्हे उसकी खासियतों  , कमजोरियों का पूरी तरह इल्म नहीं होता. वे लोग अपनी खासियतों , कमजोरियों और सपनों  को मद्देनज़र रख कर प्लानिंग करते है और गरीब मानसिकता ग्रस्त व्यक्ति सिर्फ कठपुतली की तरह (डेमो पीस) उनकी प्लानिंग पर काम करता है यानि मस्तिष्क किसी और का , शरीर किसी और का - नतीजा एक प्रॉपर कॉम्बिनेशन के अभाव में असफलता. (कितने बच्चे डॉक्टर ,वकील,सी.ए., आई .ए.अस . वगैरह नहीं बन पाते क्योंकि मस्तिष्क/सपना उनका नहीं किसी मोटिवेटर का होता है वो तो सिर्फ बलि के बकरे होते है ! त्याग की प्रतिमूर्ति होते है !! )  जबकि अमीर अपनी ज़िन्दगी बनाने की ज़िम्मेदारी खुद लेता है- अपनी कमजोरियों और खासियतों को पूरी तरह समझते हुए . ध्यान रखें आप आज जो कुछ भी है उसकी वजह आप है सिर्फ आप और कल जो कुछ भी होंगे उसकी वजह भी आप ही होंगे.
-सुबोध

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67. सही या गलत -निर्णय आपका !

बीज को अगर संदूक में रखा जायेगा तो या तो सड़ जायेगा या गल जायेगा .अगर वही बीज उचित मिटटी, खाद,हवा,पानी,धूप के संपर्क में आएगा तो अंकुरित होगा,पौधा बनेगा पेड़ बनेगा और फल देगा. यह आप पर है कि आप बीज का क्या करते है . यह इंसान की खुशनसीबी है कि ऊपरवाले  ने हर इंसान को बीज दिए है .मेरा बीज से तात्पर्य विचार से है .अपने विचारों में भविष्य की संभावनाएं तलाशिये - उनमें सुधार कीजिये और उन्हें जमीन पर उतारिये- ध्यान रखें विचार पर किसी भी जात का, धर्म का ,शिक्षा का,उम्र का,रंग का,वर्ग का आधिपत्य नहीं होता .अमीर मानसिकता और गरीब मानसिकता में फर्क यही होता है कि अमीर मानसिकता विचार को कार्यरूप में परिणित करती है जबकि गरीब मानसिकता  "बराबर प्लान कर रहा हूँ ","विचार में सुधार कर कर रहा हूँ ","संभावनाएं पूरी तरह खंगाल रहा हूँ" ,"इस बारे में पूरी स्टडी कर रहा हूँ","तैयारी कर रहा हूँ" कहता रहता है .यहाँ तक कि उस विचार की उपयोगिता ही ख़त्म हो जाती है .
-सुबोध


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66. सही या गलत -निर्णय आपका !

वो गरीब होता है जिसे सारे सवालों के जवाब आते है यानि उसे लगता है कि उसे सब कुछ पता है और वो नया जानना,सीखना छोड़ देता है.यह ज्ञान के प्रति एक तरह का दुराग्रह होता है जो उन्हें ब्रह्माण्ड का केंद्रबिंदु बना देता है-इस भावना के साथ कि मुझसे ज्यादा इस विषय में कोई नहीं जानता , में सर्वज्ञ हूँ- घमंड की पराकाष्टा तक .  अमीर वो होता है जो हमेशा सवालों के नए जवाब ढूंढता रहता है और खुद को अपडेट करता रहता है .वो जानता है कि किसी भी सवाल के कई उत्तर होते है और कोई भी उत्तर आखिरी उत्तर नहीं होता है ,उत्तर हमेशा परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते है यानी वो हमेशा सीखता रहता है और बढ़ता रहता है .अमीर बनने के लिए व्यक्तित्व में हठधर्मिता की नहीं विनम्रता की जरूरत होती है .
-सुबोध

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65.
सपने छोटे क्यों ?

छोटी सोच वाले
छोटे सपने देखते है
और सिर्फ देखते है.......
-
बड़े सपने देखने पर
शुभचिंतक हो जाते है दहशतज़दा
वे ढूंढते है
बड़ी समस्याओं के लिए
छोटे-छोटे समाधान.
-
नहीं समझ पाते
कि सपने
देखने से नहीं
बल्कि पूरे होते है
सुव्यवस्थित प्रयास से ,
नहीं समझ पाते
कि वे इस किनारे पर है
दुसरे पर उनके सपने
और बीच में समस्याओं की नदी .
-
उन्हें सिर्फ बनाना है एक पुल
इस किनारे से उस किनारे तक
उन्हें पुल बनाने का
जुटाना है सामान
पैदा करनी है काबिलियत
उसके बाद
सपने उनके होंगे.
हाँ, जो भी देखे होंगे,
चाहे बड़े हो या छोटे.
तो छोटे क्यों ?
सुबोध- १४ मई,२०१४


 










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64. सही या गलत -निर्णय आपका !
जब भी आपके हाथ में पैसे आते है,आप उस पैसे के साथ क्या करते है ये निर्णय ही आपको अमीर या गरीब बनाता है .अमीर बिलम्ब से संतुष्टि पाने में यकीन करता है अगर उसे बड़ी ख़ुशी की सम्भावना नज़र आये तो ऐसी स्थिति में वो उस पैसे को खर्च करने की बजाय कही इन्वेस्ट करता है और अगर तत्काल उसे ऐसी कोई सम्भावना नज़र न आये तो उस पैसे को सेव करता है ,सम्भाल कर रखता है. जबकि गरीब  को तत्काल संतुष्टि चाहिए होती है,अपनी छोटी-छोटी खुशियों से उसे इतना प्यार होता है कि उन्हें पूरा करने के लिए वो अपनी बड़ी खुशियों को दांव पर लगा देता है. आपके पास हमेशा विकल्प होते है ,सही चुनाव  ही आपको अमीर या गरीब बनाता है .
- सुबोध
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63. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने के लिए आपके पास एक ठोस कारण  होना चाहिए जो आपमें इतनी आग पैदा कर सके कि आप मंज़िल पा सके . मंज़िल दूर नहीं है सिर्फ एक बेहतरीन प्लानिंग करकर शुरुआत भर करनी है, बाकि सब अपने आप होता जायेगा - आपका कारण,आपका सपना आपसे करवा लेगा . अगर आपके पास ऐसा कोई कारण नहीं है जो आपको अमीर बनने की  प्रेरणा दे सके तो आपको इतना बता दूँ  अमीर बनने में बहुत-बहुत ज्यादा मेहनत होती है , मंज़िल तक ले जाने वाली सड़क बहुत उबड़-खाबड़ है उसमें ढेरों गड्ढे है और सफलता की सम्भावना भी न के बराबर है. तो बेहतर है पहले एक कारण, एक सपना पैदा कीजिये जो आपको पागल कर सके ,जो आपके होश उड़ा सके , तब इस खेल में शामिल होइए.
-सुबोध
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62. सही या गलत -निर्णय आपका !

