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Wednesday, December 31, 2014

152 . सही या गलत -निर्णय आपका !



टीम बनाने के तीन महत्त्वपूर्ण चरण होते है . पहला चरण है जो आप अपनी टीम से पाना चाहते है उस बारे में उन्हें सिखाना , दूसरा चरण है उन्हें सीखे हुए को करने के लिए प्रोत्साहित करना और तीसरा एवं आखिरी चरण है अपनी टीम पर भरोसा करना,अगर आप ऐसा नहीं कर पा रहे है तो आपका व्यवसाय ( आप स्वयं ) छोटे स्तर से शुरू होकर छोटे स्तर का ही रहेगा ,उसके विकास की सम्भावनाये नहीं है .
सुबोध

151 . सही या गलत -निर्णय आपका !


ये प्रश्नचिन्ह उनकी काबिलियत पर नहीं है ,जो मेरे शिक्षक रहे है . उन्होंने मुझे वही सिखाया जो सिखाने को उनसे कहा गया और जिस तथाकथित शिक्षा को देने के लिए उन्हें पेमेंट दिया गया .कुल मिलाकर ये उनको मिलने वाली उनकी मज़दूरी भर थी और मजे की बात ये कि जिस तरह एक मज़दूर को मज़दूरी करने भर से मतलब होता है उससे मिलनेवाले नतीजे से नहीं उसी तरह मेरे शिक्षक भी उन द्वारा की गई मज़दूरी के भविष्य में मिलनेवाले परिणामों से नावाकिफ थे,उन्हें अपनी मज़दूरी की फिक्र भर थी .हकीकत में वे शिक्षक थे ही नहीं शिक्षा के नाम पर वे दिमागी मज़दूर थे या फिर कोचिंग सेंटर चलानेवाले व्यवसायी .

हाँ, मैं खुले दिल से स्वीकार करता हूँ कि कुछ एक मेरे शिक्षक ऐसे भी थे जिन्हे वाकई मेरे अच्छे भविष्य की फ़िक्र थी ,लेकिन अफ़सोस उनकी फिक्र औद्योगिक युग वाली फिक्र थी कि अच्छे से पढाई करो ,अच्छे नंबर लाओ ,कहीं ढंग की जगह नौकरी लग जाओ और एक सुकून की ज़िन्दगी गुजारो. उनकी ये चाहत ,उनका ये आशीर्वाद उपयोगिता खो चूका है उन्हें इसका एहसास ही नहीं था ,वे आनेवाले युग की तेज आंधी से नावाकिफ थे , वे इतने दूरदर्शी नहीं थे कि नयी सदी की तेज चौंधियाती रोशनी का सामना कैसे किया जाये ये मुझे बता सके ,वे मेरे गाँव के सीधे-सादे ,सच्चे लोग थे , वे इतने सीधे थे,इतने सच्चे थे ; उस पुरानी पीढ़ी की तरह जो नई बहु को आज भी आशीर्वाद में सात पूतों की माँ का आशीर्वाद देती है - उस पीढ़ी को पता ही नहीं है कि उनका आशीर्वाद नई पीढ़ी के लिए श्राप जैसा है .

मैं ये क्या लिख रहा हूँ और क्यों लिख रहा हूँ ,अपनी शुरुआती असफलता के लिए अपने शिक्षकों पर या शिक्षा नीति पर उंगली उठा रहा हूँ , क्यों ? आखिर क्यों ?

शिक्षा नीति गलत थी और है ,शिक्षक गलत थे और है लेकिन किसी के गलत होने से, या मेरे द्वारा किसी और को दोषी ठहराने से क्या मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाता हूँ ? जब बात सच के तलाश की आती है ,तो मैं अर्जुन या एकलव्य के सच को क्यों भूल जाता हूँ? वो भी औरों की तरह साधारण रह सकते थे ,लेकिन उन्होंने खुद पर मेहनत की और वे वो बन गए जिससे उनके शिक्षक का नाम अमर हो गया - गुरु द्रोणाचार्य !

सवाल सिर्फ ये नहीं है कि शिक्षा नीति गलत है या शिक्षक गलत है ,मुख्य प्रश्न ये भी पैदा होता है कि क्या छात्र सही है ? क्या शिक्षक छात्र को बनाते है ? क्लास के चालीस छात्रों में से टॉपर एक ही क्यों होता है ? क्या उस टॉपर को शिक्षक बनाते है या वो अपने दम पर टॉपर होता है ? द्रोणाचार्य किसी अर्जुन को अर्जुन बनाते है या कोई अर्जुन किसी को द्रोणाचार्य बनाता है या कोई एकलव्य बिना कुछ प्रत्यक्ष सीखे गुरु के नाम पर द्रोणाचार्य को अमर कर जाता है !!

या कहीं हकीकत ये तो नहीं कि मेरी रीढ़ की हड्डी पर पड़ा हुआ भूखे खिसियाए शिक्षक का घूँसा उसकी हद बन गया और मैंने खुद का विस्तार करकर व्यवसायी जगत की शार्कों के बीच तैरना सीख लिया लिहाजा आज मैं किसी गलत को गलत कह सकता हूँ और सही को सही - मेरे शिक्षक प्राइमरी क्लासेज को पढ़ाते-पढ़ाते प्राइमरी क्लासेज की मानसिकता को यथार्थ मान बैठे और वहीँ अटके रह गए - परियों और दैत्यों की कहानियों के बीच..

बिना औपचारिक शिक्षा के कोई बिल गेट्स बन जाता है और कोई धीरूभाई अम्बानी,और मैं हूँ कि सिर्फ दोष ढूंढता रहता हूँ-क्या जिम्मेदार होने की बजाय मैं दोषदर्शी हो गया हूँ ,ओफ़ सुबोध, ये तुम्हे कौनसी बीमारी लग गयी ,इस बीमारी से तो अधिकांश हिंदुस्तानी ग्रस्त है !!!

क्या किसी और को दोष देने से हम अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते है ? आपके लिए सवेरा आपके जागने पर होता है या आपके नींद में होने के बावजूद सूर्योदय के साथ ? ये निर्णय आप कर सकते है ,इस सवाल को किसी नेता पर ,किसी समाजसेवी पर,किसी शिक्षक पर,परिवार के मुखिया पर या अपनी जान-पहिचान के किसी समझदार काबिल इंसान के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता . ज़िन्दगी सवाल आपसे कर रही है लिहाजा जवाब भी आपको ही देना है !!
सुबोध

Tuesday, December 30, 2014

150 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप अगर कॉम्पिटिशन की सोच रहे है तो निश्चित ही अपनी ग्रोथ खत्म कर रहे है ,कॉम्पिटिशन की मत सोचिये बल्कि अपना बेस्ट दीजिये . अपने पैरामीटर्स इतने ऊँचे कर दीजिये कि दुसरे के लिए उन तक पहुंचना पहाड़ की चोटी पर बसेरा बनाने जैसा हो .
- सुबोध


Tuesday, November 25, 2014

149 . सही या गलत -निर्णय आपका !



पार्टनरशिप से अलग होने के बाद - पार्टनरशिप चाहे वो बिज़नेस की हो या ज़िन्दगी की .......

तुम्हारे फ़्रस्ट्रेशन की वजह मैं नहीं हूँ ,मैं तो सिर्फ तुम्हारे फ्रस्ट्रेशन का शिकार हूँ .जब हम अलग हुए थे -ज़िन्दगी में एक लम्बी दूरी साथ-साथ चलने के बाद , तब तुमने ज़िन्दगी भर की उपलब्धियाँ इकट्ठी करकर दो ढेरियां लगाई थी और कहा था एक तुम चुन लो दूसरी ढेरी मेरी हुई - यानी तुम्हारी निगाहों में दोनों ही ढेरियों का मूल्य एक जैसा था . मैंने वो ढेरी चुनी जिससे मुझे लगता था कि मेरे नेचर के अनुसार ये ढेरी मेरे लिए उपयुक्त है और दूसरी ढेरी तुम्हारी हो गई ,ज़माने में जब ये बात उघड़ी तो जो मेरे वाक़िफ़कार थे उनको मेरा चुनाव बेवकूफी भरा लगा था मैंने उन्हें समझाया कि बँटबारा उन चीज़ों का हुआ है जो हम दोनों ने मिलकर जुटाई है , चीज़ें बनाने के दरमियान काबिलियत भी बनती -बिगड़ती है , और काबिलियत का बंटवारा होना मुमकिन नहीं .

तुमने ज़िन्दगी भर चीज़ें बनाई थी और मैंने चीज़ें सम्हाली थी यानि तुम्हारी काबिलियत थी चीज़ें बनाना और मेरी काबिलियत थी चीज़ें सम्हालना.तुम्हारा अहंकार उस झगडे की मुख्य वजह था जिसमे अधिकार ये था कि चूँकि चीज़ें मैंने बनाई है इसलिए ये मेरी मिलकियत है और चूँकि सालो-साल साथ में रहे थे सो नतीजे के तौर पर दोनों में बंटवारा बराबर -बराबर का हुआ , और दो ढेरियों में से एक तुम्हारी हो गई और एक मेरी और बंटवारे को आज पांच साल भी नहीं गुजरे है कि तुम फ्रस्ट्रेड हो गए हो क्योंकि जो भी तुमने बंटवारा करकर हासिल किया था या इस दरमियान जो भी नया बनाया था / है वो सारे का सारा बिखर गया है / बिखर रहा है .

जबकि मैंने, मैं स्वीकार करता हूँ हमारे बनाये सिस्टम में कोई भी मोटा बदलाव नहीं किया, नया मैंने खास कुछ नहीं बनाया लेकिन जो बनाया हुआ था उसे अपनी काबिलियत के मुताबिक सम्हाला और बने-बनाये सिस्टम की गुडविल की वजह से कस्टमर बढ़ते गए / अच्छे लोग मुझसे जुड़ते गए और मेरा शुमार सफल लोगों में होने लगा ,क्या इसमें मेरी गलती थी ? मैंने वो चुना था जिसकी काबिलियत मुझमे थी जो किसी भी बिज़नेस का / ज़िन्दगी का सेकंड पार्ट होता है लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण पार्ट होता है और तुम तो कभी भी अमूनन सेकंड पार्ट को मैनेज करने के लिए बैठे ही नहीं थे.

