ये
प्रश्नचिन्ह उनकी काबिलियत पर नहीं है ,जो मेरे शिक्षक रहे है . उन्होंने
मुझे वही सिखाया जो सिखाने को उनसे कहा गया और जिस तथाकथित शिक्षा को देने
के लिए उन्हें पेमेंट दिया गया .कुल मिलाकर ये उनको मिलने वाली उनकी
मज़दूरी भर थी और मजे की बात ये कि जिस तरह एक मज़दूर को मज़दूरी करने भर से
मतलब होता है उससे मिलनेवाले नतीजे से नहीं उसी तरह मेरे शिक्षक भी उन
द्वारा की गई मज़दूरी के भविष्य में मिलनेवाले परिणामों से नावाकिफ
थे,उन्हें अपनी मज़दूरी की फिक्र भर थी .हकीकत में वे शिक्षक थे ही नहीं
शिक्षा के नाम पर वे दिमागी मज़दूर थे या फिर कोचिंग सेंटर चलानेवाले
व्यवसायी .
हाँ, मैं खुले दिल से स्वीकार करता हूँ कि कुछ एक
मेरे शिक्षक ऐसे भी थे जिन्हे वाकई मेरे अच्छे भविष्य की फ़िक्र थी ,लेकिन
अफ़सोस उनकी फिक्र औद्योगिक युग वाली फिक्र थी कि अच्छे से पढाई करो ,अच्छे
नंबर लाओ ,कहीं ढंग की जगह नौकरी लग जाओ और एक सुकून की ज़िन्दगी गुजारो.
उनकी ये चाहत ,उनका ये आशीर्वाद उपयोगिता खो चूका है उन्हें इसका एहसास ही
नहीं था ,वे आनेवाले युग की तेज आंधी से नावाकिफ थे , वे इतने दूरदर्शी
नहीं थे कि नयी सदी की तेज चौंधियाती रोशनी का सामना कैसे किया जाये ये
मुझे बता सके ,वे मेरे गाँव के सीधे-सादे ,सच्चे लोग थे , वे इतने सीधे
थे,इतने सच्चे थे ; उस पुरानी पीढ़ी की तरह जो नई बहु को आज भी आशीर्वाद में
सात पूतों की माँ का आशीर्वाद देती है - उस पीढ़ी को पता ही नहीं है कि
उनका आशीर्वाद नई पीढ़ी के लिए श्राप जैसा है .
मैं ये क्या लिख
रहा हूँ और क्यों लिख रहा हूँ ,अपनी शुरुआती असफलता के लिए अपने शिक्षकों
पर या शिक्षा नीति पर उंगली उठा रहा हूँ , क्यों ? आखिर क्यों ?
शिक्षा नीति गलत थी और है ,शिक्षक गलत थे और है लेकिन किसी के गलत होने से,
या मेरे द्वारा किसी और को दोषी ठहराने से क्या मैं अपनी जिम्मेदारियों से
मुक्त हो जाता हूँ ? जब बात सच के तलाश की आती है ,तो मैं अर्जुन या
एकलव्य के सच को क्यों भूल जाता हूँ? वो भी औरों की तरह साधारण रह सकते थे
,लेकिन उन्होंने खुद पर मेहनत की और वे वो बन गए जिससे उनके शिक्षक का नाम
अमर हो गया - गुरु द्रोणाचार्य !
सवाल सिर्फ ये नहीं है कि
शिक्षा नीति गलत है या शिक्षक गलत है ,मुख्य प्रश्न ये भी पैदा होता है कि
क्या छात्र सही है ? क्या शिक्षक छात्र को बनाते है ? क्लास के चालीस
छात्रों में से टॉपर एक ही क्यों होता है ? क्या उस टॉपर को शिक्षक बनाते
है या वो अपने दम पर टॉपर होता है ? द्रोणाचार्य किसी अर्जुन को अर्जुन
बनाते है या कोई अर्जुन किसी को द्रोणाचार्य बनाता है या कोई एकलव्य बिना
कुछ प्रत्यक्ष सीखे गुरु के नाम पर द्रोणाचार्य को अमर कर जाता है !!
या कहीं हकीकत ये तो नहीं कि मेरी रीढ़ की हड्डी पर पड़ा हुआ भूखे खिसियाए
शिक्षक का घूँसा उसकी हद बन गया और मैंने खुद का विस्तार करकर व्यवसायी जगत
की शार्कों के बीच तैरना सीख लिया लिहाजा आज मैं किसी गलत को गलत कह
सकता हूँ और सही को सही - मेरे शिक्षक प्राइमरी क्लासेज को पढ़ाते-पढ़ाते
प्राइमरी क्लासेज की मानसिकता को यथार्थ मान बैठे और वहीँ अटके रह गए -
परियों और दैत्यों की कहानियों के बीच..
बिना औपचारिक शिक्षा के
कोई बिल गेट्स बन जाता है और कोई धीरूभाई अम्बानी,और मैं हूँ कि सिर्फ
दोष ढूंढता रहता हूँ-क्या जिम्मेदार होने की बजाय मैं दोषदर्शी हो गया हूँ
,ओफ़ सुबोध, ये तुम्हे कौनसी बीमारी लग गयी ,इस बीमारी से तो अधिकांश
हिंदुस्तानी ग्रस्त है !!!
क्या किसी और को दोष देने से हम अपनी
जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते है ? आपके लिए सवेरा आपके जागने पर होता है
या आपके नींद में होने के बावजूद सूर्योदय के साथ ? ये निर्णय आप कर सकते
है ,इस सवाल को किसी नेता पर ,किसी समाजसेवी पर,किसी शिक्षक पर,परिवार के
मुखिया पर या अपनी जान-पहिचान के किसी समझदार काबिल इंसान के भरोसे नहीं
छोड़ा जा सकता . ज़िन्दगी सवाल आपसे कर रही है लिहाजा जवाब भी आपको ही देना
है !!
सुबोध