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Sunday, August 31, 2014

121 . सही या गलत -निर्णय आपका !

हम  दो पहलुओं वाली दुनिया में रहते है  - सिक्के की तरह दो पह्लु  -अंदर और बाहर, ऊपर और नीचे , दायाँ और बायाँ, प्रकाश और अँधकार , सर्दी और गर्मी .

जैसाकि  मैंने  अपनी पुरानी पोस्ट 52  में बताया था "पैसा होना वित्त के क्षेत्र में सफलता का प्रतीक है ." इस सफलता के भी दो पहलु होते है - आतंरिक और बाहरी.  

आंतरिक पह्लु   को कई तत्व तय करते है जिनमे महत्वपूर्ण आपकी कंडीशनिंग, आपका चरित्र , आपकी सोच ,आपका विश्वास , आपकी लगन  है .

बाहरी पह्लु को तय करने वाले  तत्वों में आपका व्यावसायिक ज्ञान , कार्य कुशलता , व्यवहारिकता , धन का प्रबंधन  आदि शामिल है .

जो दिखता है लोग उसे ही सच मानते है . लोग किसी पेड़ के फल को महत्त्वपूर्ण मानते है  जबकि महत्त्वपूर्ण जड़े होती है ,फल तो जड़ों की मजबूती,जड़ों की ताकत ,जड़ों के स्वास्थ्य   का परिणाम भर है .

बाहरी तत्वों की मजबूती महत्त्वपूर्ण है ,लेकिन अंदरूनी तत्वों की मजबूती उस से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है .कमजोर जड़ो से अच्छे फल की उम्मीद करना दिवास्वप्न के अतिरिक्त कुछ नहीं है .
आपने गौर किया होगा कुछ लोगों के पास ढेर सारा पैसा आ जाता है लेकिन सारा पैसा जल्दी ही ख़त्म भी हो जाता  है . कुछ लोगों के पास बड़े अच्छे अवसर होते है, वे एक धमाकेदार शुरूआत करते है लेकिन जल्दी ही चुके  हुए में शामिल हो जाते है .क्या आपने कभी इसका विश्लेषण करने का प्रयास किया ,अगर नहीं किया है तो हर असफलता के मूल तत्व तक पहुँचने का प्रयास करें , आप बहुत कुछ नया पाएंगे नया सीखेंगे !!!!
- सुबोध
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Saturday, August 30, 2014

120 . सही या गलत -निर्णय आपका !

हर व्यक्ति की एक क्षमता होती है ,उसी क्षमता के अनुसार वो कार्य कर पाता है ,उसी क्षमता के अनुसार वो जीवन के हर क्षेत्र में प्रदर्शन कर पाता है , करता है .
जैसे आप जिम जाते है ,कितनी वर्जिश कर पाते है ये आपकी क्षमता पर निर्भर करता है , कितना आप वजन उठा सकते है, कितना रन कर सकते है , कितना आप खा सकते है , कितना आप गा सकते है, कितना हंस सकते है ,कितना रो सकते है , कितना लिख सकते है, कितना पढ़ सकते है ये सब आपकी क्षमता पर निर्भर करता है  आपको शायद सुनकर झटका लगे कि पैसा सम्हालना भी आपकी क्षमता पर ही  निर्भर करता है .

  इस साधारण सी लगने वाली बात को ढंग से समझे , क्या दो लीटर क्षमता के बर्तन में दो लीटर से ज्यादा दूध आ सकता है ? अगर नहीं तो जितनी पैसा सम्हालने की क्षमता है उस से ज्यादा पैसा आने पर क्या होगा ? वही होगा जो दो लीटर के बर्तन में दो लीटर से ज्यादा दूध डालने पर होता है !!!


 एक लॉटरी विजेता जिसे लाखों की लॉटरी निकल आती है , एक स्पोर्ट्स चैंपियन जिसे लाखों का इनाम मिलता है अंततः कहाँ होते है ? इन पर किये गए बार-बार के शोध के बाद पता चलता है कि इनमे से अधिकांश अपनी पुरानी वित्तीय स्थिति में पहुँच गए - उस पुरानी वित्तीय स्थिति में ,जितनी उनकी वित्त को सम्हालने की क्षमता थी , जो उनका कम्फर्ट जोन था .


      लोगों के पास जितनी क्षमता होती है उसी के मुताबिक वे पैसा सम्हाल पाते  है ये वित्त के क्षेत्र में एक साधारण सा सिद्धांत है .  जो अपनी वर्त्तमान आर्थिक या वित्तीय स्थिति से खुश नहीं है उनके लिए खुशखबरी ये है कि इस क्षमता को प्रयास से बढ़ाया जा सकता है . आपकी लगातार की कोशिशे आपको आपके कम्फर्ट जोन से बाहर धकेलती है ,क्षमता के दायरे को बढाती है .

इस बात को समझने के बाद भी अगर आप ये कहते है कि "पैसा ज्यादा आये तो सही, हम सम्हाल लेंगे "तो मेरा जवाब होगा आप अभी भी समस्या को  दूरबीन के गलत सिरे से देख रहे है . समस्या ये नहीं कि पैसा कम आ रहा है बल्कि समस्या ये है कि आपकी क्षमता इतनी नहीं है  कि आप ज्यादा पैसे को सम्हाल सकें  . दो लीटर क्षमता वाले बर्तन में दो लीटर से ज्यादा दूध नहीं आ सकता ,अगर आपको दो लीटर से ज्यादा दूध चाहिए तो आपको अपना बर्तन बड़ा करना होगा . पैसे के मामले में भी यही सच है .
- सुबोध

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Friday, August 29, 2014

119 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                      पैसा  ज़िन्दगी का अहम हिस्सा होता है , जिसे नकारना संभव नहीं है . जो पैसे की अहमियत नकारने का प्रयास करते है वो सिर्फ शुतुरमुर्ग  हो सकते है और उनका इस आर्थिक युग में क़त्ल होना तय है .

                     जब आप पैसे का प्रबंध करना शुरू कर देते है तो आपके हाथ में स्वतः निर्णय लेने और उन्हें क्रियान्वित करने के अधिकार आ जाते है ,कल तक जो पैसा आपकी कंडीशनिंग ( पोस्ट 91,92 और 96 देखें) के अनुसार खुद कार्य कर रहा था वो अब आपकी प्लानिंग ( पोस्ट  112 ,114 ,115 ,116  ,117 और 118 ) के अनुसार कार्य करेगा . ध्यान रखें अधिकार हमेशा जिम्मेदारिया उठाने पर मिलते है तो इन अधिकारों का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए आपको स्वयं को सचेत और सक्रिय रखना पड़ेगा . जैसा कि मेरी पोस्ट 69  में  मैंने पैसे और वित्तीय बुद्धि के सम्बन्धो पर बताया था , जब आप अपने पैसे को प्रबंधित करने लगते है तो आप अपने कदम वित्तीय बुद्धि हासिल करने की तरफ बढ़ाने लगते है , जैसे-जैसे आप अपने पैसे को प्रबंधित करते जायेंगे आप निपुणता पाते जायेंगे .
 
         चूँकि अब आप के पास जीवन के हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग खाते है जिनमे आप निश्चित प्रतिशत के अनुसार बचा रहे है तो किसी भी क्षेत्र में आप कमजोर, अव्यवस्थित नहीं है , आपकी वित्तीय स्थिति धीरे-धीरे संतुलित ,सुव्यवस्थित होती जा रही है  जो आपको आत्मविश्वास दे रही है ,नई तरह की सफलता की ओर बढ़ा रही है ,आपके साथ-साथ आपका पैसा बोलने लगता है जो आपको आज  वित्तीय संतुलन दे रहा है और अगर आप खुद को व्यवस्थित रख पाते है तो अंततः वित्तीय स्वतंत्रता दिलाएगा. 


              जब आप संसार के सबसे जंगली घोड़े की सवारी करना सीख जाते है तो फिर  चाहे पहाड़ हो, मैदान हो या घाटियाँ आप हर जगह निर्भय हो जाते है ठीक यही बात पैसे के साथ लागू होती है.  जीवन में पैसे से  जंगली कुछ  नहीं हो सकता - जब ये होता है तो  इंसान पागल हो जाता  है और जब ये नहीं होता तो भी पागल हो जाता है अगर आपने इसे साधना सीख लिया तो आप संसार के उन  चंद सौभाग्यशाली  लोगों में होंगे जो जवानी के बाद बुढ़ापे में भी अपने परिवार के साथ हंसी-ख़ुशी से रहते है और जिनके  जीवन के सारे क्षेत्र हवा में बातें करते  है. अगर आपने इसे साधना नहीं सीखा है तो  आप संसार के उन अधिकांश दुर्भाग्यशाली लोगों में होंगे  जिन्हे जवानी के बाद बुढ़ापे में भी मजबूरी में काम करना  पड़ता है ,अपने  सम्मान को खोते हुए अपने परिवार के साथ रहना  पड़ता है  या वृद्धाश्रम में अपनी मौत का इंतज़ार  करना पड़ता है . ये आप पर है कि आप अपना शुमार चंद लोगों में करवाना चाहते है या अधिकांश लोगों में .
- सुबोध
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Thursday, August 28, 2014