तुम गहराई में जाकर खुद को क्यों नहीं जांचते कि तुम्हारी हार की वजह तुम खुद हो, तुम्हारा अहंकार है ,जहाँ भाव "अहम ब्रम्हास्मि" वाला है - कि मैं ही निर्माता हूँ मैं ही सब-कुछ हूँ . तुम इस बात को क्यों नहीं समझते कि चीज़ें बनानेवाली काबिलियत से ज्यादा महत्व चीज़ें सही तरीके से सम्हालने का होता है और वो काबिलियत तुम में थी ही नहीं ,तुम्हारी हार की वजह कोई गलत ढेरी का चुनाव नहीं था बल्कि ढेरी को सम्हाल न पाने की नाक़ाबिलियत थी. मैं दावे से कह सकता हूँ कि अगर तुम दूसरी ढेरी का चुनाव भी करते तो भी तुम्हारा हारना निश्चित था क्योंकि तुम में दुसरे भाग वाली काबिलियत ही नहीं थी - जो लम्बी ग्रोथ के लिए पहली आवश्यकता होती है .
सुबोध - नवंबर २५, २०१४
Photo: 149 . सही या गलत -निर्णय आपका !पार्टनरशिप से अलग होने के बाद - पार्टनरशिप   चाहे वो बिज़नेस की हो या ज़िन्दगी की .......तुम्हारे फ़्रस्ट्रेशन की वजह मैं नहीं हूँ ,मैं तो  सिर्फ तुम्हारे फ्रस्ट्रेशन का शिकार हूँ .जब हम अलग हुए थे -ज़िन्दगी में एक लम्बी दूरी साथ-साथ चलने के बाद , तब तुमने ज़िन्दगी भर की उपलब्धियाँ इकट्ठी करकर दो ढेरियां लगाई थी और कहा था एक तुम चुन लो दूसरी ढेरी मेरी हुई - यानी तुम्हारी निगाहों में दोनों ही ढेरियों का मूल्य एक जैसा था . मैंने वो ढेरी चुनी जिससे मुझे लगता था कि मेरे नेचर के अनुसार ये ढेरी मेरे लिए उपयुक्त है और दूसरी ढेरी तुम्हारी हो गई ,ज़माने में जब ये बात उघड़ी तो जो मेरे वाक़िफ़कार थे उनको मेरा चुनाव बेवकूफी भरा लगा था मैंने उन्हें समझाया कि बँटबारा उन चीज़ों का हुआ है जो हम दोनों ने मिलकर जुटाई है , चीज़ें बनाने के दरमियान काबिलियत भी बनती -बिगड़ती है , और काबिलियत का बंटवारा होना मुमकिन नहीं . तुमने ज़िन्दगी भर चीज़ें बनाई थी और मैंने चीज़ें सम्हाली थी यानि तुम्हारी काबिलियत थी चीज़ें बनाना और मेरी काबिलियत थी चीज़ें सम्हालना.तुम्हारा अहंकार उस झगडे की मुख्य वजह था जिसमे अधिकार ये था कि चूँकि चीज़ें मैंने बनाई है इसलिए ये मेरी मिलकियत है और चूँकि सालो-साल साथ में रहे थे सो नतीजे के तौर पर दोनों में बंटवारा बराबर -बराबर का हुआ , और दो ढेरियों में से एक तुम्हारी हो गई और एक मेरी और बंटवारे को आज पांच साल भी नहीं गुजरे है कि तुम फ्रस्ट्रेड हो गए हो क्योंकि जो भी तुमने बंटवारा करकर हासिल किया था या  इस दरमियान जो भी नया बनाया था / है  वो सारे का सारा बिखर गया है / बिखर रहा है .  जबकि मैंने, मैं स्वीकार करता हूँ हमारे  बनाये सिस्टम में कोई भी मोटा बदलाव नहीं किया, नया मैंने खास कुछ नहीं बनाया लेकिन जो बनाया हुआ था उसे अपनी काबिलियत के मुताबिक सम्हाला और बने-बनाये सिस्टम की गुडविल की वजह से कस्टमर बढ़ते गए / अच्छे लोग मुझसे जुड़ते गए  और मेरा शुमार सफल लोगों में होने लगा ,क्या इसमें मेरी गलती थी ? मैंने वो चुना था जिसकी काबिलियत मुझमे थी जो किसी भी बिज़नेस का / ज़िन्दगी का  सेकंड पार्ट होता है लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण पार्ट होता है और तुम तो कभी भी अमूनन सेकंड पार्ट को मैनेज करने के लिए बैठे ही नहीं थे.    तुम गहराई में जाकर खुद को क्यों नहीं जांचते कि तुम्हारी हार की वजह तुम खुद हो, तुम्हारा  अहंकार है ,जहाँ भाव "अहम ब्रम्हास्मि" वाला है - कि मैं ही निर्माता हूँ मैं ही सब-कुछ हूँ . तुम इस बात को क्यों नहीं समझते कि चीज़ें बनानेवाली काबिलियत से ज्यादा महत्व चीज़ें सही तरीके से सम्हालने का होता है और वो काबिलियत तुम में थी ही नहीं ,तुम्हारी हार की वजह कोई  गलत ढेरी का चुनाव नहीं था  बल्कि ढेरी को सम्हाल न पाने की नाक़ाबिलियत  थी. मैं दावे से कह सकता हूँ कि अगर  तुम दूसरी ढेरी का चुनाव भी करते तो भी तुम्हारा हारना निश्चित था क्योंकि तुम में दुसरे भाग वाली काबिलियत ही नहीं थी - जो लम्बी ग्रोथ के लिए पहली आवश्यकता होती है .सुबोध - नवंबर २५, २०१४

Wednesday, November 19, 2014

148 . सही या गलत -निर्णय आपका



भविष्य का गरीब जानने का प्रयास करता है ,एक बुक और पढ़ लूँ ,एक वीडियो और देख लूँ,एक मुलाकात और कर लूँ ,इस प्रोजेक्ट में कहीं कोई कमी नहीं रह जाए ,ये भी जान लूँ,वो भी जान लूँ ,और इस जानने के चक्कर में हरी बत्ती लाल हो जाती है और वो जानता ही रहता है ,इसे आप सोच का लकवा भी कह सकते है कि आदमी सिर्फ और सिर्फ जानकारियां इकट्ठी करता रहता है ,ज्ञान बटोरता रहता है लेकिन जाने हुए का उपयोग नहीं करता ,एक डर,एक खौफ ,एक भय काफी कुछ जानने के बाद भी उसमे रहता है कि कहीं कुछ ऐसा तो नहीं है जिसे मैं नहीं जानता क्योंकि उसने यही सुना,समझा और सीखा है कि अज्ञान से बड़ा कोई शत्रु नहीं होता .

भविष्य का अमीर भी जानने का प्रयास करता है लेकिन वो जानता है कि बुक पढ़ने से,वीडियो देखने से या किसी से मुलाकात करने से मैं सब कुछ नहीं जान पाउँगा ,जब तक मैं खुद शुरू नहीं करूँगा कोई भी मेरी मदद नहीं कर पायेगा ,तैरना सीखने के बारे में पचासों बुक पढ़ने से या ढेरों वीडियो देखने से या किसी ओलम्पिक गोल्ड मेडलिस्ट से मुलाकात करने के बाद भी मैं तब तक तैरना नहीं सीख सकता जब तक मैं खुद को स्विमिंग पूल में नहीं उतारता हूँ , और उसे पता होता है कि जब तक दो- चार बार मैं नाक में ,मुहँ में पानी नहीं भर लूंगा तब तक मेरे तैराक बनने की संभावनाएं न के बराबर है .लिहाजा वो जीतनी शीघ्रता से जानकारियां इकट्ठी कर पाता है करता है और अपने प्रोजेक्ट को शुरू कर देता है और जैसे जैसे समस्याएं आती है वैसे-वैसे उनके समाधान निकालता रहता है .वो जानता है महत्त्वपूर्ण जानना नहीं है जाने हुए का इस्तेमाल करना है .

और जहाँ तक अमीर की बात है उसके पास पहले से ही सम्बंधित विषय पर पूरी जानकारी वाली टीम मौजूद होती है क्योंकि वो दूसरे व्यक्ति का समय खरीदते है और दूसरे व्यक्ति का पैसा इस्तेमाल करते है जो अमीरी की राह की सबसे बड़ी जरूरत होती है ( इस बारे में पोस्ट 75 पढ़ें )
सुबोध
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Tuesday, November 18, 2014

147 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आनेवाले आर्थिक परिवर्तन,नए-नए आविष्कार ,टेक्नोलॉजी के चमत्कार जहाँ कुछ ठहरे हुए लोगों को भयभीत करते है वही कुछ लोगों के लिए नए अवसर ,चमकदार रोशनी, खूबसूरत सुबह की शुरुआत करते है .

जिनका दिमाग खुला है ,जिनमे लचीलापन है ,जो नया जानने,समझने और करने को तैयार है वही इस युग में पैसा बना पाएंगे अन्यथा तो सिर्फ रोटी ही कमा पाएंगे और वो भी शायद .

 
जितने ज्यादा बदलाव और शीघ्रता से उन बदलावों का फैलाव इस युग में हो रहा है उतना पहले कभी भी नहीं हुआ इसकी बड़ी वजह सूचना क्रांति युग है .
 

औद्योगिक युग के ढांचे की, तब की कुछ आवश्यकताएं आज विलासिता बन गयी है और कुछ नासमझ आज भी उन्हें ढ़ो रहे है .ये वही लोग है जो विकास के तेज परिवर्तन की आँधी को स्वीकार नहीं कर पा रहे है . कुछ इस लिए कि उन्हें अपने कम्फर्ट जोन को तोडना पड़ेगा और कुछ इस लिए कि पुराने ढांचे से जो उन्होंने पैसे के रिसाव का श्रोत बनाया था वो सूख जायेगा .वे अपने छोटे फायदे के लिए बड़े नुकसान को  " हाँ "  कर रहे है .