गरीबों को छत के हर कोने में छेद नज़र आते है  वे बहुत अच्छे शिकायती होते है ,आलोचक होते है ,उन्हें हर जगह कमी नज़र आती है सिवाय उस जगह के जहाँ उन्हें कमी नज़र आनी चाहिए . ध्यान रखें गरीबी एक मानसिकता है और दोषदर्शिता गरीब मानसिकता की पहचान है.अमीर दोषदर्शी नहीं होते,वे आगे बढ़कर जिम्मेदारी स्वीकारते है . वे जानते है कि सुधार तभी संभव है जब गलती की जिम्मेदारी ली जाती है .जबकि गरीब मानसिकता के लोग अपनी गलती को जायज़ ठहराने के लिए बहस करते है या बहाने बनाते है.
- सुबोध

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61. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर पैसे के लिए काम नहीं करते वे संपत्तियां बनाने के लिए काम करते है ,जिनसे उन्हें कैशफ्लो मिलता है . वे पूरी ज़िन्दगी अपने खर्चे के लिए कमाते रहने की बजाय ऐसी संपत्तियां खरीदते है जिनसे उन्हें ज़िन्दगी के खर्चे चलाने के लिए पैसे मिलते रहे.जबकि गरीब लोग संपत्ति बनाने के लिए मेहनत करने की बजाय ज़िन्दगी के खर्चे चलाने के लिए मेहनत करते है यानि गरीब लोग खुद मेहनत करते है जबकि अमीरों के लिए उनकी संपत्ति मेहनत करती है .
- सुबोध

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60. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर पैसे से मोहब्बत करते है, वे पैसा कैसे कमाया जाता है, बचाया जाता और बढ़ाया जाता है ये सीखने और समझने के लिए वक्त देते है , मेहनत करते है यानि फाइनेंसियल एजुकेशन सीखते है जो तीसरी तरह की शिक्षा पद्धति है .जबकि आम आदमी अमूनन पहली- अकादमिक एजुकेशन(साधारण पढाई-लिखाई) और दूसरी प्रोफेशनल एजुकेशन (व्यावसायिक शिक्षा - जैसे फर्नीचर बनाना, टाइपिंग सीखना वगैरह ) ही सीखता है वो फाइनेंसियल एजुकेशन के नाम पर पुराने ज़माने के कुंद पड़े हथियारों के बारे में जानकारी करता है -जैसे बैंक अफ/डी , आर/डी , सेविंग आदि . और मुद्रा स्फीति की बढ़ती दर के ज़माने में अधूरी जानकारी की वजह से वो अपनी पूँजी को फांसी का फंदा पहनाता रहता है. अमीर बनना है तो फाइनेंसियल एजुकेशन सीखें .
सुबोध-
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Photo: 60. सही या गलत -निर्णय आपका !अमीर पैसे से मोहब्बत करते है, वे पैसा कैसे कमाया जाता है, बचाया जाता और बढ़ाया जाता है ये सीखने और समझने के लिए वक्त देते है , मेहनत करते है यानि फाइनेंसियल एजुकेशन सीखते है जो तीसरी तरह की शिक्षा पद्धति है  .जबकि आम आदमी अमूनन पहली- अकादमिक एजुकेशन(साधारण पढाई-लिखाई) और दूसरी प्रोफेशनल एजुकेशन (व्यावसायिक शिक्षा - जैसे फर्नीचर बनाना, टाइपिंग सीखना वगैरह  ) ही सीखता है वो फाइनेंसियल एजुकेशन के नाम पर पुराने ज़माने के कुंद पड़े हथियारों के बारे में जानकारी करता है  -जैसे बैंक अफ/डी  , आर/डी , सेविंग  आदि . और मुद्रा स्फीति की बढ़ती दर के ज़माने में अधूरी जानकारी की वजह से वो अपनी पूँजी को फांसी का फंदा पहनाता रहता  है.  अमीर बनना है तो फाइनेंसियल एजुकेशन सीखें . सुबोध-http://saralservices.com/

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59. सही या गलत -निर्णय आपका !

इनकम लेने के चार तरीके होते है-
१- एम्प्लोयी- नौकरी करना
२- सेल्फ एम्प्लोयी- कोई ऐसा काम करना जिसमे आप किसी दूसरे के यहाँ नौकरी करने की बजाय खुद के लिए काम करते है अपने लिए आप सहायक भी रखते है और खुद भी काम करते है जिसमे आपको खुद को इन्वॉल्व होना पड़े वो बिज़नेस नहीं सेल्फ एम्प्लॉयमेंट है .
३- बिज़नेस - बिज़नेस में आप अलग अलग डिपार्टमेंट बनाते है उनके लिए समुचित स्टाफ रखते है , स्टाफ को मैनेज करने के लिए मैनेजर रखते है और मैनेजर्स को मैनेज करने के लिए जनरल मैनेजर , यानि बिजनेसमैन खुद साइड में हो जाता है ,सारे काम उसके लोग करते है.
४- इन्वेस्टमेंट- इसमें पैसा काम करता है , अमीर लोग इन्वेस्टमेंट करकर छोड़ देते है ,जिससे उनको इनकम होती रहती है ,जैसे प्रॉपर्टी में पैसा लगा दिया ,भाड़ा आ रहा है - प्रॉपर्टी का दाम बढ़ रहा है या शेयर मार्किट में कोई स्टेक लेकर छोड़ दिया - जिससे डिविडेंड आ रहा है- शेयर के प्राइस बढ़ रहे है वगैरह ...
कोई भी व्यक्ति इनमें से एक,दो,तीन या चारों तरीके से इनकम ले सकता है ,यह उसकी काबिलियत और क्षमता पर निर्भर है
सुबोध
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Photo: 59. सही या गलत -निर्णय आपका !

इनकम लेने के चार तरीके होते है- 
१-  एम्प्लोयी- नौकरी करना 
२-  सेल्फ  एम्प्लोयी- कोई ऐसा काम करना जिसमे आप किसी दूसरे के यहाँ नौकरी करने की बजाय खुद के लिए काम करते है  अपने लिए आप सहायक भी रखते है और खुद भी काम करते है जिसमे आपको खुद को इन्वॉल्व होना पड़े वो बिज़नेस नहीं सेल्फ एम्प्लॉयमेंट है .
३- बिज़नेस - बिज़नेस में आप अलग अलग डिपार्टमेंट बनाते है उनके लिए समुचित स्टाफ रखते है , स्टाफ  को मैनेज करने के लिए मैनेजर रखते है और मैनेजर्स  को मैनेज करने के लिए जनरल मैनेजर , यानि बिजनेसमैन खुद साइड में  हो जाता है ,सारे काम उसके लोग करते है.
४- इन्वेस्टमेंट- इसमें पैसा काम करता है , अमीर लोग इन्वेस्टमेंट करकर छोड़ देते है ,जिससे उनको इनकम होती रहती है ,जैसे प्रॉपर्टी में पैसा लगा दिया ,भाड़ा आ रहा है - प्रॉपर्टी का दाम बढ़ रहा है या शेयर मार्किट में कोई स्टेक  लेकर छोड़ दिया - जिससे डिविडेंड आ रहा है- शेयर के प्राइस बढ़ रहे है वगैरह ...
कोई भी व्यक्ति इनमें से एक,दो,तीन या चारों तरीके से इनकम ले सकता है ,यह उसकी काबिलियत और क्षमता पर  निर्भर है 
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गलतियाँ पूर्ण बनाती है

इंसान होगा तो
कर्म करेगा ,
भेजा है
कर्म करने के लिए
ख़ुदा ने उसे.
और गलतियाँ होती है
कर्म करने वालों से
न कि मुर्दों से .
-
देखते है
आधी-अधूरी सोच वाले
किसने , कितनी गलतियाँ की
और पीटते है माथा
कोसने की शक्ल में
-
लेकिन ख़ुदा
ये देखता है
कि बजाय बहाने बनाने के
किसने स्वीकारी जिम्मेदारी.....
और वो ये देखता है
कि किसने , कितना सीखा
अपनी गलतियों से .
क्योंकि वो जानता है
मैंने इंसान को
पूर्ण बनाकर नहीं भेजा है
बल्कि भेजा है पूर्ण बनने के लिए..

