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Tuesday, November 25, 2014

149 . सही या गलत -निर्णय आपका !



पार्टनरशिप से अलग होने के बाद - पार्टनरशिप चाहे वो बिज़नेस की हो या ज़िन्दगी की .......

तुम्हारे फ़्रस्ट्रेशन की वजह मैं नहीं हूँ ,मैं तो सिर्फ तुम्हारे फ्रस्ट्रेशन का शिकार हूँ .जब हम अलग हुए थे -ज़िन्दगी में एक लम्बी दूरी साथ-साथ चलने के बाद , तब तुमने ज़िन्दगी भर की उपलब्धियाँ इकट्ठी करकर दो ढेरियां लगाई थी और कहा था एक तुम चुन लो दूसरी ढेरी मेरी हुई - यानी तुम्हारी निगाहों में दोनों ही ढेरियों का मूल्य एक जैसा था . मैंने वो ढेरी चुनी जिससे मुझे लगता था कि मेरे नेचर के अनुसार ये ढेरी मेरे लिए उपयुक्त है और दूसरी ढेरी तुम्हारी हो गई ,ज़माने में जब ये बात उघड़ी तो जो मेरे वाक़िफ़कार थे उनको मेरा चुनाव बेवकूफी भरा लगा था मैंने उन्हें समझाया कि बँटबारा उन चीज़ों का हुआ है जो हम दोनों ने मिलकर जुटाई है , चीज़ें बनाने के दरमियान काबिलियत भी बनती -बिगड़ती है , और काबिलियत का बंटवारा होना मुमकिन नहीं .

तुमने ज़िन्दगी भर चीज़ें बनाई थी और मैंने चीज़ें सम्हाली थी यानि तुम्हारी काबिलियत थी चीज़ें बनाना और मेरी काबिलियत थी चीज़ें सम्हालना.तुम्हारा अहंकार उस झगडे की मुख्य वजह था जिसमे अधिकार ये था कि चूँकि चीज़ें मैंने बनाई है इसलिए ये मेरी मिलकियत है और चूँकि सालो-साल साथ में रहे थे सो नतीजे के तौर पर दोनों में बंटवारा बराबर -बराबर का हुआ , और दो ढेरियों में से एक तुम्हारी हो गई और एक मेरी और बंटवारे को आज पांच साल भी नहीं गुजरे है कि तुम फ्रस्ट्रेड हो गए हो क्योंकि जो भी तुमने बंटवारा करकर हासिल किया था या इस दरमियान जो भी नया बनाया था / है वो सारे का सारा बिखर गया है / बिखर रहा है .

जबकि मैंने, मैं स्वीकार करता हूँ हमारे बनाये सिस्टम में कोई भी मोटा बदलाव नहीं किया, नया मैंने खास कुछ नहीं बनाया लेकिन जो बनाया हुआ था उसे अपनी काबिलियत के मुताबिक सम्हाला और बने-बनाये सिस्टम की गुडविल की वजह से कस्टमर बढ़ते गए / अच्छे लोग मुझसे जुड़ते गए और मेरा शुमार सफल लोगों में होने लगा ,क्या इसमें मेरी गलती थी ? मैंने वो चुना था जिसकी काबिलियत मुझमे थी जो किसी भी बिज़नेस का / ज़िन्दगी का सेकंड पार्ट होता है लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण पार्ट होता है और तुम तो कभी भी अमूनन सेकंड पार्ट को मैनेज करने के लिए बैठे ही नहीं थे.