परिवर्तन जब भी होते है , अपने साथ पूँजी की, सत्ता की , सुविधाओं  की बहुत बड़ी अदला-बदली भी लेकर आते है ,अगर आपने खुद को आने वाले परिवर्तन के लिए तैयार कर लिया है तो आने वाला समय आपका है ,जहाज जो बंदरगाह छोड़ चूका उसका अफ़सोस मत कीजिये ,आनेवाले समय में एक नया शिकार नजर  आयेगा आप निशाना तैयार रखे . खुद को शिक्षित करें - खास तौर पर वित्तीय शिक्षा प्राप्त करें, अमीर वही बन पाएंगे जो वित्तीय तौर पर शिक्षित होंगे क्योंकि इस युग में पैसे आने के जितने रास्ते है उससे ज्यादा रास्ते पैसे के जाने के है .
- सुबोध 

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Saturday, November 15, 2014

अमीर यु हीं अमीर नहीं होता (४)


ख्वाइश इतनी सी
कि हालात बेहतर हो जाए
मेरा आरामदेह क्षेत्र (comfort  zone  ) रहे सुरक्षित
इस सोच की वजह से 
कोशिशें होती है आधी-अधूरी. 
शुभचिंतकों की
असफलता की  फिक्र
फुला देती है हाथ-पाँव .
काम की शुरुआत
अकेले से होती है
ख़त्म २-४ पर होती है.
इस्तेमाल किये जाते है
औद्यौगिक युग के औज़ार,
पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ी . 
हर काम /उपाय/कोशिश  होते है छोटे
ज़ाहिर है सफल होने पर
सफलता भी
प्रयासों के अनुरूप ही परिणाम देगी
लिहाज़ा छोटे क़दमों  की सफलता
किसी कोने में दुबकी रह जाती है
क्योंकि जो छोटा सोचते है
वो गरीब होते है .....
-

उन्हें झोंकना पड़ता है
अपना सब कुछ ,
सब कुछ माने सब कुछ -
समय,
ऊर्जा,
मेहनत,
पूँजी,
हार न मानने का ज़ज़्बा ,
काबिलियत.
नकारना होता है
समाज/दोस्तों का खौफ,
मज़ा आरामदेह क्षेत्र का.
शुरुआत होती है अकेले से
 लेकिन जोड़ लेते है
 पूरी टीम ,पूरा नेटवर्क.
इस्तेमाल किये जाते है
आधुनिक युग के औज़ार,
पेड़ काटने के लिए इलेक्ट्रिक आरी .
हार उनके दिमाग में
मौत की तरह होती है
लिहाज़ा तैयार होते है कई
वैकल्पिक रास्ते. 
हारेंगे तो
शुरुआत करेंगे नए सिरे से.
जीतेंगे तो जश्न मनाएंगे....
और वो मानते है जश्न
क्योंकि जो बड़ा सोचते है
वो अमीर होते है .

सुबोध- ३० मई, २०१४


Tuesday, November 11, 2014

145 . सही या गलत -निर्णय आपका !

अगर आप गलती करते हो और अपनी गलती को समझ नहीं पाते हो तो उसे बर्बादी की शुरुवात समझो और अगर अपनी गलती को समझ लेते हो ,स्वीकार कर लेते हो तो उसे फला हुआ आशीर्वाद मानो क्योंकि आपके दिल ने , आपके दिमाग ने आपको इतनी शक्ति दी है कि आप अपनी गलती स्वीकार कर पा रहे हो .ध्यान रहे सुधार हमेशा स्वीकार के बाद होता है ,अब आपके अच्छे दिन शुरू हो गए है कि आप गलतियों को स्वीकारने लगे है ,जिम्मेदारी लेने लगे है .

अगर आप कोई उपलब्धि हासिल कर लेते हो तो आप नई ऊंचाइयां पाने जा रहे हो क्योंकि उस फार्मूले को समझना जिससे उपलब्धियां हासिल होती है बहुत बड़ी उपलब्धि है ,उसे बार -बार दोहराया जा सकता है बिलकुल वैसे ही जैसे कि पहला लाख बनाने का फार्मूला समझने के बाद अमीर बनना उतना मुश्किल नहीं रह जाता जितना पहला लाख बनाना था.

आप हारे या जीते ,एक बार की हार या जीत से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता ,फर्क इस बात से पड़ता है कि आपने अपनी हार से या जीत से सीखा क्या है और फर्क इससे पड़ता है कि आपने अपनी हार को जीत में बदलना सीखा है या नहीं और फर्क इससे पड़ता कि आपने अपनी जीत का फार्मूला बराबर याद करकर उसे बार-बार दोहराया है या नहीं !!!

क्योंकि हार कर जीतना और उस जीत को बार-बार दोहराना ही आपको आपकी सपनो की दुनिया की सैर करवाएगा - सतरंगी सपनो की दुनिया की सैर !!!

आइये शुरू करें क्योंकि डरकर ठहरने से ज्यादा या सोच के लकवे से ग्रस्त होकर जीने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण शुरुआत करना है, शुरू करे उस एक अंजानी दुनिया को खंगालना जो अनछुए-अनचीन्हे उपलब्धियों भरे संसार तक ले जाती है और वहां पूरी तरह सही होने का प्रेशर अपने ऊपर नहीं रखे , अगर गलती होती है तो उसे स्वीकार करे ,सुधार करे, हार को जीत में बदले और जीत को दुबारा जीत में और फिर एक और जीत में .....

लम्बी से लम्बी दूरी तय करना मुश्किल नहीं होता, मुश्किल पहला कदम उठाना होता है !!!!
-सुबोध
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Sunday, November 9, 2014

144 . सही या गलत -निर्णय आपका !

तुम्हारा डर तुम्हारे विश्लेषण की वजह से पैदा होता है ,तुम जो जीवन का ,जीवन में होने वाली भविष्य की घटनाओं का विश्लेषण करते हो ,उनके होने का अंदाजा लगाते हो वही तुम्हे भयभीत करता है ,हालाँकि तुम्हारे अंदाज़े ,तुम्हारे विश्लेषण अधिकांश बार गलत होते है ,तुम वर्त्तमान में सिर्फ साँसे लेते हो जीते भविष्य में हो कि ये होगा ,ये नहीं होगा. तुम दिन भर भविष्य की सोचते हो , वर्तमान को जीना जब शुरू कर दोगे तो तुम्हारा डर ख़त्म हो  जायेगा .
तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म पर है और यही वो कार्य है जो तुम वर्त्तमान में कर सकते हो ,फल पर तुम्हारा अनुमान हो सकता है अधिकार नहीं है . क्योंकि फल पाना  बहुत से अन्य कारको पर निर्भर करता है .
आइये इसे एक उदाहरण से समझे .
आप पहाड़ी सड़क से पैदल गुजर रहे है , करीबन पच्चीस फुट दूर सड़क के बाई तरफ आप एक साँप को देखते है और आप रुक जाते है , अब यही से आपका दिमाग भविष्य का अंदाजा लगाने लगता है कि अगर मैं रोड से गुजरा और साँप ने मुझे काट लिया तो ? यहाँ पास में कोई अस्पताल भी नहीं है यहाँ से शहर 10  किलोमीटर दूर है ,मैं वहां कैसे पहुंचूंगा  ,वहां डॉक्टर नहीं मिला तो ? अगर मिल भी गया तो सरकारी अस्पताल  में मुझे हाथोहाथ नहीं देखा तो ? घर पर मेरे पेरेंट्स  को पता चलेगा तो ? मुझे देखने कौन- कौन आएगा , विनय से पिछले हफ्ते झगड़ा हो गया था क्या वो भी मुझे देखने आएगा ?
आप इस तरह की ढेरों बातें सोच रहे है उनका विश्लेषण कर रहे है ,परेशान हो रहे है तभी वहां से एक पहाड़ी गुजरता है और पूछता है " बाबूजी क्या हुआ ?"
आप इशारे से साँप को दिखाते है .
वो देखता है और हँसते हुए जवाब देता है
"बाबूजी, सर्दी के शुरूआती दिन है साँप धुप सेंकने आया है ,लेकिन डरिये मत हर साँप ज़हरीला नहीं होता ये दो मुंहा साँप  है इसमें ज़हर नहीं होता ."
वह आपका हाथ पकड़ता है और खुद साँप की तरफ होकर आपको सड़क पार करवा देता है .
अब आप खुद इस घटना का विश्लेषण कीजिये .
हम ज़िन्दगी में इसी तरह के ढेरों साँपों  से हर रोज़ खुद को घेर लेते है - कभी परीक्षा रुपी साँप,कभी बॉस रुपी साँप,कभी पैसे रुपी साँप यानि कुछ भी करने से पहले हम एक साँप का सामना करते है और ढेरों असम्बद्ध सवालों को सोचते है जवाब तैयार करते है ,विश्लेषण करते है - सिर्फ भविष्य को जीते है और वर्त्तमान में होकर भी वर्त्तमान  को कहीं पीछे छोड़ देते है .
अगर आप वर्त्तमान को जीते तो साँप को वहां से हटाने के लिए उस पर पत्थर फेंक सकते थे, या सड़क के दुसरे छोर से गुजर सकते थे ,या किसी टहनी को , लकड़ी को अपने बचाव के लिए  हथियार के तौर पर साथ लेकर चलते और भी कई रास्ते हो सकते थे लेकिन आप तो घटनाओं का विश्लेषण  करने लगे और फल के तौर पर खुद को साँप का काटा हुआ मान लिया  जबकि हो सकता था कि साँप आपकी पदचाप सुनकर खुद ही सड़क से हट जाता . 
यानि यहाँ आप उन चीज़ों को  लेकर परेशान थे  जिनकी भविष्य में होने की  संभावना मात्र  थी   लेकिन इस संभावना में आप इस कदर डूब गए कि अपने वर्त्तमान में जो आप कर सकते थे  वो भी आपने नहीं किया .
अमूनन हर गरीब , असफल, हारा हुआ इंसान वही होता है  वो साँप देखकर रूक जाता है और हर अमीर ,हर सफल,हर विजेता इंसान वही होता है जो साँप को देखकर डरता है लेकिन उस डर से वह रूकता नहीं है क्योंकि वो जानता है डर भविष्य के विश्लेषण में है जबकि हमारे हाथ में आज है ,हमारा वर्त्तमान है !