सुबोध १२ मई,२०१४

Photo: गलतियाँ पूर्ण बनाती है

इंसान होगा तो
कर्म करेगा ,
भेजा है
कर्म करने के लिए
ख़ुदा ने उसे.
और गलतियाँ होती है
कर्म करने वालों से
न कि मुर्दों से .
-
देखते है
आधी-अधूरी सोच वाले
किसने , कितनी गलतियाँ की
और पीटते है माथा
कोसने की शक्ल में
-
लेकिन ख़ुदा
ये देखता है
कि बजाय बहाने बनाने के
किसने स्वीकारी जिम्मेदारी.....
और वो ये देखता है
कि किसने , कितना सीखा
अपनी गलतियों से .
क्योंकि वो जानता है
मैंने इंसान को
पूर्ण बनाकर नहीं भेजा है
बल्कि भेजा है पूर्ण बनने के लिए..

सुबोध १२ मई,२०१४

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57. सही या गलत -निर्णय आपका !

विचारों की गहराई में जाकर ये बात समझे कि अमीर की अमीरी पैसे में नहीं खाली समय में होती है .वे जिस पर चाहे उस पर समय खर्च कर सकते है क्योंकि उनकी अधिकतर आमदनी रेजिड्यूअल होती है . और समय का खालीपन ही उन्हें नया सोचने ,समझने और करने की छूट देता है ,जिससे नए आय के स्त्रोत बनते है जिसे आधी तस्वीर देखने वाले लोग कहते है कि पैसे से पैसा बनता है जबकि ये उपलब्धि सिर्फ पैसे की नहीं खाली समय की भी होती है .जबकि आम आदमी रोज़ी-रोटी कमाने में ही उलझा रहता है क्योंकि उसकी सारी कमाई लीनियर होती है. अमीर बनने के लिए रेजिड्यूअल आमदनी के स्त्रोत बनाये.
-सुबोध
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56. सही या गलत -निर्णय आपका !

आमदनी दो तरह की होती है .एक वो कमाई होती है जिसके लिए आप एक बार बहुत-बहुत-बहुत जमकर मेहनत करते है और फिर उससे नियमित तौर पर महीनों ,सालों तक पैसा पाते रहते हैं , ऐसी कमाई को रेजिड्यूअल इनकम (लगातार मिलने वाली) कहते है जैसे आपने कोई बुक लिखी हो , कोई आविष्कार किया हो ,कोई बिज़नेस बनाया हो. दूसरी आमदनी लीनियर इनकम (एक बार मिलने वाली ) होती है जिसे कमाने के लिए आपको हर बार मेहनत करनी होती हैं , जैसे आप नौकरी कर रहे हो , या वकील हो ,डॉक्टर हो .ज़ाहिर सी बात है दोनों इनकम ग्रुप की अपनी-अपनी कमियाँ और खासियतें है . अमीरों की अधिकतर कमाई रेजिड्यूअल होती है .
सुबोध
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55. सही या गलत -निर्णय आपका !

आप जिस भी क्षेत्र में है उस क्षेत्र में जो कुछ भी नए बदलाव हो रहे है उन बदलावों की जानकारी रखें और खुद को उन बदलावों के अनुसार तैयार करें , दुनिया में इतने ज्यादा बदलाव हो रहे है कि अगर आप उनके अनुसार नहीं बदले तो अमीर बनना तो बहुत दूर की बात है , जल्द ही आपको अपने स्तर को कायम रख पाना मुश्किल हो जायेगा . अमीर लोगों की सबसे बड़ी खासियत यही होती है कि विभिन्न माध्यमों से वे अपने क्षेत्र की तकरीबन पूरी जानकारी रखते है और वक्त ज़रुरत बदलाव करते रहते है. वे खुद को अपडेट रखने के लिए हमेशा वक्त निकालते है क्योंकि उन्हें पता है मैंने आज जो खाली समय कमाया है ये अपडेटेशन की ही देन है.
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54. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने के लिए बदलाव लाएं . अब तक आपने जो किया है ,उसको दोहराने से अब तक जो मिला है उससे अलग परिणाम नहीं आएगा. अगर आपको कुछ अलग परिणाम चाहिए तो आपको कार्य भी अलग करने होंगें . आप दुनिया को तब तक नहीं बदल सकते जब तक आप के पास ऐसा कुछ नहीं है जिसके बिना उसका काम नहीं चले ( मोनोपोली टाइप कोई प्रोडक्ट,सर्विसेज ) . अगर आपके पास ऐसा कुछ नहीं है तो बेहतर है दुनिया की ज़रूरतों के अनुसार स्थितियों में बदलाव लाएं . अपनी नौकरी, अपने ग्राहक, अपने डीलर, अपने सहयोगियों, अपने कर्मचारियों को बदलना समस्या का समाधान नहीं है क्योंकि समस्या उनमें नहीं कहीं "और" है उस "और" की तलाश कीजिये और उसे बदलिये .
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ठहरा है मेरे कमरे में इन्द्रधनुष

मैंने लाने के लिए इन्द्रधनुष
पैदा की थी खुद में काबिलियत
कि मौजूद न रहे कोई वजह
इन्द्रधनुष न आने की.

सारे डर असफल होने के
छोड़ आया था उस कब्रगाह में
जहाँ दफन है अतीत मेरा
असफलता का .
और सफलता सिर्फ निर्भर थी
इस काबिलियत पर
कि असफलता के भय को
किस तरह करूँ प्रबंधित

मेरे कमरे में
इन्द्रधनुष लाया है
सुरमई उजाला
ईनाम के तौर पर
क्योंकि मेरी कोशिश का स्तर
उच्च था इतना
कि संभव ही नहीं था
असफल होना.

मैं क्यों डरूँ
इन्द्रधनुष और सुरमई उजाले के
मेरे कमरे में होने से ?
जानता हूँ मैं
इनकी वजह से
सौंपें जायेंगे मुझे कुछ
उत्तरदायित्व
जो हमेशा सौंपें जाते है
क्षमतावान को .