118 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                        रोटी,कपडा और मकान  किसी व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताएं मानी जाती है . मैं इनमें  एक आवश्यकता और जोडूंगा और वो है संवाद की - कम्युनिकेशन की ,जिसने इंसान को इंसान बनाया, मानवीय बनाया. इन आवश्यकताओं के अलावा आपकी जो भी ज़रूरतें पोस्ट 112 ,114 ,115 ,116 एवं 117  में छुटी है वे सब आवश्यक खाते में जायेगी . इस खाते में आपको अपनी कमाई का 50 % प्रतिशत तक खर्च करना है .इस खाते के  बारें में इस पोस्ट में  मैं ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगा क्योंकि पोस्ट बहुत लम्बी हो जाएगी और शायद यही तो एक खाता है जो सबको व्यवस्थित करना आता है , इस व्यवस्थित से मेरा मतलब क़र्ज़ लेकर आवश्यकताएं पूरी करने से नहीं है .
                     जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट 114  में  आपको बताया था कि अपनी ज़रुरत के अनुसार आप किसी भी खाते में कम या ज्यादा कर सकते है ,हर खाते के रोल को, उपयोगिता को  मैंने संक्षेप में आपको बता दिया है ,ये रोल ,उपयोगिता अपनी ज़रुरत के अनुसार  आप डिटेल में जाकर समझे , पेपरवर्क करें ,फिर फाइनल करें कि किस खाते में कितना प्रतिशत आपने डालना है .
                      एक बात का ध्यान रखे अगर आप अपने लॉन की घास व्यवस्थित नहीं करते है तो वो बेतरतीब तरीके से बढ़कर आपकी लॉन की खूबसूरती बिगाड़ देती है यही बात पैसे को लेकर भी है ,अगर आप इसे व्यवस्थित,प्रबंधित  नहीं करेंगे तो ये आपकी ज़िन्दगी की ख़ूबसूरती को बिगाड़ देगा.  या तो आप इसे नियंत्रित करें  नहीं तो आपकी कंडीशनिंग के अनुसार यह आपको नियंत्रित कर लेगा .
                       हो सकता है कुछ लोगों को ये झंझट का काम लगे ,उन्हें लगे इन  सब से उनकी   स्वतंत्रता, उनकी आज़ादी  बाधित होगी,सीमित होगी - तो उनको मेरा जवाब है इस से आपकी आज़ादी बाधित नहीं होती बल्कि पैसे का सही तरीके से प्रबंध करने से आपको अंततः वित्तीय स्वतंत्रता मिल जाएगी जिस से आपको दुबारा मजबूरी में  काम करने की  ज़रुरत नहीं होगी- और मेरी नज़र में असली स्वतंत्रता , असली आज़ादी यही होती है .
- सुबोध
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Wednesday, August 27, 2014

117 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप  प्रसन्न  कब होते है ?
आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि ख़ुशी या तो पाने में होती है या देने में .
पाने का अर्थ उपभोग से भी है और संग्रह ( वस्तु का मालिकाना हक़ पाना ) से भी , और देने का अर्थ मदद करने से है, दान करने से है .
पाने वाले पक्ष से आप अच्छी तरह वाकिफ है मेरी पहले की पोस्ट्स में ढेरों बार इस पर लिखा जा चूका है लिहाजा उसके बारे में कुछ न लिख कर मैं दुसरे " देने " वाले पक्ष पर लिख रहा हूँ . देने में , मदद करने में एक संतुष्टि का भाव है . किसी बुजुर्ग महिला को आप सड़क पार करवाने के बाद संतुष्टि महसूस करते है ,ये देना है ,मदद करना है .इस से आपका आतंरिक संसार ( विचार, भावना एवं अध्यात्म का मिला जुला रूप ) संतुष्ट होता है , रिलैक्स्ड होता है ,एनेर्जिक होता है .
देने का भाव आपको मानवीयता के उस उच्च स्तर पर ले जाता है , जहाँ आप महामानव हो जाते है . किसी एनजीओ ,किसी चाइल्ड वेलफेयर , किसी अनाथालय को जब आप दान देते है तो आपकी भावनाएं आपको मजबूती देती है ,एक अजीब सी ताकत देती है .
  ध्यान रखे कोई भी व्यक्ति सिर्फ लेता नहीं है ,बदले में कुछ न कुछ आपको लौटाता है और ये उसका लौटाना ही आपका पुरुस्कार है - एक बच्चे को जब आप प्यार करते है ,उसके गाल पर हाथ फेरते है तो बदले में वो बच्चा आपको अपनी मुस्कान लौटाता है . हो सकता है आप भौतिकतावादी हो और आशीष ,शुभकामनाओ, मुस्कान  वगैरह की जुबान न समझते हो ,इनमेँ  यकीन न करते हो तो आप इतना समझ लेवे कि देने से  आपके अंतर को संतुष्टि मिलती है और संतुष्टि एक बेहतरीन उत्पादक टूल  होती है .
          रिश्तेदार,दोस्त,परिचित ज़िन्दगी में अपनी अहमियत रखते है उनके लिए दिल में हमेशा एक सॉफ्ट-कार्नर होता है अगर वे कभी  आपसे उधार लेते है ,मदद चाहते है ,सहायता चाहते है तो उन्हें मना कर पाना काफी तकलीफदेह होता है और अंदर से एक अजीब से गिल्ट का नकारात्मक  भाव पैदा करता है , इस अपराधबोध से बचने के लिए आपको व्यवस्थित होना चाहिए . अपनी कमाई में से हमेशा किसी अवांछित परिस्थिति के लिए बचा कर रखना चाहिए .
तो कुल मिलाकर कहना ये है कि अपनी कमाई का 10  %  आप दान और सहायता खाते में डालिये .
- सुबोध

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ये पोस्ट मेरी पोस्ट 112, 114, 115 ,116  का हिस्सा है , मेरी पुरानी या ताज़ा पोस्ट पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर जाएँ .

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Tuesday, August 26, 2014

116 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                  इंसान सम्पूर्णतावादी होता है , इसका मतलब क्या होता है ?
 

                 अगर आपके खाने में नमक न हो या मीठे में शक्कर न हो  ? आपकी ज़िन्दगी में सिर्फ कमाना ही हो खर्च करना न हो ? सिर्फ व्यस्तता हो मनोरंजन न हो ? क्या ये अधूरापन नहीं ? जब बात पैसे के प्रबंधन की आती है तो अमीर मानसिकता एक संतुलन बना कर चलती है . वह मनोरंजन खाते में 10 % डालती है . इस 10 % को उसे इसी महीने खर्च करना होता  है .
       
               एक तरफ तो ज्यादा से ज्यादा कमाने का ,  बचाने का लक्ष्य   है और दूसरी तरफ  10 % उड़ाने का.  इसका क्या अर्थ है ?यही सम्पूर्णतावादी होना है .

             पहली स्थिति में -आप अपने जीवन के एक हिस्से को लम्बे समय तक अधूरा रखते है तो या तो वो सो जायेगा या विद्रोह करेगा . एक आदमी बचत करता है ,कंजूसी करता है , खर्चो को टालता जाता है और और लम्बे समय तक ऐसा ही करता है तो ये उसकी आदत बन जाती है ऐसी स्थिति में उसके मस्तिष्क का पैसे को लेकर तार्किक और जिम्मेदार हिस्सा संतुष्ट हो जाता है लेकिन मस्तिष्क का दूसरा हिस्सा जो मनोरंजन प्रधान है , सुकून चाहता है , नियंत्रण मुक्त होना चाहता है उसका क्या ? पैसे बचाने के अनुशासन को लेकर एक दिन वो हिस्सा  परेशान हो जायेगा और बचाये हुए सारे पैसे अतार्किक तरीके से बर्बाद कर देगा या फिर वो मनोरंजन प्रधान हिस्सा हमेशा के लिए सो जायेगा - क्योंकि पैसा बचाना आदत जो हो गई है !!!
  
                     दूसरी स्थिति में -अगर आप  खर्च करेंगे ,खर्च करेंगे और खर्च करेंगे  तो कभी भी अमीर नहीं बन पाएंगे आपके मस्तिष्क का पैसे के लिए जिम्मेदार हिस्सा आपको अपराध बोध  करवाने लगेगा ,आप आनंद की चीज़ों में भी आनंद की बजाय तनाव महसूस करेंगे . और इस तनाव को दूर करने के लिए फिर से कुछ खर्च करेंगे जिससे और ज्यादा तनाव पैदा होगा , इस चक्र से निकलने का तरीका यही है कि आप पैसे का उचित प्रबंधन सीखें .
                    आपका ये मनोरंजन खाता आपके मस्तिष्क के आनंद वाले हिस्से को संतुष्ट करने के लिए है ,एनेर्जिक करने के लिए है , रिफ्रेश करने के लिए है , मनोरंजन करने के बाद जब ये काम पर लौटता है तो दुगनी गति से उत्पादक हो जाने के लिए है .

                   अमीर मानसिकता "या ये" अथवा "या ये " नहीं चुनती बल्कि दोनों एक साथ चुनती है क्योंकि वो सम्पूर्णतावादी होती है .

(यह पोस्ट मेरी पहले की पोस्ट 112,114  एवं 115 की कड़ी है - इसे बराबर समझने के लिए पूर्व की दोनों पोस्ट भी पढ़ें )

-सुबोध

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Monday, August 25, 2014

115 . सही या गलत -निर्णय आपका !