" डर के आगे जीत है " बच्चा-बच्चा इस वाक्य से, मोटिवेशनल वाक्य से वाकिफ है लेकिन चूँकि वो बच्चा है इसलिए इस वाक्य के अनुरूप व्यवहार नहीं कर पाता. आपने  भी इस वाक्य को ढेरों बार सुना है लेकिन आप तो बच्चे नहीं है ,आप बड़ों की तरह इस डर से आगे क्यों नहीं जाते ?
अमीर और गरीब में सबसे बड़ा फर्क यही है की गरीब  डर देखकर रूक जाता है जबकि अमीर डर कर रूकता नहीं है बल्कि डर का सामना करता है, उसे प्रबंधित करता है .
सुबोध 

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Thursday, October 16, 2014

143 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट 137 से आगे -
किसी प्रोडक्ट की सेल क्लोज करने से पहले प्रोडक्ट की खासियतों  के बारे में बताया जाता है ,इसे प्रोडक्ट का प्रचार करना भी कहते है. कुछ लोग प्रचार से चिढ़ते है जो सफलता की राह में एक बड़ी बाधा है .प्रचार से चिढना या सेल से बचने की कोशिश करना आपको मुनाफे से दूर करता है और  इस  तरह  की हरकतें अमूनन गरीब  लोग करते  है.अगर  आप  प्रचार करने और  सेल करने से बच  रहे  है तो  खुद की कीमत  कैसे  बढ़ाएंगे? ऐसी स्थिति में अगर आप किसी  कंपनी में कर्मचारी है तो कोई दूसरा एम्प्लोयी अपनी खासियतें बता कर आपसे आगे निकल जायेगा और अगर आप व्यापारी है तो  बिना अपने प्रोडक्ट की खासियत बताये लोगों की निगाहों में कैसे आएंगे ? 
पुरानी कहावत है "लोग उसकी सुनते है जो बोलता है" तो बोलिए - अपनी ,अपने प्रोडक्ट की खासियतें बताइये .
लोगों को कई कारणों से प्रचार करने या बेचने में समस्या महसूस होती है ,आइये उन्हें समझे -
1 . आपका दिमाग आपका स्टोररूम है इस स्टोररूम में आपके साथ जो भी गुजरा हो वो आप चाहे या न चाहे अलग-अलग रिलेटेड फाइल में जाकर फाइल होता रहता है .और जब उस घटना या वाक्यात के जैसा या मिलता जुलता दुबारा आपके सामने आता है तो आपके दिमाग का स्टोररूम उससे सम्बंधित फाइल आपको पकड़ा देता है कि देखो ऐसा तुम्हारे साथ पहले भी हुआ है और उसका ये परिणाम रहा था . ये सारी क्रियाएँ स्वाभाविक सी है और हम सब इस बारे में अनुभवी है .
हो सकता है आपके साथ अतीत में कुछ बुरा हुआ हो ,जब किसी ने जबरन आपको कोई सामान बेचा हो  जो आपको आपके अनुसार पूरा मूल्य नहीं दे पाया हो या बेचने वाले ने गलत तरीके से प्रचार किया हो और आप खुद को ठगा गया महसूस करते हो  या बेचने वाले ने सामान खरीदने के लिए इतना ज्यादा आपको परेशान किया हो कि आपको सेल्स के नाम से ही चिढ़ होती हो .इसलिए आप आज सेल्स को अच्छा नहीं समझते . ये आपके व्यक्तिगत अनुभव हो सकते है या सामूहिक अनुभव भी हो सकते है  .
कृपया ये ध्यान रखे आपके साथ अतीत में जो हुआ है वो एक  हादसा था और हादसों को पकड़ कर रखने से ज़िन्दगी में डर,नफरत ,निराशा और दर्द के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होता ,ज़िन्दगी आगे बढ़ने के लिए होती है और कल का सच आज भी सच हो ये ज़रूरी नहीं .

2 . हो सकता है आपने कभी कोई सामान बेचने की कोशिश की हो ,जिसके बारे में आपको खुद को पूरी जानकारी नहीं थी और संभावित खरीददार ने आपको नकार दिया हो ,उसने आपको इस तरह के तर्क दिये हो जिनका आप जवाब नहीं दे पाये हो या आपको बुरी तरह से फटकारा  गया हो, अपमानित किया गया हो और उस हादसे को आप अभी तक नहीं भूला पाये हो,आप उस काम के लिए ग्लानि महसूस करते हो उससे उबर  नहीं पाये हो .
 कृपया ध्यान देवे अपनी एक बार की असफलता या अस्वीकृति को ज़िन्दगी भर मत ढोयें, वो एक बार का बोझ अभी तक आपको उबरने नहीं दे रहा है उस बोझ को काँधे से , दिमाग से उतार फेंक दीजिये वो बोझ सिर्फ हाथी के  पैरों की कमजोर बेड़ी है- हाथी की ताकत से कही बहुत कमजोर उसे समझिए और कंडीशनिंग की प्रदूषित दुनिया से बाहर आकर खुली हवा में सांस लीजिये .

3- अमूनन हम सबको ये सिखाया जाता है कि अपनी खुद की या खुद की वस्तुओं की तारीफ़ नहीं करनी चाहिए ,ये "अपने मुँह मियां मिट्ठू बनना" कहलाता है और बार बार दी गई हिदायतें ,सिखाया गया एटीकेट हमारी आदत  बन जाता है लिहाजा हम अपनी या अपनी वस्तुओं की तारीफ़ करना सभ्यता  के अनुकूल नहीं मानते ,ये संस्कार हमे सेल्स से दूर कर देते है,प्रचार से दूर कर देते है .
कृपया ध्यान देवे ये संस्कार आदिम युग के ज़माने के है जब आबादी इतनी कम थी कि लोग स्वयं एक-दूसरे के बारें में जानते थे तब उन्हें अपने बारे में बताना अपनी बड़ाई करना था , हम सदियों से उन संस्कारों को ढोये जा रहे है जो अपनी उपयोगिता खो चुके है , बल्कि यही बेवकूफी भरे संस्कार ,एटीकेट हमारी ग्रोथ में रुकावट बन गए है . हम अपने बारे में लोगों को बताते नहीं है यहाँ तक कि हमारा पडोसी भी हमारे बारें में नहीं जानता . जब तक आप अपनी या अपने प्रोडक्ट की खासियत या काबिलियत लोगों तक पहुंचाएंगे नहीं और लोगों को पता नहीं चलेगा आपकी उन्नति के मार्ग प्रशस्त नहीं होंगे ये समझ लीजिये और याद कीजिये उस पुरानी कहावत को कि "जो दिखता है वो बिकता है " तो खुद को ,अपने प्रोडक्ट को दिखाइए ,एक्सप्लेन या एडवर्टाइज  करने के नए-नए तरीके अपनाइये .

4  . हो सकता हो आपमें सुपेरिओरिटी  काम्प्लेक्स हो कि मैं जब बेहतरीन हूँ ,मेरा प्रोडक्ट जब बहुत अच्छा है तो मुझे प्रचार की क्या ज़रुरत है लोग मुझ तक अपने-आप ढूंढते हुए आएंगे,उन्हें आना चाहिए .ये एक तरह नजरिया होता है जिसमे उच्चता की भावना प्रबल होती है इतनी प्रबल कि  उन्हें लगता है प्रचार करना मेरी शान के खिलाफ ही नहीं है बल्कि मेरा अपमान है . उन्हें लगता है कि मैं इतना खास हूँ या मेरा प्रोडक्ट इतना ज़बरदस्त है कि लोगों को किसी तरह खोज कर मेरे पास आना चाहिए . यह अहंकार का ही दूसरा रूप होता है .
जो लोग इस तरह से सोचते है या जिनकी ये मानसिकता बन गयी है जिन्होंने अपने दिमाग के दरवाज़े बंद कर लिए है उनके बारे में तय है कि ये अपने कम्फर्ट जोन में है और उनकी उन्नति की सम्भावनाये सीमित है .इस तरह की सोच उन्हें दिवालियेपन  की और धकेल रही है क्योंकि इस युग में अच्छे प्रोडक्ट्स की भरमार है और जिनके पास प्रोडक्ट है वे सुनियोजित तरीके से प्रचार के माध्यम से अपनी  पैठ ग्राहकों तक बना रहे है और आप इस घमंड में है कि मेरे बेहतरीन प्रोडक्ट की जानकारी करते हुए, ढूंढते हुए  लोग मुझ तक चला कर आएंगे .
पुराने ज़माने की कहावत कि ":बेहतर प्रोडक्ट बनाइये दुनिया आपका दरवाज़ा खटखाएगी " आज अधूरी हो गई है इसमें ये शब्द और जोड़ दीजिये तो ये पूरी हो जाएगी और ये आज का इसका वर्जन इस युग के अनुसार ज्यादा सटीक है  "बशर्ते आप दुनिया को इसके बारे में बताये  " सुपेरिओरिटी काम्प्लेक्स वालों को पुरानी कहावत याद है आधी कहावत कृपया उन्हें पूरी कहावत याद करनी चाहिए
"बेहतर प्रोडक्ट बनाइये दुनिया आपका दरवाज़ा खटखाएगी,बशर्ते आप दुनिया को इसके बारे में बताये  "

5  . हो सकता है आपकी कंडीशनिंग ऐसी हुई हो जिसमे आपको सेल्समेन  के बारे में कुछ गलत बातें बताई गई हो  ,आपके दिमाग में उनकी गलत छवि बनायीं गई हो और इसके लिए बहुत से उदाहरण बताये गए हो,दिखाए गए हो .
एक गलत तरीके की कंडीशनिंग से छुटकारा पाने के तरीके मेरी पुरानी पोस्ट्स में बताये गए है कृपया उन्हें देखे .

ध्यान देवे अमीर लोग हमेशा बहुत अच्छे प्रचारक होते है ये अपनी खासियतों को,अपनी सेवाओं को,अपने प्रोडक्ट को  बेहतरीन पैकेजिंग में पेश करते है .ये इतने जोश और उत्साह से ये सब करते है कि उनकी मार्किट वैल्यू हमेशा बढ़ती रहती है . उनकी अमीरी का महत्वपूर्ण राज उनकी सेल्स की काबिलियत है !!
सुबोध
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Tuesday, October 14, 2014

142 . सही या गलत -निर्णय आपका !

व्यवसाय चलाने के लिए टेक्नोलॉजी और व्यवहारिकता दोनों की ज़रुरत होती है .
लोगों से मिलना- जुलना सीखिये ,उनसे व्यवहार करना सीखिये व्यवहारिक बनिये , व्यवहार मार्किट में बिकनेवाली वस्तु नहीं है कि ज़रुरत हुई और जाकर खरीद लाये .
टेक्नोलॉजी और टेक्नीशियन आप फिर भी मार्किट से खरीद सकते है , ये मार्किट में मिलते है !
ध्यान देवे किसी एम्प्लोयी को उसकी किसी स्किल के कारण चुना जाता है और व्यवहारिक न होने की वजह से निकाल दिया जाता है. आप अपनी स्किल की वजह से जॉब पा सकते है मगर उस जॉब को बरक़रार रखने के लिए आपमें व्यवहारिकता होनी चाहिए .स्किल आपको जॉब दिला सकती है लेकिन वो व्यवहारिकता है जो आपको जॉब में टिका सकती है .
अगर आप बिजनेसमैन है तो आपके बिज़नेस पर भी यही फंडा लागू होता है - आपकी सफलता आपकी व्यवहारिकता में है .
- सुबोध
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Monday, October 13, 2014

141 . सही या गलत -निर्णय आपका !



बहुत से लोगों के पास बहुत सी बेहतरीन आइडियाज होती है लेकिन वो उनके दिमाग में होती है और वही दफ़्न हो जाती है वो उनकी महान आईडिया इस लायक नहीं बन पाती कि लाखो-करोडो पैदा कर सके ,इसकी मुख्य वजह ये है कि जिनके दिमाग में ये आईडिया आती है वो खुद को बहुत ही साधारण मानते है उस आईडिया पर गंभीरता से विचार और कार्य नहीं करते ,उन्हें खुद को इसकी सफलता पर संदेह रहता है .