सुबोध ११ मई , २०१४


Photo: ठहरा है मेरे कमरे में इन्द्रधनुषमैंने लाने के लिए इन्द्रधनुषपैदा की थी खुद में काबिलियतकि मौजूद न रहे कोई वजहइन्द्रधनुष न आने की.सारे डर असफल होने केछोड़ आया था उस कब्रगाह मेंजहाँ दफन है अतीत मेराअसफलता का .और सफलता सिर्फ निर्भर थीइस काबिलियत परकि असफलता के भय कोकिस तरह करूँ प्रबंधितमेरे कमरे मेंइन्द्रधनुष लाया हैसुरमई उजालाईनाम के तौर परक्योंकि मेरी कोशिश का स्तरउच्च था इतनाकि संभव ही नहीं थाअसफल होना.मैं क्यों डरूँइन्द्रधनुष और सुरमई उजाले केमेरे कमरे में होने से ?जानता हूँ मैंइनकी वजह सेसौंपें जायेंगे मुझे कुछउत्तरदायित्वजो हमेशा सौंपें जाते हैक्षमतावान को .सुबोध ११ मई , २०१४



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52. सही या गलत -निर्णय आपका !

"बेईमान अमीर और ईमानदार गरीब " मुहावरा उन असफल लोगों द्वारा गढ़ा गया है जो अपनी गरीबी पर ईमानदारी का मुलम्मा चढ़ा कर खुद को संतुष्टि देना चाहते है . वास्तव में यह चरित्र का प्रश्न है, जो अमीर और गरीब दोनों का ही ईमानदार हो सकता है और बेईमान भी . असफल लोगों ने ,हारे हुए लोगों ने खुद को तसल्ली देने के लिए बहुत से ना- समझी भरे बयान गरीबी के समर्थन में और अमीरी के विरोध में गढ़ रखें है ( लोमड़ी के लिए अंगूर खट्टे होते है ) कृपया उनके बहकावे में ना आये . वे खुद अमीरी के मैदान से बाहर हो चुके है और आपको हारता हुआ नहीं देखना चाहते है -आपके तथाकथित शुभचिंतक जो है !! . कृपया अपने सुव्यवस्थित प्रयास जारी रखे .हक़ीक़त में अमीरी अर्थ के क्षेत्र में सफलता का नाम है ,ठीक वैसे ही जैसे ग्रेजुएट होना शिक्षा के क्षेत्र में ,नेता बन जाना राजनीति के क्षेत्र में , मठाधीश बन जाना धर्म के क्षेत्र में सफलता का नाम है .

- सुबोध
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51. सही या गलत -निर्णय आपका !

बचपन से हमें गलतियों से बचने और एक सुरक्षित खेल खेलने को प्रोत्साहित किया जाता है यानि हमें भेड़ बनाने की कोशिश की जाती है . जबकि हमें नई चुनौतियों को स्वीकार करने और अपनी गलतियों से सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए .
दूसरों द्वारा की गई गलतियाँ एक रेफेरेंस बुक से अधिक नहीं होती क्योंकि जिन परिस्तिथियों में गलतियाँ की गई वो अलग थी ,गलती करने वाले की क्षमता,सोच,कार्य-पद्धिति ,तकनीक अलग थी.हम अमूनन अपने द्वारा की गई गलतियों से सीखते है ,गलतियाँ करने और उन गलतियों से सीखने के दौरान जो अनुभव होता है उस अनुभव का कोई जोड़ नहीं होता. अगर आप गलतिया नहीं कर रहे है तो आप निश्चित ही उस कम्फर्ट जोन में है जो तालाब के मेंढक का होता है.
अमीर बनने के लिए चुनौतियां स्वीकार कीजिये ,गलतियों को उपलब्धियों का हिस्सा मानिये."बनाना,बिगाड़ना,फिर से बनाना " प्रोसेस को आत्मसात कीजिये . भेड़ मत बनिये .

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50. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने के लिए ज़रूरी है कि आपको अपनी इच्छाओं पर काबू करना आना चाहिए . वे इच्छाएं ही होती है जो आपकी पूरी प्लानिंग को तहस-नहस कर देती है . इच्छाओं को काबू करने का मूल मंत्र ये है कि तत्काल कभी कोई चीज़ नहीं ख़रीदे ,कम से कम एक हफ्ते बाद ख़रीदे ,कृपया मेरा यकीन कीजिये 80 से 90 % तक आपको उस खरीददारी की ज़रुरत ही नहीं रहेगी. मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि आप अपनी इच्छाओं को मार दे - बल्कि ये कह रहा हूँ कि इच्छाओं और ज़रुरत में फर्क करना जाने. ज़रूरतें पूरी करें - इच्छाएं नहीं -क्योंकि इच्छाएं अनंत होती है ,जिनको तो अरबपति और खरबपति भी पूरी नहीं कर पाते .चूँकि वे इस बात को जानते है इसलिए उनको इच्छाओं को कंट्रोल करना भी आता है . आप शुरू से ही खुद में यह गुण विकसित करें और इस तरीके से जो भी पैसे बचे उस पैसे से मेहनत करवाएं ,जिससे कमाई का अतिरिक्त स्रोत तैयार हो .

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49. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने के लिए ज़रूरी है कि आप श्रेष्ठता को लक्ष्य बनाये - जिस भी व्यवसाय में हो . कार्य कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है .विचार छोटे या बड़े होते है, प्रयत्न छोटे या बड़े होते है. यह आप पर निर्भर है कि आप उस कार्य में अपनी कितनी ऊर्जा लगाकर उसे किस मुकाम तक पहुँचाते है .चाय बेचने वाले बच्चे ने एक ख़ूबसूरत खुली आँखों वाला सपना देखा ,ऊर्जावान सोच रखी, बेहतरीन कोशिशें की,श्रेष्ठता को अपना मूल मंत्र बनाया और नतीजा आपके सामने है वो आज भारत का प्रधान मंत्री है . लिहाजा आप जहाँ भी हो जैसे भी हो अपना श्रेष्ठ दीजिये.---

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48. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने के लिए आपको "बेचना " आना चाहिए. अपनी योग्यताएं बेचना , वस्तुएं बेचना,विचार बेचना ,सपने बेचना,हर वो चीज़ जो बिक सकती है, चाहे वो पानी हो, मिटटी हो ,हवा हो,आपको तर्क सहित बेचना आना चाहिए . आप बिना कुछ बेचे पैसे नहीं बना सकते .बेचना ही मुख्य कला है , जो आपको अमीरी तक ले जा सकती है .हर अमीर यह सच्चाई जानता है जबकि गरीब इसको हेय दृष्टि से देखता है .आप बेचने के लिए जो काबिलियत चाहिए -खुद में पैदा करे , अपनी मार्केटिंग करें,पैसा आप तक चलकर आएगा.