          अमूनन पढाई छोड़ने के बाद आम आदमी का शिक्षा से कोई ताल्लुक नहीं रह जाता , आम आदमी   इस बात को भूल जाता   है कि उनकी  असली संपत्ति उनका  दिमाग है जहाँ चुनाव की बात आती है ( पोस्ट 77  और 78  देखें ) तो वो  दिमाग की बजाय शरीर को प्राथमिकता देगा , शिक्षा की बजाय मनोरंजन को प्राथमिकता देगा .कोई अच्छा सेमिनार अटेंड करने की बजाय वो किसी थिएटर में मूवी देखेगा , अच्छे मोटिवेशनल ऑडियो सुनने की बजाय फ़िल्मी गाने सुनेगा , कोई बिज़नेस चैनल देखने की बजाय कोई एंटरटेनमेंट चैनल देखेगा , इसी तरह पढ़ने के मामले में वो वाहियात से जासूसी या सामाजिक नावेल या सड़कों पर मिलनेवाली तीसरे दर्जे की कोई मैगजीन पढ़ेगा ,अखबार में वो हत्या,बलात्कार,चोरी,डकैती जैसी  ख़बरें पढ़ेगा  बजाय कुछ गंभीर या अच्छा पढ़ने के .
  एक आम भारतीय अपने दिमाग को किसी तरह की अच्छी तरह खुराक देने की बजाय शरीर को बेहतरीन से बेहतरीन देता है असल में उसे अपनी असली एकलौती संपत्ति की अहमियत ही पता नहीं होती और उसे ये भी पता नहीं होता कि अमीरी या गरीबी भगवान की  दी हुई नहीं होती बल्कि ये व्यक्ति का खुद का चुनाव होता है जिसका दरवाज़ा "दिमाग" खोलता है .
  तो अपनी कमाई में से 10 %  शिक्षा खाते (  पोस्ट 114  देखें ) में डालिये और  बच्चो की शिक्षा के साथ - साथ खुद को शिक्षित कीजिये  , शिक्षा का महत्व समझिए , कोई अच्छी बुक खरीदिए कोई अच्छा सेमिनार अटेंड कीजिये ,अपने मतलब के विषय की कोई क्लास ज्वाइन  कीजिये , कोई अच्छा ऑडियो या वीडियो खरीदिए , कोई मोटिवेशनल मूवी देख कर आइये . और ये ध्यान रखियेगा कि शिक्षा का उम्र से कोई ताल्लुक नहीं होता , जितना ज्यादा आप पढ़ेंगे ,देखेंगे उतने ही ज्यादा नए तरीके से सोचना और समझना  सीखेंगे , कल तक आपने जो सीखा था वो पुराना हो गया है , सुचना क्रांति के युग में ( पोस्ट 71   देखें ) खुद को अपडेट जो नहीं रख पाते है वो या तो ख़त्म हो जाते है या पिछड़ जाते है .
- सुबोध
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Sunday, August 24, 2014

114 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                             गरीब मानसिकता के लोग ये सोचते है कि आमदनी ही सब कुछ है , वे मानते है कि अमीर वही हो सकता है जो ढेर सारा पैसा कमाता है , मेरा कहना ये है कि ये अमीरी  आमदनी का मामला न होकर पैसे के सुव्यवस्थित प्रबंधन का मामला है .अगर आप अलग-अलग खातों के अनुसार अपने पैसे को बाँट देते है और स्ट्रिक्टली फॉलो करते है  तो कम आमदनी के बावजूद आप आर्थिक दृष्टि से समपन्न और स्वतंत्र हो सकते है .
आइये इस बंटवारे को समझ लेवे
10 % वित्तीय स्वतंत्रता खाता
10  % दीर्धावधि  बचत खाता
10  % शिक्षा खाता
10  % मनोरंजन खाता
10  % दान खाता , सहायता खाता
50  % आवश्यक खाता
   जैसे ही आपके पास पैसे आते है सबसे पहले आप उसमे से 10 % वित्तीय स्वतंत्रता खाते में डालें (पोस्ट 112  देखें ) .  इसे निहायत ज़रूरी समझे - वित्तीय स्वतंत्रता के लिए इतना ज्यादा ज़रूरी  जितना आपके ज़िंदा रहने के लिए आपका  सांस लेना ज़रूरी है  (पोस्ट 108  देखें )
अब बाकी के बचे हुए पैसे को आप अपनी ज़रुरत के अनुसार दुबारा कम - ज्यादा कर सकते है , लेकिन ये करने से पहले बेहतर है इन खातों का रोल आप समझ लेवे .
          किसी भी खाते को ख़त्म न करें क्योंकि इंसान सम्पूर्णतावादी होता है , किसी एक हिस्से को अधूरा रख कर आप उस हिस्से की या तो  गलत कंडीशनिंग कर रहे होते है या खुद को अधूरा रख रहे होते है - अमीर मानसिकता सम्पूर्णतावादी होती है किसी भी क्षेत्र में खुद को अधूरा नहीं रखती और आपको भी यही करना है .

दीर्धावधि बचत खाते का रोल ये है कि आप अपने भविष्य में पड़ने वाले मोटे खर्चे के लिए थोड़ी-थोड़ी बचत करते जाते है और लगातार बचत करते -करते ये  बचत इतनी बड़ी बन जाती है कि निर्धारित  कार्य किया जा सके , जैसे आपने फ्रिज लेना है, एयर कंडीशनर लेना है ,गाड़ी लेनी है , मकान लेना है , बच्चो की शादी करनी है , इस तरह के भविष्य में आने वाले खर्चे इसी खाते से निकाले जायेंगे , इस खाते के लिए कोई भी प्रतिशत निर्धारित करने से पहले अपने भविष्य में किये जाने वाले खर्चे की रूप-रेखा पहले तैयार कर लेवे .जैसे आपने 2 साल बाद 3 लाख की गाड़ी लेनी है , 5  साल बाद  20  लाख का फ्लैट लेना है आपकी सैलरी 50  हज़ार रूपया महीना है,   आपकी सैलरी  कितनी बढ़ेगी और खरीदी जाने वाली वस्तुएं तब किस कीमत पर होगी इसका भी हिसाब लगाएं , फिर आपको खुद निर्धारित करना है कि सैलरी का कितना % दीर्धावधि  खाते में डालना है .
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Saturday, August 23, 2014

113 . सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर यु हीं अमीर नहीं होता ( ३ )

 

आसान नहीं है

दायरे को तोडना
जो आरामदायक  क्षेत्र (comfort zone) है तुम्हारा
तब्दिल हो गया है आदत में .
-
चाहत तुम्हारी अमीर बनने की
कुछ नहीं भिखारी स्तर के अतिरिक्त .

-
चुनाव तुम्हारा अमीर बनने का
शामिल किये है अपने में
शर्तों का पुलिंदा ,
बेहतर है चाहत से
लेकिन सर्वश्रेष्ठ नहीं
क्योंकि तुम्हारी शर्तें
सुरक्षा देगी आदतों को .

-
समर्पण तुम्हारा अमीर बनने का
बनाएगा तुम्हें अमीर
क्योंकि यहाँ तुम कर रहे हो वो सब
जो ज़रूरी है अमीर बनने के लिए.
त्याग सारे आरामदायक   क्षेत्र का
बिना रुके,बिना थके.
केंद्रित प्रयास,
ज़ज़्बा सब कुछ झोंक देने का,
विशेषज्ञता आत्मविश्वास से भरी,
मानसिकता अमीरों वाली,
कोई अगर,कोई मगर
कोई बहाना, कोई शायद नहीं .
सिर्फ समर्पण,
और समर्पण
और विकल्परहित समर्पण
ज़िन्दगी के आखिरी  लम्हों तक....


सुबोध- मई २९, २०१४ 

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Friday, August 22, 2014

112 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                      मेरी पोस्ट 103 .106 .107 .108 .109 .110 .111  में मैंने पैसे की बचत को लेकर विस्तार से लिखा है , इन सारी पोस्ट्स के बाद  सवाल ये आता है कि इस 10 % पैसे को मैनेज कैसे किया जाए . . आपकी सारी कमाई जो टैक्स कटने के बाद आपके घर में आती है सबसे पहले उस कमाई का 10 % आप अलग करें , उस पैसे के लिए आप एक अलग बैंक अकाउंट खोले . इस खाते का नाम आप वित्तीय स्वतंत्रता खाता रखे . यह खाता  सिर्फ निवेश करने और रेजिड्यूअल इनकम ( पोस्ट 56  देखें ) के श्रोत बनाने के लिए ही इस्तेमाल करना है , जब आप  निवेश और रेजिड्यूअल इनकम जैसे शब्दों से प्रायोगिक स्तर पर हकीकत में वाकिफ होते है ( पोस्ट 60  देखें ) सुचना के अलग अलग श्रोत से जुड़ते है - तो आप एक बिलकुल ही नई तरह की शब्दावली सीखते है .एक बिलकुल ही नया और विशाल कैनवास आपकी नज़रों के सामने होता है यहाँ आपको ठहरने और सीखने की ज़रुरत होगी खुद को संतुलित और व्यवस्थित करने की ज़रुरत होगी  ,ये ध्यान रखे आप संसार का सबसे कठिन काम करने जा रहे है - आप फाइनेंसियल एजुकेशन नामक तीसरी शिक्षा पद्धति सीखने जा रहे है -- खुद को बधाई दीजिये !!!!
                    कई तरह के फाइनेंसियल इंस्ट्रूमेंट्स होते है उन को जानिए, सीखिये, समझिए लेकिन खुद के लिए निष्ठुर मत बनिए , खुद को वक्त दीजिये .आपको एक प्रोसेस से ( पोस्ट 42 देखें ) गुजरना होगा जो कि प्रकृति का नियम है उसे नकारने का प्रयास न करें .
                         यह खाता आपके लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी होगा,जिसे आप हर महीने चेक कर सकते है इस अंडे का नाम रेजिड्यूअल इनकम( निष्क्रिय आमदनी ) है.  शर्त सिर्फ ये है कि आप अपनी ज़रुरत के लिए मुर्गी को  क़त्ल न करें . ये ध्यान रखें आपके अंदर अभी भी एक गरीब मानसिकता वाला कीटाणु जिन्दा है जो किसी भी विपरीत परिस्थिति में सबसे पहले अपनी बचत का इस्तेमाल करता है .
                           हर महीने इस खाते में  अपनी कमाई का 10 % जोड़ते रहिये और इस से पैदा होनेवाली   कमाई को भी इसीमे बढ़ाते रहिये ,आपने इस खाते को कभी इस्तेमाल नहीं करना है ,इस खाते में आपने निवेश करना है सिर्फ निवेश , अपने रिटायर होने तक आप इसमें निवेश करें .आप जब रिटायर  होगे तब इससे पैदा होने  वाली कमाई को आप इस्तेमाल कर सकते है उस स्थिति में भी आप मूल रकम को छूकर मुर्गी को कमजोर करने का प्रयास नहीं करेंगे क्योंकि कमजोर मुर्गी से कमजोर अंडे मिलते है. और इस तरह से पैसा हमेशा बढ़ता रहेगा और आपको कभी भी गरीबों वाली स्थिति से दो-चार नहीं होना पड़ेगा .
- सुबोध
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Thursday, August 21, 2014