उनका अधूरापन उनका दुश्मन बन जाता है ,कोई और उसी आईडिया पर काम करता है और पैसों का ढेर लगा लेता है लेकिन उनकी छोटेपन की कंडीशनिंग उनका पीछा नहीं छोड़ती ,उन्हें लगता है कि ग्रेट आईडिया सिर्फ ग्रेट लोगों के ही दिमाग में आ सकते है हम जैसे साधारण लोग साधारण पैदा होते है ,साधारणता में गुजारा करते है और साधारणता में ही गुजर जाते है .

वे इस बात को नहीं समझ पाते कि विचारों पर किसी का भी एकाधिकार नहीं होता . प्रकृति ने किसी भी व्यक्ति के साथ किसी किस्म का भेद-भाव नहीं किया , सबको बराबर धूप ,बराबर पानी ,बराबर हवा, बराबर खुशबु, बराबर वक्त ,बराबर अँधेरा ,बराबर रोशनी, बराबर निराशा ,बराबर आशा,बराबर एहसास कहने का अर्थ हर चीज़ बराबर -बराबर दी है ,व्यक्ति ने अपने बैरियर्स खुद बनाये है .

एक गरीब को लगता है कि मैं झुग्गी-झोपड़ी में रहता हूँ ,मेरे यहाँ रोशनी कम आती है ,जबकि अमीरों के बंगले में भरपूर रोशनी होती है ये उसकी सोच उसका दायरा बन जाती है और वो इस सोच को अपने दुर्भाग्य से जोड़ लेता है ,अपनी,अपने पेरेंट्स की नाकामी से जोड़ लेता है ;धीरे-धीरे यही सोच बड़ी होती जाती है ,ज़िन्दगी के दूसरे क्षेत्र में भी छाने लगती है और प्रकृति ने जिस" बराबर इंसान" को पैदा किया था वो खुद को छोटा मानने लगता है ,छोटा हो जाता है ! लिहाजा उसके दिमाग में आनेवाली महान आईडिया भी उसको बेवकूफी लगती है .

कुछ लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहते है,जहाँ रोशनी कम आती है लेकिन वे कम रोशनी को नहीं देखते ,देखते है कि झुग्गी-झोपड़ी से निकलने के बाद रोशनी का कोई फर्क नहीं रह जाता वे प्रकृति को धन्यवाद देते है और दूसरी नियामतें जो प्रकृति ने उन्हें दी है उन पर ध्यान केंद्रित करते है और उन नियामतों की ताकत के बल पर कुछ ऐसा कर गुजरते है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाता है ,वे किसी भी तरह के बैरियर्स से खुद को आज़ाद रखते है !
ध्यान रखे हारने वाले के लिए बहाने बहुत होते है और जीतने वाले के लिए रास्ते बहुत होते है !!!
सुबोध
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Photo: 141 . सही या गलत -निर्णय आपका !बहुत से लोगों के पास बहुत सी बेहतरीन आइडियाज होती है लेकिन वो उनके दिमाग में होती है और वही दफ़्न हो जाती है वो उनकी महान आईडिया इस लायक नहीं बन पाती  कि लाखो-करोडो पैदा कर सके ,इसकी मुख्य वजह ये है कि जिनके दिमाग में ये आईडिया आती है वो खुद को बहुत ही साधारण मानते है उस आईडिया पर गंभीरता से विचार और कार्य नहीं करते ,उन्हें खुद को इसकी सफलता पर संदेह रहता है .  उनका  अधूरापन उनका  दुश्मन बन जाता है ,कोई और उसी आईडिया पर काम करता है और पैसों का ढेर लगा लेता है लेकिन उनकी छोटेपन की कंडीशनिंग उनका पीछा नहीं छोड़ती ,उन्हें लगता है कि ग्रेट आईडिया सिर्फ ग्रेट लोगों के ही दिमाग में आ सकते है हम जैसे साधारण लोग साधारण पैदा होते है ,साधारणता में गुजारा करते है और साधारणता में ही  गुजर जाते है .वे इस बात को नहीं समझ पाते कि विचारों पर किसी का भी एकाधिकार नहीं होता . प्रकृति ने किसी भी व्यक्ति के साथ किसी किस्म का भेद-भाव नहीं किया , सबको बराबर धूप ,बराबर पानी ,बराबर हवा, बराबर खुशबु, बराबर वक्त ,बराबर अँधेरा ,बराबर रोशनी, बराबर निराशा ,बराबर आशा,बराबर एहसास कहने का अर्थ हर चीज़ बराबर -बराबर दी है ,व्यक्ति ने अपने बैरियर्स खुद बनाये है . एक गरीब को लगता है कि मैं झुग्गी-झोपड़ी  में रहता हूँ ,मेरे यहाँ रोशनी कम आती है ,जबकि अमीरों के बंगले में भरपूर रोशनी होती है ये उसकी सोच उसका  दायरा बन जाती है और वो इस सोच को अपने दुर्भाग्य से जोड़ लेता है ,अपनी,अपने पेरेंट्स की नाकामी से जोड़ लेता है ;धीरे-धीरे यही सोच बड़ी होती जाती है ,ज़िन्दगी के दूसरे क्षेत्र में भी छाने लगती है और प्रकृति ने जिस" बराबर इंसान" को पैदा किया था वो खुद  को छोटा मानने लगता है ,छोटा हो जाता है ! लिहाजा उसके दिमाग में आनेवाली महान आईडिया भी उसको बेवकूफी लगती है . कुछ लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहते है,जहाँ रोशनी कम आती है लेकिन वे कम रोशनी को नहीं देखते ,देखते है कि झुग्गी-झोपड़ी से निकलने के बाद रोशनी का कोई फर्क नहीं रह जाता वे प्रकृति को धन्यवाद देते है  और दूसरी नियामतें जो प्रकृति ने उन्हें दी है उन पर ध्यान केंद्रित करते है और उन नियामतों की ताकत के बल पर कुछ ऐसा कर गुजरते है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाता है ,वे किसी भी तरह के बैरियर्स से खुद को आज़ाद रखते है !ध्यान रखे हारने वाले के लिए बहाने बहुत होते है और जीतने वाले के लिए  रास्ते बहुत होते है !!!सुबोध  www.saralservices.com

Friday, October 10, 2014

140 . सही या गलत -निर्णय आपका !

           बड़ी अजीब सी सोच होती है लोगों की , उन्हें सफलता चाहिए होती है लेकिन उन्हें सफलता का शॉर्टकट चाहिए .अब उन्हें कौन समझाये और कैसे समझाये कि  कुछ चीज़ों का शॉर्टकट नहीं होता उन चीज़ों को अगर आप  शॉर्टकट से पा भी लेंगे  तो वे लम्बे वक्त तक टिकेगी नहीं . जैसे वो शॉर्टकट से आई है उसी तरह वो चली भी जाएगी ,बिना नींव के पहली बात छोटे-मोटे टेंट टाइप के मकान बन सकते है एक बड़ी और शानदार बिल्डिंग के लिए तो आपको नींव की ज़रुरत होगी .और दूसरी बात ज़िन्दगी का तूफ़ान ,एक विपरीत परिस्थिति आपकी टेंट टाइप की हैसियत को सुखहाली से  बदहाली में बदल देगी इसलिए आप एक नींव बनाये और नींव तो नींव होती है फिर वो चाहे मकान की हो ,आपकी शिक्षा की हो,आपकी अमीरी की हो  या फिर आपकी किसी अन्य सफलता की हो .
       अगर आपने अपनी नींव को मज़बूत बनाया है तो पहली बात आप सेफ है और दूसरी बात अगर किसी  हादसे के कारण आप बर्बाद भी हो जाते है तो आप दुबारा खड़े हो पाएंगे -फीनिक्स की तरह . क्योंकि नींव बनाने के दरम्यान आपने सीखा होता है कि रुकावटों से पार कैसे पाया जाता है जबकि शॉर्टकट में तो आप ज़िन्दगी की ऊंच-नीच से वाकिफ ही नहीं हो पाते .आपने सिर्फ पहाड़ की चोटी देखी है ,चढ़ाई के दौरान आनेवाली दिक्कतों को न देखा है ,न समझा है ,न महसूस किया है और न ही जीया है तो अगर चोटी से जिस दिन आप  लुढक गए उस दिन आपका  क्या होगा ? हर बार तो ज़िन्दगी शॉर्टकट से आपको  चोटी पर नहीं पहुंचा सकती है - हर दिन सट्टेबाज़ों का नहीं होता,जुआरियों का नहीं होता ,लाटरी जीतने वालों  का नहीं होता .
        अगर आपको अपनी सफलता को स्थायित्व देना है तो आपको उस लम्बे प्रोसेस से गुजरना ही होगा जहाँ आप चीज़ों को बनाना सीखते है (बना कर पाई हुई चीज़ आपको ज्यादा संतुष्टि देती है-- आपको अपनी पहली ख़रीदी गई फ्रीज़ की, गाड़ी की मनस्थिति आज भी याद होगी ! ) सम्हालना सीखते है ,बढ़ाना सीखते है . अगर आपने तुक्के में कोई  सफलता पाई है तो पहली बात आप उस सफलता को पचा नहीं पाएंगे आपको उल्टी ( vomiting  ) हो जाएगी और खुदा न खास्ता आपने उसे पचा लिया तो दूसरी बात आप उसे बढ़ा नहीं पाएंगे क्योंकि बढ़ाने में जो काबिलियत चाहिए वो काबिलियत तो आपमें है ही नहीं .तो बेहतर है रास्ता वो चुनिए जिसमे स्थायित्व हो बेशक वो चाहे लम्बा ही क्यों न हो क्योंकि उस रास्ते में हो सकता आप परेशान हो जाए,आपको जगह-जगह चोट लगे, आप चलते-चलते थक जाये,प्यास से आपका गला सूखे,भूख से आतें कुलबुलाये ,आपकी सांस फूल जाये ,हज़ार मुसीबतें आपको मिले लेकिन उस रास्ते से गुजरने के बाद आप जो पाएंगे वो स्थायी होगा और रास्ते के बीच झेली हुई मुसीबतें आपको ताकत,होंसला और सकारात्मक सोच देगी जिसका कोई भी जोड़ नहीं होता,जो खुद में अनमोल है !
- सुबोध

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139 . सही या गलत -निर्णय आपका !