तुम गहराई में जाकर खुद को क्यों नहीं जांचते कि तुम्हारी हार की वजह तुम खुद हो, तुम्हारा अहंकार है ,जहाँ भाव "अहम ब्रम्हास्मि" वाला है - कि मैं ही निर्माता हूँ मैं ही सब-कुछ हूँ . तुम इस बात को क्यों नहीं समझते कि चीज़ें बनानेवाली काबिलियत से ज्यादा महत्व चीज़ें सही तरीके से सम्हालने का होता है और वो काबिलियत तुम में थी ही नहीं ,तुम्हारी हार की वजह कोई गलत ढेरी का चुनाव नहीं था बल्कि ढेरी को सम्हाल न पाने की नाक़ाबिलियत थी. मैं दावे से कह सकता हूँ कि अगर तुम दूसरी ढेरी का चुनाव भी करते तो भी तुम्हारा हारना निश्चित था क्योंकि तुम में दुसरे भाग वाली काबिलियत ही नहीं थी - जो लम्बी ग्रोथ के लिए पहली आवश्यकता होती है .
सुबोध - नवंबर २५, २०१४
Photo: 149 . सही या गलत -निर्णय आपका !पार्टनरशिप से अलग होने के बाद - पार्टनरशिप   चाहे वो बिज़नेस की हो या ज़िन्दगी की .......तुम्हारे फ़्रस्ट्रेशन की वजह मैं नहीं हूँ ,मैं तो  सिर्फ तुम्हारे फ्रस्ट्रेशन का शिकार हूँ .जब हम अलग हुए थे -ज़िन्दगी में एक लम्बी दूरी साथ-साथ चलने के बाद , तब तुमने ज़िन्दगी भर की उपलब्धियाँ इकट्ठी करकर दो ढेरियां लगाई थी और कहा था एक तुम चुन लो दूसरी ढेरी मेरी हुई - यानी तुम्हारी निगाहों में दोनों ही ढेरियों का मूल्य एक जैसा था . मैंने वो ढेरी चुनी जिससे मुझे लगता था कि मेरे नेचर के अनुसार ये ढेरी मेरे लिए उपयुक्त है और दूसरी ढेरी तुम्हारी हो गई ,ज़माने में जब ये बात उघड़ी तो जो मेरे वाक़िफ़कार थे उनको मेरा चुनाव बेवकूफी भरा लगा था मैंने उन्हें समझाया कि बँटबारा उन चीज़ों का हुआ है जो हम दोनों ने मिलकर जुटाई है , चीज़ें बनाने के दरमियान काबिलियत भी बनती -बिगड़ती है , और काबिलियत का बंटवारा होना मुमकिन नहीं . तुमने ज़िन्दगी भर चीज़ें बनाई थी और मैंने चीज़ें सम्हाली थी यानि तुम्हारी काबिलियत थी चीज़ें बनाना और मेरी काबिलियत थी चीज़ें सम्हालना.तुम्हारा अहंकार उस झगडे की मुख्य वजह था जिसमे अधिकार ये था कि चूँकि चीज़ें मैंने बनाई है इसलिए ये मेरी मिलकियत है और चूँकि सालो-साल साथ में रहे थे सो नतीजे के तौर पर दोनों में बंटवारा बराबर -बराबर का हुआ , और दो ढेरियों में से एक तुम्हारी हो गई और एक मेरी और बंटवारे को आज पांच साल भी नहीं गुजरे है कि तुम फ्रस्ट्रेड हो गए हो क्योंकि जो भी तुमने बंटवारा करकर हासिल किया था या  इस दरमियान जो भी नया बनाया था / है  वो सारे का सारा बिखर गया है / बिखर रहा है .  जबकि मैंने, मैं स्वीकार करता हूँ हमारे  बनाये सिस्टम में कोई भी मोटा बदलाव नहीं किया, नया मैंने खास कुछ नहीं बनाया लेकिन जो बनाया हुआ था उसे अपनी काबिलियत के मुताबिक सम्हाला और बने-बनाये सिस्टम की गुडविल की वजह से कस्टमर बढ़ते गए / अच्छे लोग मुझसे जुड़ते गए  और मेरा शुमार सफल लोगों में होने लगा ,क्या इसमें मेरी गलती थी ? मैंने वो चुना था जिसकी काबिलियत मुझमे थी जो किसी भी बिज़नेस का / ज़िन्दगी का  सेकंड पार्ट होता है लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण पार्ट होता है और तुम तो कभी भी अमूनन सेकंड पार्ट को मैनेज करने के लिए बैठे ही नहीं थे.    तुम गहराई में जाकर खुद को क्यों नहीं जांचते कि तुम्हारी हार की वजह तुम खुद हो, तुम्हारा  अहंकार है ,जहाँ भाव "अहम ब्रम्हास्मि" वाला है - कि मैं ही निर्माता हूँ मैं ही सब-कुछ हूँ . तुम इस बात को क्यों नहीं समझते कि चीज़ें बनानेवाली काबिलियत से ज्यादा महत्व चीज़ें सही तरीके से सम्हालने का होता है और वो काबिलियत तुम में थी ही नहीं ,तुम्हारी हार की वजह कोई  गलत ढेरी का चुनाव नहीं था  बल्कि ढेरी को सम्हाल न पाने की नाक़ाबिलियत  थी. मैं दावे से कह सकता हूँ कि अगर  तुम दूसरी ढेरी का चुनाव भी करते तो भी तुम्हारा हारना निश्चित था क्योंकि तुम में दुसरे भाग वाली काबिलियत ही नहीं थी - जो लम्बी ग्रोथ के लिए पहली आवश्यकता होती है .सुबोध - नवंबर २५, २०१४

4 comments:

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