111 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट  105 पर कुछ सवाल आये थे ,उसका जवाब--
मनीषजी , अंकुरजी 
1) मेरी पोस्ट 86 , 88 और 105 देखें ,समझे .
2) कोई भी काम सोचने और शुरू करने से पहले अपनी टीम से राय करें ,उससे डिस्कस करें .
 3) क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय करें उसकी कंसल्टेंसी चार्ज उसे देवे , आपके पसंदीदा क्षेत्र पर वो एक विस्तृत सर्वे करकर आपको जो प्रोजेक्ट रिपोर्ट देगा आप उसे बराबर समझे उसके साथ एक प्रॉपर डिस्कस करें एक-एक पॉइंट पर स्पष्टीकरण  ले तभी काम शुरू करें , मैं इसे बेवकूफी के अलावा कुछ नहीं मानता कि आप कोई भी ऐसा फील्ड चुन  लेवे जिसमे आपका कोई दोस्त ,आपका कोई रिश्तेदार पैसा बनाने में सफल हो गया . ये ध्यान रखें हर व्यक्ति की अपनी-अपनी अलग विशेषता होती है ,हो सकता है उनमे जो क्वालिटी है वो आपमें नहीं हो.हर क्षेत्र में सफलता के लिए अलग-अलग क्वालिटी की ज़रुरत होती है .
4) विशेषज्ञ से रिपोर्ट आने के बाद और उससे डिस्कस  करने के बाद आप अपने लिए एक टू डू लिस्ट  बनाये ,जिसमे आप अपने जिम्मे क्या रखेंगे और अपनी टीम के जिम्मे क्या ,इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार करें , जब ये रिपोर्ट बन जाए तब आप देखे क़ि आपके जिम्मे आये हुए काम आप सफलता पूर्वक कर पाएंगे और कर पाएंगे तो कितने प्रतिशत सफलता मिल पायेगी-- इस पॉइंट को बराबर समझे और पूरी ईमानदारी से इसका जवाब देवे , इस मोड़ पर आकर आपका अवचेतन मन आपको इशारा कर देगा कि ये प्रोजेक्ट आपको करना चाहिए या नहीं- अवचेतन मन की आवाज़ को बराबर समझे जो बेहतरीन तर्क आपके पास अपने प्रोजेक्ट को लेकर हो उन्हें सोचे समझे और तब निर्णय करें ,अगर निर्णय हाँ में हो तो अपनी टीम के साथ बैठे और डिटेल में उस से भी चर्चा करें , अगर निर्णय ना में हो तो अपनी जिम्मेदारियां भी उनके साथ डिस्कस करें हो सकता है आपकी टीम में वे जिम्मेदारियां कोई  उठाने को तैयार हो जाएँ - यानी पूरी तरह तसल्ली होने के बाद ही प्रोजेक्ट पर काम शुरू करें . ये ध्यान रखे पैसा बड़ी मुश्किल से इकठ्ठा होता है , और ज़िन्दगी आपको खुद को साबित करने का मौका दे रही है उसे हल्के में ना लेवे ,वैसे कहा ये भी जाता है कि ज़िन्दगी में  रिटेक नहीं होते . सो पैसे की कदर करते हुए ही कोई निर्णय लेवे .
5) आज परिवर्तन इतने ज्यादा हो रहे है उन्हें निगाह में रखे और तभी कोई लाइन चुने मेरी 71 नंबर की पोस्ट देखे , सोचे और समझे कि  कल के स्टार प्रोडक्ट्स आज अपनी अहमियत खो चुके है, क़ल तक सिंगल प्रोडक्ट सिंगल यूज़  का ज़माना था आज मल्टी टास्किंग प्रोडक्ट्स का ज़माना है , कल तक आम आदमी के हाथ में पहने जाने वाली घड़ी और हर टूरिस्ट के हाथ में जरूरी समझा जाने वाला कैमरा मोबाइल में सिमट गया है.
 6) सबसे पहले ये देखें कि आपकी मानसिकता एम्प्लोयी वाली है या बिजनेसमैन वाली , दोनों की अलग अलग विशेषता होती है और दोनों ही एक-दूसरे की सोच को आसानी से नहीं अपना सकते . मालिक की एक दिन की छुट्टी पर झल्लाहट   और एम्प्लोयी की खुशियों के उदाहरण आपके आस-पास बिखरे हुए है उन्हें गौर करें और समझे . एक मज़दूर से बात करें और एक मालिक से दोनों से बात करने के बाद आप सोचे क़ि आप खुद को सोच-समझ के मामले में किस के नज़दीक पाते है अगर आप को लगता है कि मज़दूर सही है तो बिज़नेस करने से पहले अपनी मानसिकता सुधारने की कोशिश करें .
ये पोस्ट एक जवाब के तौर पर लिखी गई है इसलिए प्रोपरली  मैंने एडिट नहीं की है ,अगर कहीं अस्पष्ट हो रहा हूँ तो जानकारी देवे.  शुभकामनाये .
- सुबोध
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Wednesday, August 20, 2014

110 . सही या गलत -निर्णय आपका !

      पैसा हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है , यह कड़ी मेहनत अमीर मानसिकता  के लिए अस्थायी होती है और गरीब मानसिकता  के लिए स्थायी . इसकी वजह ये है कि कड़ी मेहनत से कमाए हुए पैसे को लेकर दोनों के दृष्टिकोण अलग-अलग होते है - एक इसलिए कमाता है कि पैसे जमा कर सके और दूसरा इसलिए कि अच्छी ज़िन्दगी जी सके ,एक का दृष्टिकोण बड़ी खुशिया हासिल करने पर होता है और दूसरा बड़ी खुशियों के लिए छोटी-छोटी खुशिया नकार नहीं सकता ,एक आनेवाले कल को देखता है और दूसरा आज में जीता है . और अंततः होता ये है कि एक के पास कुछ पैसे जुड़ जाते है और दुसरे के पास नहीं जुड़ते .
                    असली खेल यही से शुरू होता है -- पैसा ऊर्जा का एक रूप है ,जिस तरह काम ऊर्जा का एक रूप है . गरीब मानसिकता काम से ऊर्जा यानि पैसा पैदा करती है  जबकि अमीर मानसिकता पैसे से ऊर्जा यानि पैसा पैदा करती है ,सीधे शब्दों में कहुँ तो गरीब मानसिकता अब भी अपनी कड़ी मेहनत से पैसा पैदा करती है जबकि अमीर मानसिकता अपने इकट्ठे किये हुए पैसे के दम पर एम्प्लोयी रखती है जो उसके लिए कड़ी मेहनत करकर पैसा पैदा करता है यानि उसका पैसा उसके लिए पैसा पैदा करता है  और यहीं से खेल दिलचस्प  होना शुरू हो जाता है . अमीर मानसिकता अब भी जी-तोड़ मेहनत करती है पैसा बचाती है और बचे हुए पैसे के दम पर  एम्प्लाइज की संख्या बढाती जाती है और उसके  द्वारा पैसे के दम पर  करवाई हुई कड़ी मेहनत  ढेर सारा पैसा पैदा करने लगती  है लेकिन गरीब मानसिकता द्वारा की हुई कड़ी मेहनत ढेर सारा पैसा  पैदा नहीं कर पाती नतीजतन अमीर मानसिकता अमीर बन जाती है और गरीब मानसिकता गरीब  रह जाती है .
                    ये साधारण सी बात गरीब मानसिकता की समझ में नहीं आती कि शुरू में सारा खेल साधारण से त्याग का है ,अपनी इच्छाओं का,छोटी-छोटी   खुशियों का,अपनी सुविधाओं के त्याग का, जो आगे जाकर दिमागी तिकड़म का,बुद्धि कौशलता का और अमीरी का खेल बन जाता है . और गरीब मानसिकता के लोग हारे हुए खिसियाए खिलाडी की तरह जीते हुए खिलाडी में कमियाँ निकालते है अपनी इतर अच्छी क्वालिटीज की बात करते है , गालियों और हाथापाई पर उतर आते है ,सब कुछ करते है - एक अच्छे खिलाडी की तरह अपनी हार स्वीकार कर कर नए सिरे से जीत के लिए जुटने के अलावा.  नतीजे में जो होना चाहिए वही होता है कड़ी मेहनत गरीब मानसिकता के लिए स्थायी बन जाती है और अमीर मानसिकता के लिए अस्थायी.
- सुबोध
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Tuesday, August 19, 2014

109 . सही या गलत -निर्णय आपका !