कुछ लोग अपनी टीम पर ,जिसे उन्होंने खुद बनाया है -उसी टीम पर भरोसा नहीं कर पाते !

अगर आप भी उन लोगों में से है तो खुद से एक सवाल करें कि आपको भरोसा अपनी टीम पर नहीं है या खुद पर नहीं है ,कृपया जवाब बड़ी ईमानदारी से देवे .

जवाब चाहे जो हो दोनों ही स्थितियों में दोषी आप है ,इसकी जिम्मेदारी लेवे और अपेक्षित सुधार करें .

बड़े सपने पैरों में बेड़ी के अलावा कुछ भी नहीं है अगर आप बड़े स्तर पर सोचते नहीं है,बड़े प्रयास नहीं करते है और बड़े प्रयास करने के लिए एक जिम्मेदार टीम नहीं बना पाते है .

ये ध्यान रखे अगर छोटी सफलता पानी है तो मुमकिन है आप अकेले अपने दम पर पा सके लेकिन बड़ी सफलता के लिए आपको एक समर्पित टीम बनानी ही होगी !!
सुबोध

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Thursday, October 9, 2014

138 . सही या गलत -निर्णय आपका !

सफलता चाहना किसी सपने का प्रारंभिक स्तर है, यह एक बीज है और बीज की उपयोगिता कुछ भी नहीं होती अगर उसे बीजा न जाए . बीज को बीजना पहली आवश्यकता है उसके बाद उसे खाद देना ,पानी देना उसकी सम्हाल  करना दूसरी आवश्यकता है जिसे आप कह सकते है कि सपने पूरे करने के लिए एक प्लानिंग के तहत कार्य करना या सपनो तक पहुंचने के लिए पुल का निर्माण  करना और जहाँ आप कार्य करना शुरू कर देते है वहां चाहना ( चाहत )  अगले स्तर पर पहुँच जाती है जिसे मैं चुनना ( चुनाव ) कहूँगा  हकीकत में यही  वो कदम है जहाँ से सफलता आपकी तरफ आकर्षित होना शुरू करती है !
कुछ विचारक सपने को सफलता का पहला स्तर मानते है जबकि मेरा सोचना यह है कि सपने देखना एक भिखारी स्तर के अलावा कुछ भी नहीं है अगर उन्हें कार्य रूप में परिणित नहीं किया जाता .मेरी निगाह में जब आप सपनों पर गंभीर होकर एक प्लानिंग करते है और उस प्लानिंग के तहत कार्य करना शुरू करते है तभी आप सपने साकार करने की तरफ बढ़ते है.सपने देखना एक सकारात्मक कदम है लेकिन उन देखे हुए सपनों पर कार्य न करना आपको शेखचिल्ली बनाता है और इस तरह के लोग समाज में कितना आदर  पाते है ये आप आये दिन देखते है .

सफलता का चुनाव करना महत्वपूर्ण बन जाता है क्योंकि यही से आपका नजरिया बदलना शुरू हो जाता है आप सफलता  के अगले स्तर में प्रवेश कर जाते है जिसे समर्पण कहते है . उस स्थिति में आपका दिल,दिमाग और जिस्म शिद्दत से सफलता पाने में जुट जाता है ,रोम-रोम सफलता पुकारता है , कण-कण में सफलता ,पल-पल में सफलता ,चारों और सफलता,सिर्फ सफलता ...यह एक नशे की तरह होता है जहाँ आपको सफलता के अलावा कुछ भी नज़र नहीं आता ,ज़िन्दगी में आपकी प्राथमिकताएं बदल जाती है उन दिनों आप अपने परिवार को भूल जाते है ,खाना - पीना भूल जाते है ,सोना- जागना भूल जाते है ,सारे शौक ,सारे मौज -मजे भूल जाते है आप सब कुछ भूल जाते है सिवाय उस लक्ष्य के ;जब आप ऐसी स्थिति में होते है  तो ऐसी स्थिति को "लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन "कहा जा सकता है कि अब आप उस स्थिति में पहुँच गए है जहाँ से आप सफलता को आकर्षित कर पा रहे है . ( इस स्थिति की कल्पना कीजिये ,लिखे गए शब्दों ,वाक्यों में डूब जाइये ,इन्हे महसूस कीजिये अगर आप इस स्थिति को महसूस नहीं कर पा रहे है ,इस स्थिति से नहीं गुजरे है तो निश्चित ही आप एक असफल व्यक्ति है और सफलता पाने के लिए आपको पूर्णतः ऐसी ही स्थिति चाहिए जब आप आप न रहे लक्ष्य बन जाए !!)
सफलता आपको पार्क में टहलते हुए मिल जायेगी या सोचने से,सपने देखने से ,बातें करने से,गप्पबाज़ी करने से मिल जायेगी ऐसा सोचना खुद को धोखा देने के अलावा कुछ भी नहीं है ,अगर आपको सफलता चाहिए तो आपको वो सब करना पड़ेगा जिससे सफलता आपकी तरफ खींची चली आये ,आपकी तरफ आकर्षित हो .आप आलू बोकर आम की फसल पाने की सोचे तो आप चाहे जितनी सकारात्मक सोच वाले हो आलू आम नहीं बन जायेंगे . आलू बोये है तो आपको आलू ही मिलेंगे . अगर आपको आम पाने हो तो आलू बोना बेवकूफी है. इसी तरह से आपको सफलता पानी है तो आपको सफलता के बीज बोने  पड़ेंगे  ,अमीरी पानी है तो अमीरी के बीज बोने पड़ेंगे !!!
-सुबोध

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Friday, October 3, 2014

137 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट 136  से आगे -
जब तक आप को यह पता न हो कि आप जो कर रहे है उस करने का कोई एक अलग अर्थ भी है तब तक आप उस अलग अर्थ का कोई सदुपयोग नहीं कर पाएंगे . आपका एक गरीबदोस्त अपनी बातचीत में किसी  प्रोडक्ट की खासियत के बारे में बात करता है  तो ज़ाहिर सी बात है वो सेल्समैनशिप वाला कार्य करके भी उसका कोई आर्थिक फायदा नहीं उठा पाता है क्योंकि उसकी नज़र में वो सेल्समेन वाला कार्य नहीं कर रहा है  यानि उसे पता ही नहीं है कि वो जो कर रहा है उसका एक अलग अर्थ भी है .
गरीबों के साथ यही होता है कि उन्हें पता ही नहीं होता कि वे जो कर रहे है उसका कोई व्यावसायिक उपयोग भी हो सकता है जिससे उन्हें आर्थिक लाभ मिल सकता है ,अगर उन्हें इसका पता होता तो वे अपनी सेल्समेनशिप वाली क्वालिटी को बेहतर करते और अच्छा मुनाफा हासिल करते .
 जैसे अगर मैं कोई बुक रेफेर करता हूँ तो इनडायरेक्टली  ये उस बुक की मार्केटिंग है ,उस बुक को बिकवाता हूँ तो ये सेल्स क्लोज करना है , अधिकतर कंपनियां सेल क्लोज करने पर आपको कुछ हिस्सा मार्जिन में से देती है चूँकि गरीब को पहली बात तो ये पता नहीं होती कि वो मार्केटिंग कर रहा है और दूसरी बात ये कि उसे सेल क्लोज करना नहीं आता . जब वो पहली बात में ही क्लियर नहीं है तो दूसरी बात वाली क्वालिटी खुद में डेवेलप कहाँ करेगा ! और जब तक सेल क्लोज नहीं करेगा उसकी जेब में कुछ आएगा भी नहीं . 
गरीब सिर्फ मार्केटिंग  करते है ,सेल क्लोज नहीं करते लिहाजा उन्हें अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता .
अमीरों की स्थिति कुछ अलग होती है -उन्हें पता होता है कि हम किसी प्रोडक्ट की तारीफ़ करते है तो उसका मतलब क्या होता है लिहाजा वो सेल्स को सीरियसली लेते है और सेल क्लोज करना भी सीखते है . संसार के सारे अमीर खुद में एक बहुत अच्छे सेल्समन भी होते है मेरी जानकारी में कोई भी अमीर ऐसा नहीं है जो खुद में एक अच्छा सेल्समेन नहीं हो . कृपया सेल्स को हलके या अधूरे सन्दर्भ में न लेवे , यह संसार के सबसे बड़े सब्जेक्ट में से एक है लेकिन इसकी डिटेल में जाना मेरी इस पोस्ट का विषय नहीं है .
ध्यान रखे संसार के सबसे टफ कार्यों में से एक सेल क्लोज करना है और इसकी इम्पोर्टेंस ये है कि संसार में सबसे ज्यादा पेमेंट इसी कैटगरी वालों को मिलता है.  अमीर बनने के लिए ये निहायत ज़रूरी है कि आप सेल्स के बारे में सीखे,समझे,जाने और करें .
सुबोध
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Thursday, October 2, 2014

136 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट 48 " बेचना आना चाहिए" के बारे में थी .

अमीर बेचने के तरीके जानते है ,अहमियत समझते है जबकि गरीब बेचने को  तकरीबन नापसंद करते है ,इसे हेय दृष्टि से देखते है !

पहली बात ये समझे कि बेचना क्या होता है ,अमूनन गरीबों को" बेचने" के बारे में अधूरी जानकारी होती है .

कोई भी ऐसी कार्यवाही जिसकी वजह से कोई भी वस्तु के पक्ष में वातावरण का निर्माण हो रहा हो वो कार्यवाही बेचने का एक हिस्सा है !

आप T . V . में ढेरों ऐड देखते है ,वो किसी वस्तु के पक्ष में वातावरण का निर्माण भर है - लेकिन सेल्स का एक पार्ट है - कई विद्वानो की अलग-अलग परिभाषाएं है , अगर आपको बेचने के बारे में उलझन चाहिए तो उन्हें पढ़िए और सीधी सी समझ चाहिए तो उपरोक्त बात समझिए .

इस समझ के मुताबिक आप अगर किसी की भी तारीफ़ करते है तो Indirecty  उसकी मार्केटिंग कर रहे होते है , बेचने का हिस्सा हो जाते है .
अगर आप किसी को देखकर हंस रहे है तो आप अपनी मार्केटिंग कर रहे होते है ! अगर आप किसी Social Site पर खुद को update कर रहे है तो भी अपनी मार्केटिंग कर रहे होते है ,अगर आप अपनी Girlfriend  के साथ Dating कर रहे है तो अपनी मोहब्बत की Marketing कर रहे है - इसी बात को आप खुद अलग-अलग तरीके से समझ लेवे ,और जब समझ जावे तो मुझे बताये कि आपकी जानकारी में कोई एक ऐसा शख्स है जो बेचने का काम नहीं कर रहा है ?
यानि संसार का हर शख्स कुछ न कुछ बेच रहा है ,कोई भी इस बेचने से अछूता नहीं है ! एक भिखारी से लेकर किसी मुल्क का प्रधानमंत्री तक,एक शिक्षक से लेकर एक विद्यार्थी तक, एक नौकर से लेकर मालिक तक , एक पिता से लेकर पुत्र तक  हर शख्स Salesman  है ,हर शख्स मार्केटिंग कर रहा है !!