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47. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीरी के लिए हार्ड वर्क नहीं स्मार्ट वर्क करना चाहिए . हार्ड वर्क का अर्थ बिना किसी समुचित योजना के मेहनत करना है ,जबकि स्मार्ट वर्क का अर्थ एक उचित योजना के साथ कार्य करना है .चूँकि हार्ड वर्क में कार्य योजना बिखरी हुई होती है सो परिणाम अपेक्षा अनुरूप नहीं आते है जबकि स्मार्ट वर्क में योजना स्पष्ट एवं केंद्रित होती है सो परिणाम अपेक्षा के अनुसार आते है .दूसरा जो फर्क होता है पुराने और नए तौर -तरीकों के इस्तेमाल का होता है जैसे आपको 50 क्लाइंट्स को ईमेल भेजना है तो हार्ड वर्क में आप इन्हे अलग-अलग भेजेंगे जबकि स्मार्ट वर्क में आप C.C. करकर एक साथ ही 50 ईमेल भेज देंगे . जो भी नई टेक्नोलॉजी का सर्वोत्तम प्रयोग करता है वह स्मार्ट वर्क की श्रेणी में आता है.

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46. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर पहले से तैयारी करते रहते है,अवसर आता है , अवसर पहचानते है , अंदर घुस जाते है . गरीब मौज-मज़ा करता रहता है, अवसर आता है उसे समस्या लगता है ,जब दूसरे लोग पैसा बनाने लगते है तो उसका दिमाग खुलता है वो अंदर घुसने की तैयारी करता है और मज़े की बात ये कि तब तक अमीर पैसा बनाकर बाहर निकल रहा होता है. यानि जब तक उस व्यवसाय में सुनहरा समय होता है अमीर तब तक ही उस व्यवसाय में रहता है जब छोटी सोच वाले लोग ( जो बहुत ज्यादा सुरक्षित खेल खेलते है )उस व्यवसाय में घुसते है अमीर उस व्यवसाय से बाहर निकल जाता है इसकी मुख्या वजह ये होती है कि छोटी सोच वाले लोग इतना कम्पटीशन पैदा कर देते है कि मुनाफे के नाम पर कुछ खास नहीं बचता है .अगर आपको अमीर बनना है तो भेड़ मत बनिये /छोटी सोच वाले मत बनिये.पहले से तैयारी रखिये.

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45. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बरसों तक कड़ी मेहनत करते है ,अपनी ज़रूरते सीमित करते है, पाई-पाई बचाते है ,बचाये गए पैसे का निवेश करने के लिए रात रात भर जाग कर नई रणनीतियाँ तैयार करते है और उनकी मेहनत रंग लाती है,सफलता ऊँचे सुर में बोलने लगती है और लोग कहते है देखो इसे कहते है किस्मत !!!!!
ध्यान रखे रातों -रात कोई सफल नहीं होता है . सफलता एक पेड़ है और बीज से पेड़ बनने की पूरी प्रक्रिया होती है .
लिहाजा अब आगे से किसी अमीर की आलोचना करे या उसकी अमीरी को किस्मत का खेल माने तो उसकी नींव को जानने का भी प्रयास करें फिर शायद आप अपना विचार बदल लेवे. - उसकी अमीरी के लिए उसे इज़्ज़त देवे न कि आलोचना करे ,अगर अमीर बनना इतना आसान होता तो कोई गरीब क्यों होता ?

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44. सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरे पास अमूनन कमेंट आते है कि आदमी को मन से अमीर होना चाहिए .पैसा प्रेम जितना महत्त्वपूर्ण नहीं है ,सबसे बड़ी दौलत दोस्ती होती है ,परिवार का प्यार ही सच्ची अमीरी है वगैरह...
मेरे अनुसार यह तुलना ही बेमानी है यह तुलना बिलकुल वैसी ही है कि आपसे पूछा जाये आपके लिए हाथ महत्वपूर्ण है या पैर ?
आपके लिए यकीनन दोनों ही महत्वपूर्ण है .
पैसा उन क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण है जिनमें ये काम करता है ,और उन क्षेत्रों में बहुत महत्वहीन है जिनमें ये काम नहीं करता .हो सकता है आपकी अन्य भावनाओ से दुनिया चलती हो लेकिन उनसे आप किसी हॉस्पिटल का बिल नहीं चुका सकते,स्कूल की फीस नहीं भर सकते,रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकते.
अब भी आपको यकीन नहीं है तो अपनी इन भावनाओं की हकीकत समझने के लिए इनमे से किसी से एक बड़ी रकम उधार लीजिये और फिर उसे भूल जाइये ,जल्द ही आप को यकीन हो जायेगा कि पैसे के क्षेत्र में पैसा कितना महत्वपूर्ण है .

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43.
मत बेचो खुद को सस्ते में

मत बेचो खुद को
पूरी करने
सिर्फ अपनी दैनिक ज़रूरतें
निकलो सुविधा के खोल से बाहर
और वो तलाश करो
जो संभव है पाना
तुम्हारे लिए.

नियम है ज़िन्दगी का
इस से पाने का
जो तुम
प्रयास करोगे
देगी ये तुम्हे उतना ;
तुम पर है ये
क़ि तुम इस से
क्या लेते हो.
शर्त ये है क़ि
मज़दूरी तुम्हे नहीं
तुम्हारी काबिलियत को
दी जाती है.

सुबोध अप्रैल ३०,२०१४


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42.
आपकी वास्तविकता

बनाने के दौरान
आप सीखते है बर्बाद करना
और बर्बाद करने के दौरान
सबक सीखते है आप
अपनी गलतियों से
और बन जाते है इतने समझदार
कि दोहराव न हो गलतियों का .
और फिर बनाते है
बर्बाद हुए को नए सिरे से.

-
यह पूरा क्रिया-चक्र
बनाना
बर्बाद करना
और फिर से बनाना
बनाता है आपको संपूर्ण .
इस दौरान
जो बनते है आप
वही होती है
आपकी सच्ची वास्तविकता .

-
उसके बाद आने वाली
असफलताएँ
विचलित नहीं करती आपको
बल्कि
उत्साहित करती है
चुनौती की तरह .
क्योंकि आप जानते है
नए सिरे से बनाने की
पूरी प्रकिया को .

-
बनाते-बनाते आप
वह बन जाते है
जहाँ
सफलता
और
असफलता
महत्व नहीं रखती
क्योंकि
पहुँच जाते है आप
उस शिखर पर
जो आपकी
वास्तविकता है .

सुबोध अप्रैल ३०,२०१४


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41.
महत्वपूर्ण नहीं है बनना

महत्वपूर्ण नहीं है बनना
महत्वपूर्ण है करते करते बनना
फ़ासला
कोशिश करने
और होने के
दरमियाँ का
आपको सिखाता है बनना
जिसमे सीखते है आप
बनने वाली चीज़ों को सम्हालना.
बिना फ़ासला तय किये
पाई हुई दौलत
सम्हाली नहीं जा सकती
क्योंकि आप सिर्फ पैसे वाले बने है .
वो हुनर
जो सिखाता है सम्हालना
वो सीखा जाता है
उस वक़्त के दरमियान
फ़ासला तय करते - करते .
इसलिए
महत्वपूर्ण नहीं है बनना
महत्वपूर्ण है करते करते बनना.