              पैसे के प्रबंधन के बारे में जब गरीबों से बात की जाती है तो उनका जो जवाब होता है वो ये होता है कि " जब मेरे पास बहुत सारा पैसा होगा तब मैं पैसे का प्रबंध करना शुरू  करूँगा ."
                         अगर आप गहराई में जाए तो आप समझ पाएंगे कि उनके लिए पैसे का प्रबंधन एक समस्या के अलावा कुछ भी नहीं है , अमूनन ये तत्काल संतुष्टि वाली श्रेणी के लोग है  ( पोस्ट ९७ देखें) और ये लोग पैसे का प्रबंध करने की बजाय   उसे खर्च करने वाले होते है , ये प्रबंध  नामक समस्या को  एक गलत नंबर के चश्मे से देखते है .
                     पहली बात  आप के पास पैसा तब होगा जब आप उसका प्रबंध करना शुरू करोगे  ये तो कहना ही गलत है कि मेरे पास पैसा ज्यादा होगा तो मैं इसका प्रबध करूँगा , ये कहना तो बिलकुल ऐसा ही है कि  एक कमजोर आदमी  ये कहे   कि मेरे मस्सल्स मजबूत हो जायेंगे तो मैं जिम ज्वाइन करूँगा  , जबकि हकीकत ये है कि जिम ज्वाइन करने से उसके  मस्सल्स मजबूत होंगे. परिणाम हमेशा मेहनत करने के बाद मिलते है ,मेहनत करने से पहले परिणाम  चाहना  एक अच्छे चुटकुले के अलावा क्या है ?
                  दूसरी बात - प्रकृति का एक साधारण सा नियम है  " दिया उसे जाता है जिसकी सम्हालने की क्षमता होती है " अगर आप 100 - 200  रुपये भी नहीं सम्हाल पा रहे हो तो चिंता न करें प्रकृति के इस साधारण से नियम की अवहेलना नहीं होगी और आपको हज़ारों - लाखों रुपये नहीं दिए जायेंगे क्योंकि प्रकृति जानती है कि ये कमजोर प्राणी है इसकी क्षमता छोटी चीज़ों को सम्हालने की नहीं है तो ये बड़ी कैसे सम्हालेगा .धन्यवाद प्रकृति, तुम बड़ी दयालु हो .
               तीसरी बात - एक प्रोसेस होता है उस से गुजर कर ही आप किसी काबिल बनते है ,बिना उस प्रोसेस से गुजरे किसी भी तरह की सफलता पाना और उस सफलता को बरकरार रख पाना संभव नहीं होता और वो प्रोसेस है  " बनाना-बिगाड़ना-फिर से बनाना " (पोस्ट 42  देखें ) जिंदगी में सीढ़ियां नहीं होती जो सीधी ऊपर जाती है ,यहाँ तो पर्वतों के साथ मैदान और खाइयां  होती है और हर पथिक को ,हाँ हर पथिक को इन्ही टेढ़े -मेढ़े अनगढ़  रास्तों से गुजरना होता है तब वो बांछित  को हासिल कर पाता है  .
               अगर आप ये समझते है कि पैसा आएगा और आता रहेगा और ढेर सारा हो जायेगा तो मैं इसका प्रबंध करना शुरू करूँगा तो मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है कि  "भगवान करें  ऐसा ही हो ",लेकिन मैं भी जानता हूँ और मेरा भगवान भी कि ये एक शुभकामना के अलावा कुछ नहीं है .
- सुबोध

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मेरी पुरानी पोस्ट्स देखने के लिए कृपया इस  लिंक पर करें -
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Monday, August 18, 2014

108 . सही या गलत -निर्णय आपका !

             जब गरीबों से पैसे के प्रबंधन की बात की जाती है तो आम तौर पर उनका जवाब होता है कि मेरे पास इतने पैसे है ही नहीं कि उनका प्रबंधन करूँ ,मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाता हूँ .

                   उनको जो  सलाह हो सकती  है वो ये है कि ऐसी हालत में भी उनको अपनी कमाई का 10 % हिस्सा  अपने भविष्य के लिए अलग से निकाल कर रख देना चाहिए .बाकी बचे  90 % में गुजारा करना चाहिए , एक महीने में  वे 90 % में गुजारा करना सीख जायेंगे और अगर उन्होंने अपनी इच्छाओं पर एक महीने तक  कंट्रोल कर लिया तो वे आगे भी कर सकते है . बात इच्छाओं को मारने की नहीं है बल्कि  बात पैसे के प्रबंधन की आदत की है, उस आदत की  जिस से अमीरी का दरवाज़ा खुलता है .

                कुछ गरीब कह सकते है कि 10 % निकालने के बाद हमें भूखा सोना पड़ेगा ,मेरा जवाब होगा- हाँ , आप भूखे सो जाइये और इस कहावत को याद कीजिये " भूखा पेट चिल्लाता है " और ये चिल्लाहट आपको अतिरिक्त पैदा करने को मजबूर करेगी , अतिरिक्त सोचने को मजबूर करेगी ,आपके कम्फर्ट जोन को तोड़ने को आपको विवश करेगी आपको नया कुछ करने को मजबूर करेगी ,दिमाग और जिस्म में लगी जंग हटाएगी .

                बात कुल मिलाकर पैसे के प्रबंधन की आदत की है जैसा कि मैंने अपनी पहले की पोस्ट में लिखा था बचत को उत्सव नहीं आदत बनाइये .
-सुबोध
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Sunday, August 17, 2014

107. सही या गलत -निर्णय आपका !



                  मालिक वो होता है ,जो हासिल चीज़ों को सुव्यवस्थित तरीके से प्रबंधित करता है ,जो अपनी चीज़ों को बराबर प्रबंधित नहीं करते , वे जल्दी ही उन चीज़ों को या तो नष्ट हो जाने देते है या अपना मालिकाना हक़ खो देते है ,पैसा  इस साधारण से  सिद्धांत  का अपवाद नहीं है .
                  वित्तीय सफलता ( अमीर ) और वित्तीय असफलता (गरीब ) के बीच का सबसे बड़ा फर्क पैसे के प्रबंधन का होता है .
                 अमीर लोग पैसे का प्रबंधन करने में माहिर होते है और उसकी वजह मैंने अपनी पोस्ट 103  और  106  में बताई थी .
               गरीब लोगों द्वारा  पैसे का प्रबंधन न करना उनकी आधी-अधूरी सोच का नतीजा हो सकता  है या फिर उनकी गलत  कंडीशनिंग इसकी वजह हो सकती है - गलत कंडीशनिंग से छुटकारा पाने का तरीका वे  मेरी पोस्ट 96  में देख सकते है ,और सोच विकसित करने के लिए उन्हें खुद पर कठिन मेहनत करनी पड़ेगी, उनकी सहायता सिर्फ ये हो सकती है वे  मेरी सारी पोस्ट देखे और समझे , इसके अलावा भी मार्किट में बहुत कुछ उपलब्ध है - करना तो उन्हें खुद ही पड़ेगा .

- सुबोध
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Saturday, August 16, 2014

106. सही या गलत -निर्णय आपका !

हकीकत में अमीर गरीबों से ज्यादा स्मार्ट नहीं होते है. बस उनकी पैसे से सम्बंधित आदतें गरीबों से अलग और पैसे को बढ़ाने में मददगार होती है  जो मूल रूप से उनकी अतीत की कंडीशनिंग से जुडी होती है .

                                       गरीबों के लिए बचत या निवेश उत्सव की तरह होते है जबकि अमीरों के लिए हर रोज़ किये जानेवाले  कामों की तरह एक आदत.और ये आदत होना ही उन्हें परफेक्शन देता है जो गरीबों के हिस्से में नहीं आती .

                         अगर आप पैसे का उचित प्रबंधन नहीं करते है तो दो बातें हो सकती है ,पहली आपके दिमाग में इसकी प्रोग्रामिंग ही नहीं हुई है और दूसरी शायद आप ये जानते ही नहीं है कि पैसे का सही और उचित प्रबंधन कैसे किया जाता है .पहली बात आपकी कंडीशनिंग से जुडी है(इसके लिए  मेरी पोस्ट 91 ,92 ,96  देखें )और दूसरी आपकी शिक्षा से जुडी है ( मेरी पुरानी पोस्ट पढ़े ).

                      
                        दुर्भाग्य से स्कूलों  में मनी मैनेजमेंट नाम का कोई सब्जेक्ट नहीं होता है ,आपकी स्कूल का मुझे नहीं पता ,मेरी स्कूल में नहीं था.  हमारे किसी भी  स्कूल टीचर ने हमें कभी भी पैसे के बारे में नहीं सिखाया अगर हम उनसे कभी पैसे के बारे में पूछ भी लेते थे तो उनका हमेशा यही जवाब होता था कि अपने सब्जेक्ट को बराबर याद करो तुम अभी इस बारे में सीखने के लिए बहुत छोटे  हो - और स्कूल क्या कॉलेज छोड़ने तक हम छोटे ही रहे ,बाहर की दुनिया ने हमे कब बड़ा बनाया पता ही नहीं चला ,हाँ,किस खूबसूरती से हमारे टीचर्स  ने हमसे अपनी गरीबी और पैसे की नासमझी छुपाई ये अब समझ में आता है .
- सुबोध
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Friday, August 15, 2014

105. सही या गलत -निर्णय आपका !

एक सवाल
Ratan Arjun
Aug 9th, 2:07pm
Dear sir, mane job chod kr do bar apna kam suru kiya lakin dono bar asaflta mili . m construction line m hu or m ab kuch nya krna chahta hu . pls mujhe koi rasta btao sir..


