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Wednesday, August 27, 2014

117 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप  प्रसन्न  कब होते है ?
आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि ख़ुशी या तो पाने में होती है या देने में .
पाने का अर्थ उपभोग से भी है और संग्रह ( वस्तु का मालिकाना हक़ पाना ) से भी , और देने का अर्थ मदद करने से है, दान करने से है .
पाने वाले पक्ष से आप अच्छी तरह वाकिफ है मेरी पहले की पोस्ट्स में ढेरों बार इस पर लिखा जा चूका है लिहाजा उसके बारे में कुछ न लिख कर मैं दुसरे " देने " वाले पक्ष पर लिख रहा हूँ . देने में , मदद करने में एक संतुष्टि का भाव है . किसी बुजुर्ग महिला को आप सड़क पार करवाने के बाद संतुष्टि महसूस करते है ,ये देना है ,मदद करना है .इस से आपका आतंरिक संसार ( विचार, भावना एवं अध्यात्म का मिला जुला रूप ) संतुष्ट होता है , रिलैक्स्ड होता है ,एनेर्जिक होता है .
देने का भाव आपको मानवीयता के उस उच्च स्तर पर ले जाता है , जहाँ आप महामानव हो जाते है . किसी एनजीओ ,किसी चाइल्ड वेलफेयर , किसी अनाथालय को जब आप दान देते है तो आपकी भावनाएं आपको मजबूती देती है ,एक अजीब सी ताकत देती है .
  ध्यान रखे कोई भी व्यक्ति सिर्फ लेता नहीं है ,बदले में कुछ न कुछ आपको लौटाता है और ये उसका लौटाना ही आपका पुरुस्कार है - एक बच्चे को जब आप प्यार करते है ,उसके गाल पर हाथ फेरते है तो बदले में वो बच्चा आपको अपनी मुस्कान लौटाता है . हो सकता है आप भौतिकतावादी हो और आशीष ,शुभकामनाओ, मुस्कान  वगैरह की जुबान न समझते हो ,इनमेँ  यकीन न करते हो तो आप इतना समझ लेवे कि देने से  आपके अंतर को संतुष्टि मिलती है और संतुष्टि एक बेहतरीन उत्पादक टूल  होती है .
          रिश्तेदार,दोस्त,परिचित ज़िन्दगी में अपनी अहमियत रखते है उनके लिए दिल में हमेशा एक सॉफ्ट-कार्नर होता है अगर वे कभी  आपसे उधार लेते है ,मदद चाहते है ,सहायता चाहते है तो उन्हें मना कर पाना काफी तकलीफदेह होता है और अंदर से एक अजीब से गिल्ट का नकारात्मक  भाव पैदा करता है , इस अपराधबोध से बचने के लिए आपको व्यवस्थित होना चाहिए . अपनी कमाई में से हमेशा किसी अवांछित परिस्थिति के लिए बचा कर रखना चाहिए .
तो कुल मिलाकर कहना ये है कि अपनी कमाई का 10  %  आप दान और सहायता खाते में डालिये .
- सुबोध

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ये पोस्ट मेरी पोस्ट 112, 114, 115 ,116  का हिस्सा है , मेरी पुरानी या ताज़ा पोस्ट पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर जाएँ .

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