गरीबों को बेचने के बारे में अधूरी जानकारी होती है - वो हर पल हर घडी कुछ न कुछ बेच रहे होते है लेकिन उन्हें ये पता ही नहीं होता है कि वे बेच रहे है !!
वे खुद को जिस जॉब में है उस जॉब का कर्मचारी मानते है जबकि हकीकत में वे अपनी सेवाएं बेच रहे होते है ,वे पेड़ के उस हिस्से को देख पाते है जो ज़मीन से ऊपर है ,ज़मीन के नीचे के हिस्से को उनकी नज़रें देख नहीं पाती और दिमाग शब्दों के दायरे में कैद होकर रह जाता है ,शब्दों के वास्तविक अर्थ तक पहुँच ही नहीं पाता !
वे शब्द खतरनाक होते है जिनका आप हर रोज़ इस्तेमाल करते है लेकिन उनका अर्थ नहीं जानते है ऐसे शब्द आपकी ज़िन्दगी को बर्बाद कर सकते है !! गरीबों के साथ यही हो रहा है , वे सेल्समेन होकर भी खुद को सेल्स से बाहर मान रहे है और खुश हो रहे है !! अगर उन्हें शब्दों का सही अर्थ पता होता और पता होता कि वे बहुत अच्छे सेल्समेन है तो आज उनकी स्थिति कुछ अलग होती !!!
Post  लम्बी हो गई है बाकी अगली पोस्ट में
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Monday, September 29, 2014

135 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप पहली बार नया काम करते है तो अमूनन वो मुश्किल ही होता है लेकिन उसके बाद जब उसे दुबारा करेंगे  तो वो उतना मुश्किल नहीं लगेगा  और उसी कार्य को  फिर किया तो ?
कोई भी कार्य लगातार  दोहराने से आसान हो जाता है, जब ये आसान हो जाता है तो इसे करना सुखद  हो जाता है .और मानव स्वाभाव के अनुसार  सुखद कार्यों को वो बार-बार करना चाहता है और जब इसे बार-बार किया जाता है तो ये कार्य करना आदत  बन जाता है - उस स्थिति में वो कार्य उसके कम्फर्ट जोन ( Comfort Zone ) के दायरे में आ जाता है .
मुझे याद है मैं 10  साल पहले तक सिस्टम पर काम किया करता था ,जब पहली बार लैपटॉप लिया था तो लैपटॉप में  माउस न होने की वजह से बहुत दिक्कत होती थी ,उस दिक्कत से बचने के लिए मैंने एडिशनल माउस तक मंगवा लिया था ,लेकिन फिर धीरे-धीरे अभ्यास से बिना माउस से ही लैपटॉप पर काम करने लगा और आज मेरे लिए सिस्टम से ज्यादा लैपटॉप पर काम करना आरामदेह  है , यानि मेरा" टफ जोन "आज "कम्फर्ट जोन" में बदल गया है
आपके पास खुद के इसी तरह के ढेरों उदहारण होंगे कि आपने अपने उस बैरियर को तोडा है जो आपका टफ जोन था , अगर वो बैरियर आप नहीं तोड़ते तो आप कहाँ होते ?
हमेशा ध्यान रखे बाहर कोई भी मुश्किल उतनी मुश्किल नहीं होती जितनी आपके दिमाग में होती है , जब आप उस काम को करने जाएंगे जिसे आप कठिन मानते है तो वो उतना कठिन नहीं होगा जितना कठिन आपके दिमाग के स्टोर रूम में पड़ी फाइलों ने आपको बताया है और अगर आपके अनुमान से वो ज्यादा कठिन है तो आपने अपनी 2 किलोमीटर की दौड़ को सीधे  ही 6  किलोमीटर के स्तर पर पहुँचाने की कोशिश की है !! ऐसी स्थिति में मैं आपको यही कहूँगा कि कृपया खुद को टफ जोन में धकेलिये ,पहाड़ के ऊपर से धक्का मत दीजिये ; खुद को मोटीवेट ( Motivate ) कीजिये न कि खुद के प्रति निष्ठुर बनिये !!!
- सुबोध
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Thursday, September 25, 2014

134 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आपका आरामदेह दायरा क्या है ? आपका कम्फर्ट जोन क्या है ?
मान लेते है अभी आप डेली  2  किलोमीटर दौड़ते है और आप  डेली 4  किलोमीटर दौड़ना चाहते है .
2 किलोमीटर या इससे कम दौड़ना आपके लिए आपका कम्फर्ट जोन है क्योंकि इतना आप डेली दौड़ते है और इतना दौड़ने में न आपकी साँस फूलती है, न आपकी पिंडलियों में दर्द होता है और न ही आपको अतिरिक्त थकान महसूस होती है . जबकि 2  किलोमीटर से ज्यादा दौड़ने में आपको दिक्कत महसूस होती है तो 2  किलोमीटर से ज्यादा दौड़ना आपके लिए "कठिन क्षेत्र"  , "मुश्किल क्षेत्र"  " टफ जोन " है.

 इसका मतलब ये हुआ कि जब भी आप अपने 4 किलोमीटर दौड़ने के लक्ष्य को पाने के लिए 2 किलोमीटर से अधिक दौड़ेंगे आपको पूरे रास्ते मुश्किल यात्रा करनी होगी ,आप जब भी 2  किलोमीटर से अधिक दौड़ेंगे आपकी साँस फूलेगी,आपकी पिंडलियों में दर्द होगा ,आपको अतिरिक्त थकान महसूस होगी ,आप हाँफने लगेंगे ,आपके माथे पर पसीना नज़र आने लगेगा .
ये कम्फर्ट जोन जीवन के हर क्षेत्र में होता है , आप अपनी सीमा रेखा में है तो ये आपका कम्फर्ट जोन है खुद को सीमा रेखा से बाहर धकेलना मुश्किल क्षेत्र है .
गरीब और मध्यम वर्गीय मानसिकता के लोग  अपनी ज़िन्दगी को आरामदेह बनाना चाहते है , लिहाजा वो खुद को आरामदेह बना लेते है वे 2  किलोमीटर दौड़ने में ही आरामदेह महसूस करते है .  .  इस आरामदेह क्षेत्र का चुनाव उन्हें ज्यादा आत्मसंतुष्ट, ज्यादा सुरक्षित,ज्यादा तरोताज़ा महसूस करवाता  है .लेकिन ये आरामदेह दायरा उनके विकास को रोक देता है , उन्हें जानना और समझना चाहिए कि  2  किलोमीटर से अधिक दौड़ने पर उनके फेफड़े अधिक सक्रिय होंगे, पुराने तंतु टूटकर नए सिरे से अधिक मजबूत बनेंगे , वे पहले से ज्यादा ऑक्सीजन का उपयोग करेंगे ,उनका शारीरिक और मानसिक विकास पहले से ज्यादा होगा . वे अपनी अज्ञानता की वजह से जड़ों में काम नहीं करते ,जड़ो को मजबूत और स्वस्थ्य बनाने की बजाय पेड़ों की पत्तियों को पानी डाल -डाल कर साफ़ करते रहते है और  खुश होते रहते है.
दरअसल आप अपना विकास अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आकर ही कर सकते है , अपने कम्फर्ट जोन में रहकर जो आप हासिल कर सकते है वो तो कर ही रहे है अगर आपको उस से अधिक चाहिए तो आपको 2  किलोमीटर से अधिक दौड़ना पड़ेगा .
अमीर लोग हर बार अपने कम्फर्ट जोन को तोड़ते रहते है 2  किलोमीटर से 4   किलोमीटर 4  किलोमीटर से 6  किलोमीटर . वे वाकई कुछ अतिरिक्त नहीं करते सिवाय अपने कम्फर्ट जोन को हर बार तोड़ते रहने के....
उनकी अमीरी का एक राज ये भी है !!!!

सुबोध
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Monday, September 22, 2014

133 . सही या गलत -निर्णय आपका !

अगर आप अपनी ज़िन्दगी को मुश्किल बनाना चाहते है तो आसान कामों का चुनाव कीजिये और अगर आप अपनी ज़िन्दगी को आसान बनाना चाहते है तो मुश्किल कामों का चुनाव कीजिये .

जिस रास्ते पर भीड़ चलती है वो रास्ता आसान होता जाता है क्योंकि उस रास्ते पर चलने के लिए लैंडमार्क्स मौजूद होते है और बड़ी उपलब्धियां आसान रास्तों पर नहीं होती क्योंकि उस रास्ते की हरियाली तो भीड़ पहले ही कुचल चुकी  है ,उस रास्ते के सारे फूल पहले ही तोड़ लिए गये है ,ख़ूबसूरत नज़ारे पहले ही बर्बाद कर दिये गये  है !!!

बड़ी उपलब्धियां, हरियाली ,खूबसूरती,महक उन रास्तों पर होती है जो अनजान होते है ,ज़िन्दगी में कुछ हासिल करने का,नया और बेहतरीन पाने का  रोमांच भी उन्ही रास्तों पर होता है जहाँ पगडंडियां भी नहीं बनी होती है ,खुद के दम पर सब कुछ बनाना होता है . वो बनाना ही आपको अपने कम्फर्ट जोन से बाहर धकेलता है ;एक मेंढक को बाज़ बनने की ताकत देता है .

याद रखे आपका कम्फर्ट जोन ही आपका वेल्थ जोन होता है !कृपया गरीबी को भाग्य का खेल मत मानिये इसे कम्फर्ट जोन का चुनाव मानिये !!
- सुबोध

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Sunday, September 21, 2014

132 . सही या गलत -निर्णय आपका !