मेरा जवाब

रतनजी,
दो बार की असफलता के बाद भी आप तीसरी बार कोशिश करना चाहते है ,आपके जज्बे और सोच को सलाम !
कंस्ट्रक्सन लाइन में आप क्या करते है ,ये आपने स्पष्ट नहीं किया ,अगर आप स्पष्ट करते तो शायद में बेहतर तरीके से जवाब दे पाता.
सर , आप मेरे पुराने पाठक है और मेँ ये मानकर चल रहा हूँ कि आपने मेरी सारी पोस्ट पढ़ी और समझी है ,अगर हो सके तो उन्हें दुबारा पढ़  लेवे, कुछ चीज़े जितनी ज्यादा बार रिपीट की जाती है उनके बारे मेँ आपका  दृष्टिकोण  उतना ही ज्यादा  साफ़-सुथरा होता जाता है .
मैं ये मानकर चल रहा हूँ कि दो बार की असफलता ने आपको बहुत कुछ सिखाया होगा ,ध्यान रखियेगा वे असफलताएँ नहीं है वे आपकी आर्थिक आज़ादी की बैकबोन है और ताउम्र आपकी बेस्ट टीचर रहेगी .
सर, कोई  नया व्यवसाय शुरू करने से पहले इन बातों का  ध्यान रखे -   
 1)अपने शौक को -उस शौक को जिसे आप जूनून की हद तक चाहते है ,व्यवसाय बनाने की कोशिश करें ,अगर आप ऐसा कर पाते है तो ये आपकी ग्रोथ को क्वांटम लीप दे देगा क्योंकि तब आप बिना थके घंटो कार्य कर पाएंगे , नये - नये आइडिया के साथ. 
2) कोई भी व्यवसाय चुने तो कोशिश करें ऐसा व्यवसाय चुनने की जिसमे कई तरीके से कमाने के मौके हो .
3) जिस से आम आदमी जुड़ सके,जो उनकी ज़रुरत का हो ऐसे व्यवसाय को करें .
4) सुचना क्रांति युग में बहुत से व्यवसाय अगर अपडेट नहीं किये जाते है तो उनकी ज़िन्दगी  3 -4  साल की ही होती है , अगर आप ढीले-ढाले या टालू राम  नेचर के  हो तो ऐसे किसी भी व्यवसाय में नहीं उतरे , बाकि अगर ऐसे नेचर के हो तो मेरे ख्याल से आपको व्यवसाय ही नहीं करना चाहिए , इस मानसिकता के लोगों के लिए तो जॉब ही  ठीक रहता है ,क्योंकि व्यवसाय में मिलने वाला  पुरूस्कार आपको आपके प्रदर्शन के आधार पर दिया जाता है, व्यवसाय में दिए गए समय के आधार पर नहीं दिया जाता.  
5) जिस व्यवसाय में विकास की सम्भावनाये न हो , जिसका मार्किट सिमट रहा हो ,जो धारा के विपरीत हो ऐसा व्यवसाय न करें .
6 ) जिस व्यवसाय में मार्जिन बहुत कम हो ,ऐसा व्यवसाय न करें , क्योंकि मार्जिन कम होने का एक अर्थ ये होता है कि यहाँ कम्पीटीशन ज्यादा है . और आप नये होने की वजह से बहुत से ऐसे हथकंडो से वाकिफ ही नहीं होंगे जिनकी वजह से कॉस्टिंग कम करकर मार्किट   में माल डाला जा सके . ये ध्यान रखे पुराना व्यवसायी अपनी गुडविल की वजह से हल्का माल भी मार्किट में उतारता है तो उस पर उंगली नहीं उठती जबकि आप नये होने की वजह से लाइम लाइट में रहेंगे और आपकी कोई भी गलती आपको मार्किट में टिकने नहीं देगी . 
7) ऐसा व्यवसाय शुरू करें जिसमे  शुरू में आपको अपना पैसा कम से कम लगाना पड़े ,अगर शुरू में ही आपने अपना पूरा पैसा लगा दिया और व्यवसाय नहीं चला तो किसी दुसरे व्यवसाय के लिए आपके पास डाउन पेमेंट भी नहीं बचेगा .
जो कुछ भी जब भी शुरू करें अपनी टीम से और इस क्षेत्र के विशेषज्ञ से जरूर राय करें ,अगर उसे पेमेंट देना पड़े तो देवे , कंसल्टेंसी के पैसे बचाने की कोशिश करना मेरी निगाह में बेवकूफी है .
कोई भी नया व्यवसाय शुरू करने के लिए इतनी ज्यादा बातें है कि एक पोस्ट में सब कुछ कवर करना संभव नहीं है .
बाकि किसी और पोस्ट में ,
शुभकामनाएं .
-सुबोध
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Thursday, August 14, 2014

104. सही या गलत -निर्णय आपका !


अमीर यु हीं अमीर नहीं होता ( २)

दायरा
जो बनाते है आप
निर्भर है उसकी उपलब्धि
आपके समर्पण पर ...
-
दायरा
मेंढक का
होता है तालाब,
और
बाज़ का
आकाश,
सरहदों से आज़ाद आकाश .
-
मेंढक
जब सोचता है
बाज़ बनने की,
रोकती है उसे
उसकी मानसिकता,
जहाँ मौजूद है
फ़ेहरिश्त खतरों की .
-
त्याग है
आरामदेह दायरे का,
ख़ौफ है
अपनी वास्तविकता बदलने का ,
मेहनत है
अपनी काबिलियत के विस्तार की,
और जहाँ ज़रूरत है
एकाग्रता की ,
साहस की,
विशेषज्ञता की ,
शत प्रतिशत प्रयास की ,
और सबसे बड़ी
बाज़ की मानसिकता की.
.-
और देखकर
इस फ़ेहरिश्त को
कुछ मेंढक
मेंढक रह जाते है
और कुछ मेंढक
बाज़ बन जाते है .
-
अपना-अपना दायरा है
चाहत का,
चुनाव का,
समर्पण का.
क्योंकि
दायरा
जो बनाते है आप
निर्भर है उसकी उपलब्धि
आपके समर्पण पर ..

सुबोध- २२ मई , २०१४

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Photo: अमीर यु हीं अमीर नहीं होता ( २)दायराजो बनाते है आपनिर्भर है उसकी उपलब्धिआपके समर्पण पर ...-दायरामेंढक काहोता है तालाब,औरबाज़ काआकाश,सरहदों से आज़ाद आकाश .-मेंढकजब सोचता हैबाज़ बनने की,रोकती है उसेउसकी मानसिकता,जहाँ मौजूद हैफ़ेहरिश्त खतरों की .-त्याग हैआरामदेह दायरे का,ख़ौफ हैअपनी वास्तविकता बदलने का ,मेहनत हैअपनी काबिलियत के विस्तार की,और जहाँ ज़रूरत हैएकाग्रता की ,साहस की,विशेषज्ञता की ,शत प्रतिशत प्रयास  की ,और सबसे बड़ीबाज़ की मानसिकता की..-और देखकरइस फ़ेहरिश्त कोकुछ मेंढकमेंढक रह जाते हैऔर कुछ मेंढकबाज़ बन जाते है .-अपना-अपना दायरा हैचाहत का,चुनाव का,समर्पण का.क्योंकिदायराजो बनाते है आपनिर्भर है उसकी उपलब्धिआपके समर्पण पर ..सुबोध-  २२ मई , २०१४

Wednesday, August 13, 2014

103 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                   गरीब मानसिकता के लोग एक रुपये को सिर्फ एक रूपया मानते है जिसके बदले में वे लोग कोई चीज़ खरीदकर तत्काल संतुष्टि चाहते है उनकी निगाह में ये ऐसा गेहूँ है जिसकी  रोटी बननी है और उसे खाना है   जबकि अमीर मानसिकता के लोग इसे एक रूपया नहीं मानते , वे इसे ऐसा योद्धा मानते है जिसके दम पर उन्हें वित्तीय स्वतंत्रता हासिल होगी .उनके लिए ये गेहूँ एक बीज है जिसे बोकर वे ढेरों गेहूँ  पाएंगे -और उन ढेरों गेहुंओं  को बोकर और ढेरों गेहूँ पाएंगे- चक्रवृद्धि व्याज की तरह.
  

                                      गरीब मानसिकता  एक रुपये की कीमत आज में देखती  है जबकि अमीर मानसिकता उस एक रुपये की कीमत आज में नहीं कल में देखती  है - और ये कल में देखना ही उसे निवेश करने को उत्साहित करता है .
                        सिर्फ एक हलकी  सी कैलकुलेशन करें कि आज के  25  रुपयेकी  कीमत  20  साल बाद 10 % सालाना वृद्धि  के बाद क्या होगी ? संभवतः आपका डेरी मिल्क या आइसक्रीम खाने का नजरिया बदल जाए. .... या तो आप खाएंगे या नहीं खाएंगे और दोनों ही स्थितियों में जो तर्क देंगे उन तर्कों को बड़े गौर से सुने और समझे . ये तर्क, तर्क नहीं है बल्कि आपकी मानसिकता है जो आपके  25  रुपये का  भविष्य निर्धारित करेगी .......और आपके 250 ,2500 ,25000 ,250000 ,2500000 ,25000000  का भी .
-सुबोध 

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Tuesday, August 12, 2014

102 . सही या गलत -निर्णय आपका !

हम सभी में दो भावनाएँ होती हैं डर और लालच .
पैसा न होने के डर से हमे कार्य करने की प्रेरणा मिलती है और पैसा हाथ में आने के बाद लालच की भावना जाग जाती है ,ये भी हमारे पास होना चाहिए और वो भी . लालच -इसे इच्छा भी कह सकते है, का कहीं कोई अंत नहीं होता , सो आदमी एक चक्र में फंस जाता है पैसा कमाओ इच्छाएं पूरी करो और कमाओ और इच्छाएं पूरी करो और कमाओ --- ये चक्र कहीं रुकता नहीं है .इसे पढ़े-लिखे लोग कोल्हू का बैल, रेट रेस  कहते है कि सब कुछ किया लेकिन अंततः वही के वही रह गए - कमाने से बिल चुकाने तक .
 वित्तीय स्वतंत्रता आपको इस रेट रेस से आज़ादी दिलाती है .
- सुबोध
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Monday, August 11, 2014

101. सही या गलत -निर्णय आपका !

ताकि कल जीत सकूँ ....

हाँ, मैं स्वीकार करता हूँ
अपनी हार ...
लेता हूँ पूरी जिम्मेदारी ...
नहीं देता किसी को भी दोष
तरफदारी नहीं करूँगा खुद की
कि मैं सही था
वक़्त गलत हो गया
नहीं करूँगा बेवजह की शिकायत
और ये सब कर रहा हूँ सिर्फ इसलिए
कि कल मेरी कोई हार न हो ...
...
मैं करता हूँ स्वीकार
मुझमे नहीं था वो जज़्बा
कि जीत होती मेरी
संपूर्ण समर्पण से ही हासिल होता है लक्ष्य ......
--
मैं करता रहा शिकायत
कमियों की, खामियों की
भूल गया हासिल को
और सारा ध्यान रहा
कमियों,खामियों पर
कहते है
जिसके बारे में
शिद्दत से सोचते हो
वही मिलता है
सो मुझे 
कमियाँ और  खामियाँ  मिल गयी
करता अगर प्रयास
लगा कर जान की बाज़ी
इन्हे दूर करने का
तो निश्चित ही
अलग होता परिणाम
-
मेरा पूरा प्रयास था
बचूं हार से
शायद इसी लिए हार गया
क्योंकि
मेरे अवचेतन में लक्ष्य
हार से बचना भर था
जीत का तो कहीं ज़िक्र भी न था .
हाँ, में स्वीकार करता हूँ
अपनी हार
लेता हूँ पूरी जिम्मेदारी
ताकि कल जीत सकूँ ....