सुबोध - अप्रैल ३०, २०१४


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गुरुमंत्र - सफलता का

सफलता
मिलती है
गुजरकर असफलताओं से.
जिनमे माद्दा नहीं
असफल होने का
वे डरपोक
क्या चखेंगे
स्वाद सफलता का ?
चाहिए सफलता के लिए
सबसे ज्यादा
असफल होने की हिम्मत ,
लेकर सबक
असफलता से
बैठने की नहीं
दुबारा कोशिश करने की हिम्मत ,
हर असफलता के साथ
एक नया पाठ पढ़ने की हिम्मत
तब तक
जब तक
असफल न हो जाये
असफलता.

सुबोध अगस्त २००५
 


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मंज़िल

मैं
थक गया हूँ
चलते-चलते,
बस..ये आखिरी मोड़
और आगे नहीं .
सोचता हूँ,
शायद जहाँ ये सड़क
ख़त्म होती है
और शुरू होता है
नया मोड़
वहीँ तक और चलना है मुझे .
बरसों चला हूँ
पसीने से लथपथ
थकान से चूर
गुजरा हूँ
अँधेरे रास्तों से
कई दफा सना हूँ
कीचड से
लेकिन
रूक नहीं पाया हूँ
हताशा के बाद भी
क्योंकि एक आशा
रूकने नहीं देती मुझे
शायद यही मोड़
आखिरी मोड़ हो
"जहाँ मुझे होना है."
एक सवाल
कचोटता है मुझे
क्या वो जगह
" जहाँ मुझे होना है."
आने के बाद भी
खुद को रोक पाऊंगा मैं ?
 


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38. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने का
पुराना तरीका है
ज्यादा मेहनत से
ज्यादा कमाई
आज का युग
ख़ारिज करता है
कई पुरानी धारणाओं की तरह
इसे भी .

आज का
अमीर बनने का
तरीका
न्यूनतम मेहनत के साथ
बेहतर कीमत पर
अधिकतम लोगों के लिए करना है

जैसे 40 -40 स्टूडेंट्स की
10 क्लासेज लेने वाला प्रोफेसर
1 सेटेलाइट क्लास देकर
700 स्टूडेंट्स को एक साथ पढ़ाता है
और ढेरों गुना ज्यादा कमाता है ,
पुराने तरीके से पढ़ाने वाले प्रोफेसर से ........

सुबोध- १८ मई, २०१४
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37. सही या गलत -निर्णय आपका !

यह बात अच्छे से समझ लेवे कि अपनी अमीरी या गरीबी के लिए आप और सिर्फ आप ही जिम्मेदार है ,अमीर होने के लिए अलग काबिलियत चाहिए और गरीब होने के लिए अलग .
ये आप पर है कि आप क्या चुनते है .हाँ ,ज़िन्दगी का वादा है अमीर से भी और गरीब से भी कि मैं चुनौतीपूर्ण हूँ और रहूंगी .
तो जब दोनों ही स्थितियों में चुनौतियों का सामना करना है तो क्यों न अमीरी का चुनाव किया जाये.

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36. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने के लिए ज़रूरी है कि अपने निर्णय स्वयं ले,निर्णय लेने से पहले सलाह-मशविरा चाहे जितने लोगो से करें लेकिन निर्णय दूसरों के भरोसे नहीं छोड़े.
दुसरे आपके लिए उतना कुछ नहीं कर पाएंगे जितना आप खुद के लिए कर पाएंगे क्योंकि आपकी अंदरुनी ताकत ,कमजोरी आप से बेहतर और कोई नहीं जान सकता . अगर आप स्वयं निर्णय लेंगे तो आप जिम्मेदारी महसूस करेंगे ,असफलता के लिए बहाने नहीं बनाएंगे. येन-केन-प्रकारेण सफल होना चाहेंगे .

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35. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने के लिए ज़रूरी है कि आप अध्ययन और प्रशिक्षण के कष्टकारी समय से बचने का प्रयास न करे .जब तक आप को पूरी शिक्षा नहीं मिलेगी पहली बात ये कि आप अमीर नहीं बन पाएंगे और दूसरी बात अगर किसी और की मेहरबानियों से आप अमीर बन भी गए तो उस अमीरी को बरकरार नहीं रख पायेगे .आप अध्ययन और प्रशिक्षण के दौरान ही "बनाना, बिगाड़ना , फिर से बनाना" सीखते है जो कि आपकी अमीरी को स्थायित्व प्रदान करता है यह सीखने की प्रक्रिया ताउम्र चलती है ..

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हारते वो हैं, जो मैदान छोड़ते हैं.

जब तक तुम मैदान में हो,
गिर रहे हो चाहे बार-बार,
हो गए हो थकान से चूर,
लेकिन न टेके हो घुटने ,
न किया हो समर्पण,
न मांगी हो जीत की भीख;
विश्वास करो , हारे नहीं हो तुम ..
क्योंकि हारते वो हैं ,जो मैदान छोड़ते हैं.

करो मेरा विश्वास
कि जिसने निर्माण किया है तुम्हारा,
नहीं है वो कोई सनकी- पागल
कि दौरा पड़ा अचानक ,
और उसने बना दिया तुम्हें.
बड़ी लगन से,बड़ी मेहनत से, बड़ी विद्वता से
निर्माण किया है उसने तुम्हारा,
एक अनोखे काम के लिए
और वो सिर्फ तुम्हीं कर सकते हो -
"हमेशा विजेता बनो"
सो मत मानो हार , मत छोड़ो मैदान
क्योंकि हारते वो हैं ,जो मैदान छोड़ते हैं.

उसने दिए है तुम्हें,
हार से बचने के लिए ढेरों हथियार ,
उठाओ उन्हें, करो उनका इस्तेमाल,
वरना पड़े -पड़े सड़ जायेंगें वे शस्त्रागार में.
उसने दिया है तुम्हें--
विचार का हथियार,
भावना का हथियार,
चुनाव का हथियार,
कर्म का हथियार,
और भी ढेरों हथियार,
जो अलग करते है तुम्हें जानवरों से,
बनाते हैं तुम्हें इंसान,

और तुम हो कि उसके सारे वरदान ठुकरा कर,
बनने चले हो इंसान से जानवर.
मत करो उसके वरदानों का अपमान,
मत मानो हार,मत छोडो मैदान
क्योंकि हारते वो हैं , जो मैदान छोड़ते हैं.

सुबोध


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33. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनना पार्क में टहलना जितना आसान नहीं है, अमीर बनने के लिए आपको कड़ी मेहनत सुव्यवस्थित प्लानिंग के साथ करनी पड़ती है और अपने आरामदेह क्षेत्र ( कम्फर्ट जोन ) त्याग करने पड़ते है ,जैसे आपके वीकेंड्स की प्लानिंग,आपके पसंदीदा शौक,दोस्तों के साथ गप्पबाज़ी वगैरह ....


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32. सही या गलत -निर्णय आपका !