ज़िन्दगी में आपको आगे बढ़ने से कौन रोक रहा है ? आपके पैरों में ज़ंज़ीर डालने वाला कौन है ? मुकाबले में खड़े हुए बिना ही आपकी हार की घोषणा करने वाला कौन है ? वो कौन है जो इस बहुतायत वाले संसार में आपको अवसरों की कमी है ऐसा कह रहा है ? जो उत्साह के माहौल में भी आपको हताश, निराश  कर देता है वो कौन है ? क्या आपने कभी जानने की कोशिश की ?
मेरे पुरानी पोस्ट पढ़े , उनमे मैंने कई  वजह बताई है जो आपकी इस स्थिति  की वजह है .
मैंने बार-बार लिखा है आप जैसे भी है उसके जिम्मेदार सिर्फ आप ही है ,कोई अन्य नहीं . किसी दुसरे को  दोषी ठहराना सुधार के रास्ते को बंद करना है .क्योंकि सुधार हमेशा जिम्मेदारी को स्वीकारने से होता है !!
मेरी  पोस्ट 129 ,130 ,131   लक्ष्य के बारे में है , ईमानदारी से बताएं क्या आपने उन पोस्ट में बताये गए तरीकों पर अमल किया है ?

नहीं किया, अच्छा किया, करना भी नहीं चाहिए  क्योंकि हर आदमी का सच अलग होता है ,ये ज़रूरी नहीं मेरा सच आपका भी सच हो लेकिन कृपया ये बताये कि आप दूसरे के सच को स्वीकार नहीं रहे है ,खुद के सच में दम नहीं है तो आप करना क्या चाहते है ?
यानि आप  अनिर्णय की स्थिति में है या नकारात्मक भावों को अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाये हुए है . कृपया  ये समझ लेवें जब तक आप इनके खिलाफ खड़े होने की हिम्मत खुद में पैदा नहीं करते ,आपकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सकता . उन सपनो की कोई कीमत नहीं होती जिसे देखने के बाद आपको नींद आ जाये , वो सपने साकार भी नहीं होते !! तो अपनी इच्छाओं में वो आग पैदा करें जो आपमें ऊर्जा भर दे ,आपके सारे नकारात्मक  भावों को जला कर राख  कर दे .तभी आपके लक्ष्यों की सार्थकता है .
सुबोध

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Saturday, September 20, 2014

131 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप कुछ पाने का लक्ष्य बनाते है -
*धन की एक निश्चित ,सही-सही मात्रा  सोचते है .( जितनी ज्यादा डिटेल में जा सकते है जाए )
**उसे किस काम के द्वारा  पाएंगे.( जितनी ज्यादा डिटेल में जा सकते है  जाए )
 ***उसे पाने की क्या कीमत आप चुकाएंगे ये भी ज्ञात कर लेते है .( जितनी ज्यादा डिटेल में जा सकते है  जाए )
****और एक कटऑफ डेट भी चुन लेते है .( जितनी ज्यादा डिटेल तैयार कर सकते है करें )
ये आपका लक्ष्य तैयार हो गया !!
चारों   मुख्य  बातों के आगे मैंने रिमार्क में डिटेल देने के बारे में भी लिखा है - आप जितनी ज्यादा डिटेल देंगे उतना ही ज्यादा आपका विज़न क्लियर होता जायेगा .
दस साल में मैंने एक करोड़ रूपया कमाना है - ये लक्ष्य हो सकता है लेकिन इसमें डिटेल नहीं है लिहाजा ये आपको स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दे पाता है ,पहले साल आपने क्या कमाना है बल्कि पहले महीने या पहले वीक ... लब्बोलुबाब ये है कि जितनी ज्यादा डिटेल उतना स्पष्ट लक्ष्य .
चारों  पॉइंट के साथ अपनी जितनी ज्यादा डिटेल तैयार कर सकते है करे उसके बिना प्रोपेरली वर्क प्लान संभव नहीं है और डिटेल न होने पर  आपको खुद की सफलता / असफलता को जांचने का मौका नहीं मिलेगा . लिहाजा खुद को मोटीवेट रखने के लिए आपके पास पूरी डिटेल होनी चाहिए .
अगर आप वाकई सीरियस है तो लक्ष्य अपनी खुद की लिखावट  में तैयार करें ! मैं खुद की लिखावट के लिए इसलिए कह रहा हूँ कि ये आपका खुद के प्रति कमिटमेंट है  और हाँ ,मेरी इस बात को हलके में न लेवे !!!!

बधाई हो ! आप अमीरी के रास्ते पर चल पड़े है !!
-सुबोध
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Thursday, September 18, 2014

130. सही या गलत -निर्णय आपका !

जब लक्ष्य बनाने की बात आती है तो ज्यादातर लोग इसे मजाक में लेते है !!

उन्हें लक्ष्य की आवश्यकता और अहमियत समझ में नहीं आती , उन्हें लक्ष्य बनाना गैरजरूरी और बोझिल लगता है .

वे जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट 113 ( http://saralservices.blogspot.in/2014/08/110_23.html ) में लिखा है चाहना,चुनना और समर्पण में फर्क ही नहीं कर पाते .

उन्हें ये अंदाजा ही नहीं होता कि हमे अपनी जीत किस स्तर पर जाकर स्वीकार करनी है  ? वे निशाना कहाँ साध रहे है ?
तीन वक्त की रोटी पर ,गाड़ी पर , बंगले पर ?
वे लाख रुपये साल का कमाना चाहते है या महीने का या दस लाख महीने का या एक करोड़ महीने का ?

उनके दिमाग में कोई स्पष्ट खाका नहीं होता कि किस स्तर को पाने के लिए उन्हें क्या कीमत चुकानी होगी ?

आर्थिक स्वतंत्रता का लक्ष्य बनाना तो बहुत दूर की बात है ,उन्हें तो ये समझ में ही नहीं आता कि ऐसा कोई कांसेप्ट होता है और उसे हासिल किया जा सकता है.
वे दौड़ते रहते है , प्रयास करते रहते है ,ज़िन्दगी रूपी प्लेग्राउंड में उस फुटबॉल को लेकर जिसके लिए उनकी निगाहों में कोई गोल पोस्ट नहीं है - उन्होंने बनाया नहीं है !!!! (http://saralservices.blogspot.in/2014/09/129.html)

ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से चलती है वो आपको कुछ न कुछ बनाएगी जरूर .अगर आपने लक्ष्य बना रखा है तो आप उसके अनुरूप बनेंगे और अगर लक्ष्य नहीं बनाया है तो आप वो बनेंगे जो शायद आप बनना नहीं चाहें . जब कुछ न कुछ बनना ही है तो  क्यों न वो बने जो बनना  चाहते है !!!!
सुबोध
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Wednesday, September 17, 2014

129. सही या गलत -निर्णय आपका !

ज़िन्दगी में लक्ष्य  तय किये बिना शुरुआत  करना वैसा ही है जैसा फुटबॉल खेलते वक्त गोल पोस्ट का पता न होना ,वो  बड़ी ही हास्यास्पद स्थिति होती है जब एक फुटबॉल खिलाडी के पास फुटबॉल हो लेकिन उसे ये पता न हो कि गोल कहाँ करना है . अगर आप फुटबॉल मैच के दर्शक हो तो क्या ऐसी टीम को सपोर्ट करेंगे जिसके खिलाडी को ये भी पता नहीं हो कि गोल कहाँ करना है ? अगर नहीं तो क्यों ?

आपको शायद पढ़कर अच्छा नहीं लगे लेकिन हकीकत और  दुःख  की बात ये है कि संसार के अधिकांश लोग  इसी वर्णित खिलाडी  की नुमाइंदगी करते है !!

ऐसा  पत्र  जिसमे बहुत अच्छी-अच्छी ज्ञान भरी बातें लिखी हो लेकिन जिसके लिफाफे  पर पता नहीं लिखा हो वो बिना पता लिखा हुआ लिफाफा पोस्टमैन कहाँ डिलीवरी करेगा ? संसार में बहुत से ऐसे लोग होते है जिन्हे बहुत कुछ पता होता है, ज्ञान का भण्डार होते है, जिनके दिमाग में कूट-कूट कर नए-नए आइडियाज भरे होते है लेकिन वो कहीं नहीं पहुंचते ,क्यों नहीं पहुंचते क्या कभी आपने सोचा ?
अब गौर कीजियेगा - उनके लिफाफे पर लक्ष्य रूपी पता नहीं लिखा होता !!!!! .
गरीबी की बड़ी वजहों में से एक लक्ष्य का निर्धारण न करना  है .
सुबोध
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128. सही या गलत -निर्णय आपका !



अमीर मानसिकता के लोगों को अपनी कार्यक्षमता पर भरोसा होता है लिहाजा वे अपने प्रदर्शन ( Result ) के आधार पर पेमेंट माँगते है , जबकि गरीब मानसिकता के लोग समय के आधार पर पेमेंट माँगते है .
-सुबोध
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Saturday, September 6, 2014

127. सही या गलत -निर्णय आपका !

आज़ादी, स्वतंत्रता जैसे शब्दों की गहराई में जाए तो समझ में आता है कि जिसे हम आज़ादी कहते है वो अपने अंदर एक जिम्मेदारी समेटे है .आपको खुश होने की आज़ादी तब है जब आप खुश होने के लिए किये जानेवाले कार्यों की जिम्मेदारी लेते है . आपको अपनी संतान को संतान कहने की आज़ादी  तब है जब आप उनके भरण- पोषण की जिम्मेदारी लेते है . आपको अपनी बीमारी से आज़ादी तब मिलती है जब आप डॉक्टर द्वारा दी गई हिदायतों को जिम्मेदारी से पूरा करते है . आपको दोस्त को दोस्त कहने की  आज़ादी  तब है जब आप दोस्ती नामक लफ्ज़ के साथ जुडी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते है .
                 आपके जीवन के हर पहलु के साथ आज़ादी जुडी हुई है और उस आज़ादी के साथ एक जिम्मेदारी भी . वो आपके जिम्मेदारी से किये गए कार्यों का परिणाम  है कि कई तरह के  दुखों से,अभावों  से आपको आज़ादी मिली है ,और आप एक सुविधापूर्ण जीवन जी पा रहे है .
            आपके एक कलीग को इन्क्रीमेंट मिलता है दुसरे को नहीं ,आपने सोचा क्यों होता है ऐसा ?
             आपके साथ खेला-कूदा बड़ा हुआ एक दोस्त आज पैसे में खेलता है और दूसरा दो वक्त की रोटी भी ढंग से नहीं जुटा पाता ,  क्यों?
           मजाक  की बात ये है कि अधिकांश लोग जिम्मेदारी नामक लफ्ज़ से दूर भागते है, जहाँ तक होता है इससे बचते है .
           आज़ादी का एक अर्थ जैसा कि मैंने ऊपर बताया  जिम्मेदारी है उसी के अनुसार गुलामी का अर्थ गैर-जिम्मेदारी हो जाता है .
          मुझे शायद ये बताने की जरूरत नहीं है कि आज़ादी और गुलामी  में से आपको किसका चुनाव करना चाहिए , क्यों करना चाहिए और मेरे इस वाक्य का सही अर्थ क्या है !
- सुबोध

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