सुबोध- २१, मई २०१४
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Photo: ताकि कल जीत सकूँ ....

हाँ,  मैं स्वीकार करता हूँ
अपनी हार  ...
लेता हूँ पूरी जिम्मेदारी ...
नहीं देता किसीको भी दोष
तरफदारी नहीं करूँगा खुद की
कि मैं सही था
वक़्त गलत हो गया
नहीं करूँगा बेवजह  की शिकायत
और ये सब कर रहा हूँ सिर्फ इसलिए
कि कल मेरी कोई हार न हो ...
...
मैं करता हूँ स्वीकार
मुझमे नहीं था वो जज़्बा
कि जीत होती मेरी
संपूर्ण समर्पण से ही हासिल होता है लक्ष्य ......
--
मैं करता रहा शिकायत
कमियों की, खामियों की
भूल गया हासिल को
और सारा ध्यान रहा
कमियों,खामियों पर
कहते है
जिसके बारे में
शिद्दत से  सोचते हो
वही मिलता है
सो मुझे 
कमिया और खामिया मिल  गयी
करता अगर प्रयास
लगा कर जान की बाज़ी
इन्हे दूर करने का
तो निश्चित ही
अलग होता परिणाम 
-
मेरा पूरा प्रयास था
बचूं  हार से
शायद इसी लिए हार गया 
क्योंकि
मेरे  अवचेतन में लक्ष्य
हार से बचना भर था
जीत का तो कहीं ज़िक्र भी न था .
हाँ, में स्वीकार करता हूँ
अपनी हार
लेता हूँ  पूरी जिम्मेदारी
ताकि कल जीत सकूँ ....

सुबोध- २१, मई २०१४

Sunday, August 10, 2014

100. सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरे एक पाठक का सवाल था
sar ji mene aap ke sabhi artical pare.meri yek samsya ko door kijiye mera medical ka thok ka weyapar he acha chal raha he par mene apne jiwan istar ko warane ke liye karj le liya ab use chukane ka rasta nahi mil raha he agar me apne weyapar se jeyada rupye nahi nikal sakta keya karna chahiye.

मेरा जवाब---
जो क़र्ज़ आपको दिए गए ब्याज से ज्यादा रिटर्न दिलाता है वो क़र्ज़ अच्छा क़र्ज़ होता है और जो क़र्ज़ आपको दिए जानेवाले ब्याज  से कम रिटर्न दिलाता है वो क़र्ज़ बुरा क़र्ज़ होता है .
क़र्ज़ के दम  पर अगर आपने अपने जीवनस्तर को सुधारने का प्रयास किया है तो ये एक अव्यवहारिक कदम है - यह एक बुरा क़र्ज़ है
कभी भी कोई अतिरिक्त खरीददारी या खर्च  करें  उसे अपनी अतिरिक्त कमाई में से करें ,अमीर लोग यही करते है .
 अगर आप बुरे कर्ज के जाल में फंस चुके है तो उसे चुकाने के कुछ तरीके नीचे लिख रहा हूँ
1- पैसे को सही तरीके से मैनेज करें -- उम्मीद है मेरी पुरानी पोस्ट्स को देखते हुए आपने कमाई में से 10% अलग रखना शुरू कर दिया होगा - उसके बाद ही आप अपने बाकी के खर्चे निपटा रहे होंगे . अब निम्न तरीका अपनाये --
अपनी कमाई का -
10 % आप  क़र्ज़  को चुकाने के लिए अलग रखे
10% आप दीर्धकालीन बचत के लिए रखे
10% वित्तीय स्वतंत्रता खाते में रखे
10% मनोरंजन खाते में रखे 
10% शिक्षा, दान वगैरह के लिए
50% आवश्यक खाते में
इसे स्ट्रिक्टली फॉलो करें , जैसे ही पैसे घर में आते है आप अलग- अलग खाते में इन्हे डाल देवे , फिलहाल आप  दीर्धकालीन बचत खाते को क़र्ज़ चुकाने के लिए इस्तेमाल कर सकते है ,जब आपका क़र्ज़ चूक जाए तो क़र्ज़ चुकाने वाले खाते को आवश्यक खाते में ट्रांसफर कर सकते है या इस से आप स्टैण्डर्ड मेन्टेन कर सकते है .    इस बात को दिमाग से निकल देवे की मैंने अपना स्टैण्डर्ड  मेन्टेन करना है . आपकी जिम्मेदारी अपने परिवार के हितों की सुरक्षा करना है समाज  के सामने आप स्टैण्डर्ड वाले होकर भी घर में अगर परिवार को या खुद को तनाव देते है तो ये उचित नहीं है .


2- आप अच्छा क़र्ज़ लेवे और उससे बुरे क़र्ज़ को चूका देवें .

3- अपनी कमाई को बढ़ाएं .जीवन स्तर उधार के पैसे से नहीं खुद की कमाई से सुधरता है, सुधारा जाता है  -अगर साल-दो साल के लिए जीवन स्तर ऊँचा कर लिया है तो ये तो कुकुरमुत्ते वाला स्तर हुआ - स्थाई नहीं - स्थायित्व लाने के लिए आपको अपनी कमाई बढ़ानी पड़ेगी - मेरी पुरानी पोस्ट बराबर पढ़े काम को बड़ा करने का तरीका उसमे दिया हुआ है .

4 - एक-एक चवन्नी की कदर करें- चार चवन्नी मिलकर एक रूपया हो जाती है. बैठ कर ढंग से समझ लेवें कि क्या खर्चे जरूरी है और क्या गैरजरूरी . अमूनन तकलीफ में लोग" पेपर-पिन" बचाओ वाली मानसिकता को फॉलो करना शुरू कर देते है जो कि मेरी निगाह में बिलकुल गलत है- थूक से कान नहीं चिपकते - जहाँ बचाया जा सकता है वहां बचाये . स्टाफ को,परिवार को बेवजह लगातार टोकते रहने से  वे भी तनाव में रहेंगे और आप भी . ध्यान रखे है आप मालिक है ,परिवार के मुखिया है चौकीदार नहीं.

5- स्वयं को वर्तमान स्थिति से पृथक कर-कर सोचे ,बिलकुल शांत मन से स्थिति पर चिंतन करें .आपको स्वयं ज्ञात हो जायेगा कि कहाँ-कहाँ से सुधार हो सकता है .

           आपकी संपूर्ण परिस्थिति मुझे ज्ञात नहीं  है संभवतः परिस्थिति अनुसार अन्य मार्ग हो सकते है , बेहतर है अपने फाइनेंसियल प्लानर के साथ बैठे और उस से पूरी स्थिति पर बात करें .
            अंत में हौसला न खोये , किसी के पास भी कोई जादू की छड़ी नहीं है जो आपको तुरत-फुरत समाधान दे देगा और स्थितियां सुधर जायेगी .हाँ, जिसके पास कुछ करने को है वो आप खुद है ,ये आपका चुनाव होगा कि आप क्या चुनते है - सिर्फ सलाह सुनते है या सलाहों में से अच्छी - बुरी छांटकर अच्छी सलाहों पर अमल भी करते है .
- सुबोध
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Saturday, August 9, 2014

99. सही या गलत -निर्णय आपका !

कम प्रयासों से ज्यादा उपलब्धि कर पाना लीवरेज कहलाता है . 
पोस्ट 75 देखे, यहाँ पर अमीर समय का लीवरेज कैसे पैदा करते है इस बारे में बताया गया है .
पोस्ट 82  , 86  में हल्का सा इशारा है कि पैसे का लीवरेज कैसे पैदा किया जाता है ,.

बहरहाल आपको अमीर बनने के लिए महत्वपूर्ण  चीज़ जो समझनी है वो लीवरेज की ताकत समझनी चाहिए,जब तक आप ये नहीं समझते और इसका उपयोग नहीं करते आप उस व्यक्ति के लिए चारा है जो  लीवरेज को समझता है तथा  उपयोग करता है. 
अमीर लोग लिवरेज के सिद्धांत को समझते है और उसका इस्तेमाल करते है .
वे दुसरे लोगों को काम पर रखते है जो उनके लिए समय का लिवरेज पैदा करते है और वे लोग लोन लेकर  या अपने वेंचर में शेयर देकर दुसरे से  पैसा लेकर  पैसे का लिवरेज पैदा करते है . ये समय एवं पैसे का लीवरेज आम आदमी से कई गुणा ज्यादा  पैसा उनके लिए पैदा करता है.
यही उनकी अमीरी का राज है और  अमीर एवं  गरीब में यही सबसे बड़ा फर्क है कि एक खुद मेहनत करता है जबकि दूसरा लीवरेज का उपयोग करता है .
- सुबोध
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Friday, August 8, 2014

98. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीरी या गरीबी का निर्णय  ऊँची सैलरी या ऊँची कमाई नहीं होता है बल्कि कमाए गए पैसे में से आपने बचाया क्या है , इस से होता है .
" अ " लाख रूपये महीने कमाने वाला बंदा जिसका खर्च 98  हज़ार रूपया महीना है ,और" ब "  जो 30  हज़ार रूपया महीने का कमाता है उसका खर्च 27 हज़ार है तो अमीर "अ" नहीं" ब" होता है अगर 5  साल यानि 60 महीने बाद की इनकी स्थिति समझी जाए तो "अ" 1  लाख  20  हज़ार का और "ब" 1लाख 80 हज़ार का मालिक होता है और ये तो सीधी सी गणित है .
"अ" खर्चे में, लिविंग स्टैण्डर्ड में  आपको अमीर लग सकता है और "ब" गरीब  लेकिन" अ"  और" ब" की 5  साल बाद की बैलेंस शीट जो कहती है वो कुछ अलग ही कहानी है .छोटी सी लगनेवाली 1 हज़ार की एक्स्ट्रा बचत लम्बे समय में कितना बड़ा फर्क  बनती है ये इस उदाहरण  से स्पष्ट है .
         ये बात अच्छे से समझ लेवें कौन कितना कमाता है, उसका लिविंग स्टैंडर्ट कैसा है अमीरी के खेल में  इस से कोई फर्क नहीं पड़ता , अंत में कौन कितना जोड़ पाता है  , बैलेंस शीट किसकी मजबूत है -फर्क इस से पड़ता है. 
             अमूनन अमीर लगने वाले डॉक्टर  ,वकील, चार्टेड अकाउंटेंट जैसे लोगों की स्थिति अंदर से कुछ और हो सकती है .
- सुबोध
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Thursday, August 7, 2014

97. सही या गलत -निर्णय आपका !