 
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31. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीरों को हासिल सुख -सुविधा को छोड़कर क्या आप वो सब कुछ करने को तैयार है जो वे करते है तब तक जब तक आप अमीर नहीं बन जाते ?
क्या आप उनकी तरह सोचने को तैयार है ?
नए सिरे से सीखने को तैयार है ?
वीकेंड्स का मौज-मज़ा छोड़कर 18 घंटे सप्ताह के सातों दिन काम करने को तैयार है ?
अपने पसंदीदा टीवी शो,अपने पसंदीदा मैच, यार-दोस्त ,रिश्तेदारों से मिलना,गप्पबाज़ी करना क्या आप तब तक छोड़ सकते है जब तक अपना लक्ष्य न पा लेवे .
अगर आपके मन में जरा सी भी हिचक है तो आप अमीरी के प्रति समर्पित नहीं है बल्कि आप अमीरी के प्रयास के नाम पर अपने रिश्तेदारों को,अपने परिचितों को और अपने ज़मीर को धोखा दे रहे है.

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30. सही या गलत -निर्णय आपका !

अगर आपको अमीर बनना है तो जीवन में अपनी प्राथमिकता स्पष्ट करें , आपको पता होना चाहिए कि अमीर बनने के लिए क्या महत्वपूर्ण है ,उन्हें क्रमानुसार किसी कागज पर लिख लेवे और कार्य शुरू करें ,हर दिन अपने पिछले कार्य का मुल्यांकन करें ,जहाँ सुधार की ज़रुरत लगे अपनी योजना को दुरुस्त करें , और इसे तब तक अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लेवे जब तक आप अमीर न बन जाए.

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29. सही या गलत -निर्णय आपका !

अगर आपको अमीर बनना है तो आपको पता होना चाहिए संपत्ति और दायित्व का फर्क . संपत्ति वो होती है जो आपके लिए कुछ कमाई करती है और दायित्व वो होता है जो आपकी जेब से पैसा निकलवाता है . जब इसे बराबर समझ लेवे तो कोशिश ये करे कि आप संपत्तियां इकट्ठी करें न कि दायित्व .

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28. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने के लिए यह ज़रूरी है कि नकारात्मक भावो से स्वयं को दूर रखें ,हमेशा हर कार्य ,विचार,व्यक्ति,स्थिति के प्रति सकारात्मक रहें.अमीर / सफल व्यक्ति में ऐसा कुछ है जो आपमें नहीं है ,उस "क्यों" की तलाश सकारात्मक होकर ही हो सकती है.हो सकता है उसमे आपसे ज्यादा जोखिम लेने की क्षमता हो.चुनौती,मेहनत,व्यवहारिकता वगैरह किसी भी मामले में वह आपसे बेहतर हो सकता है. उसकी खूबियों को समझिये और खुद में विकसित कीजिये. आज नहीं तो कल आपके गुणों का मुल्यांकन होगा ...

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27. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने के लिए ज़रूरी है आप स्वयं को लगातार जाँचते रहे कि आप सही दिशा में जा रहे है.हमेशा 5Q का( क्या ,क्यों,कहाँ,कैसे,कब) सामना करते रहे जो कि आपको अपने लक्ष्य से भटकने नहीं देंगे.आपको जागरूक,रचनात्मक और स्वप्नद्रष्टा रखेंगे.

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26. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने के लिए एक अच्छे विचार को टटोलें . अगर उस विचार में दम है तो उस पर डटे रहिये वही विचार आपको अमीर बनवा देगा.बशर्ते आप तर्क सहित उस विचार को सही ठहरा सके और आपको उसे सही तरीके से लोगों तक पहुँचाना आता हो .अगर आपके विचार में दम है तो पैसे लगाने वाले आपको मिल जायेंगे . समस्या पैसे की उतनी नहीं होती जितनी एक अच्छे और नए विचार की . सोचना जारी रखे आपकी अमीरी का रास्ता आपकी बेहतर और नई सोच में है.

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25.
भाग्य खैरात नहीं देता

मैंने
पढ़ा
सोचा
समझा
अवसर देखा
सीखा
किया
और तुमने
पढ़ा
सोचा
समझा
कठिनाईयाँ देखी
और छोड़ दिया.
अब तुम कहते हो
मुझे सफलता भाग्य से खैरात में मिली है.
क्या तुम नहीं जानते
मैंने चूमे है ढेरों मेंढक
पाने को राजकुमार
और तुम छुप गए कछुए के खोल में
बचाने को अपने होठों की खूबसूरती.
मेरे दोस्त !
सफलता भाग्य से मिलती है
लेकिन भाग्य खैरात नहीं देता
क्योंकि
सफलता और भाग्य दोनों
सतत प्रयासों का परिणाम है
जहाँ सिर्फ पड़ाव होते है
मंज़िल नहीं ...

सुबोध


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24. सही या गलत -निर्णय आपका !

एक रूपया बचाने का सीधा सा मतलब यह होता है कि एक रुपये की अतिरिक्त कमाई की है .यह साधारण सा तरीका कमाना ,बचाना और बचे हुए से अतिरिक्त आमदनी का स्रोत बनाना सिखाता है जो कि अमीर बनने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

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23. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने के लिए निहायत ज़रूरी है कि आपकी पैसा सम्हालने की नींव मज़बूत हो (अमूनन लोगों को पैसा कमाना आता है ,सम्हालना नहीं आता है )अगर आपने पैसा सम्हालना नहीं सीखा है तो आपके अमीर बनने की सम्भावना नहीं है.अमीरी की भव्य इमारत कमजोर नींव पर नहीं टिकी रह सकती .

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22. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनने के लिए आपको ऐसी मानसिकता अपनानी होगी जिसके अनुसार आपको असफल नहीं होना है , आपको विकल्परहित होना है . अगर आपके पास विकल्प है तो आप समर्पित नहीं हो पाते है और अमीर होने के लिए समर्पण निहायत ज़रूरी है .

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21. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीरी की ओर जो पहला कदम है उस कदम का है नाम शुरुआत करना . सही समय पर सही योजना के साथ की गई शुरुआत आपको शुन्य से शिखर पर पहुंचा सकती है .सबसे बड़ी हिचक शुरुआत करने को लेकर रहती है ,सब कुछ शुरू से ही बेहतरीन हो यह संभव नहीं है ,आप बस शुरू करें- एक ठीक-ठाक योजना के साथ .नए रास्ते चलते-चलते मिलते जायेंगे और तब आप बेहतर से बेहतरीन होते जायेंगे.

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20. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर अपनी ज़रुरत के आधार पर चीज़ें खरीदता है जबकि गरीब ,मध्यमवर्गीय अपनी इच्छाओं के आधार पर .जहाँ आधार इच्छाएं होती है ,जो कि अनंत होती है वहां पैसा जोड़ना मुमकिन नहीं होता ,जबकि अमीरी की पहली सीढ़ी पैसा जोड़ना है .अपनी इच्छाओं को ज़रूरतों पर हावी न होने दे आपके लिए अमीरी के दरवाज़े खुलने शुरू हो जाएंगे.

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19. सही या गलत -निर्णय आपका !

गरीब और मध्यमवर्गीय लोग ऐशोआराम की चीज़ें सबसे पहले खरीदते है .वे ऐसा करके अमीर बनने का दिखावा करते है जो कि क़र्ज़ की अमीरी होती है.अमीर लोग पहले कमाते है फिर ऐसी चीज़ें खरीदने के बारे में सोचते है.

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18. सही या गलत -निर्णय आपका !