अगर आपने पैसा  बनाने में बहुत ज्यादा मेहनत की है तो आप पैसे  की कदर भी बहुत ज्यादा करेंगे और अगर आपको पैसे  आसानी से मिले  है तो आप उसकी कदर नहीं करेंगे ."
 मेरा मानना है कि ये कहावत सही नहीं है और इसके लिए मेरा तर्क ये है कि पैसा कमाने के लिए जो काबिलियत इस्तेमाल होती है वो उस काबिलियत से बिलकुल अलग है जो पैसा खर्च करने या रोककर रखने के लिए चाहिए . इसे थोड़ा गहराई में जाकर समझते है -

 पैसे के मामले में तीन  तरह की मानसिकता होती है
पहली - जिन्हे तत्काल संतुष्टि चाहिए होती है - ऐसी मानसिकता के लोग किसी चीज़ की इच्छा होने पर खुद को कंट्रोल नहीं कर पाते उन्हें ये इच्छा तुरंत पूरी करनी होती है चाहे इसके लिए किसी से इन्हे उधार भी लेना पड़े तो ये ले लेते है - ये कमज़ोर व्यक्तित्व के लोग होते है ऐसी मानसिकता के लोगों की कमाई चाहे जितनी हो ये हमेशा कर्ज़े में ही डूबे रहते है क्योंकि इनका अपनी इच्छाओं पर वश नहीं होता .
दूसरी- इस मानसिकता के लोग सिर्फ जरूरत भर ही खर्च करते है बाकि पैसे इकट्ठे करकर कुछ बड़ा पाना चाहते है उन्हें विलम्ब से संतुष्टि मंज़ूर है , लेकिन किसी से क़र्ज़ लेना नहीं. ये गंभीर मानसिकता के लोग होते है जिन्हे पैसे की कीमत और कदर पता होती है -ये इतने ज्यादा संभल कर खर्च करते है और इतने ज्यादा नार्मल तरीके से रहते है कि कभी-कभी तो इनके गरीब होने का भरम होता है .. लेकिन आर्थिक रूप से ये मज़बूत श्रेणी के लोग होते है .
तीसरी- इस मानसिकता के लोग अमीर श्रेणी के होते है इनकी पैसे की आमद  इतनी ज्यादा होती है कि  दिल खोलकर खर्च  करने के बाद भी कुछ न कुछ बच जाता है , इन लोगों ने पहले जमकर मेहनत की होती है ,अपनी इच्छाओं पर कंट्रोल किया होता है ,पैसा जोड़ा होता है पैसे से मेहनत करवाकर रेजिडुअल इनकम  के श्रोत बनाये होते है और अब उन्ही आमदनी के श्रोत से आई हुई रकम  को ये दिल खोलकर खर्च  करते है - ध्यान रहे इनकम के श्रोत को खर्च नहीं करते . 
        पैसा कमाना  अलग मामला है जबकि खर्च आदमी  अपनी मानसिकता के अनुसार करता है -इसका मेहनत से कमाया या आराम से कमाया जैसी किसी बात से कोई ताल्लुक नहीं होता .
- सुबोध
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Wednesday, August 6, 2014

96. सही या गलत -निर्णय आपका !

हम कारण और  परिणाम की दुनिया में रहते है जो कुछ करते है उसके पीछे कोई न कोई  कारण होता है और उस  कारण की वजह से हम कार्य करते है .ज़ाहिर सी बात है किये हुए कार्य का परिणाम भी मिलेगा .
आपकी कंडीशनिंग आपके विचारों को पैदा करती है ,आपके विचार आपकी भावनाओं को , भावनाएं कार्य और कार्य परिणामों को .
अगर आपको अपनी कंडीशनिंग बदलनी है तो पहले स्वयं में स्वीकृति  पैदा करें कि " हाँ ,मुझमें  ये गलत कंडीशनिंग हुई है"
 कब हुई , कहाँ से हुई ,कैसे हुई ,क्यों हुई इन सब की विस्तृत डिटेल तैयार करें
जब आपको ये पता चल जाता है कि  सोचने का वर्तमान तरीका आपका स्वयं का नहीं है बल्कि किसी और का है तो अब आप चुनाव कर सकते है कि  आगे इसी तरीके से सोचना जारी रखा जाए या और कोई नया तरीका अपनाया जाए .
जब आप ये सब स्थिति समझ लेवे तब आप स्वयं को नए सिरे से रि -कंडिशन कर सकते है -- जो आपका खुद का सोचने का तरीका होगा ,अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपनी जरूरत के अनुसार आप अब खुद के नियम बना सकते है .
- सुबोध
पुनश्च - इस बारे में पोस्ट 91 और 92  भी देखें .
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Tuesday, August 5, 2014

95. सही या गलत -निर्णय आपका !

अपने टीम मेंबर्स  को सिखाइये ,उन्हें प्रोत्साहित कीजिये और उन पर विश्वास कीजिये .अगर आपको व्यवसाय बड़ा करना है तो एक अच्छी और बड़ी टीम आपके पास होनी चाहिए . अगर आप ऐसा नहीं करते है  तो अपने बिज़नेस की ग्रोथ आप ख़त्म कर रहे है .
              अगर आपको ये  डर है कि जिस दिन ये काम सीख लेगा उस दिन  मुझे छोड़कर खुद का काम शुरू कर लेगा तो ये डर फ़िज़ूल है . व्यापारी बनने के लिए जिन चीज़ों की ज़रुरत है उनमे सबसे अहम है हिम्मत - जोखिम लेने की हिम्मत . खुद की पूँजी,खुद की शौहरत ,खुद का वक्त दांव पर लगाने की हिम्मत हर एक में नहीं होती और जिस व्यक्ति में यह साहस है वो व्यक्ति आप कुछ नहीं सिखाएंगे तो कहीं और से सीख लेगा उस स्थिति में आपसे कम्पीटीशन  भी करेगा और आप उसे कुछ कह भी नहीं पाएंगे ,अगर आपने उसे सिखाया है तो कम से कम आपसे कम्पीटीशन  करने में हिचक तो उसे महसूस होगी ही और अगर पीठ पीछे आपसे कम्पीटीशन करता भी है तो आप उसे समझा सकते है कि व्यवसाय तो समुन्दर की तरह है जहाँ मैं  खड़ा हूँ वही से पानी निकालना  क्या ज़रूरी है ?
           दूसरी बात कोई भी व्यवसाय बाहर की जुटाई गई सामग्री से उतना नहीं चलता जितना  मालिक के उत्साह से चलता है .गौर करें व्यवसाय आपकी छाया भर है या ये समझे कि आप खुद ही व्यवसाय है तो आप वाली बात आपका टीम मेंबर कहाँ से लाएगा ?
- सुबोध
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Monday, August 4, 2014

94. सही या गलत -निर्णय आपका !



अपनी सैलरी बढ़वाने  के लिए  आम तौर पर सीनियरिटी या महंगाई बढ़ने की बात की जाती है कृपया इन दोनों ही बातों को एक छोटे व्यापारिक प्रतिष्ठान के मालिक की नज़र से समझे, उसका जो जवाब हो सकता है उसे भी समझे.

क्या सीनियरिटी की वजह से आप कोई अतिरिक्त उत्पादकता बना पा रहे है - निश्चित ही नहीं . आप अब भी पहले जितना ही काम कर रहे है तो बढ़ोत्तरी किस बात की ?

महंगाई बढ़ने से क्या कंपनी को कोई अतिरिक्त आमदनी हुई है ? यदि नहीं तो महंगाई बढ़ना आपकी समस्या है इसमें कंपनी आपकी क्या मदद कर सकती है ?

ऐसे में आपको चाहिए कि अपनी सैलरी बढ़वाने के लिए आप अपना मूल्य बढ़ाये - अपने में कोई ऐसी अतिरिक्त क्वालिटी पैदा करे जिसकी ज़रुरत आपकी कंपनी को हो .तत्पश्चात मालिक के सामने सैलरी बढ़ाने  की बात करे और उन्हें ये बताये कि मैं कंपनी के लिए ये अतिरिक्त कार्य करूँगा .

ध्यान रखे अपना मूल्य आप खुद बढ़ाते है और अपना मूल्य बढ़ाने  के लिए आपको अपने में कुछ अतिरिक्त योग्यता बढ़ानी पड़ती है .

मोरल- अमीर मानसिकता के लोग मालिक की मानसिकता को समझते है और बढ़ाये गए वेतन के  बदले में उतनी उत्पादकता कंपनी को देते है .
-सुबोध 
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