गरीब वो व्यक्ति है जिसके पास सपना नहीं है , अमीर बनने का सपना .जिनके पास ऐसे सपने पूरे करने की कोई योजना नहीं होती वो भी गरीब ही है. जिनके पास सपने है,योजना है लेकिन हौंसला नहीं है वो भी गरीब ही होता है.अमीर बनने के लिए एकाग्रता,साहस,ज्ञान,विशेषज्ञता ,संपूर्ण प्रयास ,कभी हार न मानने का नजरिया और अमीरों वाली मानसिकता की ज़रुरत होती है.

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17. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर बनना उतना मुश्किल नहीं है जितना ये सोचना कि मैं अमीर बन सकता हूँ क्योंकि आप जब भी ऐसा सोचते हो अपनी संघर्ष क्षमता को मुश्किलों के मुकाबले कम आंकते हो और यही वो वजह होती है कि आप उस रास्ते से पीछे हट जाते हो जो अमीरी तक ले जाता है.

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16. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीरी हमेशा तूफानों से गुजरकर ही मिलती है जिसे बरकरार रखने के लिए हमेशा तूफानों का सामना करते रहना पड़ता है .

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15. सही या गलत -निर्णय आपका !

राय लेते वक्त सावधान रहे कि राय किस से ले रहे है .ज्यादातर लोग अमीर नहीं है सो अगर आप उनसे राय ले रहे है तो वे कुछ अपने साथ गुजरे हादसात और कुछ सुनी -सुनायी बातों के आधार पर आपको अमीर न बनने की राय देंगे .

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 14. सही या गलत -निर्णय आपका !

पैसे बनाने के मौके हमेशा मौजूद रहते है . जो ये कहते है कि अब पहले जैसे मौके नहीं है वे अक्सर हारे हुए लोग होते है .

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13. सही या गलत -निर्णय आपका !

तुम्हारी गरीबी की सबसे बड़ी वजह ये है कि अमीर बनने के नियमों का तुम समुचित पालन नहीं कर रहे हो,और जब तक तुम उन नियमों का पालन नहीं करोगे तुम गरीब ही रहोगे.

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12. सही या गलत -निर्णय आपका !

उन लोगों से पैसे के बारे में बात करना सिरदर्द के अलावा कुछ भी नहीं है जिन्हे पैसे की कोई वास्तविक समझ ही नहीं है. जो पैसे के लिए बुराई की जड़,हाथ का मैल,पाप की कमाई जैसे विशेषणों का इस्तेमाल करे तो आप चौकन्ने हो जाये ,आपके सामने एक ऐसा शख्स है जिसे पैसे की बुनियादी समझ नहीं है.

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11. सही या गलत -निर्णय आपका !

"पैसा हाथ का मैल है"यह शब्द कोई भी अमीर इस्तेमाल नहीं करता क्योंकि उसे पता है यह हाथ का मैल नहीं है बल्कि उसकी जी-तोड़ मेहनत का नतीजा है, इस तरह के शब्द या तो गरीब इस्तेमाल करते है या जिन्होंने खुद पैसा नहीं कमाया होता है वे इस्तेमाल करते है .

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10. सही या गलत -निर्णय आपका !

अगर पैसा आपके लिए महत्वपूर्ण है तो आप पैसे को पा सकते है ,अगर पैसा आप के लिए महत्वपूर्ण नहीं है तो आप गरीब है और गरीब ही रहेंगे . जो आपके लिए महत्व नहीं रखती ऐसी कोई भी चीज़/वस्तु/सम्बन्ध आपके पास नहीं रहते यकीन न हो तो अपने किसी प्रियजन को कहकर देखिये कि मेरे लिए तुम्हारा कोई महत्व नहीं है .

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9. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीरी का राज अपनी समस्या से ज्यादा बड़े होना है और गरीबी का राज अपनी समस्या से ज्यादा छोटे होना है .

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8. सही या गलत -निर्णय आपका !

पैसा आसमान से नहीं बरसता और नौकरी की गारंटी नहीं ,नौकरी लग गई तो छंटनी में आपका नम्बर नहीं आएगा ये ज़रूरी नहीं ,जितनी जल्दी इसे समझ ले उतना ही अच्छा है.

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7. सही या गलत -निर्णय आपका !

महत्वपूर्ण ये नहीं है कि आप कितना कमा रहे है बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि आप कितना बचा रहे है और उस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि बचे हुए पैसों से आप कितना अतिरिक्त पैसा अर्जित कर पा रहे है .


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6. सही या गलत -निर्णय आपका !

पैसा बनाना महत्वपूर्ण है लेकिन पैसा सम्हालना उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण सम्हाले हुए पैसे को दिन दूना रात चौगुना बढ़ते देखना है .और तीनों ही स्तिथियों में अलग-अलग काबिलियत की जरूरत होती है .

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5. सही या गलत -निर्णय आपका !

जो काबिलियत पैसा बनाने में चाहिए पैसा सम्हालने में उससे अलग काबिलियत की ज़रुरत होती है .

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4. सही या गलत -निर्णय आपका !

ज्यादातर लोगों के पास न पैसे बनाने की क्षमता होती है और न सम्हालने की .
कुछ लोगों के पास पैसे बनाने की क्षमता होती है लेकिन उन्हें पैसे सम्हालने नहीं आते .
बहुत कम लोगों को पैसा बनाना भी आता है और सम्हालना भी .
आप किस वर्ग में है ?


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3. सही या गलत -निर्णय आपका !

पैसा किसी भी व्यक्ति से रंग,शिक्षा,जाति,धर्म,आर्थिक हैसियत के आधार पर कोई पक्षपात नहीं करता .
यह सबको खुली चुनौती देता है कि आओ मुझे हासिल करो ......
अगर कोई कहता है 'मुझे दौलत चाहिए' तो उसे अपनी काबिलियत साबित करनी होगी और अगर कोई कहता है 'मुझे दौलत नहीं चाहिए' तो ज़ाहिर सी बात है ये उसको मिलेगी.भी नहीं .
पुरानी कहावत है काबिल आदमी इसे हासिल करता है और नाकाबिल बहाने बनाता है .


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2. सही या गलत -निर्णय आपका !

पैसे का बहाव बरकरार रखने या पैसे का रिसाव रोकने के लिए सवालों का सामना कीजिये
सबसे अच्छे दोस्त वो सवाल होते है जो आपको मुश्किलों में डालते है
क्या
क्यों
कब
कैसे
कहाँ
……. ?
…….?
सवाल जो भी हो उत्तरों में ईमानदार रहिये ,आपकी समस्या के समाधान के रास्ते आपको नज़र आने लगेंगे.


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1. सही या गलत -निर्णय आपका !

कहते है पैसा चलायमान होता है .
सवाल ये है कि ये आपके पास चलकर आ रहा है या आपके पास से चलकर जा रहा है.
चुनौती ये है कि अगर चलकर आ रहा है तो इस आवक को बरक़रार कैसे रखा जाये और अगर आपके पास से चलकर जा रहा है तो इसे कैसे रोका जाये .
इस संसार में पाने वाले भी बहुत है और खोने वाले भी .
आप किस वर्ग में आते है ?

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